बुधवार, 12 मार्च 2014

एडीए में कई पद खाली, चक्कर लगा रहे हैं सवाली

यह ठीक है कि सरकार ने अजमेर, किशनगढ़ व पुष्कर को समाहित करते हुए अजमेर विकास प्राधिकरण के नाम से पुनर्गठित अजमेर नगर सुधार न्यास में सीनियर आईएएस देवेंद्र भूषण गुप्ता को अध्यक्ष पद और मनीष चौहान को आयुक्त पद सौंप दिया गया है, मगर मात्र इतने भर से प्राधिकरण का कामकाज सुचारू हो जाएगा, इसकी उम्मीद करना इसलिए बेमानी है, क्योंकि प्राधिकरण के पास जितना काम है, उसके अनुरूप अपेक्षित पद आज भी खाली हैं। इसका परिणाम ये है कि न्यास के रहते अलबत्ता काम की रफ्तार जितनी थी, वह अब और भी कम हो गई है। बेशक बड़े अधिकारियों ने मास्टर प्लान सहित अन्य विकास योजनाओं पर चर्चा आरंभ कर दी है, मगर धरातल का सच ये है कि इनके क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त स्टाफ ही नहीं है। इस सिलसिले में स्थानीय अधिकारियों ने अनेक बार सरकार का ध्यान आकर्षित किया है, मगर नियुक्तियों की गति नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि प्राधिकरण के नए अध्यक्ष देवेन्द्र भूषण गुप्ता अजमेर के कलेक्टर रह चुके हैं, इस कारण उन्हें अजमेर के हालात की पूरी जानकारी है और यहां की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के अनुरूप विकास को गति देने की क्षमता रखते हैं, मगर उसे अमली जामा तभी पहना पाएंगे, जबकि उन्हें पूर्णकालिक जिम्मा सौंपा जाएगा।
नए नियुक्त आयुक्त मनीष चौहान ने जरूर आते ही जता दिया है कि वे प्राधिकरण में बिचौलियों पर नकेल कसेंगे, जिससे आम जनता को राहत मिलेगी, मगर सच्चाई ये है कि आज भी आपको प्राधिकरण के दफ्तर में दलालों का ही डेरा नजर आएगा।
उन्होंने कहा कि एडीए को मिले किशनगढ़़ व पुष्कर क्षेत्र के कई स्थानों पर आवासीय योजनाएं बनाई जाएंगी, जो कि मास्टर प्लान के तहत होंगी। साथ ही मास्टर प्लान भी जल्द ही लागू कर दिया जाएगा, मगर हकीकत ये है इसे लागू करने के लिए अपेक्षित स्टाफ ही नहीं है। नतीजा ये है कि एडीए में करीब 25 हजार से ज्यादा फाइलें लंबित हैं। लोगों को आए दिन एडीए के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। विभिन्न आवासीय योजनाओं में भी विकास कार्य अधूरे पड़े हैं। ऐसे में कोरी बातें करने से कुछ नहीं होने वाला है। उन्होंने एडीए की जमीनों पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है, मगर अब तक तो कहीं नजर नहीं आया कि क्या वाकई उनमें इसके लिए इच्छाशक्ति भी है। इच्छाशक्ति हो तो भी अतिक्रमण निरोधक दस्ते के लिए जितनी मेन पावर चाहिए, वह तो है ही नहीं।
प्राधिकरण के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती ये है कि 2002 से चल रही सीवरेज योजना आज तक शुरू नहीं हो पाई है। लाख कोशिशों के बाद भी उसकी गति कछुआ चाल वाली है। इसका नुकसान ये हो रहा है कि एक ओर तो इसकी लागत बढ़ती जा रही है और दूसरा करोड़ों रुपए लगने के बाद भी इसका लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा। इसमें सबसे बड़ी बाधा ये है कि कुछ तकनीकी कारणों के चलते नगर निगम इसका जिम्मा लेने को तैयार ही नहीं है। इस विवाद का हल निकालने के लिए आज कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए।
कुल मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण के गठन से आम जन में जो उम्मीद जगी थी, वह मात्र दिवा स्वप्र ही साबित हो रही है।

