गुरुवार, 6 जनवरी 2011

खादिमों की गुटबाजी से पिटे सैयद गुलाम ख्वाजा

पुलिस कप्तान बिपिन कुमार पांडे के चैंबर के बाहर अंजुमन सैयद जादगान प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य सैयद गुलाम ख्वाजा की पिटाई केवल उनके और पीटने वाली महिला के बीच का मामला नहीं था। इसमें अंजुमन की गुटबाजी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। तभी तो इस वाकये के बाद अंजुमन में बवाल हो गया है और विपक्षी गुट ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। विपक्षी गुट के नेता सैयद वाहिद हुसैन अंगारा के नेतृत्व में अंजुमन सदर को दिए गए पत्र में साफ तौर पर लिखा है कि सदर अगर राजनीति नहीं करते और कौमियत को सामने रखकर पहले ही खादिमों के दोनों पक्षों में कोई फैसला करवा देते तो सार्वजनिक स्थल पर एक जिम्मेदार खादिम की पिटाई नहीं होती।
असल में विरोधी गुट को तकलीफ इस कारण नहीं कि आपसी विवाद में एक खादिम सार्वजनिक रूप से पिट गया, बल्कि इस बात से है कि पिटने वाला खादिम उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल था, जो पुलिस कप्तान पांडे का इस्तकबाल करने गया था और प्रतिनिधिमंडल के सामने ही सार्वजनिक रूप से पिटाई हो गई। जाहिर तौर पर इससे खादिम कौम के साथ अंजुमन भी बदनाम हुई। इससे खादिम समुदाय का उत्तेजित होना स्वाभाविक सा है। एक अरसे से सदर सैयद गुलाम किबरिया के कामकाज के तरीके से खफा विरोधी गुट ने मौके का भरपूर फायदा उठाया और सीधे सदर पर ही हमला बोल दिया है। उसने आगे-पीछे का पूरा हिसाब-किताब बराबर करते हुए सदर के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के बोलबाले का आरोप तक जड़ दिया। इतना ही नहीं इज्रराइल के राजनयिक को दरगाह बुलाने से हुई खादिम कौम की बदनामी का मामला भी उछाल दिया है। सदर पर ये भी आरोप लगाया है कि वे केवल मीडिया में फोटो छपवा कर वाहवाही लूटने की फिराक में रहते हैं और कौम के हित में कुछ नहीं करते।
जहां तक अंजुमन प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य की सरे-आम पिटाई को लेकर कोई कार्यवाही न करने का सवाल है, ऐसा प्रतीत होता है कि सदर सैयद किबरिया की मजबूरी ये है कि पिटने वाले सैयद गुलाम ख्वाजा पर ऑन द रिकार्ड कोई आरोप नहीं है। अंदर का सच जो कुछ भी हो, मगर पुलिस मामले में एफआर लगा चुकी थी।
रहा सवाल इतने बड़े वाकये का, ऐसा प्रतीत होता है कि अकेली महिला की यह हिम्मत नहीं हो सकती कि वह इस बात का ध्यान रखे कि कब प्रतिनिधिमंडल एसपी से मिलने जा रहा है और उसके बाहर आते ही पिटाई शुरू कर दे। जरूर इसमें किसी न किसी जिम्मेदार शख्स की शह है, जिसके दम पर महिला ने सरे-राह इतनी बड़ी नौटंकी खड़ी कर दी। शक ये भी है कि इस नौटंकी को अंजाम देने के लिए बाकायदा षड्यंत्र रचा गया, ताकि अंजुमन सदर पर हमला बोला जा सके।
