गुरुवार, 22 जून 2017

देवनानी का अनिता के कार्यक्रम में जाना भी है एक खबर

कहते हैं न कि यदि कुत्ता आदमी को काट खाए तो कोई खबर नहीं बनती, मगर यदि आदमी कुत्ते को काट खाए तो वह खबर हो हो जाती है।  आपने ये भी देखा होगा कि अगर कोई किसी के साथ बेईमानी करे तो उसकी खबर मात्र इस कारण छपती है, क्योंकि एक घटना हुई है, लेकिन उस पर कोई खास गौर नहीं करता क्योंकि बेईमानी आम बात है, मगर यदि कोई किसी के खोए हुए रुपए या वस्तु ला कर उसके मालिक को दे तो ईमानदारी जिंदा है के शीर्षक से बॉक्स में खबर लगती है। कुछ ऐसा ही शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल को लेकर है। वे एक दूसरे के कार्यक्रम में नहीं जाएं तो चंद लाइनें छप जाती हैं, क्योंकि यह आम बात है, सब जानते हैं कि दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है, मगर यदि एक दूसरे के कार्यक्रम में पहुंच जाए तो वह बड़ी खबर हो जाती है, क्योंकि वह चौंकाने वाली है।
बीते दिन कुछ ऐसा ही हुआ। शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी व महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल दोनों एक भवन के लोकार्पण समारोह में साथ-साथ दिखाई दिए तो वह खबर मीडिया ने तुरंत हॉट केक की तरह उठा ली। असल में घटना इसलिए भी खास थी क्योंकि कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास विभाग का था, जिसकी मंत्री खुद अनिता भदेल हैं। इसे श्रीमती भदेल की उदारता माना जाए या कुछ और, मगर यह कम बात नहीं कि लोकार्पण पट्टिका पर भी अनिता भदेल व वासुदेव देवनानी का नाम बराबर में लिखा था। एक टाइम वो भी था, जब दोनों में इस बात को लेकर खींचतान होती थी कि ऊपर किसका नाम आए और नीचे किस का। अधिकारियों को बड़ी मुश्किल होती थी।
खबर की बारीक बात ये है कि देवनानी कोई अनिता के खुद के आमंत्रण पर नहीं गए थे। अनिता ने तो महिला एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक अनुपमा टेलर को कहा था कि देवनानी को भी बुलावा भेजा जाए। एक अधिकारी मात्र के बुलावे पर उनका अनिता के कार्यक्रम में जाना वाकई चौंकाने वाला है। स्वाभाविक रूप से राजनीतिक हलकों में इस बात पर अचरज जताया जा रहा है कि देवनानी यकायक इतना कैसे बदल गए?  क्या कहीं से इशारा था?
इस कार्यक्रम में देवनानी के करीबी माने जाने वाले मेयर धर्मेंद्र गहलोत का भदेल द्वारा लगाए गए शिविर की जमकर तारीफ करना भी चौंकाने वाला माना गया। वैसे किसी के मुंह पर उसकी तारीफ करना एक सामान्य शिष्टाचार वाली बात है।
बहरहाल, इस वाकये जुड़ा एक दिलचस्प पहलु देखिए। देवनानी खुद भले ही अनिता के जुड़े किसी कार्यक्रम में चले जाएं, मगर देवनानी खेमे के नेता, पार्षद आदि ऐसा करने से पहले दस बार सोचते हैं। सोचते क्या, जाते ही नहीं हैं, क्योंकि देवनानी की नाराजगी का डर रहता है। देवनानी भी क्लास लिए बिना नहीं मानते। ठीक ऐसी ही स्थिति अनिता खेमे के नेताओं की है। ताजा कार्यक्रम में भी ऐसा ही हुआ। उपमहापौर संपत सांखला ने औपचारिकता के नाते देवनानी खेमे के नेताओं से भी कार्यक्रम में आने को कहा था, मगर कई इसी कारण नहीं गए कि बाद में देवनानी को पता लगा तो वे खिंचाई कर देंगे। बाद में उन्हें पता लगा तो यही सोचने लगे समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000