सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

कब थमेगा पुलिस वालों के पिटने का सिलसिला

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में खादिमों के हाथों पुलिस वालों के पिटने का तो मानो दस्तूर सा हो चला है। मेले के दौरान भारी भीड़ की वजह से होने वाली धक्का-मुक्की की वजह से पुलिस वालों के थोड़ा सा सख्त होते ही पिटने की नौबत तो कई बार आ चुकी है, लेकिन अब आम दिनों में भी पिटने की वारदातें होने लगी हैं। रविवार को पुलिस वाले के पिटने की एक और वारदात हो गई। हर बार की तरह इस बार भी पुलिस को नरम रुख रखते हुए समझौते की राह पकडऩी पड़ी। यह भी एक दस्तूर ही है कि पुलिस अफसर हर बार समझौता करते हैं और चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं।
सवाल ये उठता है कि पुलिस वाले आखिर पिटते क्यों है? इसका सिर्फ एक ही जवाब हो सकता है। असल में दरगाह परिसर में खादिमों का ही वर्चस्व है, इस कारण जैसे ही कोई पुलिस वाला अपना बाहर वाला मिजाज दिखाने की कोशिश करता है, पिट जाता है। ऐसे में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि पुलिस वाला गलती पर था या नहीं। उसने बदममीजी की या नहीं। लेकिन इतना तय है कि कानून के रखवालों को ही कानून ताक पर रख कर पीटना बेशक गैर कानूनी और नाजायज है। अगर कोई पुलिस वाला गड़बड़ करता है तो उसकी शिकायत की जा सकती है। कम से कम पुलिस महकमे में तो ऐसी शिकायत पर तुरंत कार्यवाही होती है। उस पर सीधे हाथ छोडऩा तो कत्तई सही नहीं ठहराया जा सकता।
पुलिस के अफसरों के लिए सुकून की बात ये हो सकती है कि उनके मातहत पिटने के बाद भी उनके दबाव में समझौते को मजबूर हो जाते हैं और पिटने वालों के लिए अफसोसनाक बात ये है कि हर बार उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ कर चुप रहने की हिदायत दे दी जाती है। माना कि पुलिस के अफसर विवाद को शांत करने के लिए अपने मातहतों को दबाते हैं, लेकिन आखिर कभी तो इसका अंत होना चाहिए। रविवार को भी जब एक पुलिस वाला खादिमों के हाथों पिटा तो आखिर में समझौता हो गया। दरगाह थाना एसएचओ हनुवंत सिंह ने बड़ी बेशर्मी से कह दिया कि दोनों खादिमों ने माफी मांग ली है और दोबारा गलती करने पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। सवाल ये उठता है कि अगर यही पुलिस वाला दरगाह के बाहर पिटता तो क्या पीटने वाले को माफी मांगने पर छोड़ दिया जाता? क्या उसकी थाने पर ला कर धुनाई नहीं की जाती? क्या उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया जाता? हनुवंत सिंह के इस बयान पर गौर कीजिए-दोबारा ऐसी गलती करने पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? एक तो ये कि पिटने के बाद भी पुलिस अपनी टांग ऊपर रखने के लिए ऐसी सख्ती की बात कर रही है। दूसरा ये कि क्या यह चेतावनी केवल उन्हीं दोनों खादिमों के लिए है, जिन्होंने पुलिस वाले का पीटा या फिर और खादिमों के लिए भी है। यदि उनका इशारा उन्हीं दोनों खादिमों की ओर है तो अगली बार वे नहीं कोई और खादिम पिटाई करेंगे व माफी मांग कर छूट जाएंगे। और अगली से अगली बार कोई और खादिम पिटाई करेंगे। ये सिलसिला कहीं नहीं थमने वाला है। और अगर वे इस प्रकार की घटना दुबारा दरगाह के अंदर न होने के सिलसिले में कह रहे हैं तो ऐसी घुड़कियां पहले भी पुलिस के अफसर देते रहे हैं और फिर भी पुलिस वाले लगातार पिटते ही रहे हैं। खैर, पीटने वाला जाने, पिटने वाला जाने और समझौता करवाने वाला अफसर जाने, अपुन को केवल इतना ही समझ में आता है कि ऐसी वारदातों से पुलिस वाले डिमोरलाइज होते हैं और खादिमों के हौसले बुलंद होते हैं।
मंत्री महोदय पीटने की कब कह गए थे?
रविवार को केन्द्रीय रोडवेज बस स्टैंड परिसर में एक टैक्सी के घुसने पर रोडवेज कर्मियों ने टैक्सी चालक की पिटाई कर दी। जाहिर तौर पर पिटाई होने पर टैक्सी चालक के हिमायती बन कर अन्य टैक्सी चालक पुलिस थाने पहुंच गए और पीटने वाले रोडवेज कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करने लगे। इस पर रोडवेज के अधिकारी भी अपने कर्मचारियों के बचाव में खड़े हो गए। वे भी पुलिस थाने पहुंच गए। उनका तर्क था कि टैक्सी चालकों के रोडवेज बस स्टैंड परिसर में घुसना गैर कानूनी है। उन्होंने इस सिलसिले में हाल ही यातायात मंत्री बृजकिशोर शर्मा द्वारा दिए गए निर्देशों का हवाला भी दिया कि निजी वाहन चालकों के रोडवेज की सवारियां ले जाने के खिलाफ सख्ती बरती जाए।
हालांकि यह पूरी तरह से सही है कि ऐसे टैक्सी चालकों के खिलाफ मंत्री महोदय के कहे अनुसार कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए, लेकिन ताजा घटनाक्रम से सवाल ये उठता है कि क्या मंत्री महोदय ये कह कर गए थे कि जैसे ही कोई टैक्सी वाला रोडवेज परिसर के अंदर या बाहर नजर आए तो रोडवेज कर्मचारी उसकी धुनाई शुरू कर दें? क्या रोडवेज अधिकारियों के कहने पर ही रोडवेज कर्मियों ने टैक्सी चालक की पिटाई की? क्या ऐसा करने की उन्होंने ही छूट दे रखी है? माना कि रोडवेज कर्मियों को गुस्सा आ गया और उन्होंने कानून हाथ में ले भी लिया तो, क्या उसे रोडवेज के अधिकारी मंत्री महोदय के निर्देशों का हवाला दे कर जायज ठहरा रहे हैं? क्या ऐसा करके वे रोडवेज कर्मियों को ऐसी और हरकतें करने के लिए उकसा नहीं रहे हैं?
होना तो यह चाहिए कि टैक्सी चालक खिलाफ तो रोडवेज परिसर में घुसने के मामले में कार्यवाही की जाए, साथ ही कानून हाथ में लेकर पिटाई करने वाले रोडवेज कर्मियों के खिलाफ भी मारपीट का मुकदमा दर्ज किया जाए। तभी वास्तविक न्याय हो पाएगा। वैसे लगता यही है कि रोडवेज अधिकारी यातायात पुलिस व परिवहन विभाग को घेर कर अपने कर्मचारियों की हरकत तो छुपाने की कोशिश करेंगे।