बहरहाल, अब जब कि मामले ने तूल पकड़ लिया है, बात दूर तक जाने का पूरा अंदेशा है। विरोधी गुट को अंजुमन सदर के खिलाफ आगामी चुनाव का मुद्दा बनाने का मौका मिल गया है। इतना ही नहीं अंजुमन सदर पर अब चुनाव समय पर कराने का दबाव भी बन गया है। इस सिलसिले में अंजुमन के तीसरे गुट ने भी मोर्चा खोल दिया है और साफ तौर पर मांग कर डाली है कि सदस्यों का कार्यकाल आगे न बढ़ाया जाए और 1 मार्च को कार्यकाल समाप्त होने को ध्यान में रखते हुए चुनाव कराए जाएं। लब्बोलुआब, यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में होने वाले अंजुमन चुनाव और भी हंगामाखेज होंगे। उल्लेखनीय है कि तकरीबन तीन साल पहले जब अंजुमन के चुनाव हुए थे तो बड़ा विवाद और जबरदस्त परचेबाजी हुई थी और पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने बैक फुट पर आकर किंग मेकर की भूमिका निभाई थी। और नतीजतन अंजुमन को हाईटैक व खादिमों को शिक्षित जमात बनाने का उनका सपना अधूरा ही रह गया।
धर्मेश जैन के सवाल को चबा गए डॉ. बाहेती
हालांकि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने हाल ही सीडी कांड से पाक साफ हो कर निकले पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन के हमले जवाब देते हुए उनकी चुनौती को तो स्वीकार कर लिया है कि भले ही उनके कार्यकाल की जांच करवाई जाए, मगर वे जैन के उस सवाल को तो चबा ही गए कि जो सीडी उन्होंने विधानसभा के पटल पर रखी थी, वह उनके पास कहां से आई थी। ज्ञातव्य है कि जैन ने न केवल उस सीडी के स्रोत पर सवाल किया था, अपितु संदेह भी जाहिर किया था कि कहीं सीडी बनवाने में उनका हाथ तो नहीं था। इस पर डॉ. बाहेती का सिर्फ ये कहना है कि सीडी में जैन पर गंभीर आरोप लगे थे और उन्होंने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए उसे विधानसभा में पेश किया था। सीडी उनके पास कहां से आई, यह बात कोई मायने नहीं रखती।
असल में सीडी सीआईडी सीबी द्वारा संदिग्ध करार दिए जाने के बाद जैन को एक बहुत बड़ी राहत मिल गई है, लेकिन ने केवल जैन के लिए अपितु आमजन के सामने भी यह एक बड़ा सवाल है कि उस सीडी को किसने बनाया? षड्यंत्र किसने रचा? सीआईडी ने सीडी की एफएसएल जांच कर यह तो साफ कर दिया कि रिकार्डिंग की आवाज में कई अवरोध व जोड़ हैं, जिससे आवाज का प्रवाह जोड़-जोड़ कर बनाया गया है। सीआईडी सीबी ने सीडी बनाने वाले का पता लगाना असंभव माना है, लेकिन इस बात का खुलासा नहीं किया है कि पता लगाना संभव क्यों नहीं है। असल में उसने जांच केवल सीडी की सामग्री की ही की, न कि उसके स्रोत की। ऐसे में यह सवाल आज भी मौजूद है कि विधानसभा के पटल पर रखी गई सीडी डॉ. बाहेती के पास आखिर आई कहां से। यूं सीडी अखबार वालों के पास भी आई थी, लेकिन खुद सीआईडी सीबी ने ही मान लिया कि उन्होंने स्रोत उजागर न करने के विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर यह बताने से इंकार कर दिया कि उनके पास सीडी कहां से आई। ऐसे में अकेले डॉ. बाहेती ही वह सूत्र हैं, जिनसे पता लग सकता है कि वह सीडी उनको किसने दी।
हालांकि यह सही है कि डॉ. बाहेती ने तो जो कुछ उनके पास आया, वह विधानसभा के समक्ष रख दिया, और उसी के आधार पर जैन को तत्काल इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन अब जब कि वह फर्जी साबित हो गई है, यह सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है कि उसका स्रोत क्या था। उनका यह कहना उस वक्त की परिस्थिति में तो ठीक था, जब कि मामले से पर्दा नहीं हटा था, मगर सीडी फर्जी साबित होने के बाद यह कहना कि सीडी कहां से आई, यह बात कोई मायने नहीं रखती है, बड़ी हास्यास्पद लगती है।