सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

प्रो. अब्बास ताबिश के कार्यक्रम के संदर्भ में प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं क्या?

सरकार ही क्यों नहीं रोक देती ऐसे कार्यक्रम

इसमें कोई दोराय नहीं कि जब दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने का विवाद चरम पर है, पूरे देश में गरमागरम बहस छिड़ी हुई है, उसका राजनीतिकरण भी हो चुका है, ऐसे में किसी पाकिस्तानी शायर का यहां कार्यक्रम होता तो उससे माहौल बिगड़ सकता था। यह अलग बात है कि लाहौर-पाकिस्तान के शायर प्रो. अब्बास ताबिश, जो कि उर्दू अदब के वैश्विक चेहरा माने जाते हैं, के जवाहर रंगमंच पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम शायरी-सरहद से परे का भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा युवा मोर्चा ने मुखर विरोध किया, नतीजतन आयोजक संस्था अजमेर लिटरेरी सोसायटी को कार्यक्रम रद्द करना पड़ा, वरना कार्यक्रम के दौरान देशभक्ति से ओतप्रोत कोई व्यक्ति भी हुड़दंग कर सकता था। वजह साफ है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध ठीक नहीं हैं और आम भारतीय में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। विशेष रूप से इन दिनों। कदाचित समन्वयक और लाफ्टर चैलेंज फेम रास बिहारी गौड़ के पास सांस्कृतिक आदान-प्रदान के तर्क हो सकते हैं, वह बहस का एक विषय भी हो सकता है, मगर श्रद्धा और भावना के आगे कोई तर्क नहीं टिकता।
अजमेर में कायम शांति बरकरार रखने के लिए कार्यक्रम का स्थगित होना उचित ही है, मगर सवाल ये उठता है कि जिस दल की वर्तमान में केन्द्र व राज्य में सरकार है, उसके होते हुए क्यों ऐसे कार्यक्रम की अनुमति दी गई। देश के हालात को देखते हुए खुद सरकार को ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़े ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगा देनी चाहिए। कम से कम अति संवेदनशील अजमेर सरीके शहरों में तो विशेष सावधानी बरती ही जा सकती है। विहिप के महामंत्री शशिप्रकाश इंदौरिया इस बयान में दम है कि पठानकोट एयरबेस पर हमले के बाद पाक की दोगली चालें सामने आई थीं और ऐसे में पाक के कलाकारों को भारतीय मंच देना यहां की जनता और आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए जवानों के परिवारों के दिलों पर आघात करने जैसा है। आयोजकों को यह सोचना चाहिए कि देश में पाक के खिलाफ माहौल होने के बावजूद उन्हें कार्यक्रम का न्योता क्यों दिया जाए। मगर सवाल ये है कि सरकार खुद ही ऐसे न्यौतों को नामंजूर क्यों नहीं करती। अगर शायर प्रो. अब्बास ताबिश के भारत आगमन और कार्यक्रम की मंजूरी की प्रक्रिया के दौरान ही रोक लगा दी जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। समझा जा सकता है कि किसी भी कार्यक्रम की तैयारी में कितना श्रम और अर्थ व्यय होता है। सरकार व प्रशासन के स्तर पर मंजूरी मिल जाने के बाद उसे रद्द करने के लिए दबाव बनाना नीतिगत दृष्टि से गलत ही कहा जाएगा। बेहतर तो ये रहे कि खुद भाजपा संगठन सरकार में बैठे नुमाइंदों पर दबाव बनाए कि मौजूदा हालात में इस प्रकार के कार्यक्रमों को स्वीकृति नहीं दी जाए। ऐसा करना भाजपा के लिए कठिन भी नहीं है। केन्द्र व राज्य, दोनों ही सरकारें भाजपा इकलौते दम पर चला रही है। माहौल बिगडऩे का जो खतरा भाजपा संगठन के नेताओं का नजर आता है, वो सरकार में बैठे भाजपा नेताओं भी समझ में आता होगा। मगर अफसोस कि ऐसा हुआ नहीं। जो काम सरकार व प्रशासन को करना चाहिए था, वह संगठन को करना पड़ा। गर कूटनीतिक संबंधों की वजह से सरकार ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने में असमर्थ है तो, कम से कम कानून व्यवस्था के लिहाज से प्रशासन का दायित्व तो बनता ही है। यहां सवाल प्रशासन और पुलिस की इंटेलीजेंसी पर भी उठता है। क्या उसे अनुमान नहीं था कि ऐसे कार्यक्रम की स्वीकृति देने से माहौल बिगड़ सकता है? अजमेर में शांति बनी रहे, इसकी जिम्मेदारी सीधे तौर पर प्रशासन की बनती है, न कि भाजपा व उसके सहयोगी संगठनों की। ये तो अच्छा हुआ कि उन्होंने समय से पहले ही कार्यक्रम रद्द करवा लिया, वरना बाद में अगर कुछ हंगामा होता तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होता? होना तो यह भी चाहिए कि भाजपा को जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक की ऊपर से खिंचाई करवानी चाहिए, जिन्होंने यहां कायम अमन की चिंता किए बगैर कार्यक्रम रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
बहरहाल, ताजा घटनाक्रम से अजमेर को आए दिन बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम देने वाले रास बिहारी गौड़ निरुत्साहित होंगे, वहीं शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव को पहली बार दमदार उपस्थिति दर्ज करने का मौका मिला है। थोड़ा हट कर बात करें तो गौड़ के भाजपा के स्थानीय नेताओं से अच्छे संपर्क हैं, उन्हें मित्रता के नाते भी यह कार्यक्रम न करने की सलाह दी जा सकती थी। ऐसी नौबत ही नहीं आती।
-तेजवानी गिरधर
7742067000, 8094767000