सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर शुरू हो गई जद्दोजहद

अजमेर नगर निगम के आगामी अगस्त माह में होने वाले चुनाव के लिए शहर कांग्रेस संगठन में बदलाव पर गहन विचार शुरू हो गया है। ज्ञातव्य है कि मौजूदा अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता को प्रदेश कार्यकारिणी में  सचिव बनाया जा चुका है, इस वजह से उनके स्थान पर नए अध्यक्ष की नियुक्ति होनी है, मगर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के पंचायत चुनाव में व्यस्त रहने के कारण सिर्फ विचार मात्र ही हो पाया है। अब जब कि पंचायत चुनाव समाप्त हो चुके हैं, समझा जाता है कि शहर कांग्रेस को शीघ्र ही नया अध्यक्ष मिलेगा। हालांकि रलावता समर्थकों का मानना है कि फिलहाल कोई रद्दोबदल नहीं होगा और कांग्रेस उनकी अगुवाई में ही आगामी निगम चुनाव  लड़ेगी।
जानकारी के अनुसार शहर अध्यक्ष बनने का दबाव सबसे अधिक प्रमुख बीड़ी व्यवसायी व समाजसेवी हेमंत भाटी पर है। वे अजमेर दक्षिण का  विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पूरी तरह से सक्रिय हैं। सच तो ये है कि उन्होंने उनके कार्यकर्ताओं ने निगम चुनाव के लिए जमीन पर काम भी शुरू कर दिया है। उन्होंने अभी तक अपना मन्तव्य स्पष्ट नहीं किया है। समझा जाता है कि वे शहर कांग्रेस पर अपना वर्चस्व तो बनाए रखना चाहते हैं, मगर स्वयं अध्यक्ष पद लेने में इच्छुक नहीं हैं। अन्य दावेदार भी यही मानते हैं कि अगर भाटी का नंबर लगा तो उन्हें स्वीकार करना ही होगा। कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो चाहते हैं कि अगर भाटी इंकार करते हैं तो वे उनकी ही छत्रछाया में ही अध्यक्ष बन जाएं।  जाहिर सी बात है कि उनकी नजर उनकी साधन संपन्नता पर है। यूं भी विपक्ष में रह कर चार साल तक संगठन को चलाना हर किसी के बूते की बात नहीं है।
भाटी के अतिरिक्त दूसरी प्रबल दावेदारी विजय जैन की है। वे संगठन में वर्षों से सक्रिय हैं, ठीक ठाक साधन संपन्न हैं और कूल माइंडेड हैं। हालांकि वे सबको साथ लेकर चल सकते हैं, मगर एक धड़े से ताल्लुक रखने के कारण उनके निष्पक्ष रहने को लेकर हाईकमान के मन में संशय है।
नगर निगम के मौजूदा मेयर कमल बाकोलिया भी अध्यक्ष बनने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। जाहिर है अब अगला मेयर सामान्य वर्ग से होने के कारण वे तो निकाय चुनाव लड़ेंगे नहीं, इस कारण संगठन का काम लेकर सक्रिय बने रहना चाहते हैं। बाधा सिर्फ ये है कि उनका मेयर के नाते परफोरमेंस कुछ अच्छा नहीं रहा है। लेकिन साथ ही उनके पक्ष में ये पहलु जाता है कि मेयर के नाते नगर निगम के बारे में उनकी जितनी समझ है, वह और किसी की नहीं। इसके अतिरिक्त पार्टी के सभी पार्षदों को साथ लेकर नहीं चल पाए हैं। इसी प्रकार कैलाश झालीवाल की गिनती भी प्रबल दावेदारों में है। कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने की क्षमता और जुझारू व्यक्तित्व होने के कारण उनके अध्यक्ष बनने पर संगठन में जान आ सकती है, मगर उनके प्रति भी सर्वसम्मति बनाना कुछ कठिन काम है। युवा नेता सुकेश कांकरिया ने भी अध्यक्ष बनने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, मगर अपेक्षाकृत जूनियर होने के कारण उनका नंबर आएगा, इसमें तनिक संदेह है। यूं इन सब में वरिष्ठ प्रताप यादव अनुभव के लिहाज से सर्वाधिक बेहतर हैं। वे भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी के साथ महासचिव के रूप में कार्य कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त न केवल खुद, अपितु अपनी पत्नी को भी पार्षद बनवा चुके हैं। मगर दिक्कत वही आम सहमति की है।
दूसरी ओर रलावता समर्थकों का मानना है कि शायद हाईकमान फिलहाल नया अध्यक्ष बनाने की रिस्क न ले, क्योंकि भले ही वर्तमान टीम का परफोरमेंस कुछ खास न रहा हो, मगर नया अध्यक्ष बनने पर विवाद ज्यादा हो जाएगा। वर्तमान में रलावता को लेकर कोई खास विवाद तो कम से कम नहीं है और हाईकमान चाहे तो उनकी टीम को और बेहतर बना कर आगामी चुनाव लड़वा सकता है। रलावता के पक्ष में एक बात ये भी जोड़ी जाती है कि उन्होंने हाल ही पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है।