बुधवार, 30 जनवरी 2013

बैंसला के रुख से बढ़ेगी सचिन की मुश्किल


राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से गुर्जर सहित विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच प्रतिशत आरक्षण देने के कांगे्रस सरकार के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाए जाने से गुर्जर समुदाय गुस्से में है। अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे गुर्जर आरक्षण आंदोलन के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला व अन्य नेताओं ने तो इसे कांग्रेस सरकार की धोखाधड़ी करार देते हुए आगामी विधानसभा चुनाव में गुर्जर समाज की ओर से कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने की चेतावनी तक दे दी है। बैंसला ने दावा किया कि वे 23 सीटें जीतेंगे, 26 सीटें जितवाएंगे और 28 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराएंगे। गुर्जर समाज के इस ताजा रवैये से अजमेर के कांग्रेस सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की मुश्किलें बढ़ेंगी। उनकी अजमेर सीट भी खतरे में पड़ेगी क्योंकि उनकी जीत में गुर्जरों की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्तमान में यह माना जा रहा है कि चूंकि पायलट कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हैं, इस कारण आगामी दिनों में उनका कद और बढ़ेगा, मगर गुर्जर समाज की नाराजगी के चलते उस पर ग्रहण लग सकता है। कांग्रेस हाईकमान अब केवल पायलट को कोई महत्वपूर्ण पद देकर ही गुर्जर समाज को राजी नहीं कर सकता। गुर्जर समाज को तो किसी भी सूरत में आरक्षण चाहिए। ऐसे में स्वाभाविक रूप से पायटल की भविष्य की राजनीति पर असर पड़ सकता है, क्योंकि राजस्थान में वे कांग्रेस के सबसे बड़े गुर्जर नेता के रूप में माने जाते हैं। लगता ये भी है कि इस स्थिति से निपटने के लिए वे कुछ विशेष प्रयास करें।
-तेजवानी गिरधर

गौरव पथ बनाया जैन ने, गौरव बढ़ेगा भगत का

खबर है कि नगर सुधार न्यास के सदर नरेन शहाणी भगत गौरव पथ के मार्ग में आ रही अड़चनों को दूर करने के प्रति गंभीर हो गए हैं। अगर वे ऐसा कर पाए तो यह शहर के लिए तो एक उपलब्धि होगी ही, उनका भी गौरव बढ़ेगा।
ज्ञातव्य है कि आनासागर लिंक रोड से लेकर रीजनल कॉलेज तक बनाया गया शानदार गौरव पथ न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन की देन है। बताया जाता है कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने भी इसमें रुचि ली थी। इसी कारण उन दिनों ये कयास लगाए जाने लगे कि कहीं उनकी अजमेर से चुनाव लडऩे की रुचि तो नहीं है। बहरहाल, गौरव पथ जैन की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक थी, मगर इसमें जमीन विवादों के चलते अड़चनें आईं और इसी दरम्यान उन्हें एक फर्जी सीडी प्रकरण के कारण इस्तीफा देना पड़ गया और गौरव पथ सहित अनेक योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गईं। उनके इस्तीफे के बाद न्यास सदर पर पर बैठे पदेन कलेक्टरों ने कोई रुचि ही नहीं ली। मांगें होती रहीं, मगर प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जैन को इस बात का बड़ा भारी मलाल अब भी है कि अजमेर गौरव बढ़ाने वाले गौरव पथ को यूं ही आधा-अधूरा छोड़ दिया गया। मगर वे कर भी क्या कर सकते थे। उन्होंने यह मुद्दा भगत के सदर की कुर्सी पर काबिज होने और उनका एक साल पूरा होने पर भी उठाया था, मगर कोई प्रगति नहीं हुई। अब जब कि भगत ने इसमें रुचि ली है तो उम्मीद बंधी है कि गौरव पथ शहर के सौंदर्य में चार चांद लगाएगा।
आपकी जानकारी होगी ही कि गौरव पथ पर सिने मॉल के पास 990 वर्ग गज का भूभाग पथ की सुगमता और सौंदर्य को खा रहा है। अब न्यास इस भूभाग के मालिक को भूमि के बदले विकसित भूमि दिए जाने पर विचार कर रही है। यदि यह संभव हुआ तो इसका कब्जा लेकर यहां सड़क का निर्माण शुरू किया जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

रावत की ये टिकट पक्की करने की दौड़ तो नहीं?


इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्यावर के भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत ब्यावर को जिला बनवाने और बीसलपुर का पानी पिलाने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं, मगर विपक्षी विधायक होने के कारण उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। ये बात खुद रावत भी जानते हैं कि सरकार को यदि ब्यावर को जिला घोषित करना ही होगा तो उसकी क्रेडिट उन्हें काहे को देगी। ऐसे में उनकी ताजा दौड़भाग को ब्यावर की जनता का दिल जीतने और अपनी टिकट पक्की करने से जोड़ कर देखा जा रहा है।
जहां तक उनकी ताजा जयपुर पैदल यात्रा का सवाल है, उसे उनके समर्थकों का तो पूरा सहयोग मिल रहा है, मगर देहात जिला भाजपा उनके साथ नहीं है। यात्रा जब अजमेर आई तो उनका स्वागत नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, युवा मोर्चा अध्यक्ष देवेंद्र सिंह शेखावत और रावत समाज के राजेंद्र सिंह रावत, अशोक रावत और तारा रावत ने तो किया, मगर भाजपा का कोई बड़ा नेता उनके आगे नहीं फटका। कारण जानने पर सामने आया कि विधायक वासुदेव देवनानी जयपुर किसी मीटिंग में थे, भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत पैर में लगी चोट से पीडि़त हैं। वहीं विधायक अनिता भदेल भी पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त थीं।
ज्ञातव्य है कि विधायक रावत ब्यावर को जिला बनाने और ग्रामीण इलाकों को बीसलपुर पाइप लाइन से जुड़वाने के लिए सक्रिय रहे हैं। विधानसभा में सवाल उठाए, धरने और भूख हड़ताल भी की। एक बार तो अनशन पर ही बैठ गए, जिसे बमुश्किल तुड़वाया गया। जहां तक उनके मकसद का सवाल है, इसमें कोई दोराय नहीं कि वह अपने आप में पवित्र ही है, मगर चुनाव से एक साल पहले उनकी अति सक्रियता को इस अर्थ में लिया जा रहा है कि वे इस बहाने अपनी टिकट पक्की कर लेना चाहते हैं। यहां गौरतलब बात ये है कि रावत की ही तरह पूर्व विधायक देवी शंकर भूतड़ा ने भी पोस्टकार्ड अभियान छेड़ रखा है। उनकी भी वहीं मांग है, जो कि रावत की है। एक ही संगठन, एक ही मांग, मगर दो तरह के आंदोलन या तरीके संशय उत्पन्न करते हैं। रावत ने अपनी यात्रा प्रारंभ की तो ब्यावर में उन्हें रावत समाज और कार्यकर्ताओं का भारी समर्थन मिला, वहीं भूतड़ा देहात जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा के साथ भाजपा संगठन की ओर से मांग उठा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि ब्यावर ग्रामीण क्षेत्र रावतों का गढ़ है, वहीं ब्यावर शहरी क्षेत्र में भूतड़ा की पकड़ भी कमजोर नहीं है। राजनीति के जानकारों की सोच है कि भूतड़ा टिकट की दावेदारी मजबूत करना चाहते हैं। एक और दिलचस्प बात ये है कि शहर जिला भाजपा के अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की फिर सक्रिय चुनावी राजनीति में उतरने की इच्छा है और उनकी नजर पुष्कर के अतिरिक्त ब्यावर पर भी है।
इस पूरे प्रकरण पर रावत का कहना है कि वे विधायक हैं और जनता के हित की खातिर संघर्ष कर रहे हैं। उनका दावा है कि वे जल और जिले की घोषणा के साथ ही ब्यावर लौटेंगे। वे इस बात से इंकार करते हैं कि संगठन उनके साथ नहीं है। रावत की यात्रा के बारे में जब पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा से पूछा गया तो वे बोले कि रावत का जयपुर कूच संगठन की अनुमति से है या नहीं, मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। इसी सिलसिले में देहात जिला भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा का कहना है कि भाजपा ब्यावर में जल और जिले की मांग को लेकर अभियान चला रही है। अच्छी बात है कि विधायक भी अपने स्तर पर कूच कर रहे हैं। अच्छा है ब्यावर की मांग को और बल मिलेगा। संगठन अपना काम कर रहा है। उनके इस जवाब से ही समझा जा सकता है कि दाल में जरूर काला है।
जयपुर में होगा शक्ति प्रदर्शन
विधायक शंकर सिंह रावत के साथ जयपुर पैदल जाने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या गिनती मात्र की ही है। यह आंकड़ा करीब 20 का है। मगर कार्यकर्ताओं के मुताबिक विधायक रावत के जयपुर पहुंचने के पहले ब्यावर से उनके समर्थक और नागरिक पहुंचेंगे और कूच के जरिए राजधानी में शक्ति प्रदर्शन करेंगे। इसके लिए ब्यावर से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हरिकिशन तिलोकानी, चिकित्सा प्रकोष्ठ भाजपा डॉ. नरेंद्र आइनानी समेत अन्य लोग व्यवस्थाएं संभाल रहे हैं। विधायक रावत संभवतया 30 की शाम या 31 जनवरी की सुबह जयपुर में प्रवेश करेंगे।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 28 जनवरी 2013

