मंगलवार, 10 मार्च 2020

क्यों नहीं हुआ फाल्गुन महोत्सव?

कई वर्षों से हर साल आयोजित होने वाला फाल्गुन महोत्सव इस बार क्यों नहीं हो पाया? आज हर एक की जुबान पर यह सवाल है, मगर जवाब किसी के पास नहीं है। हर जागरूक नागरिक, अधिकारी, व्यापारी, राजनीतिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार एक दूसरे से यह पता कर रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि शहर का मात्र ऐसा शानदार कार्यक्रम, जो शहर की धड़कन था, जिसमें किसी न किसी रूप में सभी वर्गों की भागीदारी थी, जिसकी प्रसिद्धि अन्य शहरों तक फैल चुकी थी, वह बिना किसी चर्चा के गुपचुप ही विलुप्त कैसे हो गया?
असल में यह कार्यक्रम पत्रकारों की पहल पर होता रहा। इसमें राजनीतिक लोग, कलाकार सहित अन्य वर्गों के लोग सक्रिय सहभागिता निभाते थे। नगर निगम, अजमेर विकास प्राधिकरण, अजमेर डेयरी आदि प्रायोजक की भूमिका के लिए तत्पर रहते थे। आम लोग या तो दर्शक के रूप में मौजूद रह कर आनंद उठाते थे, या फिर अखबारों या फेसबुक पर फोटो व वीडियो युक्त कवरेज देख कर अपडेट हो जाते थे।
बेशक हर बार छोटे-मोटे मतभेद होते रहे, जो कि किसी भी समूह में स्वाभाविक भी है, मगर चूंकि आपस में मनमुटाव नहीं है, इस कारण यह दिलकश जलसा हर बार पहले से अधिक रोचकता लिए हुए आयोजित होता रहा। आम लोगों को पता नहीं, मगर इस आयोजन ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। हर बार कार्यक्रम की समीक्षा भी होती रही, ताकि गलतियों से सबक लिया जाए और आगे पहले से बेहतर व सुव्यवस्थित आयोजन हो।  इस बार ऐसा क्या हुआ कि अनौपचारिक आयोजन समिति की एक भी औपचारिक या अनौपचारिक बैठक नहीं हुई? आपस में जरूर एक दूसरे से पूछते रहे, मगर सामूहिक चर्चा कहीं भी नहीं हो पाई। शहर की इस बेहतरीन सांस्कृतिक परंपरा का यूं यकायक नदारद हो जाना बहुत ही पीड़ा दायक है।
मुझे याद आता है आयोजन को लेकर हर बार होने वाली छोटी-मोटी परेशानी के मद्देनजर एक बार दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल ने दूरदर्शितापूर्ण प्रस्ताव रखा था कि फाल्गुन महोत्सव समिति का रजिस्ट्रेशन करवा लिया जाए, लेकिन कुछ सदस्यों ने इसका यह कह कर विरोध कर दिया कि इसकी जरूरत नहीं है। बिना विधिवत पंजीकृत संस्था के भी इतने साल से सफल आयोजन हो ही रहा है। उनका एक तर्क ये भी था कि इससे संस्था के भीतर राजनीति पैदा हो जाएगी, जिसमें थोड़ा दम भी था। हुआ ये कि जो सदस्य डॉ. अग्रवाल के सुझाव से सहमत थे, वे चुप ही बैठे रहे, उन्होंने कोई दबाव नहीं बनाया, नतीजतन प्रस्ताव आया-गया हो गया। काश, संस्था का रजिस्ट्रेशन हो जाता तो आज जो नौबत आई है, वह नहीं आती। संस्था के किन्हीं एक-दो पदाधिकारियों की रुचि न भी होती तो भी अन्य सदस्य एकजुट हो कर कार्यक्रम की अनिवार्यता के लिए माहौल बना सकते थे। कम से कम निर्वाचित कार्यकारिणी पर तो जिम्मेदारी होती ही, मगर आज स्थिति ये है कि आयोजन न होने को लेकर न तो कोई जिम्मेदार है और न ही कोई जवाबदेह। आयोजन से जुड़े हर सदस्य ने आपसी चर्चा में कार्यक्रम किसी भी सूरत में करने की बात तो कही, मगर पहल किसी ने नहीं की। इसी अराजक स्थिति का परिणाम ये है कि शहर उल्लास के सामूहिक उत्सव से वंचित रह गया।
चूंकि आयोजन करने वालों में पहली पंक्ति में पत्रकार साथी हुआ करते हैं, इस कारण चाहे अनचाहे ये संदेश जा रहा है कि उनमें कोई मतभेद रहे होंगे, जबकि ऐसा है नहीं। सभी पत्रकार साथियों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे शहर की सांस्कृतिक धारा को अनवरत बहने का मार्ग प्रशस्त करें।
उम्मीद है कि समिति, जिसे फिलहाल समूह कहना ज्यादा उपयुक्त रहेगा, के बेताज कर्ताधर्ता गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे, ताकि अगले साल वर्षों पुरानी परंपरा को फिर से जीवित किया जा सके।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सुरेश सिंधी होंगे एमएलए टिकट के दावेदार?

