मंगलवार, 4 जनवरी 2011

यादव सीएमओ में, हासानी की बल्ले-बल्ले

अजमेर के जिला कलेक्टर राजेश यादव को सीएमओ में लगाने के राजनीतिक हलकों में जो भी अर्थ लगाए जा रहे हों, मगर इससे कांग्रेस के उन नेताओं के सीने पर सांप लौटने लगे हैं, जिनको यादव ने कभी नहीं गांठा। वे कई बार इसकी शिकायत मौखिक रूप से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करते रहे, मगर यादव का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस कारण कई कांग्रेसी इसी का इंतजार करते रहे कि कब यादव साहब यहां से रुखसत होंगे। वैसे भी आईएएस का बाल इतना कडक़ होता है कि उसे बांका किया ही नहीं जा सकता। एक अर्थ में देखा जाए तो यादव ने यहां राजा बन कर ही काम किया। अर्थ तो इसके भी लगाए जा रहे हैं कि सीएमओ में पहले से दो आईएएस होने के बावजूद यादव सहित दो और युवा आईएएस को क्यों लगाया गया है।
खैर, जहां तक यादव का सवाल है, शिकायतों के कारण बाल बांका होना तो दूर, उलटे यादव का कद और बढ़ गया है। यादव का कद तो बढ़ा सो बढ़ा, राजनीतिक हलकों में माया मंदिर वाले दीपक हासानी की भी अहमियत बढ़ गई। जैसे ही यह खबर आई कि यादव साहब सीएमओ में लगाए गए हैं, हासानी को भी बधाइयां मिलने लगीं। असल में हासानी की यादव से गहरी दोस्ती है। बताया जा रहा है कि जब से वे यूआईटी में अध्यक्ष पद के लिए हाथ मार रहे हैं, यादव भी उनकी मदद कर रहे हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि प्रशासन से जो रिपोर्ट गई है, उसमें हासानी को इस पद के लिए सर्वाधिक अनुकूल माना गया है। एक तो वे संपन्न हैं, इस कारण पद पर बैठते ही खाने के लिए नहीं टूट पड़ेंगे, और दूसरा ये कि इससे कांग्रेस से खफा सिंधी समाज भी राजी हो जाएगा। अब जबकि यादव खुद ही सीएमओ में पहुंच गए हैं तो यूं समझो कि हासानी की बल्ले-बल्ले हो गई है। जाहिर तौर पर हासानी के लिए अब और बेहतर तरीके से लॉबिंग होगी। अकेले यूआईटी सदर के लिए क्यों और कई मामलों में भी हासानी के लिए यादव का सीएमओ में पहुंचना काफी महत्वपूर्ण है। सबको पता है कि हासानी की अफसरों में खासी उठ-बैठ है। यादव के सीएमओ में होने पर यह और भी बढ़ जाएगी।

चलो दाग तो मिट गया धर्मेश जैन का

दस करोड़ रुपए दे कर नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनने व उसकी भरपाई करने की बात कहने के आरोप का कड़वा घूंट पी कर पद छोडऩे को भले ही धर्मेश जैन मजबूर हुए हों, मगर आखिरकार उन पर लगा दाग सीआईडी की रिपोर्ट से धुल हो गया है। हालांकि उन्हें इसका आज तक बड़ा मलाल है कि वे किसी षड्यंत्र का शिकार हुए और अपनी ही पार्टी के राज में इस्तीफा देना पड़ा, मगर राहत की बात ये है कि अब सीआईडी ने खुद कह दिया है कि जिस सीडी में जैन के बारे में कथित बात कही गई थी, वह संदिग्ध प्रतीत होती है और सीडी बनाने वाले का पता लगाना भी असंभव है। सीआईडी ने यह भी माना है कि किसी भूमाफिया ने इधर-उधर के वार्तालापों को कांट छांट कर सीडी को तैयार किया है।
जाहिर है पार्टी की वर्षों तक सेवा करने के बाद जो इनाम मिला, वह जिस जलालत के साथ छीना गया, उसकी जिल्लत असहनीय रही होगी। अंदर से आह भी निकली होगी षड्यंत्रकारियों के प्रति। आह उनके प्रति भी निकली होगी जिन्होंने षड्यंत्रकारियों द्वारा बनाई गई सीडी का इस्तेमाल कर के विधानसभा में मुद्दा बनाया। भले ही स्वयं जैन ये स्वीकार न करें, लेकिन आह तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति भी निकली होगी, जिन्होंने मामले की जांच करवाने की बजाय एक झटके में उनसे इस्तीफा मांग कर उन्हीं जलील होने को मजबूर किया। भूमाफिया कौन थे, यह तो आज तक पता नहीं लगा, इस कारण उन पर आह का क्या असर हुआ, यह भी पता लगाना असंभव है, मगर बाद में उन्हें पद से हटने को मजबूर करने वालों पर तो आह का असर साफ दिखाई दे रहा है। तत्कालीन पुष्कर विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने इस मामले पर विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव रखा था, वे जैन की आह के कारण दुबारा विधायक नहीं बन पाए। इसी प्रकार विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव पारित करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले संयम लोढ़ा व माहिर आजाद भी दुबारा नहीं जीत पाए। वसुंधरा ने भी अपना बचाव करने के लिए जैन को शहीद कर दिया, वे भी आह के असर की वजह से दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं।
बहरहाल, जिस तरीके से जैन को पद से हटना पड़ा था, उससे उनका राजनीतिक कैरियर चौपट हो गया था। हालांकि बाद में भी पार्टी की सेवा करते रहने के कारण उनके पुत्र को नगर निगम चुनाव में टिकट दिया, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर लगा दाग ही उसकी हार का एक कारण बना। लेकिन अब जब कि सीडी ही संदिग्ध साबित हो गई है, उन पर लगा दाग मिट गया है और भविष्य में फिर राजनीतिक पद मिलने का रास्ता आसान हो गया है। होना तो यह चाहिए कि वसुंधरा को खुद अफसोस करते हुए जैन को फिर से किसी जिम्मेदारी वाले पद पर आसीन करना चाहिए, ताकि जो गलती हुई है, उसे रैक्टिफाई किया जा सके।
आखिर सीडी बनवाई किसने थी?
जिस सीडी की वजह से जैन को पद छोडऩा पड़ा, वह भले ही संदिग्ध साबित हो गई हो, मगर यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि आखिर सीडी बनवाई किसने? सीआईडी ने यह कह कर हाथ खड़े कर दिए हैं कि सीडी बनाने वालों का पता लगाना संभव प्रतीत नहीं होता है। सवाल ये भी उठता है कि सीडी सामने कैसे आई? इस बारे में अखबार वालों से जब पूछा गया तो उन्होंने स्रोत न बताने के अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह तथ्य उजागर नहीं किया कि उनके पास सीडी आई कैसे। अब सवाल ये उठता है कि जो सीडी विधानसभा के पटल पर रखी गई, वह कहां से आई? अब जब कि सारा मामला इस पर ही आ कर टिक गया है सीडी बनवाने वाले षड्यंत्रकारियों का पता लगाया जाए तो उन पर यह दायित्व आ गया है कि वे साफ करें कि उनके पास सीडी कैसे आई?