सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

क्या गैर सिंधीवाद ने खो दिया एक दमदार दावेदार?

अजमेर नगर निगम की साधारण सभा के दौरान मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पूर्व नगर परिषद सभापति व भाजपा से निष्कासित मौजूदा पार्षद सुरेन्द्र सिंह शेखावत को अपने हाथों से रोटी खिलाने की फोटो वायरल हुई तो एक बार फिर राजनीतिक अफवाहों की अबाबीलें उडऩे लगीं। मौलिक सवाल सिर्फ एक ये कि आखिर किस समझौते के तहत गहलोत व शेखावत एक हो गए?
कुछ ऐसे ही सवाल ये कि क्या समझौते से पहले गहलोत ने अपने आका शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से सहमति ली थी? क्या देवनानी ने सुलह से पहले गहलोत के जरिए शेखावत ये वचन तो नहीं ले लिया कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट का रुख नहीं करेंगे? अव्वल तो वे अभी भाजपा में लौटे नहीं हैं, मगर वापसी हुई भी तो क्या अजमेर उत्तर से चुनाव लडऩे की जिद नहीं करेंगे? और अगर इतना बड़ा करार हुआ है तो क्या यह गैर सिंधीवाद की मुहिम को एक तगड़ा झटका नहीं कहलाएगा?
ज्ञातव्य है कि गैर सिंधीवाद की मुहिम के तहत पिछली बार भाजपा टिकट के करीब पहुंच गए थे, वो तो ऐन वक्त पर देवनानी ने संघ की तुरप का पत्ता खेल कर टिकट हथिया ली, वरना कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पहली बार गैर सिंधी को टिकट देने का प्रयोग हो गया होता। कहने की जरूरत नहीं है कि शेखावत गैर सिंधीवाद के एक आइकन के रूप में स्थापित हो गए थे। विशेष रूप से मेयर चुनाव में हारने के बाद देवनानी के विरोधी हों या गैर सिंधीवाद की मुहिम को हवा देने के वाले, शेखावत के इर्द गिर्द जमा हो गए थे। उन्हें शेखावत से बड़ी उम्मीदें थीं। माना यही जा रहा था कि अगर कांग्रेस व भाजपा, दोनों ने सिंधी प्रत्याशी ही उतारे तो वे गैर सिंधीवाद के नाम पर निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतर जाएंगे। मगर अब जब कि पिछले दिनों मसाणिया भैरवधाम में चंपालाल जी महाराज के सामने शेखावत व गहलोत ने राजनीतिक दुश्मनी समाप्त कर ली तो उस संभावना पर धुंधलका छा गया है। हालांकि अभी ये पता नहीं है कि शेखावत की भाजपा में वापसी कब होगी, होगी भी या नहीं, मगर बदले हालात यही संकेत दे रहे हैं कि शेखावत देवनानी के खिलाफ दावेदारी नहीं करेंगे। निश्चित ही देवनानी ने गहलोत को शेखावत से दोस्ती करने से पहले दावेदारी न करने का वचन देने को कहा होगा। हालांकि राजनीति में सब कुछ संभव है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि गैर सिंधीवाद ने एक तगड़ा दावेदार खो दिया है। ऐसे ही एक उभरते दावेदार पार्षद ज्ञानचंद सारस्वत भी थे, मगर वे पिछले निगम चुनाव में देवनानी से सुलह कर भाजपा में लौट गए थे। हां, इन दोनों का स्थान अब अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेडा लेते दिखाई दे रहे हैं। वे अंडरग्राउंड तैयारी कर रहे बताए। देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर
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तीन साल बाद ये हैं अजमेर जिले के राजनीतिक हालात

अजमेर। जिले की आठ में से सात विधानसभा सीटों पर काबिज भारतीय जनता पार्टी दो राज्यमंत्रियों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल, दो संसदीय सचिवों सुरेश रावत व शत्रुघ्न गौतम के अतिरिक्त राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सांवरलाल जाट व राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की सशक्त टीम के साथ बहुत ही मजबूत स्थिति में है। किसी भी जनप्रनिधि पर कोई गंभीर आरोप नहीं है। मगर एक ही किंतु नजर आता है कि चूंकि इस बार मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में काबिज सरकार का परफोरमेंस कुछ खास उल्लेखनीय नहीं रहा है, इस कारण संभव है जनता पलटी मार दे। हालांकि चुनाव अभी दो साल दूर हैं, इस दौरान हालात बदल भी सकते हैं, मगर फिलहाल माहौल भाजपा के पूरी तरह से पक्ष में नहीं माना जा रहा।