अजमेर के लिए यह दौड़ जारी रहनी चाहिए


टायर्ड और रिटायर्ड लोगों के रूप में पहचान रखने वाला अजमेर शहर ने बीते दिन एक ऐसे ऐतिहासिक मंजर का गवाह बन गया, जिसने यह जता दिया कि यह जिंदा दिल लोगों की नगरी है, बस उन्हें हनुमान की तरह उनकी शक्तियों की याद दिलानी पड़ती है।
अजमेर की बहबूदी और रचनात्मक सोच की खातिर जब छोटे बच्चे से लेकर 115 साल के बुजुर्ग ने कदम से कदम मिला कर कदमताल की तो उस जोश को देख कर हर अजमेरवासी का मन मयूर नाच उठा। हर अजमेराइट ने उस जज्बे को दिल से सलाम किया। दौड़ में शामिल धावकों का जगह-जगह पुष्प वर्षा कर किया गया इस्तकबाल इसका जीता जागता प्रमाण है।  बेशक यह आयोजन तारीफ-ए-काबिल रहा, जिसकी तारीफ को शब्दों की परिधि में बांधना बेहद मुश्किल है। यूं तो हर धावक इसके लिए बधाई का पात्र है, मगर आयोजन की परिकल्पना करने और उसे साकार करने के लिए दिन-रात एक कर देने वाले अजमेर फोरम, इंडोर स्टेडियम और राजस्थान एथलेटिक एसोसिएशन को जितनी मुबारकबाद दी जाए, कम है। उन्होंने जो लौ प्रज्ज्वलित की है, वह हमारे दिलों में सदैव कायम रहे, यही शुभेच्छा है।
वस्तुत: शिक्षा की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रहे अजमेर में विरोधाभासी रूप में राजनीतिक जागरूकता की कमी के चलते ही यहां का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। हम अपने समकक्ष शहरों से काफी रह गए हैं। बीसलपुर के पानी का हक मारने का मसला हो या आईआईटी की स्थापना का, रेलवे कारखानों के वजूद के साथ छेडख़ानी की करतूत हो या विभिन्न दफ्तरों को यहां से अन्यत्र भेज देने की चालें, हम हर मामले में ठगे गए हैं।  आजादी के बाद सचिन पायलट के रूप में सौभाग्य से पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व मिलने के बाद भी हवाई अड्डे का सपना साकार होने में अड़चनें आ रही हैं, जबकि एमओयू पर हस्ताक्षर हुए चार साल हो चुके हैं। एलीवेटेड रोड के सर्वे के आदेश तक भी बमुश्किल हो पाए हैं। ऐसे में मेराथन दौड़ के जरिए अजमेर को जगाने का प्रयास बेहद लाजिमी था।  यह दौड़ महज रस्म अदायगी बन कर न रह जाए। चंद घंटों की इस दौड़ का भौतिक रूप से भले ही कोई महत्व न हो, मगर इसके बहाने रगों में दौड़ा खून, दिलों में जागा जज्बा सार्थक होना चाहिए। यह दौड़ अब थमनी नहीं चाहिए। असल में दौड़ के आयोजन की सफलता उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितनी की अजमेर के हित की खातिर सदैव दौडऩे तैयार रहना। उम्मीद है हर अजमेरवासी इसे सार्थक करने को तत्पर रहेगा।
-तेजवानी गिरधर
दौड़ के स्वामी न्यूज चैनल की ओर से किए गए कवरेज को देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:-

http://www.youtube.com/watch?v=DVTeTItu3ng&feature=share&list=UUGwyV4mM4L_5_SL_ubvYnqg

डॉ. सुरेश गर्ग ने फिर छेड़ी चुनाव की तान


अजमेर वासियों के लिए सुपरिचित नगर पालिका सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी व शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग ने एक बार फिर अग्रवाल समाज को राजनीतिक रूप से जगाने की कोशिश की है। इसे आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
श्रीराम धर्मशाला में सेवारत अग्रवाल कल्याण परिषद की चतुर्थ सदस्य विवरणिका के विमोचन समारोह में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमारी राजनीति में भागीदारी बढऩी चाहिए, ताकि धीरे-धीरे राजनीतिक कारणों से पिछड़ते जा रहे अग्र बंधु अग्र ही बने रहें। उन्होंने कहा कि वोट के समय जाति के प्रत्याशी को प्राथमिकता देते हुए अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए। अपने दर्द का इजहार करते हुए डॉ. गर्ग ने कहा कि हम अन्य जातियों के मुकाबले राजनीतिक पार्टियों को अधिक चन्दा देते हैं, सर्वाधिक आयकर देकर देश के विकास में भागीदार बनते हैं, लेकिन उसका लाभ हमें तब मिलेगा जब हम राजनीतिक सौदेबाजी में भी माहिर होंगे। उनका यह उद्बोधन आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के संदर्भ में जोड़ कर देखा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि अजमेर उत्तर सीट, जो कि पहले अजमेर पश्चिम के रूप में जानी जाती थी, पर परंपरागत रूप से कांग्रेस व भाजपा दोनों सिंधी को ही प्रत्याशी बनाते आए हैं। पिछली बार वैश्य महासभा के दबाव में कांग्रेस ने गैर सिंधी के रूप में डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को चुनाव मैदान में उतारा, मगर वह प्रयोग विफल हो गया और भाजपा के प्रो. वासुदेव देवनानी जीत गए। जाहिर सी बात है कि पिछले चुनाव की कसक अब भी बाकी है, जिसे डॉ. गर्ग ने एक बार फिर हवा देने की कोशिश की है। कहने की जरूरत नहीं है कि स्वयं डॉ. गर्ग भी टिकट के दावेदार हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस का टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया था, मगर बाद में हाईकमान के दबाव में नाम वापस ले लिया। हालांकि अभी चुनाव दूर हैं, मगर यह सुगबुगाहट कुछ संकेत तो दे ही रही है। देखना ये है कि इस बार चुनाव में क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 27 जनवरी 2013

क्या एसीबी में है बेनीवाल से पूछताछ करने की हिम्मत?


बीते दिनों एक खबर बड़ी चर्चा में रही। वो ये कि एक व्यवसायी बसंत सेठी राजस्थान के गृह राज्य मंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल के साथ उनकी कार में नजर आए। उनके सभी कार्यक्रमों में सेठी ने शिरकत भी की। तो आखिर उसकी वजह क्या थी? सेठी के मंत्री महोदय से इतने घनिष्ठ संबंध कैसे हो गए? किसी और को हो न हो, मगर प्रमुख कांग्रेसियों को जरूर अचरज हुआ कि सेठी मंत्री महोदय के उनसे भी ज्यादा करीब कैसे हैं?
असल में ये सवाल इस कारण उठा क्योंकि अजमेर के निलंबित एसपी राजेश मीणा के मंथली वसूली प्रकरण के अहम किरदार फरार निलंबित एएसपी लोकेश सोनवाल से सेठी के घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मंथली वसूली मामले की छानबीन व धरपकड़ के दौरान भी सेठी को सोनवाल के करीब ही पाया गया। बताया जा रहा है कि इसी कारण उससे एसीबी ने पूछताछ कर यह जानने की कोशिश भी की कि उसे थानेदारों से मंथली वसूले जाने के बारे में सोनवाल के संबंध में क्या जानकारी है? संभव है एसीबी ने यह भी जानने की कोशिश की हो कि कहीं सेठी की भी गिरफ्तार ठठेरा की तरह दलाली में कोई भूमिका रही है या नहीं?
स्वाभाविक सी बात है कि जब यह मामला इतना गरमाया हुआ है और ऐसे में एसीबी की नजर में संदिग्ध सेठी की गृह राज्य मंत्री बेनीवाल से घनिष्ठता सार्वजनिक रूप से देखी जाती है तो सवाल उठने लाजिमी हैं। हालांकि सेठी ने इस बारे बयान दे कर साफ कर दिया है कि वे तो मंत्री जी से किसी धार्मिक कार्यक्रम के सिलसिले में मिले थे और यह संयोग की ही बात है कि मंत्री महोदय ने उन्हें अपने साथ कार में बैठा लिया। उनकी बात को सही भी मान लिया जाए तो एसीबी के लिए तो यह खोज का विषय हो ही गया है कि जिस व्यक्ति पर सोनवाल के संबंधों को लेकर तनिक संदेह है, वह गृह राज्य मंत्री के इतना करीब कैसे है? पुलिस तंत्र ने अपने मंत्री को यह सलाह क्यों नहीं दी कि अगर वे सेठी को साथ रखेंगे तो बातें बनेंगी? ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या एसीबी सेठी ने दुबारा पूछताछ करेगी कि वह मंत्री महोदय से क्यों मिले थे? या यह पता लगने के बाद कि सेठी बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं, इस कारण दुबारा उन्हें छूने से भी वह घबराएगी? क्या एसीबी में इतनी हिम्मत है कि वह अपने ही विभाग के मंत्री महोदय से पूछे कि आपने ऐसे संदिग्ध व्यक्ति को अपने इतने करीब कैसे रख रखा है? सवाल ये भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या सेठी ने फरार सोनवाल को बचाने के सिलसिले में कोई बात की है?
ज्ञातव्य है कि यह चर्चा आम सी हो गई है कि सोनवाल को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, वरना क्या मजाल कि उन्हें पुलिस नहीं तलाश पाए। वैसे भी यह खबर सार्वजनिक होने के बाद बेनीवाल का खुद का यह दायित्व बन गया है कि वे इस बात का जवाब दें कि एसीबी की नजर में संदिग्ध व्यवसायी से उनके क्या संबंध हैं? क्या उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि पुलिस महकमे का मुंह काला करने वाले कांड से कहीं न कहीं जुड़े व्यवसायी से वे इस प्रकार सार्वजनिक रूप से संबंध रखेंगे तो लोग तो सवाल उठाएंगे ही?
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 26 जनवरी 2013

चौधरी के प्रयासों से आगे बढ़ी एलीवेटेड रोड की बात


यह एक सुखद बात है कि सिटीजन्स कौंसिल के महासचिव व दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक दीनबंधु चौधरी के प्रयासों से अजमेर में प्रस्तावित एलिवेटेड रोड की फिजीबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कंसल्टेंट नियुक्त करने के नगर सुधार न्यास की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को नगरीय विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव जी एस संधू ने मंजूर कर लिया है। ज्ञातव्य है कि अजमेर की हार्ट लाइन स्टेशन रोड व कचहरी रोड पर यातायात के दबाव को कम करने के लिए जयपुर रोड स्थित पुरानी आरपीएससी के सामने से कचहरी रोड होते हुए मार्टिंडल ब्रिज और ब्रिज से जीसीए चौराहे तक एलिवेटेड रोड बनाना प्रस्तावित है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों एलीवेटेड रोड की संभावना को तलाशने के लिए नगर सुधार न्यास ने कंसल्टेंसी के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं, मगर चूंकि इसके लिए सरकार की ओर से स्वीकृति नहीं मिली थी, इस कारण बात आगे नहीं बढ़ रही थी। इस पर चौधरी ने अपने प्रयास जारी रखते हुए लगातार दबाव बनाए रखा और आखिरकार उन्हें सफलता मिल गई।
दीनबंधु चौधरी
हालांकि कंसल्टेंट कंपनी निर्धारित पैरामीटर के तहत अपनी रिपोर्ट बनाएगी, मगर अब यह नगर सुधार अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत सहित सभी राजनेता, सामाजिक संगठन, पूरा प्रशासनिक अमला व मीडिया की यह जिम्मेदारी है कि वे आगे भी पूरा दबाव बना कर रखें। स्वाभाविक रूप से विकास के साथ कुछ कठिनाइयां भी होती हैं, मगर अजमेर वासियों का फर्ज है कि वे छोटे-छोटे स्वार्थों की खातिर इसमें किसी प्रकार का रोड़ा न अटकाएं। तभी यह महत्वाकांक्षी योजना जल्द से जल्द पूरी हो सकती है।
आपको याद होगा कि एलीवेटेड रोड की जरूरत पिछले काफी समय से महसूस की जाती रही है। पिछले दो साल से तो इस मांग ने काफी जोर भी पकड़ लिया था। विभिन्न समाचार पत्रों के समय-समय पर इस मुद्दे को उठाने के साथ जनजागरण व सरकार पर दबाव के लिए दैनिक नवज्योति ने तो बाकायदा अभियान ही छेड़ दिया था। अजमेर उत्तर ब्लाक-बी कांग्रेस कमेटी के सचिव व जागरूक युवा लेखक व ब्लॉगर साकेत गर्ग ने तो इस अभियान को बल प्रदान करने के लिए फेसबुक पर एलीवेटेड रोड फोर अजमेर नामक पेज तक बनाया और उससे अनेक अजमेर वासियों को जोड़ा। अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर दो वर्ष पहले प्रकाशित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस के विजन अजमेर पार्ट में तो एलीवेटेड रोड का काल्पनिक चित्र तक प्रकाशित किया। अजमेर की बहबूदी के लिए काम कर रहे अजमेर फोरम ने भी इसके लिए गंभीर प्रयास किए।
उम्मीद की जानी चाहिए कि अब जब कि कंसल्टेंट कंपनी को वर्क ऑर्डर देने को हरी झंडी मिल गई तो यह आगाज एक सुखद अंजाम तक पहुंचेगा। न्यास सदर नरेन शहाणी भगत के केरियर के लिए भी एलीवेटेड रोड मील का पत्थर साबित हो सकती है। मगर उसके लिए जरूरी है कि वे पूर्व न्यास सदर औंकारसिंह लखावत की तरह पूरे मनोयोग से जुट जाएं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

कब लगाया जाएगा नया पुलिस कप्तान?

