सोमवार, 24 जून 2013

चतुर्वेदी ने देशभर में किया अजमेर का नाम रोशन

अजमेर के जाने-माने साहित्यकार व पत्रकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी को राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के तत्वावधान में आयोजित मीरा पुरस्कार समारोह, 2013 में हिन्दी गजलों को देशभर में लोकप्रिय बनाने के लिए विशिष्ट साहित्यकार सम्मान प्रदान किया गया है। उदयपुर में अकादमी अध्यक्ष वेद व्यास की अध्यक्षता और केंद्रीय साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं लेखक प्रभाकर स्तोत्री व बाल कवि बैरागी के विशिष्ट आतिथ्य में उन्हें 51 हजार रुपए का चैक भी दिया गया।
ज्ञातव्य है कि चतुर्वेदी देश के ऐसे गजलकार हैं, जिन्होंने उर्दू की तर्ज पर हिंदी की गजलों की रचना का विशिष्ट काम किया है। उनकी अब तक 25 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और वे पांच फिल्मों से भी जुड़े रहे हैं।
आइये, जरा उनके जीवन में बारे में जानें:-
साहित्यकार, सूफी शायर, फिल्म लेखक और व्यंग्यकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी पूरे देश में एक जाना-पहचाना नाम है। उनका जन्म 16 मई, 1955 को श्री माणकचंद चतुर्वेदी के घर हुआ। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी व मनोविज्ञान में एम.ए. की है। पेशे से वे शिक्षा विभाग में लाइब्रेरियन रहे हैं, लेकिन वे प्रारंभ से ही रचनाधर्मिता की ऊर्जा से लबरेज रहे हैं। उनकी रचनाएं देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन और दूरदर्शन व अन्य टीवी चैनलों पर प्रसारण होता है। वे अनेक मुशायरों व कवि सम्मेलनों में हिस्सा ले चुके हैं, जहां अपनी अलग ही पहचान बनाए रखते हैं। उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा शवयात्रा स्वीकृतियों की-कविता, दर्द-बे-अंदाज-गजल, पीठ पर टंगा सूरज-उपन्यास, कैक्टस के फूल-कविता, वक्त के खिलाफ-गजल, कभी नहीं सूखता सागर-वेद मंत्रों का काव्य अनुवाद, मैं से तुम तक-कविता संग्रह, पुलिस और मानव व्यवहार-मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, अंदाजे-बयां और-गजल संग्रह, आसमां मेरा भी था-गजल संग्रह, अंजाम खुदा जाने-गजल संग्रह, कोई अहसास बच्चे की तरह-गजल संग्रह, कोई कच्चा मकान हूं जैसे-गजल संग्रह, एज इफ ए मड हाउस आई एम-अंग्रेजी में गजलें। उन्होंने अनेक फिल्मों की कहानियां भी लिखी हैं, यथा अनवर, लाहौर, तेरा क्या होगा जॉनी। हर बात में व्यंग्य और हास्य तलाशने में माहिर चतुर्वेदी अपने भीतर दर्द का कितना बड़ा समंदर लिए घूमते हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक पुस्तक में उन्होंने अपने परिचय में लिखा है- पुरस्कार-एक भी नहीं, अपमान-कदम-कदम पर।
उनका संपर्क सूत्र:-
गजल, कुंदन नगर, अजमेर मोबाइल : 98292-71388
Web : surendrachaturvediajmer.webs.com
E-mail : ghazal1681@yahoo.co.in

