शनिवार, 14 अप्रैल 2012

अखिलेश यादव से कोई बड़ा आश्वासन ले आई हैं सोनम

शहर कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता सोनम किन्नर की पिछले दिनों से कांग्रेस से चल रही बेरुखी आखिर परवान चढ़ गई। पहले उन्होंने मनोनीत पार्षद पद से इस्तीफा दिया और पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया है। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को भेजे इस्तीफे में जो कारण बताया है, वह गले नहीं उतरता। उन्होंने पार्टी की निष्ठा से सेवा करने के बाद भी उपेक्षा होने का आरोप लगाया है, जबकि वस्तुस्थिति ये है कि उन्हें कांग्रेस ने ही उनके कद के मुताबिक मनोनीत पार्षद के पद से नवाजा है। यदि वे इसके बाद भी असंतुष्ट हैं तो इसका मतलब ये है कि उन्हें किसी और बड़े पद की उम्मीद रही होगी। हां, अलबत्ता शहर कांग्रेस कार्यकारिणी में वरिष्ठजन की उपेक्षा का उनका आरोप जरूर सही है।
खैर, असल बात ये बताई जा रही है कि वे कांग्रेस को छोडऩे के लिए उचित मौके की तलाश कर रही थीं। पार्षद पद से इस्तीफा देने के बाद भी जब उनकी कोई पूछ नहीं हुई और किसी ने राजी करने की कोशिश नहीं की तो वे दूसरा रास्ता चुनने की फिराक में थीं। जानकारी के अनुसार इस सिलसिले में अपने किन्हीं संपर्क सूत्रों के जरिए वे पिछले कुछ दिन लखनऊ में भी रहीं। समाजवादी पार्टी के उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ होने पर उन्हें लगा कि वहां कोई बड़ा पर हासिल हो सकता है। बताया जाता है कि उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने का भी सौभाग्य हासिल हो गया। अपनी वाकपटुता के दम पर उन्होंने पर अखिलेश को प्रभावित भी किया और बताया जाता है कि उन्हें उचित मौके पर कोई ढंग का पद देने का आश्वासन दिया गया है। जैसे ही उन्हें कुछ यकीन हुआ, उन्होंने कांग्रेस को छोडऩे की मन बना लिया और जयपुर में समाजवादी पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल कांग्रेस से टा टा बाय बाय कर ली। जन्मजात किन्नर होने के एडवांटेज के साथ अपने बिंदास व्यक्तित्व की वजह से अति महत्वाकांक्षी सोनम छोटे-मोटे पड़ाव पर ठहरने वाली थी भी नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

