बुधवार, 31 जुलाई 2019

क्या एलिवेटेड रोड पूरा होने तक जारी रहेगा विवाद?

जब से एलिवेटेड रोड बनाने की कवायद आरंभ हुई है, तब से यह विवाद में रहा है। एक बार तो स्थिति ये आ गई कि इसे बनाने के निर्णय को  ही सिरे से नकार दिया गया था। जैसे तैसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसका काम शुरू हुआ तो इसके तकमीने को लेकर विवाद हो गया है।
आपको याद होगा कि पिछली कांग्रेस सरकार के समय नगर सुधार न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत के कार्यकाल में इसका सर्वे हुआ था। वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और नई सरकार आ गई तो प्रस्ताव व सर्वे ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। उसके बाद तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने सरकार पर दबाव बना कर इसके निर्माण की फाइल को आगे बढ़ाया, मगर तत्कालीन एडीए चेयरमैन शिवशंकर हेड़ा ने तकनीकी पहलु उठाते हुए इसे अव्यावहारिक बताया और फंड को लेकर भी हाथ खड़े कर दिए। खींचतान होती रही। आखिर देवनानी की चली और इसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के पैसे से बनाने का निर्णय हुआ। पिछली भाजपा सरकार में चुनाव से पहले आनन-फानन में इसका सिंबोलिक शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करवा लिया गया। काफी दिन तक काम शुरू नहीं हुआ। आखिर जब स्मार्ट सिटी के फंड से पैसा आया तो निर्माण आरंभ हो पाया है। छोटी-मोदी अड़चनें आती रहीं, इस कारण काम की गति बहुत धीमी रही। जब काम ने रफ्तार पकड़ी तो जाने-माने एडवोकेट राजेश टंडन ने यह रहस्योद्धान किया कि गुपचुप तरीके से आगरा गेट से लेकर महावीर सर्किल की भुजा रद्द की जा रही है। उनका साथ कांग्रेस ने भी दिया। आखिरकार जिला कलेक्टर को हस्तक्षेप करना पड़ा और यह साफ हो गया कि टेंडर के अनुसार ही इसका सिरा महावीर सर्किल से आरंभ होगा। इस पर काम शुरू होने ही जा रहा है कि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने रुकावट डालने की कोशिश कर दी है। उन्होंने बाकायदा सरकार को पत्र लिख कर प्रेस नोट जारी कर दिया है कि एलिवेटेड रोड की भुजा महावीर सर्किल के बजाय आगरागेट से चढ़ाई जाए।
जैन का कहना है कि एलिवेटेड रोड की इस भुजा का हाल जयपुर की खासा कोठी वाली सड़क की तरह होने की आश्ंाका है। अगर आगरा गेट चैराहे से तरफ भुजा चढ़ती है तो उसका सभी को लाभ मिलेगा। नला बाजार, नया बाजार, धानमंडी, अग्रसेन सर्किल, हाथी भाटा, आदि शहर के भीतरी क्षेत्र से किसी को रामगंज, ब्यावर रोड, मार्टिण्डल ब्रिज की तरफ जाना हो तो उन्हें अनावश्यक महावीर सर्किल घूम कर जाना नहीं पड़ेगा। उनके लिए आगरा गेट से ही अपने गंतव्य के लिए सहज मार्ग उपलब्ध हो सकेगा।
धर्मेश जैन ने सर्वे को ही गलत करार दे दिया है। उनका कहना है कि महावीर सर्किल पर ऐतिहासिक नसियांजी के अतिरिक्त जैन समाज, अग्रवाल समाज के छोटे-बड़े धड़ों की नसियां, जनकपुरी समारोह स्थल आदि स्थित हैं, जहां बारह मास सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त महावीर सर्किल पर एक रास्ता दरगाह और तीर्थराज पुष्कर की ओर भी जाता है, वहीं पर आनासागर झील व सुभाष उद्यान में जाने के प्रवेश द्वार भी हंै। सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की महाना छठी, उर्स, मोहर्रम आदि को लेकर जहां वर्ष पर्यन्त पैदल जायरीन एवं यात्रियों की भीड़ उमड़ी रहती है। यहां भारी यातायात दवाब बना रहता है। ऐसे में एलिवेटेड रोड की वहां भुजा चढ़ाए जाने से यातायात दवाब और बढ़ जाएगा जो कि आगे चल कर शहरवासियों के लिए एक और नई मुसीबत खड़ी करेगा।
जैन के तर्क में वाकई दम है, मगर सवाल ये उठता है कि आज जब महावीर सर्किल से काम शुरू होने ही जा रहा है, तब जा कर वे आपत्ति क्यों दर्ज करवा रहे हैं? उनका कहना है कि काम अभी शुरू नहीं हुआ है और पुनर्विचार करने की गुंजाइश है। अगर आज उनके प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर शहर वासियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। बेहतर ये है कि अब भी उनके प्रस्ताव पर गौर किया जाए। अब देखते हैं कि ये नया विवाद क्या रूप लेता है?
-तेजवानी गिरधर
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आनासागर में नौका विहार के ठेके को लेकर है चिन्मयी गोपाल पर भारी दबाव

कानाफूसी है कि आनासागर में नौका विहार के लिए हाल ही में मंजूर टेंडर को लेकर जो विवाद उठा, उसको लेकर नगर निगम आयुक्त चिन्मयी गोपाल पर भारी राजनीतिक दबाव है। हालांकि वे टेंडर मंजूर करने के अपने निर्णय पर अडिग हैं और उसे जस्टीफाई भी कर चुकी हैं, मगर फिर भी उन पर दबाव है कि उसे किसी भी प्रकार से रद्द कर दें।
ज्ञातव्य है कि जैसे ही चिन्मयी गोपाल ने उदयपुर की फर्म को टेंडर जारी किया, निगम की राजनीति यकायक गरमा गई। एक वर्ग ऐसा था, जो कि पुरानी व्यवस्था समाप्त करने को लेकर चिन्मयी को घेर रहा था, तो ऐसे भी थे, जो कि उनके निर्णय की सराहना कर रहे थे। अब सवाल ये उठता है कि उनके निर्णय के बाद जब उन पर दबाव बनाया जा रहा है, तो क्या वे नए टेंडर को कानूनन व तकनीकी रूप से रद्द कर सकती हैं। दबाव तो उन पर यही है कि किसी भी से टेंडर को रद्द किया जाए। अगर वे ऐसा नहीं कर पातीं तो संभव ये भी है कि राजनीतिक दबाव में आ कर उदयपुर की फर्म ही बैक फुट पर आ जाए। ऐसे में अपने आप टेंडर रद्द हो जाएगा और राजनीतिक मकसद पूरा हो जाएगा।

क्या केकड़ी रघु शर्मा का अहसान मानेगा?

चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केकड़ी के सरकारी अस्पताल को जिला स्तरीय चिकित्सालय का दर्जा दिलवा दिया। स्वाभाविक रूप से यह केकड़ी वासियों के लिए खुशी का मौका है। यह खुशी दिखाई भी दे रही है, मगर सवाल उठता है कि क्या केकड़ी रघु शर्मा का अहसान मानेगा?
असल में यह सवाल इसलिए जायज है क्यों कि इससे पहले भी जब वे यहां से विधायक व मुख्य सचेतक थे, तब उन्होंने केकड़ी को स्थाई रूप से अपनी कर्मस्थली बनाने के लिए जम कर विकास कार्य करवाए थे। केकड़ी को जिला बनाने की भी उन्होंने भरपूर कोशिश की। जनता भी मानती थी कि उन्होंने वाकई केकड़ी के लिए विशेष रुचि ली है। लेकिन जब चुनाव आए तो मीडिया भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न गौतम की गोद में जा कर बैठ गया था। स्वाभाविक रूप से उसका असर जनता पर भी पड़ा और रघु शर्मा हार गए। अफसोस तो उनको खूब हुआ होगा, मगर उन्होंने जमीन नहीं छोड़ी। वक्त बदला और उन्होंने न केवल लोकसभा का उपचुनाव जीता, जिसमें केकड़ी का भी योगदान था, अपितु केकड़ी विधानसभा का चुनाव भी जीत कर दिखाया। अब मीडिया भी उनके गुणगान कर रहा है। मगर फिर भी यह आशंका तो है ही कि क्या रघु के इस अहसान को साढ़े चार साल बाद जनता याद रख पाएगी?
अहसान फरामोशी का एक और उदाहरण हमारी नजर में है। मौजूदा उप मुख्यमंत्री व तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट ने अजमेर में जम कर काम करवाए, ताकि यहां उनका राजनीतिक केरियर स्थाई हो जाए, मगर जब चुनाव आए तो जनता ने मोदी के नशे में सारे काम भुला कर उन्हें हरवा दिया। हराने के बाद जरूर जनचर्चा थी कि अजमेर ने एक अच्छा व प्रभावशाली जनप्रतिनिधि खो दिया, मगर अब पछतावत होत क्या, जब चिडिय़ा चुग गई खेत। भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शिवचरण माथुर ने भी भीलवाड़ा को चमन कर दिया, मगर अगले चुनाव में एनसीपी से मैदान में आए तो बुरी तरह से हरवा दिया। जोधपुर का मामला देखिए। विकास के जो नए आयाम वहां स्थापित हुए हैं, उसमें अशोक गहलोत की बड़ी भूमिका है, मगर जब उनके बेटे वैभव गहलोत ने चुनाव लड़ा तो मोदी की सुनामी में वहीं जनता सब कुछ भुला बैठी। ऐसी घटनाओं से यह सवाल उठता है कि आखिर जनता चाहती क्या है? अगर विकास पैमाना नहीं है तो जनप्रतिनिधि काहे को उस पर ध्यान दे? अगर जनता की हवा के साथ बहने की ही आदत है तो जनप्रतिनिधि विकास करवाने में क्यों रुचि लेगा?
यह सही है कि रघु शर्मा ने चिकित्सा मंत्री होने के नाते अपने क्षेत्र को जो लाभ पहुंचाया है, उससे अन्य क्षेत्र के लोगों को तकलीफ हो सकती है।  यह तर्क दिया जा सकता है कि वे पक्षपात कर रहे हैं, लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि कोई बड़ा जनप्रतिनिधि अगर अपने क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं कर पाता तो उसे उलाहना सुनना ही पड़ता है कि आपने हमारे लिए किया क्या?

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

अजमेर के अन्ना हजारे बनना चाहते हैं राजेश टंडन?

वरिष्ठ एडवोकेट राजेश टंडन अपने किस्म के अनूठे प्राणी हैं। जीवन में जितने भी उतार-चढ़ाव संभव हैं, वे देख चुके हैं। राजनीति हो या सामाजिक क्षेत्र, धार्मिक हो या खेल जगत, ऐसा कोई फील्ड नहीं है, जहां उन्होंने घोटा नहीं घुमाया हो। कितनी बार, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। जवाहर रंगमंच उनकी ही पहल का नतीजा है। बजरंगगढ़ स्थित अंबे माता मंदिर भी उनकी ही देन है। शहर का शायद ही कोई वीआईपी बचा हो, जिसने यह देवरा नहीं ढ़ोका हो। बाहर से आने वाले विशिष्ट हस्तियों को भी येन-केन-प्रकारेण शीश झुकवा ही देते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए हर साल रोजा अफ्तार पार्टी के बहाने शहर भर की हस्तियों का अपने घर पर मजमा लगाते हैं। उनकी उपलब्धियों में परबतपुरा चौराहे पर ट्रेफिक सर्किल बनवाना, भारतीय सैनिकों के सिर काटे जाने पर पाक प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ को अजमेर में न घुसने देने की चेतावनी देना, चीनी वितरित नहीं होने पर भूख हड़ताल पर बैठना, गुर्जरों को आरक्षण दिलवाने के लिए खम ठोक कर साथ देना, अजमेर जिला एवं सत्र न्यायालय के लिए संयोगिता नगर की जमीन लेना, ख्वाजा साहब की दरगाह में पूरे इन्तजामात नहीं होने पर तीन दिन भूख हड़ताल पर बैठना जैसे कई काम शामिल हैं।
वे कितने मुंहफट हैं, इसका पता उनका हर परिचित व्यक्ति जानता है। आम बोलचाल की भाषा के अलंकृत शब्द उनके श्रीमुख से धाराप्रवाह प्रस्फुटित होते तो कई ने देखा होगा। फेसबुक पर उनकी पोस्टें नए लौंडों को भी मात देती हैं। पूर्व जिला कलेक्टर सरीखी नगर निगम आयुक्त चिन्मयी गोपाल को फूलनदेवी की उपमा देने का माद्दा उनके अलावा किसी में नहीं। अपने एक ब्लॉग में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराना कोई हंसी-खेल नहीं। इस मुर्दा शहर में इतने जीवित व्यक्ति को अनोखा प्राणी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कमी सिर्फ एक है। वो ये कि उनका जातिगत आधार नहीं, वरना अब तक तो एमएलए बन ही जाते।
शहर के जाने-माने बुद्धिजीवी होने के बावजूद लालू यादव की तरह मसखरापन उनका शगल है। उनकी त्वरित किस्सागोई के किस्से उनके मित्र चटखारे ले ले कर सुनाते हैं।
किसी जमाने में यूथ कांग्रेस के शहर अध्यक्ष थे। युवा तुर्क का वह दौर अब तक अध्यक्षों के लिए मिसाल है। प्रदेश कांग्रेस के सचिव रह चुके हैं। पिछले कुछ सालों से किसी खास पद पर नहीं, मगर अपने खास डील-डौल की तरह कद-काठी खुद के दम पर कायम कर रखी है। भीड़ में दूर से ही नजर आते हैं। किसी समारोह में आयोजक भूलवश नजरअंदाज भी कर दे, मगर खास मेहमान खुद ही उन्हें मंच पर बुला लेते हैं।
पिछले कुछ समय से ब्लॉगरों में भी शुमार हो गए हैं। लिखते ऐसे हैं, जैसे फ्री स्टाइल कुश्ती में आड़े-तिरछे दाव चले जाते हैं। हथोड़ा छाप। शब्दों के ट्विस्ट में भले ही वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी का कोई सानी नहीं हो, मगर शब्दों के जरिए पत्थर पर रगडऩे के मामले में टंडन का कोई मुकाबला नहीं।
उनकी बेकाकी की मिसाल उनके एक ब्लॉग की ये पंक्तियां बयां कर रही हैं-
इस शहर के मुर्दे इस शहर में ही दफनाए जाएंगे, ये कफनखसोट अधिकारी और इनके चंगू-मंगू दलाल तो आते-जाते रहेंगे, मैं तो पैदा भी इसी अजमेर में ही हुआ हूं और अजमेर में ही कइयों का हिसाब करके मरूंगा। अजमेर शहर में अगर कुछ भी गलत, नाजायज, अवैध और तानाशाही एवं नादिरशाही होगी, वो न तो मेरी नजरों से बचेगी और न ही मैं जीतेजी होने दूंगा। चाहे किसी भी राजा का राज हो। मैंने सदा अजमेर के हित में आवाज उठाई है, जो पूरा अजमेर शहर जानता है।
भला ऐसा एक्स्ट्रा जीवित व्यक्ति चुप कैसे बैठ सकता है। लाइम लाइट में रहने के लिए कुछ न कुछ उठापटक करते रहते हैं। असल में उनकी दिमागदानी बहुत तेज है। उसी के दम पर फटे में टांग फंसाने का मौका तलाश लेते हैं। प्रशासन से कितनी बार पंगा मोल लिया है, उसकी गिनती करना कठिन है। खुद उन्हें ही याद नहीं होगा। दुस्साहसी भी कम नहीं। आखिरकार पंजाबी खून है। स्वर्गीय वीर कुमार जैसा। कुछ अरसे पहले कांग्रेस की एक बैठक में पानी के मुद्दे पर इतने उत्तेजित हो गए कि सरकार को चेताने के लिए विरोध स्वरूप बीसलपुर पाइप लाइन तोड़ देने का आव्हान कर डाला। मुकदमे दर्ज होने पर वकालत की व्यवस्था का भी जिम्मा ले लिया। मगर किसी का खून नहीं खौला। अजमेर वासियों की रगों में वैसे भी खून कम, पानी ज्यादा है। अजमेर को इलायची बाई का वरदान होने की कहावत यूं ही थोड़े बनी है।
हाल ही उन्होंने प्रशासन के पीछे पड़ का जवाहर लाल नेहरू अस्पताल का पुराना दरवाजा खुलवा लिया। मित्तल हॉस्पीटल के बाहर नाजायज पार्किंग का मुद्दा भी उठाया है। इसी प्रकार एलिवेटेड रोड की आगरा गेट से लेकर महावीर सर्किल तक की भुजा के मसले पर भी हाथ धो कर पीछ़ पड़े हैं। नगर निगम आयुक्त के घर पर स्वीमिंग पूल बनने का रहस्योद्घाटन भी उन्होंने किया।
उनकी ताजा दुंदुभी है, शहर के सारे ट्रांस्पोर्टरों को ट्रांसपोर्ट नगर में शिफ्ट करवाना। बाकायदा चेतावनी दी है कि अगर 25 अगस्त तक शिफ्ट नहीं करवाए गए तो वे अनिश्चिचित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे। आपको याद होगा कि कई कलेक्टर आए और गए, मगर ट्रांसपोर्ट नगर शिफ्ट करवाने की घोषणाएं और निर्णय धरे के धरे रह गए। हो सकता है कि टंडन को पता लग गया हो कि मौजूदा कलेक्टर ने शिफ्ट करवाने की ठान रखी हो, इसी के मद्देनजर अनशन की चेतावनी दे दी हो, मगर ऐसी शिद्दत तो पहले के कई कलेक्टर भी दिखा चुके हैं, मौजूदा की क्या गारंटी है? जो कुछ भी हो, मगर अजमेर की बहबूदी के लिए टंडन की पहल की सराहना की ही जानी चाहिए। वाकई टायर्ड और रिटायर्ड अजमेर को ऐसे ही एक अन्ना हजारे की दरकार है।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 23 जुलाई 2019

