शनिवार, 23 जुलाई 2011

पायलट के इशारे पर मीणा से मिले रलावता




हाल की शहर कांग्रेस के नवमनोनीत अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने नगर निगम के सीईओ सी. आर. मीणा से गुप्त मुलाकात की। हालांकि उसे गुप्त इसलिए नहीं कहा जा सकता कि वह गुप्त नहीं रही, अलबत्ता ये पता नहीं लग पाया कि दोनों में बातचीत क्या हुई। गुप्त इसलिए भी नहीं रहनी थी, क्योंकि मुलाकात का स्थल ही सीईओ का चैंबर को चुना जाना था। और यह भी जाहिर है कि मुलाकात में मीणा व मेयर कमल बाकोलिया के बीच जमी बर्फ का पिघलाने पर चर्चा हुई होगी। सुविज्ञ सूत्र मानते हैं कि दोनों के बीच नाइत्तफाकी को खत्म करने का इशारा स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने किया था।
असल में जब तक शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जसराज जयपाल काबिज थे, तब तक पायलट कुछ करने की स्थिति में नहीं थे। जयपाल लॉबी उनके खिलाफ चल रही थी और जाहिर तौर पर पायलट खेमे के बाकोलिया को भी वह गांठ नहीं रही थी। इसका परिणाम ये हुआ कि अफसर जमात ने कांग्रेसियों की धड़ेबाजी का लाभ उठाया। अफसर बाकोलिया को कोई तवज्जो ही नहीं दे रहे थे, जब कि वे अजमेर के प्रथम नागरिक हैं। इस सिलसिले में एक वाकया याद आता है। एक बार एक वीआईआईपी अजमेर आए थे। उनकी अगुवानी करते हुए तत्कालीन कलेक्टर सबसे आगे खड़े थे। इस पर तत्कालीन नगर परिषद सभापति वीर कुमार ने कलेक्टर को साफ तौर पर कह दिया कि मिस्टर कलेक्टर, मैं शहर का प्रथम नागरिक हूं, प्रोटोकॉल के तहत मुझे आगे रहना चाहिए, आप पीछे हो जाइये। कलेक्टर साहब को बात समझ में आई। वे वीर कुमार का मिजाज भी जानते थे, लिहाजा तुरंत पीछे हो गए। अब बात करें मौजूदा मेयर बाकोलिया की। उन्होंने शुरू से अपना मिजाज व रुतबा मेयर के लायक रखा ही नहीं। ऊपर से स्थानीय कांग्रेस संगठन, यहां तक कि अनेक कांग्रेसी पार्षद भी उनके साथ नहीं था, इस कारण अफसरशाही को मनमानी करने की खुली छूट मिल गई। अनेक ऐसे वाकये हो चुके हैं, जिनमें प्रशासन ने साफ तौर पर बाकोलिया के पद की अहमियत को दरकिनार किया है। इसका सबसे बड़ा जीता जागता प्रमाण ये है कि जिस माधव नगर में बाकोलिया का मकान है, उसी कॉलोनी की जमीन का आवंटन निरस्त करने के जब राज्य सरकार के आदेश दिया तो कार्यवाही करने से पहले बाकोलिया को विश्वास में नहीं लिया गया। किसी मेयर की इतनी फजीती इससे ज्यादा क्या हो सकती है। रही सही कसर बाकोलिया ने सियापा करके पूरी कर दी। वे झूठ बोलते हुए कह देते कि मुझे जानकारी है, मेरी जानकारी में ही हुआ है, राज्य सरकार के आदेश हैं, क्या किया जा सकता है, तो उनकी इज्जत बच जाती। मगर वे तो खुद की खुद की बेबसी और उपेक्षा का रोना रोने लगे। इससे यह भी जाहिर हो गया कि न तो बाकोलिया में राजनीति की पूरी समझ है और न ही उनके सलाहकार इतने परिपक्व की ऐसी हालत में उनकी इज्जत बचा लेते। उलटे उन्होंने तो इस सिलसिले में कांग्रेस संगठन के एक गुट की बैठक बुला कर संगठन के दो फाड़ को उजागर कर दिया। पूरे शहर को पता लग गया कि बाकोलिया की पीठ कितनी कमजोर है। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने बाकोलिया को सलाह दी कि आप विरोध में इस्तीफे की पेशकश कर दीजिए, सरकार की अक्ल ठिकाने आ जाएगी, मगर वे हिम्मत नहीं जुटा पाए।
बहरहाल, बाकोलिया की लगातार हो रही किरकिरी से उनके आका सचिन पायलट बेहद दु:खी हैं। बाकोलिया उनकी लॉबी के हैं, इस कारण जाहिर तौर पर उनकी भी किरकिरी तो होती ही है। मगर उनकी मजबूरी ये है कि वे इतना वक्त दे नहीं सकते। आखिर किसी मेयर को अंगुली पकड़ कर तो चलाया नहीं जा सकता। कुछ तो खुद उसको भी चुतराई दिखानी होगी। वैसे भी वे दिल्ली की राजनीति में इतने व्यस्त हैं कि अजमेर को इतना समय दे नहीं सकते। हाल ही जब वे अपने चहेते रलावता को शहर अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो गए हैं, उन्होंने उन सहित अपने कुछ सिपहसालारों को इशारा किया है कि वे बाकोलिया को संभालें। सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार उसी के तहत रलावता ने मीणा से मुलाकात करके मीणा व बाकोलिया के बीच के गिले-शिकवे को दूर करने की कोशिश की है। बहरहाल, देखते हैं कि उनके प्रयास कितने कामयाब होते हैं।