बात अगर कांग्रेस की करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में जिले की आठों विधानसभा सीटों पर पस्त हो चुकी पार्टी में थोड़ी जान तब आई, जब नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में रामनारायण गुर्जर विजयी रहे। जाहिर तौर पर इसमें प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष व अजमेर के पूर्व सांसद रहे सचिन पायलट की भी भूमिका रही, जिन्होंने कांग्रेस में फिर से जान फूंकने की कोशिश की है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का धड़ा भी सक्रिय है, जिससे आपसी टकराव की आशंका है, मगर इस प्रतिस्पद्र्धा का अंत बड़े नेताओं के बीच सीटों के बंटवारे के साथ समाप्त होने की संभावना है। यूं कांग्रेसी यही मान कर चल रहे हैं कि इस बार सत्ता उनकी ही होगी।
आइये, जरा जिले की आठों विधानसभा सीटों की ताजा स्थिति पर नजर डालें कि ग्राउंड पर कैसी स्थिति व कैसे समीकरण हैं:-
अजमेर उत्तर
बात अगर अजमेर उत्तर की करें तो शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी की हालिया मंत्रीमंडल विस्तार में रवानगी की खूब चर्चा थी, मगर संघ के वीटो से वे न केवल खम ठोक कर खड़े हैं, अपितु एक और विभाग मिलने से ज्यादा मजबूत हुए हैं। ऐसे में कोई कारण लगता नहीं कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया जाए। दुर्भाग्य से भाजपा का एक बड़ा धड़ा उनके खिलाफ है और चुनाव आने तक पंद्रह साल की एंटी इन्कंबेंसी उनके कांधे पर होगी, मगर उन्होंने अभी से अपनी टीम को वार्ड व बूथ स्तर पर मजबूत करना शुरू कर दिया है। भाजपा में हालांकि किसी गैर सिंधी को टिकट देने का दबाव रहेगा, मगर लगता नहीं कि भाजपा अपने सिंधी वोट बैंक के बिखरने का खतरा मोल लेने का दुस्साहस करेगी। अगर किसी सूरत में उनका टिकट कटने की स्थिति बनती है तो कंवल प्रकाश किशनानी सबसे प्रबल दावेदार होंगे, मगर उन्हें संघ के वरदहस्त की जरूरत होगी, जिसके लिए वे सतत प्रयत्नशील हैं। यूं संघ की जैसी फितरत है, वह किसी अपरिचित चेहरा भी उतार सकता है।
उधर कांग्रेस में ऐसी आम धारणा है कि लगातार दो बार गैर सिंधी को टिकट देने के कारण हुई हार से सबक लेते हुए इस बार पार्टी गैर सिंधी को टिकट देने का प्रयोग नहीं करेगी, मगर उसके पास कोई सशक्त दावेदार नजर नहीं आता। तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहणी भगत एक मजबूत दावेदार हो सकते थे, मगर चूंकि वे एसीडी के एक केस में उलझे हुए हैं, इस कारण उससे मुक्ति के बिना वे चुनाव का सपना भी नहीं देख सकते। इसके अतिरिक्त जिस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने पायलट पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ी थी, उससे उनकी संभावना धूमिल सी है। अगर वे केस से बाहर हो जाते हैं तो शायद गहलोत खेमे की ओर से प्रबल दावेदारी कर सकते हैं। सिंधी दावेदारों में पूर्व पार्षद श्रीमती रश्मि हिंगोरानी, सुनिल मोतियानी, पूर्व राज्यकर्मी हरीश हिंगोरानी के नाम चल रहे हैं। राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. लाल थदानी भी दावेदारी कर सकते हैं। यूं प्रदेश कांग्रेस के सचिव सुरेश पारवानी के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें इसी मकसद से अजमेर का सहप्रभारी बनाया गया है।
इस सीट को लेकर एक रोचक स्थिति को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तत्कालीन नगर परिषद के सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत मेयर चुनाव के दौरान पार्टी से बाहर हो गए थे। इस विवाद का पटाक्षेप हाल ही हुआ है। उन्होंने राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरवधाम के मुख्य उपासक चंपालाल जी महाराज के समक्ष मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के साथ सभी गिले शिकवे भुला कर सुलह कर ली है। अब संभावना यही है कि वे फिर मुख्य धारा में आने की कोशिश करेंगे। वैसे उन पर गैर सिंधी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने का भारी दबाव रहेगा, जिसके लिए उन्होंने ग्राउंड भी बना रखा है।
अजमेर दक्षिण