चिन्मयी गोपाल जिंदाबाद का नारा लगते लगते रह गया

पिछले कुछ दिनों से अजमेर नगर निगम की आयुक्त चिन्मयी गोपाल सुर्खियों में हैं। कदाचित जिला प्रशासन के पूरे बेड़े में वे एक मात्र ऐसी अफसर हैं, जिनके बारे में आम ठेेले वाला भी चर्चा करता दिखाई दे सकता है। सरकारी कामकाज को लेकर उनके सख्त रवैये की वजह से ढर्ऱे पर व्यवस्था चलाने में रुचि रखने वालों का जहां बहुत तकलीफ हो रही है, वहीं जन सामान्य इस कड़क आईएएस से बेहद प्रभावित है। उनकी तुलना स्टील लेडी की उपमा से अलंकृत पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता से होने लगी है। ऐसे में कोई कैसे कल्पना कर सकता है कि वे बेहद सहज व सरल भी हो सकती हैं। उनका यह रूप मंगलवार को आनासागर चौपाटी के सामने रीजनल कॉलेज की दीवार के सहारे पूर्वांचल जन चेतना समिति की ओर से आयोजित वृक्षारोपण कार्यक्रम में नजर आया।
हुआ यूं कि समिति के महासचिव शिव कुमार बंसल ने कार्यक्रम में मौजूद नगर पालिका सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी डा. सुरेश गर्ग का परिचय कराया तो यकायक वे बोलीं, अरे हां, आपका नाम तो सुना है, कई बार आपकी चर्चा होती है। डॉ. गर्ग तो गद्गद् हो गए। वे कुछ बोलते इससे पहले ही चिन्मयी गोपाल ने उनसे आग्रह किया कि आप कभी नगर निगम आइये। मुझे आपके अनुभव का लाभ लेना है, आपसे मार्गदर्शन लेना है। वहां मौजूद सभी लोग चकित रह गए कि आम तौर पर रिजर्व रहने वाले आईएएस अधिकारी इस प्रकार आमजन के बीच अपने कठोर आवरण से फूट कर भी बाहर आ सकते हैं। बेशक डॉ. गर्ग बहुत अनुभवी अधिकारी रहे हैं, मगर चिन्मयी गोपाल भी कोई छोटी-मोटी अफसर नहीं, आईएएस हैं, फिर भी इस प्रकार मुक्त हृदय से सीखने की ललक वाकई काबिले तारीफ है।
वहां मौजूद जिन लोगों ने अदिति मेहता को देख रखा है, उन्हें चिन्मयी में उनकी झलक दिखाई देने लगी। वैसी ही खूबसूरत लंबोतरा चेहरा, तीखे नाक-नक्श, बड़ी-बड़ी चमकदार आंखें, तनिक बड़े दांत, चेहरे पर पसरी सुखद ताजगी, लंबा कद, चपल बॉडी लैंग्वेज, सहज और सरल। चंद दिनों में ही उन्होंने अजमेर वासियों का दिल कैसे जीत लिया है, इसका नजारा भी साक्षात उतर आया। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं में उनके साथ सैल्फी लेने की होड़ मच गई। एक ही बुके से बार-बार अलग-अलग प्रशंसक के सेल्फी लेने पर भी वे झुंझलाई नहीं। हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता उनको अपना परिचय दे रहा था, हालांकि ऐसे परिचय की उम्र कितनी होती है, सबको पता है, फिर भी वे सभी से ऐसे मिल रही थीं, मानो या तो पहले से परिचित हों, या फिर उसको आगे भी याद रखने वाली हों। फोटा खिंचवाने में कम दिलचस्पी ले रहे समिति के मैनेजिंग ट्रस्टी रजनीश वर्मा की हैसियत को जानते हुए उन्होंने पूरी तवज्जो दी और आगे आने को कहा। अजमेर के हित में मौजूदा जज्बे के साथ काम करते रहने की अपील करते हुए कांग्रेस नेता अतुल अग्रवाल ने हिप-हिप हुर्रे का नारा लगाया तो अचानक ऐसा माहौल बन गया मानो चिन्मयी जिंदाबाद के नारे न लगने लग जाएं। चंद लम्हों पर सवार हो कर गुजरा यह मंजर आपसे साझा करने का मन हुआ तो ये पंक्तियां खुद-ब-खुद  लिपिबद्ध हो गईं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 22 जुलाई 2019

