रविवार, 13 नवंबर 2011

भाजपा की सरकार आई तो मुख्यमंत्री वसुंधरा ही होंगी


पूर्व उप प्रधानमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अजमेर में अपनी आमसभा में पूरी तरह से साफ कर दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ही मुख्यमंत्री होंगी।
असल में ऐसा उन्होंने ऐसा जानबूझ कर किया या संयोगवश हो गया, इसका पता नहीं, मगर उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि राजस्थान की जनता उन्हें ही मुख्यमंत्री के रूप में देखती है, इस कारण भाजपा भी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करेगी। हुआ यूं कि वे अपने संबोधन के दौरान श्रीमती राजे को मुख्यमंत्री कह बैठे। तुरंत उन्हें लगा कि वे गलत बोल गए हैं, और उनकी जुबान फिसल गई है, उन्होंने बात को संभाला। पहले तो अपने संबोधन को दुरुस्त किया और फिर तुरंत बोले के आप भले ही मुख्यमंत्री नहीं हैं, मगर राजस्थान की जनता आज भी आपको मुख्यमंत्री के रूप में ही देखती हैं। इसका साफ-साफ अर्थ निकाला गया कि कम से कम आडवाणी की ओर से उनके नाम पर मुहर लगी ही हुई है। हालांकि वहां बैठे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी अथवा वसुंधरा विरोधियों के सीने पर सांप लौट गए होंगे, मगर वे कर भी क्या सकते थे।
कुल मिला कर इस सभा से यह साफ हो गया कि भाजपा एक ओर जहां आडवाणी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने जा रही है, वहीं आगामी विधानसभा चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। सभा के बाद वसुंधरा लॉबी के विधानसभा चुनाव के दावेदारों में इसकी खुशी साफ देखी जा सकती थी। वे बढ़-चढ़ कर उनके इर्द-गिर्द मंडराते हुए नजर आए।

आडवाणी की सभा तो सफल हो गई, मगर इम्पैक्ट जीरो


पूर्व उप प्रधानमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की अजमेर में हुई आमसभा कहने को तो कामयाब हो गई क्योंकि एडी से चोटी का जोर लगाने के कारण ठीक-ठाक भीड़ तो जमा कर ली गई, मगर उसके असर को लेकर संशय ही है। मीडिया में मिले कवरेज के जरिए अलबत्ता कुछ असर पड़ा भी हो, मगर सभा में मौजूद श्रोताओं की राय यही रही कि आडवाणी का भाषण नीरस और उबाऊ रहा। यही वजह रही कि भाषण शुरू होने के दो-तीन मिनट बाद ही लोगों ने उठना शुरू कर दिया। जो लोग पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के भाषण के वक्त बंधे हुए और जोश में थे, वे बिखरने लगे।
असल में आडवाणी की सभा को लेकर स्थानीय भाजपा नेता शुरू से ही चिंतित थे। उन्हें पूर्व के अनुभवों और गुटबाजी के कारण चिंता थी कि भीड़ कैसे जुटाई जाए। इस कारण प्रदेश हाईकमान ने स्थानीय नेताओं पर पूरा दबाव बना रखा था कि वे आपसी मतभेद भुला कर इस सभा को ऐतिहासिक बनाने की कोशिश करें। हालांकि लाख कोशिशों के बाद भी अपेक्षित लक्ष्य दस हजार की तादाद को तो पूरा नहीं किया जा सका, मगर फिर भी सभा में भीड़भाड़ ठीक-ठाक थी। हालांकि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा जिसे प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने जा रही हो, उसके लिहाज से तो भीड़ काफी कम थी, मगर उसे शर्मनाक भी नहीं कहा जा सकता। कुल मिला कर सभा कामयाब ही कही जाएगी। मगर उसमें भी किंतु ये है कि अधिसंख्य श्रोता गांवों से लाए हुए ही थे। शहर के लोग तो फिर भी ज्यादा तादात में नहीं लाए जा सके। इसके पीछे यहां की गुटबाजी को कारण माना जा रहा है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति साफ देखी जा सकती थी।
एक सच ये भी है कि आडवाणी एक बहुत अच्छे वक्ता भी नहीं हैं, जैसे कि अटल बिहारी वाजपेयी। वाजपेयी की सभा के लिए भीड़ जुटाने की जरूरत नहीं होती थी। लोग खुद-ब-खुद चले आते थे, उनके लच्छेदार भाषण को सुनने को। यहां तक कि कांग्रेसी विचारधारा वाले भी उनको सुनना पसंद करते थे। आडवाणी के साथ ऐसा नहीं है, इस कारण भीड़ जुटाने की नौबत आती है। ऐसा नहीं है कि आडवाणी के प्रति उत्साह में पहली बार कमी देखी गई है। इससे पूर्व में भी अजमेर में हुई सभाओं का यही हाल रहा है। अलबत्ता रामरथ यात्रा का माहौल जरूर और था, जिसमें लोगों की धार्मिक भावनाओं को उभारने के कारण वह यात्रा ऐतिहासिक बन पड़ी थी।
बहरहाल, सभा कामयाब होने के बावजूद आडवाणी श्रोताओं के मन में ऐसा कुछ नहीं डाल पाए, जिसे कि याद करते हुए श्रोता अपने घर लौटे हों। उनका भाषण बुद्धिमत्तापूर्ण जरूर था, बहुत ठंडा, नीरस सा। वे ऐसे बोल रहे थे, मानो किसी संगोष्ठी में बोल रहे हैं और चंद बुद्धिजीवी उसे सुन रहे हैं। बातें जरूर दमदार थीं, मगर उनकी अभिव्यक्ति असरकारक नहीं थी। इसके पीछे एक तर्क उनकी उम्र का भी दिया जा रहा है, मगर पूर्व में भी उनके भाषणों में कोई आकर्षण नहीं देखा गया है। कदाचित इसकी वजह यह भी रही हो कि वे अपने कद और जिम्मेदारी के कारण राष्ट्रीय मुद्दों पर ही बोले, जिनमें कि आम तौर पर लोगों की उतनी रुचि नहीं होती, जितनी कि प्रदेश और शहर के मुद्दों के प्रति होती है। वैसे भी भ्रष्टाचार व महंगाई ऐसी मुद्दे हो गए हैं कि जिनके बारे में सुनते-सुनते लोगों के कान पकने लगे हैं।
असल में भीड़ का अपना अलग मिजाज होता है। उसे जोशीले भाषण ही प्रभावित करते हैं। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे पूरी तरह से खरी उतरीं। उनके पूरे भाषण के दौरान सभी श्रोता उनकी ओर आकर्षित थे। श्रोताओं, जिन्हें भाजपा कार्यकर्ता अथवा भाजपा मानसिकता वाले श्रोता कहा जा सकता है, में उत्साह साफ देखा जा सकता था। इससे यह साबित तो हो गया है कि भाजपा कार्यकर्ताओं में उनके प्रति भारी क्रेज है। यानि कि वसुंधरा राजे के लिहाज से यह सभा जरूर कामायाब रही। वे एक बार फिर अजमेर के लोगों के मन में अपनी छाप छोड़ कर जाने में कामयाब हो गईं, जिसका कि लाभ उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में मिलने की पूरी संभावना है।