अजमेर दक्षिण की बात करें तो हाल के मंत्रीमंडल विस्तार में राज्य मंत्री का पद बरकरार रखने में कामयाब हुईं श्रीमती अनिता भदेल का टिकट पक्का ही माना जा सकता है, मगर चूंकि नगर निगम चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा और कोली मतदाताओं में जनाधार कम हुआ, उसे देखते हुए तनिक संभावना भी है कि पार्टी इस बार किसी और यथा रेगर या वाल्मिकी कार्ड खेलने पर विचार कर सकती है। इस सिलसिले में मौजूदा जिला प्रमुख वंदना नोगिया व पूर्व कांग्रेस विधायक बाबूलाल सिंगारियां का नाम सामने आता है। यूं कोली नेता के रूप में पार्टी के पास मेयर का चुनाव हार चुके डॉ. प्रियशील हाड़ा का नाम भी है।
दूसरी ओर कांग्रेस में आम धारणा है कि पायलट का वरदहस्त होने के कारण इस बार भी प्रमुख उद्योगपति हेमंत भाटी को ही टिकट दिया जाएगा, मगर उनके बड़े भाई पूर्व उपमंत्री ललित भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व पूर्व मेयर कमल बाकोलिया भी टिकट के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे।
पुष्कर
अजमेर से मात्र 13 किलोमीटर दूर तीर्थराज पुष्कर की सीट पर मौजूदा संसदीय सचिव सुरेश रावत के ही रिपीट होने का अनुमान है। वे न केवल पूरी तरह से सक्रिय हैं, अपितु मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भी कृपा पात्र हैं। रावत वोट बैंक की वजह से भी उन्हें दोहराना भाजपा की मजबूरी होगी। उधर हारने के बाद भी क्षेत्र में लगातार सक्रिय पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ इसी उम्मीद में हैं कि इस बार भी उन्हें ही कांग्रेस का टिकट मिलेगा, मगर एक बार यहां से विधायक रह चुके डॉ. श्रीगोपाल बाहेती अपने आका अशोक गहलोत के दम पर टिकट लाने का माद्दा रखते हैं। हालांकि ऐसा तभी होगा, जब मसूदा से किसी मुस्लिम को टिकट दिया जाएगा।
नसीराबाद
नसीराबाद विधानसभा सीट पर इस बार राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार होंगे। यहां की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो यह सर्वविदित है कि प्रो. जाट ने मोदी लहर में इस सीट पर वर्षों बाद कब्जा कर लिया था, मगर लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें अजमेर संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया, इस कारण यहां उपचुनाव हुए। उसमें कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर ने पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गेना को पराजित कर दिया। वे अब भी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती रहती हैं, मगर प्रो. जाट का दबदबा इतना अधिक है कि दुबारा टिकट पाने का उनका सपना साकार होना कठिन है। वैसे भी केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने के कारण जाट के हजारों समर्थक नाराज हैं, इस कारण टिकट के निर्धारण में जाट की ही भूमिका अहम रहेगी। हालांकि राज्य किसान आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद जाट शांत हैं, मगर वे उत्तराधिकारी के रूप में प्रो. जाट के पुत्र को ही टिकट देने पर पूरी तरह से संतुष्ट होंगे।
कांग्रेस की बात करें तो इस सीट पर पुडुचेरी के उपराज्यपाल स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर व उनके परिवार का ही वर्चस्व रहा है। मौजूदा विधायक रामनारायण गुर्जर संजीदा और सशक्त हैं, इस कारण लगता यही है कि फिर टिकट उन्हें ही मिलेगा, मगर उनके ही रिश्तेदार पूर्व विधायक महेन्द्र गुर्जर टिकट हासिल करने की भरपूर कोशिश करेंगे। वैसे उनके बारे में एक अफवाह ये है कि वे कांग्रेस में तवज्जो नहीं मिलने पर भाजपा का दामन भी थाम सकते हैं। एक विशेष स्थिति ये भी बन सकती है कि अगर सचिन पायलट पर मुख्यमंत्री का दावेदार होने के नाते विधानसभा का चुनाव लडऩे  का दबाव रहा तो संभव है, इस सीट का चयन करें।
केकड़ी
