मंगलवार, 19 मार्च 2013

यह कैसा सर्वधर्म समभाव बो गए तोगडिय़ा?


तीर्थराज पुष्कर, दरगाह ख्वाजा साहब, ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र नारेली, अनेक गिरिजाघर, गुरुद्वारों और सिंधी दरबारों को अपने आंचल में समेटे सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर में 35 अरब श्रीराम नाम महामंत्र परिक्रमा के नौ दिवसीय आयोजन को जो अपार सफलता मिली, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। आयोजकों की सोच सलाम के काबिल है कि उन्होंने इस आध्यात्मिक नगरी में आत्मिक सुकून का ऐसा ऐतिहासिक व भव्य काम किया। समाज के हर धर्मावलंबी ने, हर तबके ने, हर वर्ग ने, सभी राजनीतिक दलों के हर प्रमुख नेता ने इसमें शिरकत की। यहां तक कि दरगाह ख्वाजा साहब के खादिमों तक ने परिक्रमा कर अपनी विशाल हृदयता का परिचय दिया। यही वास्तविक सर्वधर्म समभाव है। इस लिहाज से देखा जाए तो आयोजन समिति के अग्रणी सदस्य पूर्व न्यास सदर धर्मेश जैन के इस बयान में वाकई दम है कि अजमेर वासियों के सुख, शांति और समृद्धि तथा सर्वधर्म समभाव के लिए आयोजित कार्यक्रम का भविष्य में निश्चित ही लाभ मिलेगा। साथ ही भविष्य में निश्चित ही विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
मगर...... मगर आयोजन के आखिरी दिन विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने अपने स्वभाव के मुताबिक जो जहर उगला, उसने सर्वधर्म समभाव में यकीन रखने वालों के जुबान का स्वाद कसैला कर दिया। ये वही तोगडिय़ा हैं, जो तकरीबन दस साल पहले 13 अप्रैल 2003 को इसी सुभाष उद्यान में आयोजित धर्मसभा में त्रिशूल दीक्षा के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर गेगल थाना क्षेत्र में गिरफ्तार कर लिए गए थे। जिसका परिणाम ये निकला कि पूरे राजस्थान में सांप्रदायिकता की आग भड़काने की मंशा की भ्रूण हत्या हो गई थी। हालांकि इस बार उनका एजेंडा वैसा नहीं था, मगर उनका पूरा भाषण खुद उनकी मंशा का इजहार कर रहा था। यह गनीमत ही है कि अजमेर वाकई सांप्रदायिक सौहाद्र्र की नगरी है, वरना उन्होंने तो पूर्ण रूप से आध्यात्कि व धार्मिक आयोजन में अपनी ओर से अपना रंग भरने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या यह आयोजन समिति की सोची समझी रणनीति थी, या फिर तोगडिय़ा को बुलाने से पहले इस पर विचार ही नहीं किया गया कि वे आयोजन से उत्पन्न आध्यात्कि शांति व सौहाद्र्र पर पानी फेरने की कोशिश कर जाएंगे? अगर तोगडिय़ा जैसे कट्टरपंथी नेता को बुलाना एक रणनीति का हिस्सा था तो जाहिर है इसका ताना-बाना बुनने वाले तो बेहद प्रसन्न होंगे, मगर जो धर्मप्रेमी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम व पवन पुत्र हनुमान का आशीर्वाद लेने मात्र के मकसद से शामिल हुए होंगे, उन्हें तो अटपटा लगा ही होगा। धर्म विशेष की भावना से ऊपर उठ कर सोचने वालों को नहीं सुहाया होगा। विशेष रूप से अंजुमन के जो पदाधिकारी इसमें खुले हृदय से शामिल हुए, उनको अपनी जमात में जवाब देना भारी पड़ रहा होगा। अगर आयोजन पर चार चांद लगाने ही थे, कार्यक्रम को चरमोत्कर्ष पर ले जाना ही था, तो किसी बड़े आध्यात्कि संत को बुलवाते, जिनका आशीर्वाद लेकर यहां की जनता कृत्कृत्य होती। चुनावी साल में एक एजेंडे विशेष के लिए काम करने वाले घोर धार्मिक नेता को बुलवाने पर एक विशेष किस्म की गंध आ रही है। कोई इसे माने या नहीं, मगर सच यही है।
-तेजवानी गिरधर