मंगलवार, 25 सितंबर 2012

कान पक गए दरगाह एक्ट में संशोधन की बातें सुनते सुनते

सर्किट हाउस में अधिकारियों से चर्चा करते बहुरिया

जानकारी है कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय के नवनियुक्त सचिव डॉ. सुतानु बेहुरिया ने दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट में संशोधन किए जाने का इशारा दिया है। उसी के मुतल्लिक उन्होंने जिला कलेक्टर वैभव गालरिया और एसपी राजेश मीणा से चर्चा की और दरगाह की सुरक्षा व्यवस्था और इसमें आ रही समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली। उन्होंने अधिकारियों से दरगाह के अंदरूनी हिस्से में सुरक्षा के इंतजाम, क्लोज सर्किट टीवी की आवश्यकता और जायरीन की बढ़ती भीड़ को देखते हुए परिसर में सुगम आवाजाही सुनिश्चित करने के संबंध में तथ्यों को विस्तार से समझा। उन्होंने दरगाह के बारे में बारीक जानकारी रखने वाले पूर्व नाजिम अशफाक हुसैन से गहन चर्चा की। उन्होंने जाना कि दरगाह से जुड़े संबद्ध पक्षों के क्षेत्राधिकार, उनका योगदान और उनमें टकराव के कारण होने वाली समस्याओं की जानकारी भी जुटाई।
बाद में उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मंत्रालय चाहता है कि सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में आने वाला प्रत्येक जायरीन सुकून महसूस करे, ऐसी व्यवस्था हो। मंत्रालय इसके लिए हरसंभव उपाय करेगा।
वस्तुत: लगता ये है कि चूंकि वे हाल ही इस पद पर आए हैं और पहली बार यहां का दौरा किया है, लिहाजा उनको कुछ न कुछ तो ऐसा कहना ही था, जिससे लगे कि वे वाकई पैबंद लगी पूरी चादर को ही बदलने आए हैं। ऐसा होता है। जब भी कोई बड़ा अफसर आता है तो वह ढर्ऱे से हट कर आदर्शपूर्ण व नई बातें करता है। और बाद में जब उसकी जाजम जम जाती है तो फिर वह भी ढर्ऱे पर चल कर महज नौकरी को ही अंजाम देता है। चूंकि बेहुरिया का यह दौरा विशेष रूप से दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के सिलसिले में था नहीं, वे तो कटसी विजिट पर आए थे, इस कारण सहसा यकीन होता नहीं कि वे वाकई गंभीर हैं। यह निराशावादी दृष्टिकोण इस कारण कायम हुआ है, क्योंकि अब तक न जाने कितने बड़े अधिकारी ऐसी बातें कर चुके हैं और नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहा है। ऐसा नहीं कि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के सुधार पर चर्चाएं नहीं हुई हों, मगर आज तक सरकार की हिम्मत नहीं हुई है कि वह बर्र के छत्ते में हाथ डाले।
दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट में संशोधन तो बहुत बड़ी बात हो गई, दरगाह से सीधे जुड़े तीन पक्षों खुद्दाम साहेबान, दरगाह दीवान व दरगाह नाजिम और दरगाह के बाहर की व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार जिला प्रशासन के बीच ही छोटी-छोटी बातों पर सहमति नहीं हो पाती। आए दिन टकराव होता है और उसकी सुर्खियां प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर चमकती हैं। जिला प्रशासन अंदर के मामलों पर सीधे दखल कर नहीं पाता और नाजिम को इतने अधिकार हैं नहीं कि वह सख्ती बरत पाए। इसी कारण एक्ट में संशोधन की बातें उठती हैं, मगर फिर चादर ओढ़ कर सो जाती हैं।
आपको याद होगा कि दरगाह ख्वाजा साहब के खादिमों के लिए लाइसेंस लेना जरूरी करने के मामले में दरगाह नाजिम की कथित सिफारिश ने ही जबरदस्त तूल पकड़ लिया था। हालांकि नाजिम अहमद रजा ने अपनी सफाई में साफ कर दिया कि उन्होंने न तो लाइसेंस जरूरी करने सिफारिश की है और न ही ऐसा करने का उनका मानस है, लेकिन खादिम इससे राजी नहीं हुए। वे मामले की सीआईडी जांच करवाना चाहते थे ताकि यह पता लग सके कि यह खुराफात किसने की है। दरअसल दरगाह एक्ट की धारा 11(एफ) पर एक राय नहीं बनने तक दरगाह कमेटी ने पहले ही इस मामले को टाल दिया था। उसके बाद नाजिम का सिफारिश करने का कोई मतलब ही नहीं था। इसके बावजूद ऐसा पत्र फैक्स के जरिए मीडिया के पास पहुंचा तो विवाद हो गया। इस पर खादिम शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती का कहना था कि जो खादिम पिछले तकरीबन आठ सौ साल से दरगाह ख्वाजा साहब की खिदमत कर रहे हैं, उन्हें लाइसेंस लेना जरूरी करने की बात ही बेमानी है। खिदमत करने अथवा जियारत करवाने का हक खादिमों का जन्मजात हक है। इसके लिए उन्हें किसी सल्तनत या सरकार का मुंह ताकने की भला क्या जरूरत है? लाइसेंस का मतलब ही ये होता है कि किसी काम करने का हक सरकार की ओर से मुहैया करवाया जाए। दरगाह में कौन जियारत करवाएगा, इससे सरकार का कोई लेना-देना ही नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि लाइसेंस का मुद्दा पहले भी उठता रहा है। इसके पीछे खादिमों को काबू में रखने का नजरिया रहा है।
एक मुद्दा खादिमों को आइडेंटिटी कार्ड जारी करने का भी रहा है। इसको लेकर भी खादिमों को ऐतराज रहा है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा करके सरकार उनके हक-हकूक को छीनना चाहती है। इस बारे में प्रगतिशील विचारधारा के मुस्लिमों का मानना है कि अंजुमन को कुछ खुले दिमाग से सोचना चाहिए। आइडेंटिटी कार्ड होने से एक तो भीड़ भरी दरगाह शरीफ में खादिमों की पहचान आसान हो जाएगी, कोई सरकारी मुलाजिम उनसे सलीके से पेश आएगा और दूसरा आइडेंटिटी कार्ड लगाए हुए कोई खादिम गलत हरकत करने से बचेगा। अंजुमन और दरगाह कमेटी को मिल कर ऐसे आइडेंटिटी कार्ड जारी करने चाहिए।
जिस आम जायरीन की सहूलियत की बात बहुरिया करके गए हैं, उस सिलसिले में पहले भी खूब कवायद होती रही है, मगर आज तक दरगाह से जुड़े पक्षों में आम सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में एक्ट में सुधार बेहद जरूरी है। बहुरिया इशारा भी कर गए हैं। देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर

स्कूलों पर तालाबंदी : अराजकता का आगाज


पिछले कुछ माह से जिस प्रकार गांवों में शिक्षकों की कमी अथवा शिक्षकों की अनुपस्थिति को लेकर आए दिन तालाबंदी की घटनाएं हो रही हैं, वह सीधे-सीधे अराजकता का नमूना है। बेशक समस्या अपनी जगह है, मगर धरातल का सच ये है कि गांवों में इस प्रकार की घटनाएं या तो असामाजिक तत्वों की करतूत हैं या फिर स्थानीय गंदी राजनीति का परिणाम। कहीं न कहीं यह अन्ना व बाबा रामदेव द्वारा जगाई गई अलख का बिगड़ा हुआ रूप भी है, जो कि शहरों से चल कर गांवों की ओर पहुंचने लगा है।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की तालाबंदी इन दिनों ही हो रही हो। पिछले कई वर्षों से, चाहे कांग्रेस सरकार हो या भाजपा सरकार, शिक्षकों की कमी के चलते तालाबंदियां होती रही हैं। एक ओर जहां सरकार की अपनी मजबूरियां हैं, वहीं शिक्षकों की गांवों में नहीं जाने की प्रवृत्ति भी इसकी वजह है। राजनीतिक अप्रोच से कई शिक्षक शहरी क्षेत्रों में ही रह रहे हैं। विशेष रूप से दूरदराज के गांवों की हालत ज्यादा खराब है। या तो वहां पर्याप्त शिक्षक नियुक्त ही नहीं हैं, या फिर शिक्षक आए दिन गोत मारते हैं। इस कारण जाहिर तौर पर बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती। इसी कारण आखिरकार तंग आ कर ग्रामीण तालाबंदी करते हैं। मगर पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। अब तो मानों ये फैशन सा होने लगा है। छोटी-मोटी बात पर ही तालाबंदी की जाने लगी है। इसका लाभ असामाजिक तत्व भी उठा रहे हैं। अब जब कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो प्रशासन व सरकार को होश आया है। अतिरिक्त कलेक्टर मोहम्मद हनीफ ने तो बाकायदा आदेश दे दिया है कि स्कूलों में नाजायज तौर पर तालाबंदी कराने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी। मोहम्मद हनीफ ने स्वीकार किया है कि निश्चित रूप से स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, लेकिन उसका तत्काल समाधान संभव नहीं होगा। आने वाले समय में जैसे ही शिक्षक प्राप्त होंगे ऐसी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति तत्काल की जाएगी। उनके इस आदेश से स्पष्ट है कि फिलहाल कोई समाधान नहीं है। यह बात ग्रामीणों को भी समझनी होगी। अगर वाकई कोई बड़ी भारी गड़बड़ी हो रही है तो विरोध होना ही चाहिए, ताकि प्रशासन की आंख खुले, मगर तालाबंदी करके बच्चों की पढ़ाई का और नुकसान नहीं करना चाहिए। ग्रामीणों को यह भी समझना होगा कि अगर हम अपने बच्चों को अभी से इस प्रकार की प्रवृत्ति की ओर ले जाएंगे तो उनमें अराजकता के अवगुण विकसित होंगे, जो कि भविष्य के लिए ठीक नहीं है। बेशक शिक्षा हमारा अधिकार है, सरकार का अहम दायित्व भी, मगर इसके साथ ही हमारे कर्तव्य भी हैं। अगर वाकई सरकार के पास फिलहाल संसाधन नहीं हैं तो उपलब्ध संसाधनों के साथ सहयोग करना चाहिए। महज राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस प्रकार की हरकतें करना ठीक नहीं है। हम भी जानते हैं कि पिछले दिनों शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में हो रहे विलंब के कारण स्कूलों में शिक्षक नहीं लगाए जा सके। संभव है कि नियुक्तियां होने पर कुछ समाधान हो। तब तक सब्र करना ही चाहिए।
-तेजवानी गिरधर