शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

यानि रमा का नाम चार दावेदारों की रणनीति का हिस्सा था

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से जैसे ही अचानक अपेक्षा से पहले रामनारायण गुर्जर का नाम घोषित हुआ है, उससे यह साफ हो गया है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की माताश्री रमा पायलट का नाम कैसे उभर कर आया। अपुन को पहले ही आशंका थी कि पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर के साथ तीन और दावेदार हरिसिंह गुर्जर, सौरभ बजाड़ और पार्षद नौरत गुर्जर आए हैं तो या तो ये ऊपर से इशारा है या फिर यह भी एक रणनीति है। रामनारायण गुर्जर का नाम घोषित होने से तो साफ ही हो गया कि रमा का नाम इन चारों दावेदारों की उपज था। वो इसलिए कि  महेन्द्र सिंह गुर्जर को पता लग गया था कि टिकट रामनारायण गुर्जर को मिलने जा रहा है, इस कारण अपने साथ तीन और दावेदारों को जोड़ कर दबाव बनाने की कोशिश की। वे जानते थे कि अन्य तीन को टिकट मिलना नहीं है, क्योंकि उनका कद इतना बड़ा नहीं है, मगर ऐसा करने से प्रदेश आलाकमान दबाव में आ जाएगा। अगर उनको टिकट नहीं भी मिलता है तो कम से कम रामनारायण गुर्जर को नहीं मिले, इस कारण खुद की रमा पायलट का नाम भी सुझा दिया। उनको लगता था कि सचिन अपनी मां के नाम पर तुरंत सहमत हो जाएंगे, मगर सचिन किसी चक्कर में नहीं आए।
ज्ञातव्य है कि रमा पायलट वाली मांग के मामले में रामनारायण गुर्जर व स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के दत्तक पुत्र सुनील गुर्जर शांत थे। इसी से ऐसा प्रतीत हुआ कि कहीं न कहीं कुछ पेच है।
खैर, अब जबकि नाम घोषित हो गया है तो यह सोचने का विषय होगा कि क्या महेन्द्र सिंह गुर्जर सहित चारों दावेदार उनका पूरा समर्थन करेंगे। आशंका इस कारण उत्पन्न होती है क्योंकि उन्होंने ही एक गुट बना कर दबाव कायम करने की कोशिश की थी।
एक बात और, बेशक कांग्रेस के पास मौजूदा विकल्पों में से रामनारायण गुर्जर ही बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि वे बाबा के परिवार से हैं, बुजुर्ग हैं, मगर रमा पायलट से बेहतर नहीं। इसकी वजह ये है कि कांग्रेस यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बनाने पर ही जीतने की स्थिति में आ सकती है। रामनारायण गुर्जर के मामले में शायद ऐसा न हो। सब दावेदारों को एकजुट करना कुछ कठिन हो सकता है, जबकि रमा के आने पर सचिन के कारण खुद ब खुद दावेदार एक हो जाते। अगर रमा मैदान में उतरतीं तो कांग्रेस शर्तिया टक्कर लेने की स्थिति में होती। फिर भी रामनारायण गुर्जर को कमजोर नहीं माना जा सकता।  वे गुर्जरों को इस नाते एक जुट करने में कामयाब हो सकते हैं कि बाबा की विरासत को फिर से उनके परिवार में लाना है।
-तेजवानी गिरधर