राज्य सरकार भले ही अजमेर के पुलिस कप्तान राजेश मीणा की थानों से मंथली लेने के मामले में गिरफ्तारी और मंथली देने वाले थानेदारों को लाइन हाजिर करने की कार्यवाही कर भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दावा करे, मगर अजमेर के प्रति वह कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तकरीबन एक माह के बाद भी नए पुलिस कप्तान की नियुक्ति नहीं कर पाई है। होना तो यह चाहिए कि जिस जिले का पुलिस तंत्र पूरी तरह से भ्रष्टाचार में सना हो, वहां तुरंत नए कप्तान को कमान सौंपी जाए, मगर इस ओर न सरकार का ध्यान है और न ही स्थानीय राजनेताओं को कि वे दबाव बनाएं।
यहां गौर करने वाली बात ये है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह व तीर्थराज पुष्कर की वजह देश-विदेश के लोगों की निरंतर आवाजाही के कारण कानून-व्यवस्था की दृष्टि अजमेर अति संवेदनशील है। दरगाह में एक बार हो चुके बम विस्फोट और मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड हेडली की गुपचुप पुष्कर यात्रा के बाद तो यह प्रमाणित हो चुका है कि यह आतंकियों के निशाने पर है। मादक पदार्थों का ट्रांजिट सेंटर तो यह पहले से ही है, अब नकली नोटों का कारोबार भी यहां फलफूल रहा है। ऐसे में यहां पूर्णकालिक पुलिस कप्तान की सख्त जरूरत है। भ्रष्टाचार के आकंठ डूबी यहां की पुलिस अपने कप्तान की गिरफ्तारी के बाद भी कितनी सुधरी है, इस का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा की तो छोड़ो कांग्रेस के नेता तक शिकायत करने लगे हैं कि यहां जुए-सट्टे का कारोबार व अवैध शराब की तस्करी यथावत जारी है। शहर जिला कांग्रेस सेवादल के मुख्य संगठक शैलेन्द्र अग्रवाल गृह राज्य मंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल के अजमेर आगमन पर उन्हें इस सिलसिले में ज्ञापन भी दिया है। स्वाभाविक सी बात है कि नए पुलिस कप्तान के अभाव में यहां भ्रष्ट तंत्र यथावत काम कर रहा है। इसके बावजूद सरकार की लापरवाही बेहद अफसोसनाक है। इस बारे में जब मीडिया ने बेनीवाल से सवाल किया तो वे महज इतना सा जवाब दे पाए कि जल्द ही नया पुलिस कप्तान लगा दिया जाएगा। उनके जवाब से ऐसा प्रतीत हुआ मानो नया पुलिस कप्तान किसी फैक्ट्री में बनाया जा रहा है, जो कि तैयार होने पर यहां लगाया जाएगा। कैसी विडंबना है कि राजनीतिक मकसद से एक ही दिन में अधिकारियों को इधर से उधर कर दिया जाता है, जब कि यहां नए कप्तान की सख्त जरूरत है, मगर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। माना कि बिना पुलिस कप्तान के भी स्थापित पुलिस तंत्र काम कर रहा है, मगर पुलिस कप्तान जैसे जिम्मेदार पद का खाली रहना भी ठीक नहीं है।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 23 जनवरी 2013

रुतबा और बढ़ेगा भंवर सिंह पलाड़ा का


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह के काबिज होने के साथ ही उसका अजमेर की राजनीति पर भी असर पड़ता साफ दिखाई दे रहा है। अब प्रदेश के साथ शहर का सांगठनिक ढ़ाचा बदलने पर स्थानीय अध्यक्ष पद पर चाहे जो काबिज हो, मगर सबसे ज्यादा अहमियत युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की होने वाली है। और इसकी वजह है उनकी सिंह से करीबी।
असल में राजनीति के गिने-चुने जानकारों का ही पता है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव में पुष्कर सीट का टिकट वे राजनाथ सिंह के सीधे हस्तक्षेप से ही लेकर आए थे। उस वक्त स्थानीय व राज्य स्तर के नेता कत्तई नहीं चाहते थे कि उन्हें टिकट मिल जाए। वजह थी थोड़े से ही समय में उनका राजनीति में दबदबा कायम कर लेना। मगर राजनाथ सिंह से सीधे व करीबी रिश्तों के दम पर वे टिकट ले कर आए। उन्होंने राजनाथ सिंह की एक जनसभा भी करवाई। यह बात दीगर है कि भाजपा के बागी श्रवण सिंह रावत ने समीकरण बिगाड़ दिया, प्रदेश हाईकमान भी कुछ नहीं कर पाया और वे पराजित हो गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पंचायत चुनाव में अपनी धर्म पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को उतारा व जितवाने के बाद उन्हें जिला प्रमुख की कुर्सी पर काबिज करवाने में भी सफल रहे।
अपनी धर्मपत्नी, जिलाप्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाडा के साथ
ताजा राजनीतिक हालात में चर्चा यही है कि वे पुन: विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने से पहले ही यह माना जाता रहा है कि टिकट लाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। मगर अब जब कि सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं तो यूं समझिये कि उनका टिकट तो पक्का ही है। पत्नी के जिला प्रमुख होने के कारण अब उनकी पूरे जिले पर भी पकड़ कायम हो चुकी है। संभव है वे लोकसभा चुनाव लडऩे का मानस बनाएं। ऐसे में समझा जा सकता है कि उनको टिकट लेने में अड़चन नहीं आएगी।
-तेजवानी गिरधर

बहुत याद आते हैं ऊर्जा से लबरेज वीर कुमार

अजमेर नगर परिषद के सभापति रहे स्वर्गीय वीर कुमार की पुण्यतिथी पर पूरा अजमेर शहर उन्हें तहेदिल से याद कर रहा है। उनका जांबाजी से चमकता चेहरा और बिंदास व्यक्तित्व आज भी यहां के नागरिकों के जेहन में मौजूद है। पुण्यतिथी के इस मौके पर आइये कुछ जानते हैं उनके बारे में:-
नगर परिषद के सभापति रहे स्वर्गीय श्री वीरकुमार पाल का जन्म 2 अगस्त 1956 को श्री खुशीराम पाल के घर हुआ। उनके पिता रेलवे में नौकरी करते थे। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कीं और पेशे के रूप में वकालत को ही अपनाया। वे छात्र जीवन से ही काफी ऊर्जावान थे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ कर सक्रिय राजनीति में आ गए। वे भाजपा युवा मोर्चा की जिला इकाई के महामंत्री और बाद में प्रदेश इकाई के भी महामंत्री रहे। वे अजमेर शहर जिला भाजपा के महामंत्री और देहात जिला भाजपा के उपाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने कांग्रेसराज में अनेक उग्र आंदोलनों का नेतृत्व किया। अजमेर में वे अपने किस्म के अकेले नेता थे। ओजस्वी और जुझारु व्यक्तित्व के कारण युवा वर्ग उनका दीवाना था। वे 1995 में नगर परिषद के सभापति चुने गए। अजमेर नगर परिषद की ओर से ब्यावर की तरह होली पर बादशाह की सवारी निकालने की परंपरा उन्हीं की देन थी। इसके अतिरिक्त रामलीला, गरबा इत्यादि अनेक सांस्कृतिक आयोजन भी उन्होंने अपने कार्यकाल में शुरू किए। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व की बदोलत उन्होंने पूरे राजस्थान में नाम कमाया। उनका निधन 23 जनवरी 2000 को कोटा में हृदयाघात से हुआ। उनकी शवयात्रा में पूरा शहर ही उमड़ पड़ा।
बुजुर्गों का कहना था कि उन्होंने अपने जीवन में इतनी विशाल शवयात्रा कभी नहीं देखी। उनके निधन के साथ ही अजमेर ने एक ऐसा नेता खो दिया, जिससे पूरे शहर को अनेक आशाएं थीं। उनके बिंदास व्यक्तित्व की न केवल भाजपाई बल्कि कांग्रेसी भी तहेदिल से तारीफ किया करते हैं। नगर के विकास में उन्होंने बिना किसी भेदभाव के कांग्रेसी पार्षदों को भी साथ लेकर काम किया। उनके निधन के बाद उन्हीं की परंपरा के सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने कुछ समय तक नगर परिषद सभापति का पद संभाला और धर्मेन्द्र गहलोत ने नगर निगम के महापौर के रूप में काम करते हुए उनकी याद को जिंदा बनाए रखा। संयोग से मौजूदा महापौर कमल बाकोलिया भी उनके बेहद करीबियों में रहे हैं। वे उनके कितने करीब रहे, इसका अंदाजा इसी बात से हो सकता है कि उनका मोबाइल नंबर 9829070670 आज भी उनके पास है। मीडिया कर्मियों से भी उनके घनिष्ठ संबंध रहे।
स्वर्गीय वीर कुमार की पुण्यतिथी के मौके पर असली श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भी उनकी ही तरह अजमेर की बहबूदी के लिए पूरी ऊर्जा के साथ काम करने को तत्पर रहें।
-तेजवानी गिरधर

दुबारा जांच के लिए क्यों आए पूर्व आईएएस खन्ना?


