मंगलवार, 15 मार्च 2011

आधे-अधूरे उपायों से और ज्यादा बिगड़ी यातायात व्यवस्था

हाल ही जिला प्रशासन की पहल पर यातयात व्यवस्था को सुधारने और वाहन चालकों की सुविधा के लिए जो तात्कालिक उपाय किए हैं, उससे वाहन चालकों को सुविधा मिलने की बजाय असुविधा ज्यादा हो रही है। इन आधे-अधूरे उपायों से विशेष रूप से गांधी भवन चौराहा, आगरा गेट व सूचना केन्द्र चौराहे पर यातायात व्यवस्था और ज्यादा बिगड़ गई है। एकतरफा यातायात व्यवस्था से दिखता भर है कि यातायात व्यवस्थित हो गया है, लेकिन असल बात ये है कि उससे वाहन चालकों की परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। एकतरफा यातायात के समयांतराल के दौरान कचहरी रोड से जुड़ी छोटी-छोटी गलियों की हालत खराब हो गई है, क्यों कि सारा दबाव उन पर आ पड़ा है। इससे गलियों में हर आधे घंटे बाद यातायात जाम हो रहा है और उनमें रहने वाले लोगों का जीना हराम हो गया है। इसी प्रकार आगरा गेट व सूचना केन्द्र चौराहों पर यातायात को पूरी तरह से नियंत्रित कर दिए जाने से बार-बार जाम लग रहा है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि प्रशासन ने बेहतरी के लिए ही प्रयास किए हैं, क्योंकि उसकी जानकारी में हैं कि अजमेर शहर में एक तो मुख्य माग सीमित हैं, दूसरा वे काफी संकड़े है, तीसरा उन पर अतिक्रमण हो रखा है और चौथा ये कि पार्किंग स्थल न होने की वजह से सड़के दोनों ओर वाहनों की कतारें लगने से मार्ग और संकड़े हो गए हैं। आबादी भी लगातार बढ़ रही है और प्रतिदिन सड़कों पर उतरते वाहनों की संख्या यातायात व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर रही है। इसी के मद्देनजर प्रशासन ने यातायात व्यवस्था के स्थाई समाधान पर भी विचार किया है और उसके अनुरूप कुछ उपायों की कवायद शुरू भी की है, लेकिन यातायात पुलिस कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गई है। उसने बिना सर्वे के ऐसे उपाय कर दिये हैं, जो पहले से बिगड़ी यातायात व्यवस्था में कोढ़ में खाज वाली स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि यातायात पुलिस ने अभी जो उपाय किए हैं, वे पहली बार हो रहे हों। इससे पहले भी उसने यही उपाय किए थे, लेकिन जब देखा की धरातल पर इससे परेशानी और बढ़ जाती है, तो उन्हें मजबूरन स्थगित कर दिया था। हाल ही जब जिला प्रशासन का दबाव बढ़ा तो उसने वे ही उपाय फिर से लागू कर दिए। अफसोसनाक बात ये है कि यातायात पुलिस ने जिला प्रशासन को यह जानकारी नहीं दी कि पूर्व में किए गए इसी प्रकार के प्रयास निरर्थक रहे हैं। हालांकि यह सही है कि यातायात पुलिस ने जो उपाय किए हैं, अकेले वे ही उपाय उसके हाथ में हैं। इसके अतिरिक्त वह कुछ कर भी नहीं सकता। मगर यह भी सच है कि उसके ये उपाय आधे-अधूरे ही हैं। आधे-अधूरे इस वजह से कि कचहरी रोड, पृथ्वीराज मार्ग व जयपुर रोड इतने संकड़े हैं कि जैसे ही उनका यातायात नियंत्रित किया जाता है, जाम लगना शुरू हो जाता है। और जाम भी ऐसा लगता है, उसे समाप्त करने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे में स्पष्ट है कि जब तक स्थाई समाधान के लिए ओवर ब्रिज और पार्किंग प्लेस विकसित नहीं किए जाएंगे, ऐसे उपायों से केवल परेशानी ही बढ़ेगी। यातायात पुलिस के वे कर्मचारी, जो कि व्यवस्था को जमीन पर अंजाम देते हैं, वे रोजाना हो रही दिक्कत को अपनी आंखों से देख रहे हैं, लेकिन वे कुछ बोलने की बजाय हुकम का पालन करने में लगे हैं। वे बढ़ी हुई परेशानी से अच्छी तरह से वाकिफ हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत है कि कई बार वे सूचना केन्द्र व आगरा गेट चौराहे पर यातायात को खुला छोड़ देते हैं, ताकि लोग आसानी से आ जा सकें, लेकिन अधिकारियों के डर से फिर नियंत्रण करने लग जाते हैं। अफसोसनाक बात है कि यातायात पुलिस के अधिकारियों ने जानते-बूझते हुए भी प्रशासन को धरातल की हकीकत से अवगत कराने के नाम पर हाथ खड़े करने की बजाय खुद को मुस्तैद जताने के लिए वही उपाय कर दिए, जिनसे परेशानी बढ़ती है। सर्वाधिक अफसोसनाक बात ये है कि यातायात पुलिस की कवायद से हो रही परेशानी को मीडिया द्वारा उजागर किए जाने के बाद भी वह कान में तेल डाले बैठी है।