रजनीश वर्मा को साधुवाद

सार्वजनिक समारोहों में अमूमन हर कोई यह चाहता है कि फोटो खिंचते समय वे केमरे के दायरे में हो। असल में यह लोकेषणा कही जाती है। कई लोग तो इसके लिए धक्का-मुक्की तक कर बैठते हैं। सीनियर्स को धकेल कर आगे आने की जूनियर्स की प्रवृत्ति खूब भी देखी गई है। कुछ लोग नकटे हो कर जबरन बीच में घुस जाते हैं। कुछ लोगों को पता होता है कि किस एंगल पर खड़े होना है, ताकि उनकी पूरी फोटो आ जाए। केमरा ऑन होने के साथ ही वे अपनी जगह तलाश लेते हैं। ऐसे में अगर कोई अपनी फोटो आने अथवा न आने के प्रति गंभीर न हो तो उसकी मनोवृत्ति चौंकाती है।
यहां हम जिक्र कर रहे हैं पूर्वांचन जन चेतना समिति के मैनेजिंग ट्रस्टी रजनीश वर्मा की। सोमवार को समिति की ओर से पौधा वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जाहिर तौर पर उसकी फोटोज भी ली गईं। हमारे पास समाचार के साथ आई लगभग सभी फोटोज में वे फ्रंट में नहीं थे। यद्यपि वे ही समिति के अजमेर में सर्वेसर्वा हैं, उनका पहला हक आगे रहने का, मगर उन्हें इस बात की चिंता ही नहीं थी, कि उनका भी ढ़ंग का फोटो आ जाए। वे ऐसे खड़े थे, मानो सामान्य कार्यकर्ता हों। या तो इस मामले में वे बिलकुल भोले हैं, अवेयर नहीं हैं, या फिर ऐसा वे जान कर ऐसा करते हैं। चलो यह मान भी लिया जाए कि इसमें उनकी विशेष रुचि नहीं रही हो, मगर समिति के अन्य पदाधिकारियों को भी इसका भान नहीं रहा कि वे फ्रंट की बजाय पीछे खड़े हैं। और उनसे आग्रह करें कि वे आगे आ जाएं। 
ऐसा प्रतीत होता है कि वर्मा जिस मकसद से भीलवाड़ा से यहां आ कर समिति की गतिविधियां संचालित कर रहे हैं, उनकी सिर्फ इसी में रुचि है, कि वे सकुशल पूरी हो जाएं। उनके साथ जुड़ कर समिति में काम करने वालों को आगे आने का मौका मिले, ताकि उनका उत्साहवद्र्धन हो। वे जानते हैं कि फोटो में भले ही कोई भी आगे आ जाए, कार्यक्रम का सारा क्रडिट उनको ही मिलना है। आखिरकार वे मुख्य आयोजक हैं। अजमेर में समिति गठित करने के पीछे उनका व उनके आका, लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार चुके रिजु झुंझुनवाला का एजेंडा क्या है, ये तो वे ही जानें, मगर ऐसा करके कम से कम से ये संदेश तो देने में कामयाब हो ही गए हैं कि वे सिर्फ यहां चुनाव लडऩे ही नहीं आए थे, बल्कि वादे के मुताबिक अजमेर को अपनी कर्मस्थली बना रहे हैं। इसकी तारीफ की ही जानी चाहिए। अपुन तो विशेष रूप से वर्मा को छपास पीडि़त न होने की प्रवृत्ति के लिए साधुवाद देना चाहते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 21 जुलाई 2019

चिन्मयी गोपाल ने याद दिला दी अदिति मेहता की

अजमेर नगर निगम की आयुक्त चिन्मयी गोपाल जिस स्टाइल से काम कर रही हैं, उससे यकायक पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता की याद ताजा हो रही है। वे भी अजमेर के हित में बिना किसी राजनीतिक दबाव के अपने अधिकारों का पूरा उपयोग करती थीं। आपको याद होगा कि उन्होंने अतिक्रमण हटाने के सबसे दुरूह काम को खुद खड़े रह कर करवाया, जिसकी वजह से उन्हें स्टील लेडी की उपमा दी जाने लगी। ऐसा नहीं है कि उनको निहित स्वार्थी नेताओं व तत्वों का विरोध नहीं सहना पड़ा, मगर वे धुन की पक्की थीं और जो ठान लिया वह कर के रहती थीं। हां, इतना जरूर है कि उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत का वरदहस्त था, इस कारण किसी की परवाह नहीं करती थीं। चिन्मयी को किसका वरदहस्त है, ये पता नहीं, मगर ऐसी दबंग अधिकारी की ही जरूरत है अजमेर को। बेशक एक समूह उनके निर्णयों व कदमों का किसी न किसी रूप में विरोध कर रहा है या फिर मीनमेख निकाल रहा है, मगर जनता का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो उनका शाबाशी दे रहा है। दुआ यही कीजिए कि कोई बड़ी ताकत उन्हें यहां से डिस्टर्ब न करे।
आनासागर में नावों के संचालन के लिए हुए ई-टेंडर का मामला ही लीजिए। उन्होंने संबंधित ठेकेदार के सुझाव पर अमल करते हुए टेंडर की शर्तों में संशोधन किया है। प्रत्यक्षत: व तर्क के लिहाज ऐसा लगता है कि उन्होंने ठीक नहीं किया, मगर मामले की तह में जाने से लगता है कि उन्होंने अजमेर के हित को ध्यान में रखते हुए अपने अधिकारों का पूरा इस्तेमाल किया है। उन्होंने उदयपुर की वाटर स्पोट्र्स फर्म यश एम्युजमेंट के सुझाव पर ठेके की अवधि को दो वर्ष से बढ़ा कर तीन वर्ष कर दिया गया। ठेका राशि वर्ष भर में चार किश्तों में जमा कराने की छूट दी गई। साथ ही मोटर बोट, स्पीड बोट, वाटर स्कूटर आदि को चलाने के आरटीओ का तीन वर्ष का लाइसेंस टेंडर खुलने के बाद 15 दिन में जमा कराने की छूट दी गई। अब यश एम्युजमेंट आनासागर में विभिन्न प्रकार के 34 मोटर वाहन चलाने की एवज में प्रति वर्ष एक करोड़ 60 लाख रुपए का भुगतान निगम को करेगी।  सबसे बड़ी बात ये है कि अब शहर वासियों को पहले से बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, जिसका अनुभव अब तक उदयपुर वासी किया करते हैं।
चिन्मयी गोपाल के निर्णय का विरोध करने वालों का कहना है कि पूर्व ठेके की अवधि 31 मार्च 2019 को समाप्त हो रही थी, ऐसे में निगम को 31 मार्च से पहले वाटर स्पोट्र्स का ठेका कर देना चाहिए था, लेकिन लापरवाही की वजह से ऐसा नहीं हो सका। यदि एक अप्रैल 2019 से एक करोड़ 60 लाख रुपए वाला ठेका हो जाता तो निगम को 43 लाख रुपए का घाटा नहीं होता है। इसके विपरीत चिन्मयी गोपाल का कहना है कि नियमों के तहत उन्हें टेंडर में संशोधन करने का अधिकार है। पूर्व में निगम ने जो ठेका मात्र 55 लाख रुपए प्रतिवर्ष में दे रखा था, उसे अब एक करोड़ 60 लाख रुपए प्रतिवर्ष कर दिया गया है। ऐसे में निगम को नुकसान के बजाए लाभ ही हुआ है।
ज्ञातव्य है कि निगम आयुक्त चिन्मयी गोपाल ने गत दिवस एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित करके घोषणा कर दी कि निगम में अब छह प्रमुख सेवाओं का लाभ आम आदमी ऑनलाइन ही प्राप्त कर पाएगा। इनमे जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, ठेकों का आवंटन, नक्शे ऑनलाइन पास करवाना शामिल है। ऑनलाइन सिस्टम से आए 35 आवेदनों में से तीन नक्शे तुरंत पास कर दिए गए। स्वाभाविक सी बात है कि ऑन लाइन सिस्टम से एक ओर जहां कामकाज में पारदर्शिता रहेगी, वहीं आम लोगों को निगम के चक्कर लगाने से भी निजात मिलेगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 20 जुलाई 2019