राज्य सरकार अपना रही है दोहरे मापदंड
खन्ना से मिलते माधवनगर के नागरिक, फोटो भास्कर से साभार
राज्य सरकार किस प्रकार अपनी सुविधा के लिए मनमानी करते हुए दोहरे मापदंड अपनाती है, इसका एक ताजा उदाहरण हाल ही सामने आया है। दीपदर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति लिमिटेड का बहुचर्चित प्रकरण तो आपको याद होगा ही। समिति को नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व हालिया नगर निगम द्वारा आवासीय कॉलोनी के लिए दो जगह भूमि का आबंटन किया गया था। कतिपय तकनीकी व राजनीतिक विवादों के चलते सरकार ने उसे एक झटके में निरस्त कर दिया। अब मामला न्यायालयों में लम्बित होने है, उसके बावजूद उसकी जांच कराई जा रही है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? क्या राज्य सरकार जांच अधिकारी को न्यायालय से भी बड़ा मान कर चल रही है?
हाल ही 17 जनवरी 2013 को जांच समिति के जाच अधिकारी सेवानिवृत्त आई.ए.एस. एम.के. खन्ना अजमेर आए। उनके आने का अजमेर नगर में ऐसा खौफ रचित किया गया था, जैसे न जाने वे अजमेर में क्या कहर ढ़ाएंगे। सरकार किस प्रकार विरोधाभासी कार्यशैलियां अपनाती है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि एक तरफ तो राज्य सरकार प्रशासन शहरों की ओर अभियान चलाकर उन सभी जमीनों का मय सरकारी भूमि के नियम कर रही है, जिन पर व्यक्ति अवैध रूप से काबिज हैं। इसके ठीक विपरीत पराकाष्ठा यह है कि ऐसी भूमियों, जिनका आबंटन नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व वर्तमान नगर निगम ने समिति से करोड़ों रुपए की राशि जमा करके भू-उपविभाजन मानचित्र स्वीकृत कर आवंटन किया, उसे निरस्त कर दिया गया। सरकार अपने ही निर्णय को लेकर कितनी सशंकित है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है सरकार ने समिति को लोहागल में आबंटित भूमि 21.01.2011 को ही निरस्त कर कब्जा न्यास हक में ले लिया गया, दूसरी ओर इसकी जांच को जारी रखे हुए है। सवाल ये उठता है कि निरस्तगी के बाद जांच का औचित्य क्या रह गया है? इसी प्रकार सरकार के आदेश पर तत्कालीन नगर परिषद द्वारा वर्ष 2000 में आनासागर सरक्यूलर रोड योजना में समिति को आबंटित भूमि को 17 जून 2011 को निरस्त कर दिया, जबकि उसके जांच अधिकारी अब भी अपनी कार्यवाही जारी रखते हुए अजमेर आकर भय उत्पन्न कर रहे हैं।
प्रशासनिक जांचों की कड़ी में संभवतया यह पहला मौका है, जबकि जिस अधिकारी द्वारा प्रकरण की पूर्व में जांच की गई, उसके फॉलो अप के लिए भी उसी अधिकारी को भेजा जा रहा है। इसके प्रथम दृष्टया दो ही कारण समझ में आ रहे हैं। उसमें एक तो यह कि जिन विभागों को जांच निष्कर्षों की पालना करने हेतु निर्देशित किया गया है, उनसे क्रियान्वित करवाने में राज्य सरकार सक्षम नहीं है। और दूसरा ये कि चूंकि जांच अधिकारी एम.के. खन्ना उप मुख्य सचिव जी.एस संधू के खासमखास हैं, इसलिए उन्हें लाभ पहुंचाने का उदद्ेश्य हो। प्रसंगवश बता दें कि खन्ना द्वारा वर्ष 2011 में भी जब जांच पूर्ण कर ली गई, तब उनको जो देय राशि भेजनी थी, उसके भुगतान का चैक डाक द्वारा नहीं भेजा गया, बल्कि आर.टी.जी.एस के माध्यम से 5 मिनट में खन्ना के खाते में हस्तान्तरित कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि आर.टी.जी.एस. के द्वारा राशि खन्ना को दिए जाने के निर्देश संधू द्वारा ही दिए गए थे। साफ झलकता है कि ऐसा खन्ना को उपकृत करने के लिए किया गया। दूसरा उदाहरण सामने है कि 17 जनवरी 2013 को भी फॉलो अप के लिए उन्हें ही भेजकर भत्तों आदि का लाभ पहुंचाया जा रहा है।
अब जरा देखिए सेवानिवृत्त आई.ए.एस. खन्ना द्वारा की गई जांच का नमूना। उन्होंने जांच का आधार नगरीय विकास विभाग के परिपत्र क्रमांक प. 3(15) ना. वि. वि. / ग्रुप-111/83 दिनांक 2.8.1983 को मानते हुए उक्त परिपत्र में उल्लेखित शर्त कि समिति अपने सदस्यों के लिए गृहों का निर्माण करवा कर आबंटित करेगी, जो कि समिति द्वारा नहीं किया गया, ऐसा उल्लेख कर आबंटन निरस्तगी की सिफारिश कर दी। एक आईएएस द्वारा की गई इस प्रकार की सिफारिश से उनकी योग्यता पर ही सवालिया निशान लग जाता है। साथ ही इस बात का इशारा भी मिलता है कि ऐसा राजनीतिक दबाव की वजह से किया गया। सिफारिश में जिस परिपत्र का उल्लेख किया गया, उसकी अवधि 31 दिसम्बर 1984 को ही समाप्त हो गई थी। उक्त परिपत्र में स्पष्ट उल्लेखित है कि उन्हीं बोनाफाइड गृह निर्माण सहकारी समितियों को ही आरक्षित मूल्य पर भूमि आबंटित की जाए, जो कि भवनों का निर्माण 31 दिसम्बर 1984 तक पूर्ण कर लेंगी, जबकि दीप दर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति को भूमि का आबंटन ही वर्ष 2000 में नगर परिषद द्वारा किया गया है। इसके आबंटन पत्र की शर्तों में यह स्पष्ट अंकित है कि समिति अपने सदस्यों को भूखंडों का आबंटन अपने नियमानुसार करेगी। जब भूखंडों का आबंटन किया जाना है, तो बने बनाए मकानों का आबंटन समिति कहां से करेगी? साफ है कि जिस परिपत्र की अवधि ही 31 दिसम्बर 1984 को समाप्त हो गई, उसे आधार मानकर अवधि समाप्ति के बाद भी उसे ही लागू कर पक्षपात एवं द्वेषतापूर्ण कार्यवाही कर आबंटन निरस्त कर दिया गया। कोई निष्पक्ष व्यक्ति आसानी से समझ सकता है कि आबंटन के निरस्तीकरण की कार्यवाही ही अवैध है।
समिति की माधव नगर योजना की जिस 100 फीट चौड़ी सड़क को 40 फीट किए जाने का जहां तक प्रश्न है, तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता स्वर्गीय जीत सिंह द्वारा नोटशीट पर नियमों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यह अंकित किया गया है कि यदि बाहरी सड़कें (माकड़वाली रोड एवं चौरसियावास रोड) यदि क्रमश: 60 फीट और 40 फीट हों तो आंतरिक सड़क नियमानुसार 30 फीट होनी चाहिए न कि 100 फीट, जबकि नगर परिषद द्वारा 40 फीट की सड़क छोड़ी गई है। नगर परिषद द्वारा भूमि के भू-उपविभाजन का मानचित्र समिति को देकर स्वयं नगर परिषद द्वारा आबंटित सदस्यों के भूखंडों के भवन मानचित्र स्वीकृत किए जाकर कई बार भूखंड हस्तान्तरण हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। साथ ही सक्षम न्यायालय द्वारा यह आदेश देकर किसी भी प्रकार की कार्यवाही किए जाने पर स्टे दे रखा है कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि भूखंडों का भू-उपविभाजन मानचित्र नगर परिषद द्वारा ही समिति को जारी किया गया है। ऐसे में जांच अधिकारी अजमेर आ कर क्या कर रहे हैं? क्या वे किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत आबंटियों में भय उत्पन्न करना चाहते हैं? या फिर जांच के नाम पर अपने भत्ते पका रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 16 जनवरी 2013

बंद में भाजपाइयों ने ही बाजी मारी भाजपा से


सरहद पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दो भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के विरोध में राष्ट्र उत्थान मंच, नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के आव्हान पर आधे दिन अजमेर बंद करने की सर्वत्र सराहना हो रही है और इसे वक्त की जरूरत माना जा रहा है। सराहना इसलिए भी कि जब प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को सुध नहीं आई तो कम से कम इन संगठनों को ख्याल तो आया कि बंद करवाना चाहिए। इस मुद्दे पर अजमेर सोया हुआ नहीं है, जाग रहा है, कम से कम देश में यह संदेश तो गया।
मगर... मगर इसके साथ ही कुछ सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। सवाल ये कि इस मुद्दे पर भाजपा और उसके साथी संगठन विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नैपथ्य में कैसे चले गए, जबकि बंद करवाने वाले संगठनों से जुड़े अधिसंख्य नेता किसी न किसी रूप में भाजपा, विहिप व संघ से ही जुड़े हुए हैं और बंद करवाने में भी उन्हीं के कार्यकर्ता शामिल थे? इसी से जुड़ा सवाल ये भी है कि क्या भाजपा को बंद करवाने का ख्याल ही नहीं आया या फिर जानबूझ कर उसने मुद्दे को नजरअंदाज किया? कहीं ऐसा तो नहीं कि शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की अस्वस्थता के चलते अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों ने रुचि नहीं दिखाई कि कौन इतना छातीकूटा करेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि संगठन में फेरबदल की आशंकाओं के बीच इतने बड़े आयोजन में अपनी एनर्जी लगाने की जरूरत नहीं समझी गई?
असल में लगता यही है कि जिस भाजपा की जिम्मेदारी थी, उसी ने जब रुचि नहीं दिखाई तो भाजपा, विहिप व संघ से ही जुड़े कार्यकर्ताओं को ख्याल आया कि अजमेर की नाक तो ऊंची रहनी ही चाहिए, सो तीन संगठनों राष्ट्र उत्थान मंच, नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के बेनर तले बंद का आयोजन किया गया। आम तौर पर जब भी बंद आहूत किया जाता है तो कम से एक दिन पहले दुकानदारों व आम जनता की जानकारी में लाया जाता है, ताकि वे इसके लिए तैयार रहें, मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। जिस प्रकार चट मंगनी पट ब्याह की तरह बंद करने का निर्णय किया और अखबारों में सूचना जारी करवा कर दूसरे ही बंद आहूत किया गया, उससे ऐसा आभास भी हुआ कि यह बड़ी जल्दबाजी में किया गया, कि कहीं कोई और इस मुद्दे को न हथिया ले। कई दुकानदारों को तो पता ही नहीं था कि बुधवार को अजमेर आधा दिन बंद है। कुछ को मीडिया से पता लगा तो किसी को माउथ पब्लिसिटी से। जिनको पता नहीं लगा, उन्होंने दुकानें खोल लीं, जिन्हें बाद में बंद समर्थकों के आने पर बंद करनी पड़ी। वैसे बंद के आयोजकों को इस बात का भी अंदाजा था कि जब देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं, जिले के कस्बों में बंद हो रहे हैं तो अजमेर के दुकानदार भी सहज ही इसकी जरूरत समझेंगे। चौंकाने वाली बात ये रही कि बंद का असर पहली बार दरगाह इलाके में भी नजर आया। ऐसा इसलिए कि अगर इस मुद्दे पर यदि वे बंद नहीं रखने पर उनके बारे में बनाई गई व प्रचारित धारणा की पुष्टि न हो जाए। इस राष्ट्रीय अस्मिता के मुद्दे पर उनकी भागीदारी अजमेर की आबोहवा के लिए सुखद ही है।
पुछल्ला...बेशक बंद में भाजपा व हिंदूवादी संगठनों सहित अन्य का पूरा सहयोग रहा, मगर इसके केन्द्र में कहीं न कहीं शहर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा बताए जाते हैं। बंद आयोजकों के उनसे करीबी संबंध हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की टिकट के दावेदार हैं। अगर उनके इर्दगिर्द के लोगों की मानें वे प्रबल दावेदार हैं और किसी तगड़े सूत्र ने उन्हें टिकट दिलवाने का आश्वासन भी दे रखा है।
-तेजवानी गिरधर

क्यों पकड़ में नहीं आ रहे लोकेश सोनवाल?