सिटी मजिस्ट्रेट पद से सेवानिवृत्त हुए अभी जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के बीच यह चर्चा होने लगी है कि सुरेश सिंधी आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से एमएलए टिकट के दावेदार होंगे। यह चर्चा कहां से और कैसे उठी, किसने वायरल की, कुछ पता नहीं, क्या खुद उन्होंने कहींं संकेत दिया, ये भी खबर नहीं, मगर है, इसमें कोई दोराय नहीं। हाल ही पूज्य झूलेलाल जयंती समारोह समिति की ओर से आयोजित उनके अभिनंदन समारोह में मैने मंच से इस चर्चा का सवालिया जिक्र किया तो न तो उन्होंने से इसका सिरे से खंडन किया और न ही पुष्टि की। अपने उद्बोधन में वे मेरी जिज्ञासा को हजम ही कर गए।
खैर, यह चर्चा राजनीतिक जमीन पर कैसे प्रस्फुटित हुई, इस की पड़ताल की तो पहली बात ये सामने आई कि हालांकि वे एक जिम्मेदार प्रशासनिक पद पर थे, मगर उनका सहज-सरल स्वभाव और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण इस अनुमान को बल मिला। वैसे भी अजमेर का ये मिजाज है कि जैसे ही कोई व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में रुचि लेता है तो लोग यकायक यह कयास लगाते हैं कि कहीं उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो नहीं है? हालांकि अभी ये कहना मुश्किल है कि वे भाजपा टिकट के दावेदार होंगे या कांग्रेस के, मगर जैसा गणित है, उनके कांग्रेस टिकट का दावेदार होने की संभावना ज्यादा है। वो इसलिए कि भाजपा में तो पहले से लगातार चार बार जीत कर धरतीपकड़ साबित हो चुके प्रो. वासुदेव देवनानी पांचवीं बार भी खम ठोक कर खड़े हो जाएंगे। हों भी क्यों न, आखिर लगातार चार बार जीते हैं। उम्र की कोई बाधा न हो तो टिकट कटने का कोई कारण भी नहीं बनता। लोग तो यहां तक कहते हैं कि अगर उनको टिकट नहीं मिला तो वे अपने पुत्र को टिकट दिलवा देंगे। देवनानी के बाद नंबर वन कंवल प्रकाश किशनानी कौन सा हार मानने वाले हैं। महेन्द्र तीर्थानी खुल कर तो नहीं खेलते, मगर उनकी अंडर ग्राउंड सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। इन सबसे बड़ी बात ये है कि भाजपा में यहां का टिकट आरएसएस तय करती है, और लगता नहीं कि वह सुरेश सिंधी पर दाव खेलने के बारे में सोचेगी भी। यानि कि उनकी दावेदारी कांग्रेस टिकट के लिए ही बनेगी। बनेगी इसलिए कि कांग्रेस टिकट के लिए सिंधी समुदाय की ओर से ढ़ंग से दावेदारी बनी ही नहीं। दावेदारी हुई जरूर, मगर दमदार नहीं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट यह प्रयोग करना चाहते थे, मगर वैसा हो न पाया। कुल जमा बात ये है कि कांग्रेस में प्रबल सिंधी दावेदारों का अभाव सा है। यही वजह है कि जैसे ही सुरेश सिंधी रिटायर हुए, तो ऐसा माना गया कि सुरेश सिंधी इस वेक्यूम को भर सकते हैं। दावेदारी में हर लिहाज से फिट भी बैठते हैं। लंबे समय तक भिन्न-भिन्न पदों पर अजमेर में ही रहे हैं, इस कारण सुपरिचित  चेहरा हैं। अजमेर की समस्याओं व जरूरतों से भलीभांति परिचित है। बेदाग हैं। ऊर्जावान हैं। ईमानदार हैं। कूल माइंडेड हैं। दिलेर हैं। एक बार भूतपूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री प्रो. सावंरलाल से भिड़ंत के किस्से पब्लिक डोमेन में हैं। भूतपूर्व विधायक स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय की तरह लो-प्रोफाइल हैं। प्रदेश कांग्रेस हाईकमान तक पहुंच रखते हैं। अगर अगली बार फिर कोई धन्ना सेठ नोटों की बोरियां लेकर नहीं आया तो दावेदारों की अग्रिम पंक्ति में आसानी से खड़े हो सकते हैं। रहा सवाल पैसे का तो लगता नहीं कि जिस तरीके से ईमानदारी से नौकरी की, चुनाव के लायक पैसा जोड पाए होंगे।
अपनी समझ तो यही कहती है कि फिलवक्त तो वे यकायक राजनीति में सक्रिय नहीं होंगे और सरकारी तंत्र से ही जुड़ कर पार्ट टाइम काम करेंगे। और जब लगेगा कि उपयुक्त समय व मौका है तो राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो भी सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000