भाजपा को नहीं मिल रहा सचिन के मुकाबले का स्थानीय दावेदार

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही कवायद में बेशक भाजपा कांग्रेस से आगे चल रही है और उसने अजमेर संसदीय क्षेत्र के लिए दावेदारों के लिए वोटिंग भी करवा ली है, मगर लगता यही है कि भाजपा को मौजूदा कांग्रेस सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन के फिर से मैदान में आने पर उनके मुकाबले इनमें से एक भी उपयुक्त नजर नहीं आता। राजनीति के जानकार समझ रहे हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं के मोटिवेशन और पदाधिकारियों को सम्मान देने मात्र की खातिर वोटिंग करवाई गई, जबकि यह सीट कांग्रेस से छीनने के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे गुप्त रूप से किसी सेलिब्रिटी को उतारने की कवायद कर रही हैं। और इसी के चलते फिल्म अभिनेता सन्नी देओल व श्रीमती राजे की पुत्रवधू श्रीमती निहारिका जैसे नाम चर्चा में हैं।
दरअसल श्रीमती राजे जानती हैं कि चुनावी मैनेजमेंट में माहिर सचिन का मुकाबला करने की कुव्वत कम से कम मौजूदा स्थानीय दावेदारों में तो नहीं है। बेशक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी आठों सीटें हथिया लीं, बावजूद इसके सचिन मौजूदा ज्ञात दावेदारों से तगड़े साबित होंगे। ऐसे में वे नहीं चाहतीं कि स्थानीयवाद के नाम पर यह सीट यूं ही गंवा दी जाए।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों दावेदारों के लिए जयपुर में हुई पार्टी पदाधिकारियों की वोटिंग में कैबिनेट मंत्री सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा, किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी, पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत, शहर भाजपा अध्यक्ष रासा सिंह रावत, देहात भाजपा अध्यक्ष भगवती प्रसाद सारस्वत, पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिया व श्रीमती सरिता गैना, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.आर. चौधरी, पूर्व विधायक किशन गोपाल कोगटा, पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत, नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेंद्र सिंह शेखावत, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, जिला प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश, डॉ. कमला गोखरू, डॉ. दीपक भाकर, सतीश बंसल, ओमप्रकाश भडाणा, गजवीर सिंह चूड़ावत, सरोज कुमारी (दूदू), नगर निगम के उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ व डीटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी रीतू चौहान के नाम सामने आए थे। पिछली बार सचिन पायलट से तकरीबन 75 हजार वोटों से हारने वाली श्रीमती किरण माहेश्वरी के बारे में चर्चा थी कि वे इस बार अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए दुबारा यहीं से भाग्य आजमाना चाहेंगी, मगर इस बार पसंदीदा प्रत्याशियों के लिए हुई वोटिंग में किसी ने उनका नाम नहीं लिया। वस्तुत: उनका नाम इस बार इस कारण चर्चा में था क्योंकि वे स्थानीय अन्य दावेदारों की तुलना में कुछ भारी हैं और इस बार चुनाव भाजपा के लिए आसान माना जा रहा है। राज्य मंत्रीमंडल में मौका नहीं मिलने के बाद यही कयास रहा कि वे मात्र विधायक रहने की बजाय केन्द्र की राजनीति में जाना चाहेंगी। वे पहले भी केन्द्रीय राजनीति में रह चुकी हैं, फिलवक्त उनका नाम नैपथ्य में है।
बात अगर स्थानीय दावेदारों की करें तो जिले में जाटों के वोट दो लाख से ज्यादा होने के कारण जाटों का दावा मजबूत है और इसी के चलते कैबिनेट मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट ने अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे कर दिया है, मगर एक ही परिवार से एक मंत्री बनने के बाद दूसरे को लोकसभा चुनाव के मौका दिया जाएगा या नहीं, इसमें संशय नजर आता है। बात अगर किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी की करें तो वे इस कारण दावेदारी करते नजर आ रहे हैं क्योंकि दो बार विधायक बनने के बाद भी उन्हें मंत्री बनने का मौका नहीं मिलना है, क्योंकि अजमेर जिले एक जाट विधायक प्रो. जाट पहले से मंत्री हैं। जाहिर है मात्र विधायक रहने की बजाय सांसद बनने की मंशा रख रहे हैं। उनके अतिरिक्त पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना व उनके ससुर सी. बी. गैना व राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी का नाम चर्चा में है।
दावा अजमेर से पांच बार सांसद रह चुके व वर्तमान में शहर भाजपा की कमान संभाल रहे प्रो. रासासिंह रावत भी कर रहे हैं, मगर उनका नाम तो पिछली बार ही कट गया था, परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में रावतों के वोट कम होने के कारण। बताया जा रहा है कि वोटिंग में बाजी देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत ने मारी है, मगर जातीय समीकरण के तहत भाजपा उन पर दाव खेलेगी, इसमें तनिक संशय है। पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा जरूर साधन-संपन्नता के लिहाज से मुकाबला करने की स्थिति में हैं।
लब्बोलुआब, निष्कर्ष यही निकलता नजर आ रहा है कि सचिन पायलट की संभावित उम्मीदवारी के मद्देनजर भाजपा उन्हीं के जोड़ के नेता को मैदान में उतारेगी। बताया तो ये जा रहा है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो नाम का पैनल तय कर रखा है और सचिन का नाम फाइनल होते ही आखिरी क्षणों में तुरुप का पत्ता खोलेंगी।
-तेजवानी गिरधर