एसपी राजेश मीणा मंथली प्रकरण के अहम किरदार अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लोकेश सोनवाल मीणा व दलाल ठठेरा की गिरफ्तारी के दिन से ही फरार है और अब तक उसका कोई सुराग हाथ नहीं लगा है। जाहिर तौर पर यह स्थिति एक ओर जहां पुलिस के खुफिया तंत्र की विफलता को उजागर करती है, वहीं कई सवालों को भी जन्म दे रही है।
दरअसल किसी को इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा कि पुलिस को सोनवाल के बारे में कुछ पता ही नहीं लग पा रहा। इसी कारण चर्चाओं का बाजार गर्म है कि सोनवाल किसी सुरक्षित स्थान पर किसी प्रभावशाली व्यक्ति के संरक्षण में छुपे हुए हैं। बताया जाता है कि सोनवाल के शुरू से राजनेताओं व उच्च अधिकारियों से रसूकात रहे हैं। जैसे ही एसीबी उन पर हाथ डालने वाली थी, वे फरार हुए। फरारी के दौरान वे प्रभावशाली लोगों के संपर्क में हैं। इतना तो वे भी जानते हैं कि कानून के आगे आखिरकार नतमस्तक तो होना ही पड़ेगा। आखिर कब तक गच्चा देते रहेंगे। यानि कि वे अपने ऊंचे रसूकातों के दम पर बचने की जुगत में लगे हुए हैं। चर्चा ये भी है कि वे एक मंत्री के दखल के चलते ही अब तक बचे हुए हैं। ऐसे में एसीबी की निष्पक्षता पर सवाल उठना वाजिब हैं।
बताया जाता है कि सोनवाल ही एसपी मीणा मंथली प्रकरण के असली सूत्रधार हैं। सोनवाल ने ही रामदेव ठठेरा का परिचय एसपी राजेश मीणा से करवाया था। सोनवाल रामदेव से अपनी जोधपुर नियुक्ति के समय से ही सम्पर्क में थे। जोधपुर में भी रामदेव सोनवाल के लिए दलाली किया करता था।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 14 जनवरी 2013

डॉ. बाहेती के डर से भगत ने थामा रलावता का हाथ


डॉ. बाहेती
आखिरकार स्टेशन रोड पर स्थित इंदिरा गांधी स्मारक पर इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने का रास्ता खुल गया। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के क्रेडिट ले जाने के डर से शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत एक हो गए और शहर कांग्रेस कमेटी की ओर से प्रतिमा लगाने के लिए नगर सुधार न्यास को सवा दो लाख रुपए का चैक सौंप दिया गया। न्यास ने भी शहर कांग्रेस कमेटी को प्रतिमा सौंपने का फैसला कर लिया।
ज्ञातव्य है कि प्रतिमा लगाने का मामला काफी दिन से खटाई में इसलिए पड़ा था कि प्रतिमा की कीमत और लगाने की लगात कौन वहन करे। हालांकि न्यास पहले से ही प्रतिमा खरीद चुका है, मगर संभागीय आयुक्त दफ्तर के नए आदेश थे कि प्रतिमा का खर्च न्यास वहन नहीं करेगा। किसी स्वयंसेवी संस्था को ही यह खर्च वहन करना होगा। काफी दिन तक खर्च वहन करने को कोई आगे नहीं आया तो पूर्व विधायक डॉ. श्रीगापाल बाहेती ने चुनावी वर्ष में मौके का फायदा उठाने के लिए अपना प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने महात्मा गांधी दर्शन समिति द्वारा प्रतिमा और समारोह का खर्चा उठाने के लिए न्यास अध्यक्ष नरेन शाहनी के पत्र लिख दिया। इसके बाद निगम में प्रतिपक्ष के नेता नरेश सत्यावना ने भी पार्षदों की मदद से प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव रख दिया। क्रेडिट लेने की बाजी बाहेती अथवा सत्यावना के हाथ जाते देख शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता को होश आया और उन्होंने भी खर्च वहन करने का प्रस्ताव रख दिया। पूर्व में हालांकि रलावता ने दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी फाउंडेशन को प्रतिमा खरीदने के लिए पत्र लिखा था, मगर जब देखा कि वहां से न जाने कब जवाब आएगा और ऐसे में डॉ. बाहेती के प्रस्ताव को मंजूरी देने का दबाव बनेगा, इस कारण वे शहर कांग्रेस कमेटी की ओर से ही खर्च वहन करने को तैयार हो गए।
एक साथ हुए रलावता व भगत
जाहिर सी बात है कि जब रलावता की तरह भगत भी केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट खेमे से हैं, सो उन्होंने तुरंत रलावता प्रस्ताव मंजूर कर दिया। कहने की जरूरत नहीं है कि डॉ. बाहेती की पायलट से नाइत्तफाकी लंबे समय से है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से भगत पर उनका प्रस्ताव मंजूर न करने का मानसिक दबाव था। रलावता के प्रस्ताव को स्वीकार करने की एक वजह ये भी है कि भगत अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से टिकट के दावेदार हैं और इसे मजबूत करने के लिए रलावता का साथ देना उनकी मजबूरी थी। उधर डॉ. बाहेती भी टिकट के दावेदार हैं। अगर उनका प्रस्ताव मान लिया जाता तो उनका कद बढ़ जाता, जो कि भगत को भला कैसे गले उतरता। यूं रलावता भी टिकट के दावेदार हैं और उनकी अगुवाई में प्रतिमा लगती है तो उन्हीं को क्रेडिट मिलेगी, मगर बाहेती को आगे देने से रोकने के लिए भगत के पास रलावता का प्रस्ताव ही मानने के अलावा कोई चारा न बचा था।
कुल मिला कर दस साल से न्यास के स्टोर में रखी इंदिरा गांधी की प्रतिमा के उसके गंतव्य तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। जैसा कि रलावता का कहना है, प्रतिमा लगाने के लिए भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा, जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं को बुलाया जाएगा, स्पष्ट है कि वे तकरीबन सवा तीन लाख रुपए के खर्च का पूरा मजा लेंगे।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 12 जनवरी 2013

आरपीएससी का वह आला अधिकारी कौन है?

अजमेर के एसपी राजेश मीणा की गिरफ्तारी को तकरीबन दस दिन हो गए हैं, इस दौरान एक दर्जन थानेदार लाइन हाहिर हो गए व एसपी की विशेष टीम भंग कर दी गई, मगर आज तक ये पता नहीं लग पाया कि एसपी का दलाल रामदेव ठठेरा मंथली का थैला लेकर आखिर राजस्थान लोक सेवा आयोग के किस उच्चाधिकारी के घर पर कुछ वक्त रुका था? उसने वहां क्या किया? क्या वहां आयोग से जुड़े किसी मसले की दलाली की गई? या फिर वह यूं ही मिलने चला गया, क्योंकि वह उनका पूर्व परिचित था? जाहिर सी बात है कि हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा है कि आखिर वह अफसर कौन है और दलाल ने उसके घर पर जा कर क्या किया? इस बारे में अब तक एसीबी ने मुंह नहीं खोला है। मीडिया ने खबरों के फॉलो अप में उसका जिक्र तो कई बार किया है, मगर अपनी ओर से नाम उजागर करने से बचा ही है, क्योंकि बिना सबूत के उच्चाधिकारी का नाम घसीटना दिक्कत कर सकता है। यहां तक कि मीडिया ने इशारा तक नहीं किया है, जबकि ऐसे मामलों में अमूमन वह इशारा तो कर ही देता है, भले ही नाम उजागर न करे। स्वाभाविक सी बात है कि विपक्ष को यह मुद्दा उछालने का अच्छा मौका मिला हुआ है, सो एबीवीपी ने आयोग दफ्त के सामने प्रदर्शन किया, टायर जलाया और नारेबाजी की। मगर सवाल आज भी वहीं का वहीं खड़ा है।
समझा जाता कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये है कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शमिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी जिम्मेदारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए। वैसे जानकारी ये है सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता है तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाएगा। ऐसे में संभावना कम ही है कि उस अधिकारी का नाम सामने आ पाए।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 9 जनवरी 2013