अजमेर उत्तर में अचानक पैदा हो गए कई दावेदार

अजमेर उत्तर की प्रतिष्ठापूर्ण सीट, जहां पर कि प्रमुख दावेदारों यथा नरेन शहाणी भगत, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, महेन्द्र सिंह रलावता सरीखों में से किसे टिकट मिलेगा, इसका कोई अता-पता नहीं है, वहां यकायक ऐसे दावेदार पैदा हो गए, जिनके बारे में न तो आज तक सुना गया था और न ही उनको टिकट मिलने का कोई आधार नजर आता है। ऐसे दावेदार भले ही अपने आपको बहुत बड़ा दावेदार महसूस करते हों, मगर आम जनता में यही चर्चा है कि वे केवल अपना नाम चलाने मात्र के लिए दावेदारी कर रहे हैं। दावेदारों की सूची देख कर आप खुद ही अनुमान लगा लेंगे कि वे कौन-कौन हैं।
खैर, बात करें मुद्दे की। हालांकि न्यास सदर नरेन शहाणी के खिलाफ एसीबी की ओर से एफआईआर दर्ज होने के बाद वे कुछ संकट में नजर आते हैं और पता नहीं कब उन पर इस्तीफे का दबाव आ जाए, मगर उन्होंने अपना दावा नहीं छोड़ा है। उधर शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता एक ओर तो अजमेर की दोनों सीटों का जिम्मा अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को देने का प्रस्ताव पारित करवाते हैं तो दूसरी ओर उनके समर्थक उनको ही टिकट देने की पैरवी कर आते हैं।  जाहिर सी बात है कि पायलट को सिर माथे बैठना उनकी मजबूरी है, जिन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसजन के माथे उनको बैठा रखा है। बात अगर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की करें तो हालांकि वे पिछली बार हार का मुंह देख चुके हैं, मगर दावा करने से नहीं चूके। वजह ये कि पिछली बार वे मात्र 688 मतों के अंतर से हारे थे, जो कि कुछ खास नहीं है। पीछा अभी शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ.सुरेश गर्ग ने भी नहीं छोड़ा है। उन्होंने पिछले चुनाव में तो टिकट नहीं मिलने निर्दलीय रूप में परचा तक भर दिया था और मान-मनौव्वल के बाद मैदान से हटे थे। उन्होंने तो अपनी जीत का समीकरण भी पर्यवेक्षक को बता दिया। वह पर्यवेक्षक को वह समझ में आया या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। शहर कांग्रेस महामंत्री सुकेश कांकरिया ने यह तर्क दे कर टिकट मांगा कि माणक चंद सोगानी के बाद जैन समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। टिकट के लिए छात्र नेता सुनील लारा ने तो शक्ति प्रदर्शन भी किया। इसी प्रकार महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती ने यह कह कर टिकट मांगा कि पहली बार कोई खादिम टिकट मांग रहा है, मानो जीत के आधार के कोई मायने ही नहीं हैं, समुदायों को रोटेशन के आधार पर टिकट दिया जाना चाहिए। बात करें अगर अजमेर बार एसोसिशन के अध्यक्ष राजेश टंडन की तो उन्होंने भी बिना किसी जातीय समीकरण के अपनी आदत के मुताबिक इस बार फिर टिकट मांग लिया, कदाचित यह सोच कर कि सिंधी-पंजाबी भाई-भाई होते हैं। पीछे पूर्व पार्षद हरीश मोतियानी भी नहीं रहे, जो कि पूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के जमाने से दावेदार माने जाते हैं। पूर्व पार्षद रमेश सेनानी का दावा फिलहाल तो सामने नहीं आया है, जो कि काफी पुराने दावेदार रहे हैं। माली समाज के दम पर महेन्द्र तंवर और महेश चौहान भी दावेदारी के मैदान में आ खड़े हुए। राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. लाल थदानी का दावा इस बार कुछ और मजबूत हुआ नजर आता है कि भगत इन दिनों थोड़ी परेशानी में हैं। सिंधी समाज से नवगठित सिंधु सेना के संस्थापक नरेश राघानी हालांकि रीढ़ की हड्डी में दर्द की वजह से घर के बाहर नहीं निकले, मगर समझा जाता है कि वे बंकर में से बाद में निकल कर आएंगे। शहर महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शबा खान ने पिछले दिनों की सक्रियता को बरकरार रखते हुए टिकट मांग लिया है। जब दावे फोकट में ही मांगे जा रहे हों तो सोनल मौर्य, जितेंद्र खेतावत, नरेंद्र सिंह शेखावत, रुस्तम चीता, सैयद अहसान यासीर चिश्ती आदि भी पीछे क्यों रहते? एक नाम और चर्चा में है, पार्षद रश्मि हिंगोरानी का, जो सिंधी और महिला होने के नाते टिकट की दावेदार हैं, मगर वे भी खुल कर सामने नहीं आईं। कुल कर अजमेर उत्तर में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। देखना ये है कि किस्मत किसकी बुलंद साबित होती है।
-तेजवानी गिरधर