सोच समझ कर पश्चिम बंगाल भेजा गया है धनखड़ को

पूर्व केन्द्रीय मंत्री जगदीप धनखड़ को सोची समझी रणनीति के तहत पश्चिम बंगाल भेजा गया है। वे बेहद शातिर व तेज-तर्रार हैं। पश्चिम बंगाल की खुर्रांट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर नकेल कसने के लिए उनके जैसा ही नेता चाहिए था। वे सुप्रीम कोर्ट के वकील होने के कारण कानून के गहरे जानकार तो हैं ही, लंबी राजनीतिक यात्रा की वजह से राजनीति के दाव-पेच भी भलीभांति जानते हैं। हां, एक बात ये जरूर है कि वे कट्टर हिंदूवादी नहीं हैं। उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि कांग्रेस विचारधारा की रही है।
ज्ञातव्य है कि उनकी राजनीतिक यात्रा 1989 में झुंझुनूं से जनता दल सांसद के रूप में हुई थी। पहली बार में ही वी पी सिंह सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गए। 1991 में जनता दल छोड़ कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। कांग्रेस टिकट पर अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर भाजपा के प्रो. रासासिंह रावत से हार गए। उसके बाद 1993 में अजमेर जिले की किशनगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर लड़ कर विजयी हुए। 1998 में झुंझुनू से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने पर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। गत विधानसभा चुनावों में उनके कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा होती रहती थी. मगर उन्होने भाजपा नहीं छोड़ी।
अजमेर से नाता रहने के कारण स्थानीय कांग्रेसी उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं। कंप्यूटर की माफिक तेजी से दायें-बायें चलती उनकी आंखें बयां करती हैं कि वे बेहद तेज दिमाग हैं। चाल में गजब की फुर्ती है। बॉडी लैंग्वेज उनके ऊर्जावान होने का सबूत देती है। हंसमुख होने के कारण कभी वे बिलकुल विनम्र नजर आते हैं तो मुंहफट होने के कारण सख्त होने का अहसास करवाते हैं। जब अजमेर में लोकसभा चुनाव लडऩे को आये स्वर्गीय श्री माणक चंद सोगानी शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे। नया बाजार में सोगानी जी के सुपुत्र के दफ्तर में हुई पहली परिचयात्मक बैठक में ही उनका विरोध हो गया, चूंकि उन्हें यहां कोई नहीं जानता था। प्रचार का समय भी बहुत कम था। फिर भी उन्होंने प्रोफेशनल तरीके से चुनाव लड़ते हुए सारे संसाधन झोंक दिए। टेलीफोन डायरेक्टरी लेकर सुबह छह बजे से आठ बजे तक आम लोगों से वोट देने की अपील करते थे। हालांकि उन्होंने चुनाव बड़ी चतुराई व रणनीति से लड़ा, मगर सारा संचालन अपने साथ लाए दबंगों के जरिए करवाने के कारण स्थानीय कांग्रेसियों को नाराज कर बैठे। वे जीत जाते, मगर स्थानीय कांग्रेस नेताओं को कम गांठा और सारी कमान झुंझुनूं से लाई अपनी टीम के हाथ में ही रखी। यही वजह रही कि स्थानीय छुटभैये उनसे नाराज हो गए और उन्होंने ठीक से काम नहीं किया। हारने के बाद पलट कर अजमेर का रुख नहीं किया।
हालांकि अजमेर व किशनगढ़ वासियों के लिए यह सुखद हो सकता है कि अब वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हो गए हैं, मगर वे हाई-फाई और सेलिब्रिटी स्टाइल के नेता होने के कारण गिनती के कांग्रेसियों से उनके संपर्क हैं। हां, इतना जरूर है कि जाट समाज में उनकी खासी प्रतिष्ठा है। उनकी राज्यपाल पद पर नियुक्ति करके जाट वोट बैंक को साधा गया है। रहा सवाल पश्चिम बंगाल को तो समझा जाता है कि वे कानूनी दावपेच में ममता को अडऩे नहीं देंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 17 जुलाई 2019

देवनानी की उछल-कूद के मायने?

दो बार मंत्री रह चुकने के बाद विपक्ष का अदद विधायक रहने की पीड़ा क्या होती है, इसके अहसास से इन दिनों अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी गुजर रहे होंगे। बावजूद इसके वे खामोश हो कर घर नहीं बैठ गए। उछल-कूद मचाए हुए हैं। विधानसभा में अपनी उपस्थिति खम ठोक कर दर्शा रहे हैं। यहां तक कि सदस्यता अभियान के साथ-साथ जनसुनवाई भी कर रहे हैं। उनकी इस व्यस्तता को देख कर लगता ही नहीं कि वे अपने दिल में सत्ता सुख के अभाव का दर्द भी संजोये हुए हैं। उनकी यह हालत देख कर यकायक ये फिल्मी गाना याद आ गया:- तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छिपा रहे हो।
देवनानी की सक्रियता में इसलिए भी अतिरिक्त सक्रियता नजर आती है, क्यों उनकी ही साथी विधायक श्रीमती अनिता भदेल कुछ खास चर्चा मे नहीं हैं। गर सक्रिय भी हैं तो कम से कम अखबारों में तो नजर नहीं आ रहीं।
खैर, देवनानी की सक्रियता में दिलचस्प बात ये है कि वे अजमेर के उन्हीं चिरपरिचित मुद्दों को फिर से जोर-शोर से उठा रहे हैं, जो पिछले कई सालों से पतंग के मांझे की तरह उलझे हुए हैं। चाहे पानी की बात या बिजली की या फिर यातायात की, सारी समस्याएं उनके पिछले कार्यकाल में भी मौजूद थीं, जब वे मंत्री थे। वे समस्याएं उनके उससे भी पिछले विधायकी कार्यकाल में यथावत थीं। बेशक विपक्ष में रहते उनका फर्ज है कि अजमेर की आवाज विधानसभा में उठाएं, मगर सवाल उठता है कि आज जिन मुद्दों को लेकर वे सरकार को घेर रहे हैं, उनका समाधान वे अपने मंत्रित्व कार्यकाल में क्यों नहीं करवा पाए। वे भी जानते होंगे कि अजमेर की समस्याओं का समाधान आखिर हो क्यों नहीं पाता? एक विधायक के रूप में उनका ये चौथा टर्म है। अजमेर वासी वर्षों से इस अनुभव से गुजर रहे हैं कि यहां का जिला प्रशासन आमतौर पर राजनीतिक दबाव में नहीं रहता। समस्याओं को लेकर तय शिड्युल से बार-बार बैठकें होती हैं। समीक्षा होती है। वादे होते हैं। घोषणाएं होती हैं। मगर नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात। और आम जन भी सहनशीलता भी काबिले गौर है। तभी तो इस शहर को टायर्ड और रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाता है। कोई इलायची बाई की गद्दी से प्रभावित बताता है तो मुर्दा शहर की संज्ञा देता है।
बात देवनानी जी की चल रही थी। लगातार सक्रिय रहना उनकी आदत में आ गया है या इसका कोई प्रयोजन है। जानकार लोगों का मानना है कि उनकी महत्वाकांक्षा अभी समाप्त नहीं हुई है। हाल ही उन्होंने यह शगूफा छोड़ कर राजनीतिक हलके में तूफान लाने की कोशिश की सरकार ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है। कहीं उनको ये उम्मीद तो नहीं कि जब भाजपा सरकार को गिराने की षड्यंत्र में कामयाब हो गई तो उनके भाग्य का भी छींका फूटेगा। या फिर ये सोचते होंगे कि राजस्थान में हंगामा करूंगा तो  मोदी जी की नजर में रहूंगा। पता नहीं किसी दिन स्टार चमकें और दिल्ली में किसी महत्वपूर्ण काम के लिए बुला लिए जाएं। उधर श्रीमती भदेल को पता है कि यदि देवनानी का भाग्य चेता तो वे भी फालतू नहीं रहने दी जाएंगी। गुटबाजी को बैलेंस करने के लिए उनको भी दूसरे पलड़े में बैठाया जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 15 जुलाई 2019

