बुधवार, 13 नवंबर 2013

भंवर सिंह पलाड़ा ने दिखाई अपनी दमदारी

युवा भाजपा नेता व अजमेर जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति भंवर सिंह पलाड़ा ने एक बार फिर दिखा दिया है कि राजनीति में दमदारी किसे कहते हैं। माना जा रहा था कि उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने विधानसभा चुनाव का टिकट देने से साफ इंकार कर दिया था, लेकिन आखिरी वक्त में समाज को एकजुट करके जिस तरह से श्रीमती पलाड़ा के लिए मसूदा का टिकट लेकर आ गए, उससे यह साबित हो गया है कि वे कितने प्रभावशाली हैं। आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनाव में अधिसंख्य भाजपा नेताओं के असहमत होने के बाद भी वे हाईकमान से पुष्कर का टिकट लेकर आ गए थे, यह बात दीगर है कि वे बागी के खड़े होने के कारण हार गए। इस बार फिर जिस तरह से ऐन वक्त पर अपनी पत्नी के लिए टिकट ले कर आए हैं, उन्होंने साबित कर दिया है कि वे राजनीति अपनी शर्तों पर कर रहे हैं। जिला परिषद का बिंदास अंदाज में संचालन इसका जीता जागता उदाहरण है। असल में वे जिले में अपनी किस्म के इकलौते नेता हैं। रुतबे के साथ टिकट ला कर उन्होंने एक दमदार राजपूत नेता का खिताब हासिल कर लिया है। अब देखना ये है कि वे अपनी पत्नी को भी इसी दमदार तरीके से जितवा कर ला पाते हैं या नहीं, क्योंकि मसूदा का चुनावी समीकरण काफी उलझा हुआ है।
-तेजवानी गिरधर

ज्ञान के मैदान में न आने से देवनानी ने ली राहत की सांस

मूलत: भाजपा-संघ विचारधारा के निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत के अजमेर उत्तर विधानसभा चुनाव में न उतरने से भाजपा प्रत्याशी प्रो. वासुदेव देवनानी ने राहत की सांस ली है। ज्ञातव्य है कि सारस्वत के बारे में काफी समय से यह धारणा थी कि जैसे ही भाजपा देवनानी को टिकट देगी, वे उन्हें हराने के लिए निर्दलीय रूप में मैदान में आ डटेंगे। कुछ दिन पहले तो उन्होंने वाट्स एप पर बाकायदा बतौर निर्दलीय प्रत्याशी वोट की अपील भी शुरू कर दी थी। उनका अपने वार्ड सहित सटे दो वार्डों में खासा प्रभाव होने के कारण माना जा रहा था कि वे देवनानी को तगड़ा झटका देंगे। कयास ये भी था कि देवनानी विरोधी और वैश्यवाद के पोषक भी उन्हें अंदरूनी समर्थन देंगे, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है। नामांकन भरने की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक यह अंदाजा था कि वे मैदान में आएंगे ही, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब लोग कयास लगा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि ज्ञान ने मैदान में उतरना मुनासिब नहीं समझा। कदाचित ज्ञान को यह लगा हो कि उनके उतरने से देवनानी तो हार जाएंगे, मगर उन्हें क्या हासिल होगा। अब कम से कम सरकार बनने पर भाजपा उन्हें इनाम के तौर पर कुछ दे सकती है। खैर, जाहिर तौर पर इससे देवनानी को बड़ी भारी राहत मिली है। राहत तो उन्हें नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत के मैदान में न उतरने से भी मिली है, जिनके बारे में यह लगभग पक्का था कि वे भी बागी हो सकते हैं। उन्होंने भी आखिरी वक्त में पैंतरा बदला।
-तेजवानी गिरधर

