गुरुवार, 15 सितंबर 2011

16 जुलाई 2011 को अजमेर फोरम की बैठक में मेरा धन्यवाद संबोधन

शहर भाजपा में चल रही सिर फुटव्वल से ही फूटा ज्वालामुखी

भाजपा का प्रदेश नेतृत्व भले ही भारतीय जनता युवा मोर्चा की अजमेर शहर अध्यक्ष की हाल ही में हुई नियुक्ति को लेकर उठे बवाल को अनुशासनहीनता करार दे, मगर यह खुद उसके यहां मौजूद गुटबाजी और अजमेर भाजपा में चल रही सिर फुटव्वल का ही परिणाम है।
असल में इस पद के कुल तीन दावेदारों नीतेश आत्रे, गौरव टाक व देवेन्द्र सिंह शेखावत के नाम का पैनल बना कर जयपुर भेजा गया था। इनमें से नीतेश आत्रे विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी खेमे के माने जाते हैं, जबकि विधायक अनिता भदेल ने गौरव टाक पर हाथ रख रखा था। इन दोनों को लेकर कुछ न कुछ परेशानी थी, लेकिन दोनों विधायकों के दबाव की वजह से पैनल में उनका नाम आ गया। देवनानी को पूरी उम्मीद थी कि वे अपनी पसंद के आत्रे को अध्यक्ष बनवाने में कामयाब हो जाएंगे और संभावना भी यही थी, मगर जयपुर में देवनानी की विरोधी लॉबी अचानक सक्रिय हो गई और उसने झटपट देवेन्द्र सिंह शेखावत का नाम फाइनल करवा कर घोषित भी कर दिया। उस लॉबी की रुचि इस बात में नहीं थी कि शेखावत को अध्यक्ष बनाया जाए, बल्कि इस बात में ज्यादा थी कि देवनानी को झटका दिया जाए। हालांकि अनिता भदेल को पता लग गया था कि उनकी ओर से प्रस्तावित नाम तय नहीं हो रहा है, मगर उन्हें इस बात से संतुष्टि थी कि देवनानी की ओर से पेश किया गया नाम भी तय नहीं हो रहा है, इस कारण उन्होंने ऐन वक्त पर शेखावत के नाम पर सहमति जता दी। जहां तक शेखावत का सवाल है, वे लाला बन्ना के नाम से प्रसिद्ध पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत के बेहद करीबी हैं। इसके बावजूद उन पर गुटबाजी की छाप कोई खास गहरी नहीं हैं और सभी गुटों के नेताओं से संपर्क रखने में माहिर हैं। उनका नेगेटिव प्वाइंट है तो केवल ये कि वे कई साल तक जीसीए में एसडब्ल्यूओ के बैनर तले एबीवीपी की बारह बजाते रहे हैं। मगर यह भी सच है कि साथ ही हाल के कुछ वर्षों में युवा मोर्चा के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। उनके विरोधी युवा नेता प्रशांत यादव उनके नेगेटिव प्वाइंट को ही आधार बना कर विरोध कर रहे हैं, मगर अकेला यह बिंदु इस कारण कारगर नहीं हो पाएगा क्योंकि ऐसे तो जिला भाजपा में कई बड़े नेता हैं, जिनकी निष्ठा पूर्व में कहीं और रही है। खुद शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत भी किसी जमाने में भीम से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं, जबकि बाद में भाजपा में आने के बाद चार बार सांसद बने। इसी प्रकार पूर्व जल संसाधन मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट भी मूलत: भाजपा से नहीं थे। रहा सवाल मेयर के चुनाव में डॉ. प्रियशील हाड़ा के खिलाफ काम करने के आरोप का तो ऐसे कई नेता हैं, जिन पर बगावत करने का आरोप है, मगर उनके खिलाफ अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऐसे में इस आरोप को कितनी गंभीरता से लिया जाएगा, समझा जा सकता है।
बहरहाल, जैसे ही शेखावत की नियुक्ति हुई तो मानो भूचाल आ गया। नीतेश आत्रे के नेतृत्व में पार्टी का अनुशासन सड़क पर तार-तार कर दिया गया। असंतुष्ट कार्यकर्ता अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकारसिंह लखावत के घर पर भी प्रदर्शन करने पहुंच गए। वे समझते हैं कि लखावत के देवनानी से नाइत्तफाकी रखने के कारण ही आत्रे की नियुक्ति नहीं हो पाई। मजे की बात ये रही कि असंतुष्ट कार्यकर्ता देवनानी के घर पर भी प्रदर्शन करने पहुंच गए। इसे इस रूप में लिया गया कि ऐसा देवनानी के कहने से ही हुआ है। दरअसल जैसे ही कार्यर्ताओं ने भाजपा का बैनल आग के हवाले किया, सारा ठीकरा देवनानी पर ही फूटने की नौबत आ गई। यही माना जाना लगा कि उनके इशारे पर ही हंगामा हुआ है। कदाचित इस आरोप से बचने के लिए उन्होंने इशारा किया कि खुद उनके घर पर भी प्रदर्शन की रस्म निभा दी जाए। आत्रे देवनानी गुट के ही हैं, इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि उनके खेमे के भाजयुमो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन ने भी शेखावत की नियुक्ति पर सवालिया निशान लगा दिया है। उनका कहना है कि नियुक्ति के समय आम कार्यकर्ताओं की भावना का ध्यान नहीं रखा गया और नियुक्ति पर फिर से विचार होना चाहिए। जाहिर तौर पर जैन के लिए यह पचा पाना कठिन है कि उनके गुट के आत्रे को अध्यक्ष नहीं बनवा पाए। ज्ञातव्य है कि हाल ही वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन कर अपनी धाक जमा चुके हैं। हालांकि उनकी नियुक्ति में देवनानी की कोई खास भूमिका नहीं रही और वे अपने दम पर ही बन कर आए हैं, मगर खुद अपने ही शहर में अपनी पसंद का अध्यक्ष न बनवा पाना वाकई कष्टप्रद कहा जाएगा।
अब रहा सवाल असंतुष्टों पर कार्यवाही का तो लगता तो यही है कि प्रदेश हाईकमान इसे गंभीरता से ले रहा है। असल में उसका ऐतराज इस बात पर ज्यादा है कि जिस तरह से सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया गया और प्रदेश नेतृत्व का चुनौती दी गई, वह संगठन के लिए काफी घातक है। असंतुष्ट युवा नेता प्रशांत यादव को तो आदर्श मंडल अध्यक्ष घीसूलाल गढ़वाल ने मंडल मंत्री पद से मुक्त भी कर दिया है। अन्य के खिलाफ भी कार्यवाही होने की पूरी संभावना है। दूसरी ओर असंतुष्ट भी कमजोर नहीं हैं। उनके पास कार्यकर्ताओं की अच्छी ताकत है। इसी कारण एकाएक शांत होते नजर नहीं आते। वे घोषणा भी कर चुके हैं कि वे शेखावत को किसी भी सूरत में अध्यक्ष नहीं मानेंगे और आत्रे के नेतृत्व में युवा शक्ति का गठन करेंगे। देखना ये है कि पार्टी उनको मनाने में कामयाब हो पाती है या नहीं।