रविवार, 25 जून 2017

नगर निगम के बाद एडीए में नियुक्यिों का इंतजार

अजमेर नगर निगम में लंबे इंतजार के बाद मनोनीत पार्षदों की घोषणा होने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं को अजमेर विकास प्राधिकरण में प्रस्तावित बोर्ड के सदस्यों की घोषणा का इंतजार है।
जानकारी के अनुसार बोर्ड में एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेडा की पसंद के अतिरिक्त अजमेर उत्तर व दक्षिण, पुष्कर व किशनगढ़ के विधायकों की ओर से सिफारिश किए गए नेताओं को शामिल किया जाएगा, क्योंकि एडीए के क्षेत्र में अजमेर शहर के अतिरिक्त पुष्कर व किशनगढ़ भी आते हैं। अजमेर नगर निगम में जब मनोनीत पार्षदों के लिए स्थानीय दोनों विधायकों, जो कि राज्य मंत्री भी हैं, ने तीन-तीन नाम प्रस्तावित किए थे, तभी एडीए में भी अपनी पसंद के दो-दो नेताओं के नाम भी जयपुर भेजे दिए थे।
हालांकि सिद्धांत: यह तय है कि एडीए में बोर्ड गठित होगा, मगर उस पर कार्यवाही को लेकर अभी मंथन चल रहा है। सरकार यह विचार कर रही है कि क्या बाकी बचे डेढ़ साल के लिए नियुक्तियां करना उचित रहेगा या नहीं। असल में डर है कि यदि नियुक्तियां कर दी गईं तो जो नेता वंचित रह जाएंगे, उनमें असंतोष फैल जाएगा। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे जमा हुआ पानी हिलने लग जाए। हालांकि स्थानीय नेता बोर्ड के गठित करने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं, क्योंकि उनके चहेते उनके पीछे पड़े हुए हैं, मगर सरकार कदम उठाने से पहले पूरी तरह से हालात को ठोक बजा लेना चाहती है। इसकी वजह ये है कि यदि अभी बोर्ड गठित हो जाने पर असंतोष बढ़ा तो उसे तुष्ट करने का कोई उपाय नहीं रहेगा, क्योंकि स्थानीय स्तर पर ऑब्लाइज करने का कोई उपाय नहीं है। ज्ञातव्य है कि बोर्ड में उन ही नेताओं की सिफारिश की गई है, जिनको निगम में एडजस्ट नहीं किया जा सका। उन्हें आश्वासन दिया हुआ है। सरकार का कार्यकाल खत्म होने की ओर अग्रसर है, इस कारण नियुक्ति के दावेदारों में उतावलापन है। उनका तर्क है कि जब निगम में नियुक्ति हो चुकी है तो एडीए  में क्यों अटका रखी है? उन्होंने अपने-अपने आकाओं की नींद हराम कर रखी है, मगर वे भी क्या करें, फैसला सरकार को करना है। समझा जाता है कि वे भी मन ही मन ये सोच रहे होंगे कि नियुक्ति न हो तो अच्छा। स्वाभाविक रूप से जितने नाम घोषित होने हैं, कम से उनसे दो या तीन गुना को लॉलीपोप दे रखी होगी। जैसे ही नियुक्ति हुई तो शेष बचे नेता उनके कपड़े फाड़ेंगे। चूंकि चुनाव में मात्र डेढ़ साल बाकी रह गया है और उन्हें फिर से टिकट की उम्मीद है, ऐसे में उन्हें असंतुष्ट नेताओं के बगावत या भीतरघात करने का खतरा है।
बहरहाल, फिलहाल मामला अधरझूल में है। यह केवल सरकार पर ही निर्भर है कि वह क्या फैसला करती है, स्थानीय नेताओं के हाथ में कुछ भी नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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