अजमेर में ब्लॉगिंग का इतिहास बनाम ब्लॉगरों की जन्मकुंडली

हाल ही जाने-माने पत्रकार, गजलकार श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी का अलंकारयुक्त भाषा-शैली में चुटीला ब्लॉग सामने आया। उन्होंने अपने चिरपरिचित अतिविशिष्ट अंदाज में ब्लॉग लिखने की अभिरुचि को कीड़े की संज्ञा दी है। जब उनका कीड़ा प्रस्फुटित हुआ तो अपना भी वही कीड़ा बाहर आने को कुलबुलाने लगा। मुझे लगा कि अजमेर के ब्लॉगरों के बारे में लिखे गए इस पहले ब्लॉग में दी गई जानकारी के समुद्र में अंजुलि मात्र मेरी जानकारी भी सुधिजन को शेयर की जाए।
अपनी बात आरंभ करने से पहले यह स्पष्ट कर दूं कि ब्लॉग की परिभाषा ये है कि उसमें लेखक किसी विषय पर अपना नजरिया पेश करता है अथवा किसी मुद्दे को अपनी ओर से एक नई दिशा प्रदान करता है। देश-विदेश के विदेश के ब्लॉगरों को पढ़ेंगे तो यह बात ठीक से समझ आएगी। मगर अजमेर में एक नया प्रयोग हुआ है। वो ये कि यहां ब्लॉग में खबरों ने भी घुसपैठ कर ली है। इसके अतिरिक्त यह एक हथियार की शक्ल भी अख्तियार कर चुका है। उसकी अपनी एक वजह है, जिसका खुलासा बाद में कभी करूंगा। दरअसल वह एक यात्रा है, जो नए मुकाम दर मुकाम तय कर रही है।
एक बात और, वो यह कि लिखना मुझे यही था कि आपको ब्लॉगर्स से ठीक परिचय करवाऊं, मगर जरूरत से ज्यादा डूबने की आदत के चलते या यूं कहिये कि रास्ते से गुजरते हुए नजर आ रही हर उपयोगी वस्तु को अपने झोले में डाल लेने की प्रवृत्ति की वजह से यह आलेख कुछ अधिक विस्तार पा गया और इसमें ब्लॉगरों के अतिरिक्त वे भी जगह पा गए, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्र विधा में हाथ आजमा रहे हैं। मूलत: पत्रकारिता से पैदा हुए हैं, और सूचना संप्रेषण के नए आयामों में विचरण करते हुए यू-ट्यूब तक पहुंच गए हैं। लिहाजा इस आलेख में मैं ब्लॉगर्स के साथ अजमेर की न्यूज वेब साइट्स व यू ट्यूब चैनल पर भी तनिक नजर डालने की कोशिश करूंगा। आखिरकार वे भी मेरे भाई हैं। यदि किसी का जिक्र होने से रह जाए तो पहले से क्षमा मांग लेता हूं। अगर मेरी जानकारी में लाया गया तो मैं तुरंत संशोधन भी कर लूंगा। कुछ नए लेखक ऐसे भी हैं, जो कि पेशे से पत्रकार तो नहीं और न ही उन्होंने ब्लॉग बनाया है, मगर श्री एस पी मित्तल की स्टाइल पर अपने न्यूज आइटम को वे सीधे वाट्स ऐप व फेसबुक पर फ्री स्टाइल में परोसने लगे हैं।
खैर, बात आरंभ करता हूं। यूं तो श्री चतुर्वेदी स्वयं सटायर लिखने वालों की पहली पंक्ति में शुमार रहे हैं, जिनमें श्री नरेन्द्र चौहान, श्री श्याम शर्मा, महावीर सिंह चौहान, डॉ. रमेश अग्रवाल, श्री ओम माथुर व श्री शिव शर्मा की गिनती होती है। इनमें कॉलमिस्ट को भी जोड़ दिया जाए तो वरिष्ठ पत्रकार अशोक शर्मा व गोविंद मनवानी अव्वल रहे हैं, जो नियमित फिल्म व दूरदर्शन समीक्षा करते थे। इन सभी लेखकों के सटायर व कॉलम अखबारों में प्रकाशित हुआ करते थे। तब इंटरनेट की जानकारी चंद लोगों को ही हुआ करती थी। उस जमाने में कदाचित श्री विजय शर्मा ऐसे पहले पत्रकार थे, जो इंटरनेट फ्रेंडली हुए। वे ईमेल के माध्यम से श्री चतुर्वेदी के सटायर देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को भेजा करते थे। मैं समझता हूं कि श्री चतुर्वेदी जितना अजमेर में छपे, उससे कई गुना देशभर में छपे। तब इंटरनेट पर ब्लॉग लेखन के बारे में कम बुद्धिजीवियों को ही जानकारी थी। इंटरनेट पर काम आने वाले यूनिकोड की भी किसी को समझ नहीं थी। चाणक्य व कृतिदेव को यूनीकोड या मंगल फॉंट में कन्वर्ट करने का फार्मूला तक किसी की जाननकारी में नहीं था। मेरी नजर में संभवत: डॉ. राजेन्द्र तेला पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के प्रकाशन के लिए ब्लॉग बनाया था। यदि किसी और ने भी ब्लॉग बनाया हो तो मुझे उसकी जानकारी नहीं।
बात अगर न्यूज बेस्ड आइटम्स की करें तो मेरा दावा है कि मैने सबसे पहले अजमेरनामा व तीसरी आंख के नाम से ब्लॉग बनाया। इसमें मेरी तकनीकी मदद एनडीटीवी के अजमेर ब्यूरो जनाब मोईन कादरी ने की। ब्लॉग की साज-सज्जा में मेरा सहयोग किया मेरे दोनों पुत्रों हेमंत तेजवानी व कमल तेजवानी ने। बाद में उसी को आगे बढ़ाते हुए मैने अजमेरनामा के नाम से न्यूज पोर्टल भी शुरू किया। इसकी संरचना में स्वामी न्यूज चैनल के सीएमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी, जनाब मुबारक व जनाब कादरी ने अहम भूमिका रही। बाद में इसे व्यवस्थित रूप दिया श्री आनंद शर्मा ने। मेरे से तकरीबन 15 दिन पहले पत्रकार मुजफ्फर अली व स्वर्गीय सुमित कलसी की टीम ने न्यूज-व्यू के नाम से पोर्टल आरंभ किया था। वह अजमेर का पहला पोर्टल कहा जा सकता है। मुजफ्फर अली आज भी ताजा विषयों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं।
ब्लॉग लेखन के क्षेत्र में दूसरा बड़ा कदम रखा वरिष्ठ पत्रकार श्री एस  पी मित्तल ने। प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में खूब काम करने के बाद श्री मित्तल ने अपनी पूरी पत्रकारिता ही ब्लॉग के नाम समर्पित कर दी है। अजमेर में केबल नेटवर्क पर व्यवस्थित व नियमित न्यूज चैनल चलाने वाले वे पहले पत्रकार हैं। हालांकि उनसे भी पहले श्री नानक भाटिया ने यूनाइटेड न्यूज चैनल आरंभ किया, मगर वह कुछ समय तक ही चल पाया। श्री मित्तल ने अपनी वेब साइट भी आरंभ की, मगर चूंकि उन्हें बेहतर यही लगा कि अपने ब्लॉग सीधे वाट्स ऐप व फेसबुक पर पोस्ट करें, जिसने उन्हें शीघ्र ही चर्चित कर दिया। वे प्रतिदिन तीन या चार ब्लॉग लिखते हैं। उनमे टिप्पणीयुक्त ताजा समाचार तो होते ही हैं और विभिन्न विषयों पर स्वतंत्र विचार भी होते हैं। कई लोग उनके ब्लॉग का इंतजार करते है, ताकि वे घटनाओं से अपडेट रहें।
इसी क्रम में नवोदित पत्रकार नरेश राघानी ने जल्द ही पकड़ बना ली। चूंकि उनका काफी टाइम राजनीति में बर्बाद हुआ और लोगों को उनकी लेखन क्षमता का भान नहीं था, इस कारण किसी को यकीन ही नहीं होता था कि वे खुद लिख सकते हैं। शुरुआती दिनों में उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार ओम माथुर पर कटाक्ष करते हुए जो बहुत टाइट ब्लॉग लिखा तो आम धारणा यही थी कि वह मैने लिखा है, जबकि सच्चाई यही है कि मेरी उसमें कोई भूमिका नहीं थी। भाषा-शैली के लिहाज से उन्होंने अभिव्यक्ति के विभिन्न प्रयोग किए हैं। वे भी लगभग नियमित ब्लॉग लिखते हैं, मगर  नियमितता के मामले में श्री मित्तल का कोइ सानी नहीं। राघानी वेब साइट के अतिरिक्त यूट्यूब पर भी हाथ आजमा रहे हैं। युवा पत्रकार नवीन वैष्णव ने भी सोशल मीडिया के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, मगर आमतौर पर उनका जोर न्यूज कंटेंट पर रहता है। नि:संदेह वे सधी हुई खबर लिखते हैं। सोशल मीडिया में यूट्यब के माध्यम से एमटीटीवी के सुशील पाल ने भी धूम मचा रखी है। स्टिंग ऑपरेशन से लेकर ताजा आर्य प्रकरण में खासी चर्चा हासिल की है। अरे, श्री विजय शर्मा को तो मैं भूल ही गया। अजमेर में वे सोशल मीडिया किंग हैं। उन्होंने विविध आयामीय प्रयोग किए हैं। प्रिंट से लेकर सोशल व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में न जाने क्या-क्या किया है।
एक और बड़ा नाम है श्री विजय मौर्य का, जिन्होंने राजस्थान पत्रिका में लंबे समय तक काम किया व ई-पत्रिका का काम संभाला। मेरी समझ में गूगल, वेब साइट व यूट्यूब के बारे में बारीक जानकारी के मामले में वे टॉप हैं। वे सबगुरू के नाम से एक बड़ा न्यूज पोर्टल चला रहे हैं और व्यावसायिक दृष्टि से अव्वल हैं। न्यूज पोर्टल, यूट्यूब चैनल व ब्लॉग के क्षेत्र में अब काफी साथी आ गए हैं, जिनमें मुझे चंद नाम याद आ रहे हैं, वे हैं श्री विजय पाराशर, श्री तीर्थदास गोरानी, श्री विजय कुमार हंसराजानी, श्री अशोक बंदवाल।
कॉलमिस्ट के रूप में एक और नाम का जिक्र भी जरूरी है। वो हैं दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार प्रताप सनकत का। वे श्री चतुर्वेदी की ही बेबाक शैली में प्याज के छिलके की तरह खबरों के छिलके उतारा करते थे। वर्तमान में यदाकदा फेसबुक पर अवतरित होते हैं। इसी क्रम में श्री अरविंद कौशिक का नाम लेना जरूरी है। वे न्याय में एक कॉलम लिखा करते थे, जिसकी खासियत ये थी कि उसमें उर्दू के शब्दों का प्रयोग बहुतायत में होता था। यही उनकी लेखनी की खूबसूरती थी।
बात ताजा दौर की। पेश से वकील व आदत से राजनीतिक पंडित राजेश टंडन का ब्लॉग तो मैने नहीं देखा, मगर वाट्स ऐप व फेसबुक पर वे सारे हथियार यथा तीर-कमान व थाली-चिमटा लिए फ्री स्टाइल शाब्दिक कुश्ती खेलते हैं। यूं तो पुलिस महकमे की दाई हैं, मगर राजनीति व प्रशासनिक हलके में जम कर लाठी भांजते हैं। वे हमारी तरह यूं ही कलमघसीट नहीं, बल्कि प्रयोजनार्थ लिखा करते हैं।
ब्लॉग की कैटेगिरी के फेसबुकिया लेखक भी अब सामने आने लगे हैं। इनमें वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रेम आनंदकर, वरिष्ठ वकील सत्य किशोर सक्सेना, वरिष्ठ बैंक अधिकारी रहे वेद माथुर व सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती कीर्ति पाठक के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें ताजा नाम पार्षद चंद्रेश सांखला का है। हालांकि उन्होंने फिलहाल नगर निगम में व्याप्त विसंगतियों को निशाना बनाया है। इसी क्रम में त्रिवेन्द्र पाठक का भी नाम लिया जा सकता है। जिन साथियों के नाम मुझ से छूट गए हैं, वे मेहरबानी करके मेरे वाट्स ऐप नंबर 8094767000  पर सूचित करने की कृपा करें, ताकि उनको भी सुशोभित किया जा सके।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 6 जुलाई 2019

