गुरुवार, 18 जुलाई 2013

बोर्ड अध्यक्ष सच्चाई कह गए तो भाटी को बुरा लग गया

रेलवे बोर्ड अध्यक्ष अरुणेंद्र कुमार ने गत दिवस अजमेर दौरे के दौरान जैसे ही यह बयान दिया कि पुष्कर-मेड़ता तथा नसीराबाद-कोटा रेल लाइन की उपयोगिता नहीं पाई गई है और इन पर रेल लाइन बिछाने से कोई विशेष प्रभाव पडऩे वाला नहीं है, तो पूर्व उप मंत्री ललित भाटी को बुरा लग गया। उन्होंने बाकायदा बयान जारी कर कहा कि वे अजमेर से जुड़े रेलवे के मसलों पर सर्वोच्च सदन के निर्णय के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं।
बेशक उनकी इस प्रतिक्रिया में दम है कि रेल बजट की घोषणा क्या देश के सर्वोच्च सदन में बिना किसी ठोस आधार के की जा सकती है, मगर सवाल ये भी तो है न कि उस सर्वोच्च सदन भी तो आखिरकार उसी सरकारी तंत्र की रिपोर्ट पर ही घोषणाएं करता है, जो कि अब ये कह रहा है कि इन रेल लाइनों की उपयोगिता नहीं पाई गई है। संसद को खुद-ब-खुद सपना थोड़े ही आता है। इससे तो ऐसा संदेह होता है कि कहीं रेल बजट में जो घोषणा की गई, उसके पीछे कोरा राजनीतिक दबाव तो नहीं था। सबको पता है कि इन रेल लाइनों के लिए काफी अरसे से मांग की जा रही थी और फौरी तौर पर सर्वे भी हुआ। मगर घोषणा तभी हुई जब अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ने विशेष प्रयास कर रेलवे बजट में उसे शामिल करवा दिया।
यह भी सर्वविदित तथ्य है कि कई बार राजनीतिक दबाव की वजह से नई योजनाएं लागू कर दी जाती हैं, भले ही उनकी उतनी उपयोगिता हो न हो। ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। अजमेर-पुष्कर रेल लाइन का मसला ही लीजिए। भारी दबाव के चलते उसे चालू तो कर दिया गया, मगर धरातल पर उसकी उपयोगिता कितनी साबित हो पाई है, किसी से छिपी हुई नहीं है। ताजा मामले में भी ऐसा ही प्रतीत होता है। आम जनता व उसे सपने बेचने वाली नेता नगरी अपने नजरिये से पुष्कर-मेड़ता तथा नसीराबाद-कोटा रेल लाइन की उपयोगिता आंकती है, जबकि रेलवे के तकनीकी जानकारों के आंकने का तरीका कुछ और है। और यही वजह है कि इनकी बजट घोषणा तो हो गई, मगर आज रेलवे के सर्वोच्च अधिकारी ही कह रहे हैं कि इनकी उपयोगिता नहीं पाई गई है। उनकी बात में जरूर कोई दम होगा। यूं ही जुगाली तो नहीं कर गए होंगे। हां, इतना जरूर है कि सच कड़वा होता है, इस कारण भाटी सहित हर अजमेरवासी को बुरा लगा होगा, यह दीगर बात है कि अकेले भाटी ही बोले, बाकी नेताओं की तो जुबान तक नहीं खुली। इस लिहाज भाटी साधुवाद के पात्र हैं कि उन्होंने इतने गंभीर मसले पर प्रतिक्रिया तो जाहिर की।
रहा सवाल भाटी का सर्वोच्च सदन में की गई घोषणा को पत्थर की लकीर की तरह प्रस्तुत करने का तो यह भी सबको पता है कि ऐसी अनेक घोषणाएं होती हैं, जो बाद में पूरी ही नहीं होतीं। इसके प्रति संसद कितनी प्रतिबद्धता रखता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। विपक्ष चिल्लता ही रह जाता है और सत्तारूढ़ दल के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
भाटी ने सलाह दी है कि बोर्ड अध्यक्ष कार्यवाहक हैं और उन्हें प्रचलित सामान्य व्यवहार के क्रम में ऐसे में निर्णय लेने तथा सार्वजनिक बयानबाजी से परहेज करना चाहिए। सलाह देने का अधिकार सभी को है, मगर बोर्ड अध्यक्ष ने तो वास्तविक तथ्य लोगों के सामने रखा है, कम से कम राजनेताओं की तरह सब्ज बाग तो नहीं दिखाए। इसके अतिरिक्त उनका बयान राजनीतिक बयानबाजी की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता, जिससे परहेज की जाए। वे ऐसी जानकारी देने के लिए अधिकृत हैं, और इसके लिए उन्हें किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
भाटी ने एक बात बड़ी दिलचस्प और काम की कही है, वो यह कि बोर्ड अध्यक्ष ने ऐसा कर अजमेर के सांसद तथा केंद्रीय कंपनी मामलात के राज्यमंत्री सचिन पायलट को संदेह के घेरे मेें लाने का अनपेक्षित कार्य किया है। बात बिलकुल सही है। स्पष्ट है कि पायलट ने ही दोनों रेल लाइनों की घोषणा करवाई है और यदि रेलवे का सर्वोच्च अधिकारी अजमेर में आ कर यहीं पर इन घोषणाओं की धज्जियां उड़ता है तो पायलट पर संदेह होता है कि एक बार घोषणा करवाने के बाद शायद उन्होंने उसके क्रियान्वयन की ओर ध्यान नहीं दिया। खैर, अच्छी बात है कि बोर्ड अध्यक्ष आइना दिखा गए हैं, अब भाटी सहित सभी कांग्रेसी नेताओं को पायलट पर दबाव बनाना चाहिए कि बोर्ड अध्यक्ष आपकी फजीहत कर गए हैं और आप जनता के सामने झूठे पड़ रहे हैं, लिहाजा पीछे पड़ कर इस पर अमल करवाएं। विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे भाजपा नेताओं को भी पायलट को घेरना चाहिए कि उनके प्रयासों से घोषणाओं का यह हश्र कैसे हो रहा है?
-तेजवानी गिरधर