गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

यानि कि एलीवेटेड रोड तो गया खड्डे में

एलीवेटेड रोड का काल्पनिक चित्र

अजमेर की प्रभारी मंत्री श्रीमती बीना काक ने जिस सख्ती से दो टूक शब्दों में प्रशासन को चेताया है कि वह एलीवेटेड बनाने के चक्कर में किसी भी सूरत में अजमेर के ऐतिहासिक भवनों की खूबसूरती को नष्ट नहीं होने दे, लगता है कि अजमेर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण मांग खड्डे में चली जाएगी।
एक ओर उन्होंने कहा कि शहर की यातायात व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन व बुद्धिजीवियों की है तो दूसरी ओर जिस शहर में उनको रहना नहीं है, उसके बारे में प्रशासन को चेता कर एलीवेटेड रोड के सपने की भ्रूण हत्या करने पर तुली हुई हैं। तर्क उनका ये है कि अगर रेलवे स्टेशन के आगे से होते हुए एलीवेटेड रोड बनाया जाता है तो अजमेर की खूबसूरती नष्ट होगी, मगर धरातल का सच ये है कि यही रेलवे स्टेशन आज यातायात व्यवस्था की दृष्टि से कोढ़ में खाज पैदा कर रहा है।
 उन्होंने सुझाव दिया है कि यातायात व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाना चाहिए, जो कि आपसी तालमेल के साथ अच्छे निर्णय ले सके, मगर सवाल ये है कि आखिर कब इस प्रकार की कमेटियां गठित करते रहेंगे और संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित कमेटी की सिफारिशों व निर्णयों पर कौन सा ठीक से अमल हो पाया है। यानि कि कमेटी दर कमेटी गठित करते जाओ और अजमेर की जनता को बेवकूफ बनाते रहो।
यह बेहद अफसोसनाक बात है कि एक ओर जनता की मांग पर सरकार ने पुराने आरपीएससी भवन से मार्टिंडल ब्रिज तक एलीवेटेड रोड की संभावना को तलाशने के लिए नगर सुधार न्यास से कंसल्टेंट नियुक्त करने को कहा है तो दूसरी ओर बीना काक ने बिना मांगे खुद ही कंसल्टेंसी दे दी है। सवाल ये है कि जब मंत्री महोदया ने ही निर्णय सुना दिया है तो फिर न्यास को कंसल्टेंट नियुक्त करने की कवायद करने की जरूरत क्या है? हां, अगर कंसल्टेंट सर्वे करने के बाद नेगेटिव रिपोर्ट देता तो बात समझ में आती, मगर श्रीमती काक ने प्रभारी मंत्री होने के नाते अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर जो हिदायत दी है, वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। जाहिर सी बात है कि यदि प्रभारी मंत्री ही एलीवेटेड रोड के खिलाफ हैं तो कंसल्टेंट पर भी उसका दबाव रहेगा ही।
श्रीमती बीना काक

आपको याद होगा कि एलीवेटेड रोड की जरूरत पिछले काफी समय से महसूस की जाती रही है। पिछले दो साल से तो इस मांग ने काफी जोर भी पकड़ लिया था। विभिन्न समाचार पत्रों के समय-समय पर इस मुद्दे को उठाने के साथ जनजागरण व सरकार पर दबाव के लिए दैनिक नवज्योति ने तो बाकायदा अभियान ही छेड़ दिया था। अजमेर उत्तर ब्लाक-बी कांग्रेस कमेटी के सचिव व जागरूक युवा लेखक व ब्लॉगर साकेत गर्ग ने तो इस अभियान को बल प्रदान करने के लिए फेसबुक पर एलीवेटेड रोड फोर अजमेर नामक पेज तक बनाया और उससे अनेक अजमेर वासियों को जोड़ा। अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर दो वर्ष पहले प्रकाशित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस के विजन अजमेर पार्ट में तो एलीवेटेड रोड का काल्पनिक चित्र तक प्रकाशित किया। अजमेर की बहबूदी के लिए काम कर रहे अजमेर फोरम ने भी इसके लिए गंभीर प्रयास किए हैं।
आखिरकार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का इस अहम जरूरत पर ध्यान गया तो उनके निर्देश पर ही नगरीय विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव जी.एस. संधु ने दौरा कर न्यास अधिकारियों को रोड बनाने की संभावना तलाशने के निर्देश दिए। वर्षों से यातायात की विकट समस्या से जूझते अजमेर के लिए यह एक सुखद खबर थी। आशा की किरण नजर आने पर इसी कॉलम में अपुन ने जिक्र किया था कि अब जरूरत है नगर सुधार अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत सहित सभी राजनेताओं, सामाजिक संगठनों, पूरे प्रशासनिक अमले व मीडिया इसके लिए पूरा दबाव बनाए। साथ ही अजमेर वासी इसमें किसी प्रकार का रोड़ा न अटकाएं। तभी यह महत्वाकांक्षी योजना जल्द से जल्द पूरी हो सकती है। मगर बीना काक की मंशा से तो दिखता है कि एलीवेटेड रोड की प्रस्तावित योजना तो गई खड्डे में।
-तेजवानी गिरधर