तकरीबन पचास नए नेता होंगे पैदा

अजमेर नगर निगम में साठ के बजाय अस्सी वार्ड किए जाने से जहां वार्ड छोटे हो जाएंगे और उनकी मॉनिटरिंग आसान हो जाएंगी, वहीं अजमेर शहर को तकरीबन पचास नए नेता भी मिलेंगे। वर्तमान में साठ वार्डों के आधार पर कुल साठ नेता पार्षद के रूप में स्थानीय राजनीति में सक्रिय हैं। इतने ही हारे हुए नेता हैं। अर्थात कुल एक सौ बीस नेता शहर की नेतागिरी करते हैं। अब जब बीस वार्ड बढ़ रहे हैं तो चालीस नए नेता मैदान में आ जाएंगे। पुराने वार्डों में भी तकरीबन दस नए नेता पैदा होने का अनुमान है। अर्थात कुल पचास नेता नए पैदा हो जाएंगे। यदि हर वार्ड में दोनों पार्टियों में दो या तीन दावेदार माने जाएं तो, इस लिहाज से नेताओं की फेहरिश्त और लंबी हो जाएगी।
ज्ञातव्य है कि नगर निगम के नए वार्डों के परिसीमन व वार्डों के पुनर्गठन के लिए गठित टीम ने अपनी विशेष रिपोर्ट दस्तावेजों के साथ निगम आयुक्त को सौंप दी है। स्वायत्त शासन विभाग ने आपत्तियां दर्ज करवाने के लिए पंद्रह दिन का समय दिया है। इसी के साथ राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। मौजूदा पार्षदों व हारे हुए नेताओं ने नए वार्डों का अध्ययन शुरू कर दिया है। वे अपने लिए वार्ड का चयन करने के लिए अपनी सुविधानुसार आपत्तियां दर्ज करवाएंगे। जानकारी के अनुसार कई वर्तमान पार्षद व हारे हुए नेताओं की जमीन खिसक गई है। उन्हें आसपास के वार्डों में दावेदारी करनी होगी।
जहां तक भाजपा का सवाल है, वहां बाकायदा समितियां बना कर परिसीमन की मॉनिटरिंग का काम किया जा रहा है। हालांकि प्रत्याशियों के चयन में संगठन की भूमिका रहेगी और अगर चुनाव होने तक शिवशंकर हेडा ही शहर अध्यक्ष रहे तो वे अपनी जाजम बिछाने का प्रयास करेंगे, मगर समझा जाता है कि मौजूदा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल की ही ज्यादा चलेगी। पूर्व का अनुभव तो यही बताता है। पिछली बार तो हालत ये थी कि हेडा के पूर्ववर्ती अध्यक्षीय कार्यकाल में उनकी एक नहीं चली और सभी टिकट देवनानी व भदेल ने ही दिए।
उधर कांग्रेस में शहर अध्यक्ष विजय जैन के अतिरिक्त मुख्य रूप से अजमेर दक्षिण में हेमंत भाटी व अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता की अहम भूमिका रहने वाली है। ललित भाटी, डॉ. राजकुमार जयपाल, कमल बाकोलिया, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती भी टांग अड़ाएंगे ही। पूर्व सांसद व केकड़ी विधायक डॉ. रघु शर्मा, जो कि स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, उनकी सिफारिश से भी कुछ टिकट फाइनल होंगे। हो सकता हाल ही लोकसभा चुनाव हारे रिजु झुंझुनवाला भी कुछ दावेदारों की पैरवी करें। हारने के बाद भी अपनी संस्था पूर्वांचल जन चेतना समिति के जरिए सामाजिक सरोकारों के काम करवा कर अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाए रखना चाहते हैं। खैर, फिलवक्त सभी संभावित दावेदारों ने अपने-अपने आकाओं की पगचंपी शुरू कर दी है। सब की नजर प्रदेश स्तर पर संभावित परिवर्तन पर भी टिकी हुई है।
रहा सवाल मेयर का तो उसकी सरगरमी आरक्षण की लॉटरी खुलने के बाद ही आरंभ होगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमरत्न आर्य पर फैसला आप करेंगे या कोर्ट?