एक परचे ने बिगाड़ा अजमेर का राजनीतिक मिजाज

अजमेर उत्तर के कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के समर्थन में और समाज विशेष के खिलाफ किसी शरारती व्यक्ति की ओर से जारी किए गए एक परचे ने अजमेर शहर का राजनीतिक मिजाज बिगाड़ दिया। हालांकि स्वाभाविक रूप से यह परचा डॉ. बाहेती की ओर से जारी किया हुआ प्रतीत नहीं होता क्योंकि कोई भी प्रत्याशी ऐन चुनाव के मौके पर एक समाज विशेष को निशाना बना कर उसकी नाराजगी मोल लेने की गलती नहीं करेगा, मगर परचे की भाषा इतनी खतरनाक है कि उससे शहर में एक बार फिर जातिवाद का जहर फैलने की खतरा उत्पन्न हो गया है। जिला निर्वाचन अधिकारी ने भी इसे गंभीरता से लिया और जगह-जगह चिपकाए गए परचे को हटवाया है।
सिंधी-गैरसिंधीवाद में उलझी अजमेर की राजनीति के चलते किसी शरारती तत्व की ओर से जारी किए गए इस परचे में सिंधी समुदाय को निशाना बनाते हुए डॉ. बाहेती को जिताने की अपील की गई है। परचे का मामला कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर में कुछ प्रमुख स्थानों पर चिपकाए गए इस परचे की फोटो खींच कर कुछ लोगों ने इसे वाट्स एप पर चला दिया, जिस पर बेहूदा और आपत्तिजनक टिप्पणिया शुरू हो गईं। जाहिर तौर पर इससे पूरे सिंधी समुदाय में रोष व्याप्त हो गया। साथ ही डॉ. बाहेती भी भौंचक्के रह गए। यह रोष चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है, इसको भांपते हुए डॉ. बाहेती ने तुरंत कांग्रेस से जुड़े कुछ नेताओं को बुलवा लिया और बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भड़काऊ परचे की निंदा की। एक तीर से दो शिकार वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए डॉ. बाहेती ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए यह भी प्रदर्शित करने की कोशिश भी की कि सिंधी समुदाय उनके साथ है। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि इसका कितना असर पड़ पाएगा।
बेशक कॉन्फ्रेंस में कुछ सिंधी नेताओं को साथ रखने से मामला कुछ डाइल्यूट हुआ है, मगर परचे की वजह से सिंधी समुदाय में किस कदर गुस्सा है, जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है। यह परचा एक ओर जहां सिंधी समुदाय को उद्वेलित किए हुए है, वहीं वैश्य समुदाय में भी प्रतिक्रिया होने की आशंका है। सबसे बड़ी बात ये है कि इससे जहां डॉ. बाहेती की पेशानी पर परेशानी की लकीरें उभर आई हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी प्रो. वासुदेव देवनानी को भी डर सता रहा होगा कि कहीं एक बार फिर सिंधी-वैश्य का विवाद न उठ खड़ा हो जाए। ज्ञातव्य है कि पिछले चुनाव में यह विवाद काफी मुखर था, मगर इस बार दोनो ही समुदायों ने संयम बरत रखा है। मगर इस परचे के जरिए ठंडी हुई आग को फिर से सुलगाने की कुटिल चाल चली गई है। संयोग से पिछली बार की तरह इस बार भी डॉ. बाहेती व देवनानी आमने-सामने हैं, इस कारण प्रशासन को और अधिक सतर्क होना पड़ेगा। एक खतरा ये भी है कि कहीं विवाद अजमेर दक्षिण तक न पहुंच जाए, जहां बड़ी तादात में सिंधी मतदाता हैं।
परचा जारी करने की करतूत किसकी है, ये तो पुलिस जांच में ही सामने आ पाएगा, मगर डॉ. बाहेती ने अपनी ओर एहतियात बरतते हुए कोतवाली थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई कि शहर में कई जगह उनके नाम से भ्रामक पोस्टर चिपकाए गए हैं। उससे उनकी छवि और उनके चुनावी माहौल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने शक जताया कि विरोधी प्रत्याशी के कार्यकर्ताओं की यह साजिश है। बाहेती ने कहा है कि यह कांग्रेस पार्टी व उनके खिलाफ साजिश है। पर्चे के माध्यम से जातीय विद्वेष फैलाने का प्रयास किया गया है, जो निंदनीय है।