सोमवार, 24 अप्रैल 2017

मीडिया की नजर में वह अब भी अकबर का किला

शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने अपने प्रभव का इस्तेमाल कर भले ही नया बाजार स्थित अकबर के किले का नाम अजमेर का किला करवा दिया हो, मगर मीडिया उसे अब भी अकबर का किला ही मान रहा है। प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक भास्कर ने अकबर के किले से संबंधित एक समाचार में अकबर के किले का ही जिक्र किया है। यहां तक कि हैडिंग में भी इसी का उल्लेख है। इसका सीधा सा अर्थ है कि मीडिया ने नाम के बदलाव को स्वीकार नहीं किया है।
ज्ञातव्य है कि प्रो. देवनानी डंके की चोट कहते हैं कि हां, नाम मैने बदलवाया और उनका निर्णय पूरी तरह से नियमानुसार व सही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों किले के जिम्मेदार अधिकारी ने भी रिकार्ड के मुताबिक इसे अकबर का किला बताया तो शहर भाजपा ने उस पर कड़ा ऐतराज जताया था और उन्हें अपनी सीमा में रहने की घुड़की पिलाई थी।

समझाइश से हटाई गई मजार, जो पहले भी हो सकता था

पुष्कर रोड को साठ फीट चौड़ा करने की जद में आ रही मजार को आखिरकार प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से की गई समझाइश से हटवा दिया गया। इसमें अतिरिक्त जिला कलेक्टर शहर अरविंद सेंगवा और कुछ समझदार मुस्लिम प्रतिनिधियों ने भी भूमिका अदा की। इसके लिए सेंगवा के साथ बातचीत हुई, जिसमें तनवीर बीबी, शहाबुद्दीन, कय्यूम, सैयद गोहर चिश्ती, सलीम बेग,  मोइनुउद्दीन, मोहम्मद यासीन, अस्मत बीबी, तनवीर बीबी व शहाबुद्दीन शामिल हुए। बातचीत के दौरान मुस्लिम प्रतिनिधियों का कहना था कि मजार को तोडऩे से पहले हमें विश्वास में नहीं लिया गया। आखिरकार सेंगवा के आग्रह पर वे स्वयं ही मजार को हटाने को राजी हो गए। शहर में सांप्रदायिक सौहाद्र्र के लिए यह जरूरी भी था कि बिना किसी विवाद के मसले का हल निकाला जाए।
असल में पुष्कर रोड को चौड़ा करने के लिए करंट बालाजी मंदिर की मूर्ति को सफलतापूर्वक व शांति से हटवाने में कामयाब होने पर हर किसी ने नगर निगम मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को शाबाशी दी और भूरि भूरि प्रशंसा की। सभी को उम्मीद थी कि गहलोत की सूझबूझ से अन्य अतिक्रमण भी बिना किसी हील हुज्जत के हटवा दिए जाएंगे। मगर अगले ही कदम पर एक मजार का अतिक्रमण हटाने को लेकर विवाद हो गया। इसमें कहीं न कहीं तो चूक हुई। हालांकि विवाद का दो दिन बाद ही सही, हल निकल आया, मगर इससे अनेक सवाल पैदा होते हैं? क्या मजार को हटाने से पहले संबंधित पक्ष को विश्वास में ले लिया था? क्या उन्होंने इस बात की सहमति जाहिर कर दी थी कि करंट बालाजी मंदिर हटाए जाने पर उनका भी अतिक्रमण हटा दिया जाए? क्या उन्होंने उस वक्त यह मांग नहीं रखी थी कि मजार हटाने की एवज में आसपास कोई वैकल्पिक स्थान दिया जाए? क्या वे केवल मंदिर को हटाए जाने से ही राजी थे? क्या वैकल्पिक स्थान की मांग बाद में उठाई गई? क्या नगर निगम प्रशासन को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस प्रकार की मांग उठ सकती है?
इन सब सवालों का एक ही जवाब नजर आता है कि मजार का अतिक्रमण हटाने से पहले संबंधित पक्ष को बैठा कर नहीं समझाया गया। यही मान कर चला गया कि अतिक्रमण तो हटवा दो, बाद में जो होगा देखा जाएगा। अगर यही मसला समझाइश से हल हो सकता था तो यह समझाइश पहले भी तो हो सकती थी। अनावश्यक ही दो दिन के लिए शहर में अमन को लेकर संशय पैदा होने दिया गया। यदि थोड़ी सी भी सावधानी बरती जाती तो गलत संदेश नहीं जाता। अफसोसनाबक बात ये रही कि जल्दबाजी तो नगर निगम ने की और समझाइश अतिरिक्त जिला कलेक्टर सेंगवा को करनी पड़ी।
यह ठीक है कि यह मसला आसानी से हल को गया, मगर अभी जिस विचारधारा के दल की सत्ता है, उस पर और अधिक दायित्व है कि वह सभी को साथ लेकर चलने का भरोसा कायम करे। उम्मीद है कि दरगाह और पुष्कर की वजह से पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल इस शहर में आगे भी अमन चैन कायम रहेगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000