सरबजीत व खलील पर हो रही है फोकट की राजनीति

खलील चिश्ती के साथ बर्नी व दलजीत कौर
हत्या के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर छूटे पाक वैज्ञानिक डॉ. खलील चिश्ती और पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय सरबजीत को लेकर फोकट की राजनीति हो रही है। खलील की रिहाई के लिए कथित रूप से प्रयासरत पीयूसीएल ने तो खलील की जमानत पर रिहाई को अपनी आधी जीत ही करार दे दिया है, मानों उसके कहने पर ही उन्हें रिहा किया गया हो, जबकि सच्चाई ये कि निर्णय कोर्ट का है और उस पर किसी का जोर नहीं चलता। हालत ये है कि कोर्ट ने उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए अलग से अर्जी दायर करने को कहा है। यानि कि पीयूसीएल जैसे संगठनों के प्रयासों का कोई मतलब ही नहीं है।
कुछ इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकार कमेटी के सदस्य और पाकिस्तान के पूर्व मानव अधिकार मंत्री अंसार अहमद बरनी भी ऐसी ही राजनीति करने अजमेर आ गए। उन्होंने खलील चिश्ती से मुलाकात की। साथ ही पाकिस्तान की जेल में सजा काट रहे भारतीय कैदी सरबजीत की बहन दलजीत कौर और बेटी स्वप्नदीप से भी बातचीत कर उन्हें दिलासा दिया, मानो उनके कहने पर सरबजीत को रिहा कर ही दिया जाएगा। उनके अब तक के प्रयासों का क्या हुआ, कुछ पता नहीं। अगर यह मान भी लिया जाए कि दोनों के देशों के शासनाध्यक्ष नीतिगत निर्णय करते हुए कैदियों की रिहाई कर सकते हैं, मगर वे कितने संवेदनशील हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि न तो अब तक भाई सरबजीत के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रही दलजीत कौर को सफलता मिली है और न ही खलील चिश्ती के मामले में शासन के स्तर पर कोई निर्णय हुआ है। हालत ये है कि केंद्र व राज्य के निवेदन के बावजूद राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल ने डॉक्टर खलील चिश्ती की दया याचिका पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। जाहिर सी बात है कि मामला कहीं न कहीं उलझा हुआ है, वरना केवल हस्ताक्षर ही करने होते तो उसमें देर क्या लगती है। और सबसे बड़ी बात ये है कि दया याचिका पर निर्णय उन्हें करना है, किस आधार पर करना है, ये वे ही जानते हैं, इसमें किसी संगठन या व्यक्ति की अपील को तो कोई मतलब ही नहीं है। बावजूद इसके लिए राजनीति की जा रही है।
एनजीओ की छोडिय़े, पत्रकार तक अपनी लेखनी का हाथ आजमा रहे हैं। भड़ास 4 मीडिया में एक पत्रकार आशीष महर्षि ने जो शब्द चित्र खड़ा किया है, उसका नमूना देखिए-खुदा के वास्ते अब बहुत हुआ। हमें अपने वतन लौट जाने दीजिए। कुछ इसी अंदाज में बीस सालों से हिंदुस्तान की एक कालकोठरी में अपने अंतिम दिन गुजार कर बाहर आए पाकिस्तानी वैज्ञानिक डॉक्टर खलील चिश्ती ने हिंदुस्तान के सियासतदानों से मार्मिक अपील की। लेकिन डॉक्टर खलील को सजा मिलेगी और मिलेगी, क्योंकि वह उस मुल्क से आते हैं, जिसे पाकिस्तान कहा जाता है। बीस साल बाद भले ही डॉक्टर खलील चिश्ती खुली हवा में सांस ले रहे हों लेकिन उन्हें अभी भी सरकार की दया की दरकार है। खलील चिश्ती ने अपनी आजादी के लिए न्यायपालिका से लेकर राजस्थान के राज्यपाल और देश के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक से खुद के लिए दया मांग चुके हैं। न्यायपालिका का दिल पसीजा लेकिन थोड़ा सा। सुप्रीम कोर्ट ने मानवता के आधार पर बीस सालों से जेल में सड़ रहे डॉ. खलील को जमानत दे दी। लेकिन अजमेर ना छोडऩे की सशर्त के साथ। लेकिन आज तक राजस्थान के राज्यपाल का दिल नहीं पसीजा। फिल्मकार महेश भट्ट सरकार से सवाल पूछते हुए कहते हैं कि क्या भारत एक जीवित खलील चिश्ती को भेजेगा या उनके पार्थिव शरीर को, जब भी उनका इंतकाल हो? भट्ट कहते हैं कि भारत गौतम, महावरी, सूफी-संतों, गांधी का देश है। इसलिए डॉ. खलील चिश्ती को क्षमा करने में संकोच नहीं करना चाहिए। खलील साहब की कहानी को यदि फाइलों में पढ़ेंगे तो इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि हिंदुस्तान में एक पाकिस्तानी होने का क्या मतलब है। आपसी लड़ाई में खलील चिश्ती के हाथों मर्डर हो जाता है। बरसों या कहें कि पूरे 19 साल तक केस चलता और फिर जाकर अजमेर कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
इस पर किन्हीं प्रशांत ने टिप्पणी की है, वह भी देख लीजिए-बिल्कुल संत चिश्ती को ससम्मान रिहा किया जाना चाहिये। बेचारे ने किया ही क्या था। एक आदमी को मारा था। धोखे से मर्डर हो गया था, मारना थोड़े ही चाहते थे। अल्लाह मियां को उस व्यक्ति पर रहम आ गया और अपने पास बुला लिया। और भट्ट साहब, बहुत सारे कैदी पूरे देश में बन्द हैं. बेचारे, हत्या, लूट, बलात्कार, चोरी-डकैती इत्यादि के आरोपों में, कोशिश कीजिये वे भी छूट जायें। अब हेडली कहता है तो कहता रहे कि वह एक और भट्ट साहब को जानता है। बताइये संतो-पीरों के देश में कितने सारे लोगों को बन्द कर रखा है। सरबजीत के बारे में लिखने पर टीआरपी टाइप की चीज नहीं मिलती।
उससे भी ज्यादा दिलचस्प टिप्पणी की है, किन्हीं एबीसीडीईएफ अर्थात गुमनाम ने-
Please check facts before you write such sweeping statements and put the country's integrity at stake. Dr Chishty has not been in jail for 20 years. He was arrested in 1992. Very soon he was out on bail.
His passport was impounded --- as it was a murder case (this has nothing to do with being a pakistani). While the trial went on for 19 years he was living with his brother's family. He was convicted in March 2011, and then arrested and sent to jail.
Here step in India's pro-pakistan NGOs and Mahesh Bhatt. Project the case with false facts -- 20 saal se jail mein band --- (bullshit).
You write that his family is happy -- there is just one question -- where was his daughter and wife before the NGOs who wanted to get the award for upholders of human rights raised the issue. Kindly check out how many times they visited him, how many times they came to India/Ajmer? You will not be happy with the answers...
है न दमदार दलीलें। कुल मिला कर ये सब शब्दों की जुगाली मात्र लगता है। और ये विषय रुचिकर इस कारण है, क्योंकि भारत-पाकिस्तान से जुड़ा है, जो कि एक दूसरे के दुश्मन हैं। अजी इसी दुश्मनी के नाम पर कई कविगण वर्षों से अपनी वीररस की लेखनी के जरिए बच्चों का पेट पाल रहे हैं। ऐसे में अगर एनजीओ, महेश भट्ट और पत्रकार बंधु सदाशयता से कुछ कर रहे हैं तो उन्हें भी करने दीजिए।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com