केकड़ी में मौजूदा विधायक व संसदीय सचिव शत्रुघ्न गौतम का पाया काफी मजबूत है। युवा और सदवै सक्रिय रहने के कारण उन्होंने क्षेत्र में अच्छी पकड़ बना ली है। संसदीय सचिव बनने के बाद तो वे और मजबूत हुए हैं। राजपूतों की ओर से कदाचित दावेदारी की भी जाए, मगर उनकी फूट किसी भी दावेदार को सशक्त रूप से आगे नहीं बढऩे देगी। कांग्रेस की ओर से इस बार फिर रघु शर्मा दावेदारी करेंगे, ऐसा समझा जाता है। असल में पिछले विधायक काल में उन्होंने क्षेत्र में भरपूर काम करवाए, केकड़ी को जिला बनवाने की भी खूब कोशिश की, इस कारण जिले की एक मात्र इसी सीट पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित मानी जाती थी, मगर मोदी लहर व मीडिया मिसमैनेजमेंट के कारण रघु शर्मा हार गए। वे राज्य स्तरीय नेता हैं और प्रदेश के बड़े पत्रकारों से उनके ताल्लुकात हैं, मगर स्थानीय स्तर पर मीडिया को तवज्जो नहीं देने के कारण उनके खिलाफ माहौल बन गया था।
किशनगढ़
यूं तो किशनगढ़ के मौजूदा विधायक भागीरथ चौधरी का ही भाजपा टिकट पर प्रथम दावा रहेगा, चूंकि भाजपा इस सीट पर जातीय समीकरण के तहत किसी जाट को ही मैदान में उतारती है, मगर किशनगढ़ का शहरी वोटर ये चाहता है कि कोई गैर जाट सामने आए। इसी सिलसिले में किशनगढ़ नगर परिषद की सभापति गुणमाला पाटनी के पति महेन्द्र पाटनी दावा कर सकते हैं। उनके अतिरिक्त मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश टाक, सुरेश दगड़ा आदि भी दावा ठोक सकते हैं। हालांकि इनमें से वही भारी पड़ेगा, जिस पर आर के मार्बल का हाथ होगा।
उधर कांग्रेस में पूर्व विधायक नाथूराम विधायक के अतिरिक्त कोई अन्य जाट नेता उभरता नहीं दिखाई देता। गैर जाट के रूप में कांग्रेस राजू गुप्ता पर दाव खेल सकती है। पिछली बार अगर मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की चलती तो वे ही टिकट लेकर आते। अगर इस सीट पर किसी जाट को ही उतारने की मजबूरी नहीं रही तो गुप्ता बाजी मार सकते हैं। बाकी दावेदारी करने को तो रतन यादव, सुशील अजमेरा, बाबा रामदेव गुर्जर, अब्दुल सत्तार आदि भी कर सकते हैं।
मसूदा
पिछली बार जिन हालात में युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की पत्नी जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा टिकट लेकर आई और जीत कर भी दिखाया, उसे देखते हुए लगता नहीं कि मसूदा में कोई और प्रबल दावेदार भाजपा में उभर कर आएगा। क्षेत्र में लगातार संपर्क और जनसेवा के कार्य निरंतर करवाते रहने के कारण उनकी पकड़ इलाके में मजबूत भी है। कांग्रेस में इस बार पूर्व विधायक हाजी कयूम खान टिकट लाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। उनकी जयपुर-दिल्ली तक अच्छी पकड़ है। अगर पुष्कर से पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ को टिकट नहीं मिल पाया तो जिले में एक मुस्लिम के नाते हाजी कयूम टिकट लाने में कामयाब हो सकते हैं।
ब्यावर
ब्यावर विधायक शंकर सिंह रावत स्वाभाविक रूप से भाजपा टिकट के पहले दावेदार होंगे, मगर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से खास ट्यूनिंग न होने के कारण माना जा रहा है कि कोई और रावत नेता उभर कर आएगा। शंकर सिंह रावत ने हालांकि ब्यावर को जिला बनवाने के लिए खूब संघर्ष किया, मगर सरकार पर पूरी तरह से दबाव बनाने में कामयाब नहीं हो पाए। फिलहाल संघ पृष्ठभूमि व एबीवीपी से लंबे समय तक जुड़े रहे महेन्द्र सिंह रावत, संघ व भाजपा में सैनिक प्रकोष्ठ के सुपरिचित चेहरे पूर्व सैनिक देवी सिंह रावत, जवाजा क्षेत्र की जानी पहचानी महिला नेता संतोष रावत, किशोर सिंह संगरवा आदि के नामों की चर्चा है। यदि भाजपा ने किसी गैर रावत को टिकट देने का मानस बनाया तो देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत ही एक मात्र प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। वे वसुंधरा राजे के करीबी भी हैं और पिछले पच्चीस साल से यहां से टिकट की मांग करते रहे हैं।
कांग्रेस में रावत चेहरे के रूप में मेजर फतेह सिंह रावत के पोते व हरिसिंह रावत के पुत्र सुदर्शन रावत प्रबल दावेदार हैं। गैर रावतों में चंद्रकांता मिश्रा व उनके पति ओम प्रकाश मिश्रा के अतिरिक्त देहात जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आनंद मोहन शर्मा के पुत्र दिनेश शर्मा, जो कि युवक कांग्रेस में रहने के दौरान काफी चर्चित रहे, दावा कर सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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