आम लोगों को ही जोड़ पाई कीर्ति पाठक


कभी देवनानी साथ हुआ करते थे, मगर आज नहीं
आम आदमी पार्टी की अजमेर जिले की कार्यकारिणी यथा नाम तथा गुण वाली ही साबित हो गई। इसमें जिला संयोजक कीर्ति पाठक को छोड़ कर एक भी चेहरा ऐसा नहीं है, जिसकी जिले में कोई पहचान हो या किसी की किसी क्षेत्र में कोई खास उपलब्धि रही हो। यूं तो कीर्ति पाठक का भी कोई लंबा इतिहास नहीं है, मगर अन्ना आंदोलन के साथ अजमेर के राजनीतिक क्षितिज पर उभरने के बाद उन्होंने अपने बौद्धिक स्तर और उग्र तेवरों से अलग पहचान तो बनाई ही है।
खैर, कुल मिला कर आम आदमी पार्टी में आम आदमी ही हैं, कोई खास नहीं। बड़ी अच्छी बात है, होना भी नहीं चाहिए, यही उनका सिद्धांत है। वैसे इसका अर्थ ये भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि आम आदमी पार्टी की कोई क्रेडिट नहीं है, क्योंकि कई बार ठीकरी भी घड़ा फोड़ देती है। खुद कुछ हासिल कर पाए न पाए, कम से कम रायता तो बिखेर ही सकती है। कांग्रेस व भाजपा को समान रूप से गाली दे सकती है। जिस मामलों में दोनों पार्टियों की मिलीभगत होती है, उनमें आलोचना करने को कम से कम कोई एक तो पैदा हुआ। एसपी राजेश मीणा मंथली प्रकरण में खुल कर दोनों दलों को निशाने पर लेने को इसका ताजा उदाहरण माना जा सकता है।
अब गिनती के लोग ही साथ नजर आते हैं
असल में जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन का आंदोलन चला तो उसे अजमेर में भी अच्छा खासा समर्थन मिला था। उसमें आम जन की तो भागीदारी थी ही, आरएसएस और भाजपा के लोग भी समर्थन कर रहे थे। कोई फ्रंट में तो कोई बैक ग्राउंड में। अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी तो खुल कर साथ दिखाई दिए। एक बार अरविंद केजरीवाल की सभा में प्रो. देवनानी के साथ संघ महानगर प्रमुख सुनिल जैन भी नजर भी नजर आए। वस्तुत: तब भाजपा मानसिकता के लोगों का मकसद था कि जैसे भी हो कांग्रेस के खिलाफ चल रहे माहौल को गरमाया जाए। यही वजह रही कि उन दिनों अजमेर में आंदोलन का नेतृत्व कर रही कीर्ति पाठक को अच्छा समर्थन मिल रहा था। उनके प्रतिद्वंद्वी धड़े का भी लोग साथ दे रहे थे, हालांकि अब उसका कोई अता-पता नहीं है। बाद में जब अन्ना के खास सेनापति अरविंद केजरीवाल ने अपनी अलग से पार्टी बनाई तो लोगों को जुनून ठंडा पड़ गया। आंदोलन के साथ जितने लोग थे, वे पार्टी के साथ जुडऩे को तैयार नहीं हुए। चूंकि अब उस आंदोलन की शक्ल राजनीतिक पार्टी ने अख्तियार कर ली है, इस कारण लोग अब उससे परहेज करने लगे हैं। वे सिर्फ निस्वार्थ आंदोलन के साथ थे, सत्तालोलुप पार्टी के प्रति नहीं। भाजपा के लोग तो उससे पूरी तरह से दूर रहने लगे हैं। वैसे भी केजरीवाल ने जब से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोला, तब से भाजपाइयों को केजरीवाल समर्थक फूटी आंख नहीं सुहाते। यानि कि जो लोग तक गलबहियां कर रहे थे, वे भी मुंह फेर चुके हैं। ऐसे में समर्थकों का टोटा होना ही था। आंदोलन ने जो ऊंचाई छुई थी, उसका दसवां हिस्सा भी पार्टी के साथ नहीं जुड़ पाया है। हालांकि कीर्ति पाठक की कोशिश में कोई कमी नहीं है, मगर जाने-पहचाने व प्रभावशाली लोग इस पार्टी के साथ जुडऩे में कोई रुचि नहीं दिखा रहे। बिना भावी स्वार्थ के जुड़ता भी कौन है? स्वाभाविक सी बात है कि वे जानते हैं कि सरकार या तो कांग्रेस की बनेगी या फिर भाजपा की, ऐसे में नई नई पार्टी से कौन जुड़े? इसी का नतीजा है कीर्ति पाठक के नेतृत्व में गठित टीम का चेहरा। ये टीम कैसे आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़वाएगी, अब इस पर सवाल उठ खड़े होने लगे हैं। अर्थात पार्टी को खड़ा करने और उसे चलाने में कीर्ति पाठक को बहुत जोर आएगा और वो भी खुद की जेब के खर्चे पर।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

अकेले डॉ. जयपाल लॉबी ने दिखाई मर्दानगी


यह सर्वमान्य धारणा है कि पुलिस तंत्र की निचली इकाई पुलिस चौकी व थानों से मंथली एसपी और उच्चाधिकारियों से लेकर गृहमंत्री तक पहुंचती है और इसी कारण जब यह बात मीडिया में उजागर हुई कि एसपी मीणा मथंली प्रकरण में लाइन हाजिर थानेदार पूरे गड़बड़झाले की पोल खोलने को आतुर हैं तो आरोप के दायरे में आई कांग्रेस व भाजपा को सांप सूंघ गया। न तो सत्तारूढ़ कांग्रेस और न ही विपक्षी दल भाजपा की ओर से इस कथित आरोप का प्रतिकार किया गया। अकेले कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की लॉबी ने मर्दानगी दिखाते हुए कहा कि मंथली देने के मामले में लाइन हाजिर हुए सर्किल इंस्पेक्टर सार्वजनिक करें कि उन्होंने किस दल के किस नेता को मंथली व खाने के पैकेट बना कर दिए।
हालांकि यह बात ठीक है कि फिलहाल खुद लाइन हाजिर थानेदारों ने मुंह नहीं खोला है, मगर मीडिया के जरिये जो बातें सामने आईं हैं, उस पर कांग्रेस व भाजपा को प्रतिक्रिया देना लाजिमी है। ज्ञातव्य है कि मीडिया में यह बात खुल कर आई है कि लाइन हाजिर थानेदारों ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर चेतावनी दी है कि अगर उन्हें फंसाया गया तो वे इस पूरे गोरखधंधे की पोल खोल देंगे कि चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही सरकारों के दौरान उच्चाधिकारियों व मंत्रियों तक मंथली जाती रही है। वे बड़े अधिकारियों को रिश्वत देते रहे हैं, जिनमें कई लोग आज डीआईजी, आईजी और भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में बड़े पदों पर आसीन हैं। लाइन हाजिर हुए थाना प्रभारियों को इस बात की भी तकलीफ है कि केवल वे ही शिकंजे में क्यों आए, जबकि मंथली केवल शहर से ही नहीं वरन जिले के सभी 33 थानों से की जाती थी, फिर गाज उन पर ही क्यों गिर रही है? मीडिया में इससे भी अधिक बातें आई हैं। ऐसे में आम तौर पर हर छोटी-मोटी घटना पर प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले नेताओं की चुप्पी वाकई चकित करने वाली और शर्मनाक है। अगर नेताओं को अपने ईमान का गुमान है कि होना यह चाहिए कि डॉ. जयपाल की तरह और नेता भी लाइन हाजिर थानेदारों के आरोपों पर खुल कर अपनी प्रतिक्रिया करें। वरना माना यही जाएगा कि जिस प्रकार पुलिस तंत्र भ्रष्ट है, ठीक वैसे ही नेता भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं।
ऐसे में डॉ. जयपाल सहित  बीस सूत्रीय क्रियान्वयन कमेटी के सदस्य कुलदीप कपूर, सैयद फखरे मोइन, पार्षद गुलाम मुस्तफा, विजय यादव, रमेश सेनानी व सुनील केन आदि की खुली चुनौती तारीफ ए काबिल है कि सभी लाइन हाजिर सीआई ने यदि आरोप सार्वजनिक नहीं किए गए तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। कम से कम उन्होंने सच को उजागर करवाने की चुनौती तो दी, भले ही बाद में सच सामने आने पर जो कुछ भी होगा सो होगा।
जहां तक लाइन हाजिर थानेदारों का सवाल है, उनकी यह धमकी कि उनको फंसाया गया तो वे सब की पोल खोलेंगे, कायराना हरकत है। उन्हें फंसाने पर ही क्यों, क्या बिना फंसे उनका फर्ज नहीं बनता कि सच को आम जन के सामने रखें। अगर वाकई उनके पास सबूत हैं तो उन्हें उजागर करना ही चाहिए। सच तो ये है कि इतने बड़े गोरखधंधे के सबूत अगर वे दबा रहे हैं तो वे गंभीर अपराध कर रहे हैं। केवल अपने पत्रकार मित्रों के जरिए सरकार, नेताओं, राजनीतिक दलों और उच्चाधिकारियों पर दबाव बनाना तो कायराना हरकत ही कही जाएगी।
वैसे एक बात पक्की है, मीडिया में चाहे जितने रहस्य उजागर हों, लाइन हाजिर थानेदार खुल कर सामने आने वाले नहीं हैं क्योंकि उन्हें पता है कि चंद दिन बाद मामला ठंडा पड़ जाएगा और उन्हीं मैदानों पर वही घोड़े दौडऩे वाले हैं। वैसे भी उन्हें अपनी नौकरी प्यारी है, न कि भ्रष्ट पुलिस तंत्र की पोल खोलना। कदाचित ये बात डॉ. जयपाल भी जानते हैं कि आरोप लगाने वाले कथित थानेदारों की हिम्मत नहीं कि मुंह खोलें, मगर कम से कम चुनौती दे कर उन्होंने अपनी मर्दानगी तो दिखाई ही है। और अगर वाकई थानेदारों ने मुंह खोला तो यह बहुत ही अच्छी बात होगी कि सारे बेईमान व भ्रष्ट लोगों पर से नकाब उतर जाएगा।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 7 जनवरी 2013

थानेदार बागी हुए तो क्या करेंगे पालीवाल साहब?


अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लोकेश सोनवाल के थानेदारों से मंथली वसूलने के मामले में लपेटे में आने और एक दर्जन थानेदारों को लाइन हाजिर करने के बाद पूरे पुलिस महकमे का इकबाल खत्म हो चुका है। मगर ऐसा लगता है कि आईजी पुलिस  चैन की बंसी बजा रहे हैं और आने वाली मुसीबत से पूरी तरह बेखबर बने हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि आज आम जनता तो हर पुलिस वाले को शक की नजर से देख ही रही है, लाइन हाजिर थानेदार भी बगावती तेवर अख्तियार करने का मानस बना चुके हैं, ऐसे में पूरे पांच दिन की चुप्पी तोड़ते हुए आईजी अनिल पालीवाल को मीडिया के सामने अवतरित होने का ख्याल आया। उन्हें चिंता लगी कि जर्जर हो चुके पुलिस तंत्र के बारे में जनता में विश्वास कायम किया जाना चाहिए। असल में सच इससे कुछ अलग है। वे तो मीडिया के सामने आए थे अपनी पीठ थपथपाने को कि देखिए 12 थानेदार नए लगाए जाने के बाद भी उन्होंने मूर्ति चोर गिरोह का भंडाफोड़ करवा दिया है। उन्हें ख्याल ही नहीं था कि पत्रकार उन्हें छील कर रख देंगे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजमेर के तेज तर्रार पत्रकारों ने उनको जम कर घेरा। कई बार तो वे बगलें झांकने की स्थिति में आ गए क्योंकि पत्रकारों ने पुलिस तंत्र के अंदर की जितनी जानकारी उन्हें दी, वे चकित रह गए। एक पत्रकार एनडीटीवी के ब्यूरो चीफ मोइन ने जब उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि पिछले पांच दिन से पुलिस वाले आम जनता से आंखें तक नहीं मिला पा रहे हैं, लाइन हाजर थानेदार बगावती तेवर में आने को आतुर हैं, आपने उनका विश्वास बढ़ाने के लिए क्या किया? जाहिर सी बात है कि उनके पास कोई जवाब नहीं था। तब उन्हें ख्याल आया कि मौजूदा विषम हालात में पुलिस का इकबाल कायम करने और आमजन में विश्वास फिर स्थापित करने की जिम्मेदारी उनकी ही है। इस पर उन्होंने बाकायदा सूचना केन्द्र के जरिए प्रेस रिलीज जारी करवाई। इसमें उन्होंने दावा किया कि पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की मुस्तैदी से रेंज के अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर व टोंक जिलों में नागरिकों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए हाई-वे तथा मुख्य मार्गों पर रात्रि गश्त बढ़ाई गई है और बीट प्रणाली को मजबूत बनाया गया है। दावा ये भी था कि खुद उन्होंने पुलिस अधिकारियों की मीटिंग लेना शुरू कर दिया है। इस सिलसिले में उन्होंने पुलिस की पुरानी उपलब्धियों को भी गिनाया।
उनकी इन बातों पर भले ही आम जनता यकीन भी कर ले, मगर लाइन हाजिर किए गए थानेदारों का जो तेवर बताया जा रहा है, उससे निपटना बेहद मुश्किल काम होगा। ज्ञातव्य है कि पुलिस अनुशासन के चलते कानाफूसी में ही सही, मगर मीडिया ने खुलासा कर दिया है कि लाइन हाजिर किए गए थानेदार कहने लगे हैं कि हमें मारा, तो सब मरेंगे। हम डिप्टी से लेकर आईपीएस, मंत्री, राजनीतिक दलों तक को मंथली देते हैं। इन दलों की रैलियां, उनके भोजन के पैकेट, भीड़ ले जाने के लिए गाडिय़ां कौन उपलब्ध करवाता है। वे तो यहां तक कह रहे बताए कि उन्होंने मुंह खोला तो प्रदेश के 30-40 आईपीएस भी निपट जाएंगे। इनमें एसीबी के अफसर भी तो शामिल हैं। उनका यह रवैया बेहद घातक मोड़ पर ले जा सकता है। सब जानते हैं कि हमारा पुलिस तंत्र अनुशासन में बंधा हुआ है, मगर कम से कम अजमेर में ऐसे हालात हो चुके हैं, जब कि पूरी पुलिस एक बार बगावत पर उतर आई थी। तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट में हुए प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज के बाद जब पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की गई तो 8 जनवरी 2008 को पूरा पुलिस महकमा उखड़ गया था। न तो पुलिस कर्मी फील्ड में आए और न ही पुलिस लाइन में उन्होंने मैस का खाना खाया। अजमेर पुलिस के इतिहास में वह काला दिन दर्ज है। बड़ी मुश्किल से मामला कंट्रोल किया जा सका था। ताजा मामले में तो एक साथ 12 थानेदार लपेटे में आ रहे हैं, जिनका यह मन्तव्य है कि अगर राजनेता व बड़े अफसर मंथली लेते हैं तो उनका इसमें क्या दोष है? पालीवाल ने अगर समय रहते हालात पर काबू न पाया तो बगातव की यह सुलगती आग पूरे राजस्थान को भी लपेटे में ले सकती है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 6 जनवरी 2013

