गुरुवार, 3 मार्च 2011

मजीद साहब, इतना आसान भी नहीं है नाजिम का पद

दरगाह की अंदरूनी व्यवस्थाओं को अंजाम देने वाली दरगाह कमेटी के नए नाजिम जनाब अब्दुल मजीद खान साहब ने गुरुवार को कुर्सी संभालने से पहले एक बयान में कहा कि चुनौतियों के बिना कार्य करने का उन्हें मजा ही नहीं आता। जाहिर है उनको पदभार संभालने से पहले ही दरगाह में मौजूद कुछ चुनौतियों की जानकारी दी गई होगी, तभी प्रतिक्रिया में उन्होंने यह दिलेरी दिखाई है। ऐसे शेर बहादुर की ही जरूरत है, जो दरगाह में व्याप्त समस्याओं का बहादुरी से मुकाबला कर सके। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि नए नाजिम साहब को वास्तविक चुनौतियों के बारे में जानकारी हुई नहीं होगी।
असल में दरगाह शरीफ में काम की चुनौतियां तो हैं ही, जो कि हर जगह पर स्वाभाविक रूप से होती हैं, मगर यहां कुछ बिना काम की चुनौतियां भी हैं। सरकार की ओर से तय की गई नाजिम की ड्यूटी से जुड़े काम तो हैं ही, बिना तय किए हुए काम भी करने होते हैं। जैसे सबसे बड़ी चुनौती है दरगाह में धार्मिक रस्में अदा करवाने के हकदार खुद्दाम हजरात और सुप्रीम कोर्ट की ओर से माने गए ख्वाजा साहब के निकटतम उत्तराधिकारी दरगाह दीवान के बीच तालमेल रखना। अमूमन इन्हीं के बीच तालमेल बैठाने के चक्कर में नाजिम उलझ जाते हैं। अब तक नियुक्त लगभग सभी नाजिम विवाद की चपेट में आए ही हैं। कुछ नाजिम तो पिट भी चुके हैं। पिछले नाजिम भी पिटे थे। यह एक बड़ी चुनौती है। थोड़ी सी चूक हुई नहीं कि पिटने की नौबत आ जाती है। थोड़ी गलती हुई नहीं कि विवाद उठ खड़ा होता है। और विवाद पैदा करने वाले भी मौके की तलाश में ही रहते हैं। कुछ तत्त्व तो ऐसे भी हैं, जो नाजिमों के साथ भिड़ंत कर-कर के इलाके में छाये हुए हैं। अकेले आरएएस अफसर अश्फाक हुसैन ही ऐसे थे, जो सर्वाधिक कामयाब रहे और अमूमन सभी को साथ लेकर चलते रहे। असल में उन्होंने आदतन हंगामा करने वालों से ही दोस्ती कर ली, इस कारण उनके कार्यकाल में हंगामे कम ही हुए।
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती कुछ अलग किस्म की है। हालांकि सरकार की ओर से दरगाह के अंदर की व्यवस्थाएं करने की जिम्मेदारी नाजिम को दी हुई है, लेकिन उन सभी व्यवस्थाओं में कहीं न कहीं खादिमों से टकराव की नौबत आ ही जाती है। असल बात तो ये है कि यदि नाजिम नियमानुसार ही चले तो कदम-कदम पर टकराव हो जाए और वह काम ही नहीं कर पाए। अधिसंख्य नियम खादिमों के सर्वाधिकार में बाधा बनते हैं। वस्तुत: नाजिम तो नियुक्त किए हुए हैं और कुछ समय के लिए आते हैं, जबकि खादिमों को खिदमत का जन्मसिद्ध अधिकार है। नाजिम साहब को खिदमत का कितना मौका मिलेगा, पता नहीं, लेकिन खादिमों को खिदमत का अधिकार तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है और कायनात रहने तक चलता रहेगा। इस कारण दरगाह के भीतर उनका रुतबा लाजवाब है। इतना लाजवाब कि वर्दी का रुतबा गालिब करते ही कानून के रखवाले पुलिस वाले तक पिट जाते हैं। पुलिस अफसर तक अपने मातहतों के पिटने पर समझौता करने में ही अपनी भलाई समझते हैं। असल में धार्मिक लिहाज से खादिमों की दरगाह में अहम भूमिका है ही, वे संपन्न होने के साथ-साथ ऊंचे रसूखात वाले हैं। बड़े-बड़े राजनीतिकों व वीवीआईपी से उनके संबंध हैं। इस कारण जो नाजिम चतुराई से उनकी मिजाजपुर्सी करके चलता है वह तो शांति से समय काट लेता है और अगर थोड़ी भी अड़ाअड़ी करता है तो लपेटे में आ जाता है।
इन दो चुनौतियों के अतिरिक्त भी अनेक चुनौतियां हैं, मगर उनसे पार पाया जा सकता है। जैसे कि दरगाह के अंदर अतिक्रमण है। उसे हटाने की हर नाजिम कोशिश करता है, मगर आज तक कोई भी सफल नहीं हो पाया है। ऐसे में उनके बेहतर ये ही होता है कि अपनी आंखें ही मूंद लें। बस इसी प्रकार जगह-जगह पर आंख मूंद लीजिए, मजीद साहब, आपको कोई दिक्कत नहीं आएगी।