शनिवार, 20 मई 2017

क्या यकायक खतरनाक हो गए इतने सारे समारोह स्थल?

भरतपुर में कुछ दिन पूर्व तेज अंधड़ से एक समारोह स्थल की दीवार गिरने से हुई मौतों के बाद राज्य सरकार ने अचानक आदेश जारी कर दिए कि बिना लाइसेंस वाले समारोह स्थल सीज कर दिए जाएं। इसकी अनुपालना में अजमेर में भी धड़ाधड़ समारोह स्थल सीज कर दिए गए। नतीजा ये है कि तकरीबन तीन सौ आयोजक परेशानी में आ गए हैं कि वे अचानक नया समारोह स्थल कहां जा कर ढूंढ़े? दुविधा ये है कि अगर कोई और समारोह स्थल बुक करवाते हैं, वह भी अगर ऐन वक्त पर सीज हो गया तो वे क्या करेंगे? जो लोग कार्ड बांट चुके हैं, उनके लिए परेशानी ये भी है कि नए स्थान व नई तारीख की सूचना कम समय में कैसे भेजें? दैनिक भास्कर ने मीडिया का फर्ज निभाते हुए पड़ताल कर ऐसे मामलों को उजागर किया है। ऐसे और भी मामले होंगे ही। मगर सवाल ये उठता है कि क्या केवल मीडिया ही अपना फर्ज निभाएगा, सरकार व प्रशासन की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है कि वह यकायक की गई कार्यवाही से हुई परेशानी का निराकरण करे?
कैसी विडंबना है कि सरकार व प्रशासन तब जा कर जागे, जबकि एक समारोह स्थल पर हादसा हो गया। क्या एक ही दिन में सारे समारोह स्थल खतरनाक हो गए? सैकड़ों-हजारों समारोह स्थल बिना लाइसेंस के चल रहे थे तो वह किसकी गलती है? वहां सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे, तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? जिन अधिकारियों व कर्मचारियों पर समारोह स्थलों की निगरानी का जिम्मा था, क्या पूरी तरह से निर्दोष हैं। अगर वे गलत हैं तो उसके लिए सजा का क्या प्रावधान है? माना कि समारोह स्थल मालिकों ने गलती की तो उन्हें दंड मिलना ही चाहिए, मगर जिसकी लापरवाही से समारोह स्थल चल रहे थे, क्या उनका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा? समारोह स्थल मालिकों से अवैध वसूलियां करने वाले अधिकारी-कर्मचारी छुट्टे घूमते रहेंगे? ये कैसा कानून है? और उससे भी बड़ी बात ये है कि जिन लोगों ने समारोह स्थल बुक करवाए, उनका क्या दोष? वे किस बात की सजा भोग रहे हैं? उनको जो आर्थिक व मानसिक हानि होगी, उसकी भरपाई कौन करेगा? माना कि सरकार ने जनहित में त्वरित कार्यवाही करते हुए बड़ा अच्छा काम किया, मगर क्या यह नहीं देखा जाना चाहिए था कि यकायक ऐसा करने से  जनता को परेशानी तो नहीं हो जाएगी? सरकार चाहती तो तुरंत जांच करवा कर ऐसे समारोह स्थलों को, जो वाकई खतरनाक हैं, उनको सीज करती, बाकी को फिलहाल छूट दे देती, जिनमें समारोह आयोजित करने पर अभी कोई खतरा नहीं है। लाइसेंस की औपचारिकता तो एक माह की अवधि में बाद में भी पूरी की जा सकती थी। मगर ऐसा हुआ नहीं, होना भी नहीं है, क्योंकि कानून अंधा है, सरकार व प्रशासन संवेदनहीन। ऊपर बैठे राजनेताओं को अपनी राजनीति का चिंता है, आदेश जारी करने वाले एसी चैंबर में बैठ कर एक ही लाठी से सबको हांकते हैं और निचले आधिकारियों तो केवल लकीर पीटनी है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000