ये है अजमेर की जागरूक मीडिया का कमाल


जिले के थानेदारों से मंथली लेने के मामले में धरे गए अजमेर जिले के पुलिस कप्तान राजेश मीणा की कारगुजारी का जितनी बारीकी से पोस्टमार्टम अजमेर मीडिया ने किया है, वह लाजवाब व तारीफ ए काबिल है। यह अजमेर के जागरूक पत्रकारों व फोटोग्राफरों की हिम्मत ही है कि उन्होंने पुलिस के धमकाऊ रवैये के बाद भी न केवल इस कांड का हर एंगल से खुलासा किया, अपितु दुर्लभ फोटो भी खींचे। शायद ही कोई ऐसा पहलु बाकी रहा हो, जिसे कि मीडिया ने नहीं छुआ हो। उल्लेखनीय बात ये है कि पत्रकारों को आधिकारिक तौर पर सीमित जानकारी ही मिल पाई, बाकी सारी जानकारी उन्होंने अपनी खोजी नजर और कड़ी मेहनत से उजागर की है। सच तो ये है कि इस कांड पर अब तक प्रकाशित सारी जानकारी एक दस्तावेज है, जो पुलिस की कार्यप्रणाली पर संपूर्ण नजर रखता है।
अजमेर की मीडिया की यही खासियत उसे पूरे राजस्थान व देश में अपनी अलग पहचान देती है। केवल रिपोर्टिंग ही नहीं, अपितु घटना से जुड़े हर पहलु पर नजर डालना इसकी फितरत रही है। इतना ही नहीं फॉलोअप के मामले में भी यहां के पत्रकारों को कोई सानी नहीं है। यह पहला ऐसा मामला नहीं है, जिसमें मीडिया ने इतनी मुस्तैदी दिखाई है, इससे पहले भी अनेकानेक कांडों की सटीक रिपोर्टिंग की जा चुकी है। आपको याद होगा देश का सबसे बड़ा अश्लील फोटो ब्लैककांड, जिसे अजमेर की मीडिया ने ही अंजाम तक पहुंचाया। इस सिलसिले में दैनिक भास्कर के मौजूदा डिप्टी न्यूज एडीटर संतोष गुप्ता को माणक अलंकरण मिला था। क्लाक टावर सीआई हरसहाय मीणा का प्रकरण भी सिरे तक पहुंचाने का श्रेय अजमेर की मीडिया को है। अगर केवल क्राइम रिपोर्टिंग की बात करें तो स्वर्गीय जवाहर सिंह चौधरी से लेकर अरुण बारोठिया, प्रताप सनकत, निर्मल मिश्रा, अमित वाजपेयी, विक्रम चौधरी, राजेन्द्र याज्ञिक, राजेन्द्र हाड़ा, रहमान खान, धर्मेन्द्र प्रजापति, कौशल जैन, राजकुमार वर्मा, योगेश सारस्वत, अमर सिंह सरीखे पत्रकारों ने बेखौफ हो कर अपराधियों के चेहरे बेनकाब किए हैं। इसी प्रकार इन्द्र नटराज, स्वर्गीय गुल टेकचंदानी, मोती नीलम, सत्यनारायण जाला, महेश नटराज, मुकेश परिहार, गोपाल शर्मा, मोहन कुमावत, दीपक शर्मा, जय माखीजा, नवीन सोनवाल, मोहम्मद अली, बालकिशन झा, अनिल सरीखे फोटोग्राफरों ने पत्रकारों के साथ कंधे से कंधा मिला कर अपन फन का लोहा मनवाया है।
क्राइम हो या प्रशासनिक क्षेत्र और चाहे राजनीति, हर एक क्षेत्र पर अजमेर के पत्रकारों ने अपनी पकड़ साबित की है। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण अजमेर की पत्रकारिता के इतिहास में अंकित हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए मीणा कांड के फॉलोअप में भी अजमेर की मीडिया कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी, चाहे उसे बाद में गाहे-बगाहे पुलिस के गुस्से का शिकार होना पड़े। इस सिलसिले में याद आता है पुलिस का वह बर्बर चेहरा, जब उसने तकरीबन बीस साल पहले कलेक्ट्रेट में पत्रकारों पर अपना गुस्सा उतारा था और उसमें वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय मोहनराज भंडारी व दैनिक नवज्योति के तत्कालीन रिपोर्टर गजानन महतपुरकर बुरी तरह से जख्मी हुए थे। इसके बाद भी पत्रकारों का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ। वह जज्बा आज नवोदित पत्रकारों में भी नजर आ रहा है। ऐसे जांबाज पत्रकारों व अजमेर की मीडिया को मेरा सलाम।
-तेजवानी गिरधर

मीणा व सोनवाल की तरफदारी के मायने?


एक ओर दिल्ली में युवती के साथ गेंग रेप होने पर पूरे देश के साथ अजमेर की जनता में भी उबाल आया और पुलिस व सरकार के रवैये के विरुद्ध प्रदर्शन हुए, वहीं अजमेर में पूरे पुलिस महकमे का शर्मनाक कांड उजागर हुआ मगर कोई हलचल नहीं हुई। भाजपा व उसके नेताओं ने जहां औपचारिक विज्ञप्तियां जारी कीं, वहीं आम आदमी पार्टी की नेता कीर्ति पाठक के नेतृत्व में फौरी विरोध प्रदर्शन हुआ। कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल जरूर सत्तारूढ़ पार्टी के होते हुए भी संबंधित दोषी थानेदारों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की, जो कि पूरी भी हुई। मीडिया ने तो जितना गहरा पोस्टमार्टम किया, वह अल्टीमेट था। मगर अहम सवाल ये है कि आम जनता क्या इतनी सन्न रह गई कि किंकर्तव्यविमूढ़ सी नजर आ रही है?
यह तो है तस्वीर का एक पहलु। अब दूसरा पहलु देखिए। यह सब जानते हैं कि अपराधी केवल अपराधी होता है, उसकी कोई जाति नहीं होती, उसके बावजूद कैसी विडंबना है कि एसपी राजेश मीणा व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लोकेश सोनवाल के समर्थन में उनकी समाज के नेता सड़क पर आ गए। बेशक विपत्ति में समाज को साथ देना ही चाहिए और यदि पुख्ता सबूत हों इस बात के कि वाकई कार्यवाही दुर्भावना के कारण की गई है तो आवाज बुलंद करने में कोई हर्ज नहीं है। मगर बिना किसी ठोस आधार के आरोपित व्यक्ति का समर्थन करना बेहद चौंकाने वाला है। होना यह चाहिए कि मीणा व सोनवाल का साथ देने वाले यह खुलासा करें कि आखिर किस प्रकार उनके खिलाफ दुर्भावना से प्रेरित हो कर कार्यवाही को अंजाम दिया गया है।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

क्या एसपी मीणा से महज पांच लाख ही बरामद हुए?


अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा को थानाधिकारियों से मंगाई गई मंथली के साथ गिरफ्तार किए जाने के साथ कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिनके उत्तर तलाशने के लिए अफवाहों की अनेकानेक अबाबीलें अजमेर के आसमान पर छा गई हैं।
सबसे बड़ा सवाल ये चर्चा में है कि क्या एसपी मीणा के पास से महज पांच लाख रुपए नकद ही बरामद हुए हैं? यह सवाल इस वजह से उठा है कि अगर वह मंथली ही थी तो एसपी जैसे बड़े अफसर के पास से कोई पचास एक लाख पाए जाने चाहिए थे, पांच लाख भी कोई रकम होती है।  क्या अजमेर के कमाऊ थानों की हिस्सेदारी मात्र दस-बीस हजार रुपए हो सकती है? पांच लाख जैसी कम रकम पर विश्वास इस कारण भी कम होता है क्योंकि जाहिर तौर पर मंथली एक ही बार में पहुंचाई जाती होगी और वह इतनी कम नहीं हो सकती। अगर यह सही नहीं है तो इसका मतलब ये भी है कि मंथली हिस्सों में पहुंचाई जाती हो। एक सवाल ये भी है कि क्या मीणा केवल अजमेर शहर के थानाधिकारियों से ही मंथली लेते थे? जाहिर सी बात है कि जिले के अन्य थानों से भी वसूली की जाती रही होगी, तो वह कब-कब पहुंचाई जाती थी? असल में यह सवाल आम जनता की बजाय पुलिस कर्मियों में ज्यादा है, क्योंकि जनता को इसका अंदाजा नहीं, पुलिस कर्मी अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके सिस्टम में क्या चल रहा है। यह सवाल इसलिए भी मौजूं है क्योंकि एसीबी की टीम, जिसे कि सब कुछ पता था, वह मात्र पांच लाख रुपए के साथ ही एसपी को पकडऩे को गई? एक संभावना ये भी है कि चूंकि मीणा एसीबी की पकड़ में तीसरे प्रयास में आए, यानि कि कार्यवाही लीक होने के भय से पांच लाख रुपए की रकम पर ही धरपकड़ करने का निर्णय किया गया।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

वसुंधरा की बहू को अजमेर से लड़ाने की तैयारी?