एक नाबालिगा के साथ छेड़छाड़ के आरोप से घिरे दिग्गज भाजपा नेता सोमरत्न आर्य इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में हैं। उन पर पाक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हो चुका है। अब वे अग्रिम जमानत हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यह प्रकरण इन दिनों सर्वाधिक चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मुद्दे को लेकर सोशल मिडिया पर लटके पड़े बुद्धिजीवी आपस में उलझ रहे हैं। कोई आर्य को फांसी की सजा देने की पैरवी कर रहा है तो कोई उनकी स्वच्छ छवि को गिनवा कर आरोप को साजिश बता रहा है। हालत ये हो गई है कि जो लोग कथित पीडि़ता का साथ दे रहे हैं, उन पर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगने लगे हैं।
असल में आर्य की कथित करतूत को लेकर सबसे पहले एमटीटीवी ने बिना उनका नाम प्रकाशित किए छोटी से खबर चलाई। इसी के साथ सोशल मीडिया पर जंग शुरू हो गई, मगर चूंकि इस मामले में पीडि़ता सामने नहीं आई थी, इस कारण आर्य का नाम उजागर करने की हिम्मत किसी शेख चिल्ली में नहीं थी। कुछ लोग क्लू दे कर उनकी ओर इशारा कर रहे थे। ब्लॉगर भी भला क्यों चुप रहने वाले थे। जैसे ही थाने में रिपोर्ट दर्ज हुुई, एमटीटीवी की कयासी खबर पर मुहर लग गई। स्वाभाविक रूप से सारी क्रेडिट भी उस के खाते में दर्ज हो गई। जब तक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ था, तब तक अपना भी इस बारे टांग अड़ाने का कोई मानस नहीं था। इस बीच मेरे एक परिचित ने मेरे वाट्स ऐप अकाउंट पर एक संदेश भेजा- समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध। इसका सीधा सा अर्थ था कि वे मुझे भी कुछ लिखने को उकसा या प्रेरित कर रहे थे। जब इस मुद्दे पर अनेक लोगों की जुगाली परवान चढऩे लगी की तो मुझे भी लगा कि अपना भी दृष्टिकोण रखना ही चाहिए।
इस मुद्दे पर बहुत कुछ अंटशंट लिखा जा चुका है। उसकी चर्चा न ही की जाए तो बेहतर रहेगा। लिखने वालों ने अपनी ओर से आर्य को पूरी तरह से नंगा कर दिया है। मुकदमा दर्ज होने के बाद स्वाभाविक रूप से उनको कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की भी मांग उठ रही है। कुछ लोगों ने जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, उससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आर्य ने पक्के तौर पर कुकृत्य किया ही है। अगर वे निर्णय पर पहुंच गए हैं तो न्यायिक व्यवस्था की जरूरत ही क्या है? उनके कहे अनुसार ही सजा दे दी जानी चाहिए। मगर अपनी राय भिन्न है। अभी आरोप मात्र लगा है। गिरफ्तारी होगी। सबूत पेश होंगे, जिरह होगी, तब जा कर कोर्ट फैसला करेगा। उससे पहले उनका चरित्र हनन करना पूरी तरह से गैरकानूनी व गैर मानवीय है।
मुझे पत्रकारिता में जो ट्रेनिंग मिली है, उसके अनुसार यदि किसी को चोरी के आरोप में पकड़ा जाता है तो खबर लिखते समय हम ये हैडिंग नहीं लगाते कि चोर पकड़ा गया। हम लिखा करते हैं कि चोरी का आरोपी गिरफ्तार। अगर हम उसे चोर करार दे रहे हैं तो फिर पर उसके खिलाफ मुकदमा चलने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। ये तो हुई विधिक बात।
अब बात करते हैं, धरातल पर मौजूद कुछ और तथ्यों की। यह एक सर्वविदित सच्चाई है कि आर्य का अब तक का पूरा जीवन पूरी तरह से समाज सेवा में बीता है। शहर की सर्वाधिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे हैं। राजनीति, समाजसेवा सहित ऐसा कोई फील्ड नहीं, जिसमें उनका दखल न हो। डिप्टी मेयर रह चुके हैं। ब्लड डोनेशन का रिकार्ड बना चुके हैं। ऐसे बहुआयामीय व्यक्तित्व की सामाजिक स्वीकारोक्ति स्वाभाविक है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेसी नेताओं तक ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी और सिर्फ ये कहा कि अगर उन्होंने ऐसा कृत्य किया है तो उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए। मामला उजागर होने पर अधिसंख्य लोगों को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि वे ऐसा घृणित कृत्य कर सकते हैं।
कदाचित ऐसी पंक्तियां पढ़ कर यह प्रतिक्रिया उठे कि उनका पक्ष लिया जा रहा है। मगर ऐसा है नहीं। एक आरोप की वजह से उनके पूरे जीवन की साधना पर पानी फेर देना न्यायोचित नहीं होगा। हां, अगर आरोप प्रमाणित हो जाता है तो निश्चित ही उन्हें सजा मिलेगी और मिलनी भी चाहिए। सोशल मीडिया पर चटकारापूर्ण ट्रायल करने की बजाय निर्णय कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए। वैसे भी न्यायाधीश फेसबुकियों को बुला कर मतदान करवाने वाले नहीं हैं। फिलहाल वे अग्रिम जमानत की कोशिश में हैं। हां, अगर लंबे समय तक फरार रहते हैं तो उनकी गिरफ्तारी के लिए लोगों का लामबंद होना जायज होगा, ताकि जल्द से जल्द फैसला हो और पीडि़ता को समय पर न्याय मिले।
सिक्के का एक पहलु ये भी है कि कोई कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो, उसे अपराध की छूट नहीं हो सकती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, आसाराम बापू। वे वर्षों से जेल में हैं। यह अलहदा बात है कि उनके भक्त आज भी उन्हें निर्दोष मानते हैं और हर पूर्णिमा को जोधपुर जेल के बाहर जुट कर अपनी आस्था का इजहार करते हैं।
तस्वीर का एक चेहरा और। कोई भी नाबालिग यूं ही किसी के खिलाफ खड़ी नहीं हो सकती। जमीन की इसी हकीकत के मद्देनजर पोक्सा जैसा कड़ा कानून बनाया गया है। यही वजह है कि जब भी कोई नाबालिग पीडि़ता देहलीज पार करती है तो सहज ही उस पर यकीन कर लिया जाता है कि उसके साथ कुछ न कुछ हुआ होगा। मगर फैसला तब भी केवल आरोप लगाने मात्र से नहीं किया जाता। बाकायदा न्यायिक प्रक्रिया अपनाई जाती है।
उनके एक मित्र सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभान प्रजापति का दर्द देखिए, वे कहते हैं:- आज उनके व्यक्तित्व पर चरित्र हीनता का दाग लगना और फिर संपूर्ण शहर में से किसी का भी उनका प्रत्यक्ष रूप से सामने आकर साथ न देना इस बात का प्रमाण है कि मानवता, सामाजिकता रिश्ते, दोस्ती सब एक हाशिये में आकर खड़ी हो गई हैं।
बात भले ही सही हो, मगर कोर्ट किसी के उनके साथ आने से प्रभावित होने वाला नहीं है। चाहे जितने एकजुट हो जाओ। वह तो पीडि़ता के बयान, सबूत, जिरह व कानूनी प्रावधान के तहत ही फैसला देगा। वैसे भी आर्य का कोई कितना भी करीबी मित्र क्यों न हो, वह यह तो कह सकता है कि वे ऐसा नहीं कर सकते, मगर वह यह नहीं कह सकता कि आर्य ने ऐसा नहीं किया है।
दूसरी ओर आर्य के विरुद्ध पीडि़ता का साथ देने की मुहिम चला रही समाजसेविका श्रीमती कीर्ति पाठक का भी दर्द इसी प्रकार का है। वे कहती हैं कि अजमेर को कुंभकर्णों की जरूरत नहीं है। संगठित विरोध ही समस्या का समाधान है। अर्थात उनकी पीड़ा है कि लोग साथ क्यों नहीं दे रहे? उनकी अपेक्षा अपनी जगह उचित ही है? मगर इस मामले में भी फार्मूला वही लागू होता है। न्यायालय इस आधार पर फैसला करने वाला नहीं है कि समाज में उनके खिलाफ कितने लोग खड़े हैं या कितने लोग पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस मामले में कोर्ट के बाहर पीडि़ता का साथ दे रहे ये तो कह सकते हैं कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, मगर वे यह नहीं कह सकते कि आर्य दोषी हैं ही।
इस पूरे प्रकरण के गर्भ में कई तथ्य हैं, मगर चूंकि उन्हें प्रमाणित तौर पर नहीं कहा जा सकता, इस कारण उनका उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
लब्बोलुआब, सार ये है कि फैसला न्यायालय के हाथ है। हम क्यों तो लाठियां भांजें और क्यों मुट्ठियां तानें? हां, अगर मुट्ठियां तानने से समाज सुधार होता है तो मैं उस मुहिम को सलाम करता हूं।
-तेजवानी गिरधर
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