राजनीतिक हलके में एक टॉप सीक्रेट इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। वो यह कि क्या आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा अजमेर संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पुत्रवधू श्रीमती निहारिका राजे को चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है।
असल में यह चर्चा इस कारण शुरू हुई है कि इन दिनों अजमेर संसदीय क्षेत्र के अनेक भाजपा नेताओं को वसुंधरा राजे की ओर से बाकायदा बूथ वाइज आंकड़े मंगवाए जा रहे हैं, इनमें जातीय समीकरण, प्रमुख कार्यकर्ताओं के नाम व उनके मोबाइल नंबर, विभिन्न जातियों के प्रमुख नेताओं व कार्यकर्ताओं के नाम-पते इत्यादि शामिल हैं। जाहिर सी बात है कि किसी भी क्षेत्र का इतना विस्तृत सर्वे वही करवाता है, जिसका उस क्षेत्र से चुनाव लडऩे का मानस होता है। एक तर्क ये भी दिया जा सकता है कि चूंकि वसुंधरा आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर फीडबैक ले रहीं है और यह सर्वे उसी का एक हिस्सा है, तो उसमें चौंकने जैसी बात नहीं होनी चाहिए, मगर इतना विस्तृत फीडबैक और वह भी केवल अजमेर संसदीय क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों का तो जरूर कुछ खास बात है। पहले जब यह जानकारी आई कि वे अजमेर उत्तर का सर्वे करवा रही हैं तो यह चर्चा उठी कि कहीं वे खुद तो अजमेर से चुनाव लडऩे का मानस तो नहीं बना रहीं, लेकिन जैसे ही यह पता लगा कि पूरे संसदीय क्षेत्र में ही यह काम हो रहा है तो लोगों ने गहन पड़ताल शुरू कर दी। उसमें यह तथ्य उभर कर आया कि संभव है वे अपनी बहू यानि पुत्र व झालावाड़ के भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह की धर्म पत्नी श्रीमती निहारिका राजे के लिए यहां राजनीतिक जमीन की तलाश करवा रही हों। इसके पीछे एक तर्क ये भी है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख गुर्जर मतदाता हैं और श्रीमती निहारिका भी गुर्जर समाज की बेटी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट भी गुर्जर समुदाय से हैं। समझा जाता है कि पिछले चुनाव में किरण माहेश्वरी के हार जाने के बाद भाजपा यहां सचिन के सामने एक सशक्त उम्मीदवार की तलाश में हैं और उसमें निहारिका फिट बैठती हैं। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, कांग्रेस व भाजपा के अपने-अपने जातीय वोट बैंक हैं। उनमें अगर परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहने वाले गुर्जर समुदाय में सेंध मार ली जाती है तो एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। यही सोच कर निहारिका के लिए जमीन तलाशी जा रही है। हालांकि यह संभावना अब भी बरकरार है कि वे खुद भी अजमेर उत्तर से चुनाव लडऩे की सोच सकती हैं। इस प्रकार चर्चा पिछली बार तब भी उठी थी कि जब उन्होंने यहां गणतंत्र दिवस का राज्य स्तरीय समारोह आयोजित करवाया और न्यास के माध्यम से गौरव पथ जैसा शानदार रोड बनवाया।
-तेजवानी गिरधर

और अब गणतंत्र दिवस के बहिष्कार का अलाप

दिल्ली गैंग रेप कांड के विरोध में उबल रहे देश में गुस्सा इस सीमा तक जा पहुंचा है कि लोग यानि गण अब गणतंत्र दिवस के बहिष्कार तक की अपील करने लगे हैं। अजमेर में भारत स्वाभिमान मुहिम से जुड़े युवा नेता अंशुल कुमार ने फेसबुक पर लिखा है कि ‎"गणतन्त्र दिवस का बहिष्कार करॆ" दामिनी कॊ श्रधाञलि दॆनॆ, प्रदर्शनकारियॊ पर हुऎ अत्याचार कॆ विरॊध मॆ और इस भ्रष्ट काग्रॆस सरकार का विरॊध करनॆ कॆ लिऎ हम सभी कॊ गणतन्त्र दिवस का बहिष्कार करना चाहिऎ|
कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रिया जयपुर में ईटीवी में काम करने वाले कार्तिक बलवान ही है, जो फेसबुक पर लिखते हैं कि नववर्ष मनाने और ना मनाने से अंधी,गूंगी और बहरी राजनैतिक व्यवस्था नहीं सुधरने वाली है । बेहतर होगा हम इस वर्ष गणतंत्र दिवस के राजकीय समारोह से दूरी बनाएं । 'मूसळ' (राजस्थानी भाषा) की तरह बर्ताव कर रहे "नेतृत्व" को कैसा लगेगा जब लालकिले की प्राचीर पर तिरंगा फहराने के बाद उसे सामने पड़ी कुर्सियां खाली मिलें.... हर राज्य के 'मुख्यमंत्री' और 'मंत्रियों' द्वारा गणतंत्र दिवस पर किए जाने वाले समारोह से दूरी बनाएं । मैं इस बात पर प्रतिबद्ध रहूंगा कि मैं गणतंत्र दिवस समारोह का हिस्सा नहीं बनूंगा ।
उनकी इस टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी करते हुए राजस्थान पत्रिका में काम कर रहे अभिषेक सिंघल लिखते हैं कि  बहुत बड़ी संख्या में भारतीय वैसे भी इन समारोहों का हिस्सा नहीं बनते,, उन्हें ये दिवस हॉलीडे लगते हैं.... शायद इसी सहजगामी प्रवृत्ति का ही नतीजा वर्तमान हालात हैं,,, इस राजनैतिक व्यवस्था के जनक और कोई नहीं हम,, हमारा समाज स्वयं है.
अर्थात कुल मिला कर आज हमारा लोकतंत्र व गणतंत्र ही सवालों के घेरे में आ गया है। वैसे तस्वीर का दूसरा पहलु ये भी है कि क्या गणतंत्र दिवस कांग्रेस पार्टी का कार्यक्रम है या नेताओं का या फिर आम जनता का? और जिन राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें हैं, वहां वह कार्यक्रम किसका कहलाएगा?

बहुत देर से पकड़े गए एसपी राजेश मीणा


अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा बहुत देर से पकड़े गए हैं। उन पर तो काफी पहले ही शिकंजा कस दिया जाना चाहिए था। भ्रष्टाचार से धन बटोरने का संदेह तो उन पर तब ही हो जाना चाहिए था, जब उनकी छत्रछाया में प्रशिक्षु आईपीएस अजय सिंह रिश्वत प्रकरण में पकड़े गए थे।
उल्लेखनीय है कि अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह को घर भरने की इतनी जल्दी थी कि नौकरी की शुरुआत में ही लंबे हाथ मारना शुरू कर दिया था। तभी यह आशंका हो जानी चाहिए थी कि आखिर एक नया-नया अफसर इतनी हिमाकत कर कैसे रहा है? आईपीएस अजय सिंह कितने बेखौफ थे, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वे अपने भाई हेमंत कुमार के साथ जिस गाडी में जाते हुए पकड़े गए, उसमें अवैध शराब की दो पेटियां व 47 हजार रुपए पाए गए। ऐसा कत्तई नहीं हो सकता था कि एसपी मीणा की जानकारी के बिना ही वे इस प्रकार की कारगुजारी कर रहे थे। आपको याद होगा कि अजय सिंह ने उच्चधिकारियों की अनुमति के बिना ही कांस्टेबल राजाराम व जयपालसिंह को एसी का रिटर्न टिकिट देकर मुंबई से दहेज प्रताडऩा के आरोपी रणजीतसिंह को गिरफ्तार करने भेज दिया था। दोनों शातिर पुलिसकर्मियों ने मुंबई में बीयर बार, होटलों व बीच पर मौज-मस्ती कर मुकदमे से आरोपी और उसके परिवार के अन्य लोगों का नाम बाहर कराने के लिए लाखों की रिश्वत मांगी थी। बाद में आरोपी को अजमेर लाकर तीन दिनों तक एक होटल में बंधक बना कर रखा और पीडि़ता को पांच लाख रुपए दिलवा कर एक लाख रुपए कांस्टेबल ने वसूलेे। इसकी खबरें अखबारों में सुर्खियों में छपीं। उस वक्त भी मीणा ने उनका साथ दिया था।
दरअसल अजय सिंह भी देर से ही पकड़े गए थे। उनके कारनामों की चर्चाएं कानाफूसियों में तो होती रहीं और एसपी मीणा आंखें मूंदे रहे। अगर यह मान लिया जाए कि मीणा को कुछ पता ही नहीं लगा, तो यह उससे भी ज्यादा शर्मनाक बात कही जाएगी। वैसे अब यह पक्के तौर माना जाना चाहिए कि अजय सिंह उनकी शह पर ही खुला खेल खेल रहे थे। वो इसलिए कि मीणा विभिन्न थानों से आई मंथली के साथ पकड़े गए हैं। स्वाभाविक रूप से अजय सिंह भी उन्हें हिस्सा देते रहे होंगे। अब जरूरत है कि अजय सिंह से उनके कनैक्शन की नए सिरे जांच की जाए। अजय सिंह के पकड़े जाने पर भी यह मांग उठी थी कि केवल रिश्वत के एक ही मामले तक सीमित न रह कर उनके पास चल रही सभी जांचों की भी पड़ताल करवाई जाए।
मीणा का मंथली से कैसा नाता रहा है, इसका संदेह तब भी हुआ था, जब अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, वहीं मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा था। तब ये बातें अखबारों की सुर्खियां बनी थीं कि ठेले वालों से मंथली ली जाती है, इसी कारण पुलिस उन्हें हटाने में रुचि नहीं ले रही।
अव्वल तो अब यह जानकारी भी आ रही है कि मीणा पूर्व में संदिग्ध रहे हैं। मगर अफसोस कि उसके बाद भी सरकार ने उन्हें फील्ड पोस्टिंग दे कर अजमेर जैसे महत्वपूर्ण व संवेदनशील जिले की कानून व्यवस्था सौंप रखी थी। अजमेर जिला पुलिस महकमे के सब से बड़े अधिकारी एसपी राजेश मीणा की इस हरकत ने पुलिस को ही नहीं, पूरे अजमेर को शर्मसार किया है। पुलिस थानों से चौथ वसूली के इस मामले ने एक बार फिर खाकी वर्दी को दागदार किया है। मीणा तक मंथली पहुंचाने वाले रामदेव की स्वीकारोक्ति के बाद यह बात साबित हो गई है कि कानून की रक्षा करने वाले ही तंत्र में भ्रष्टाचार को पनाह दे रहे थे।
-तेजवानी गिरधर