गुरुवार, 7 जून 2012

प्रशासन भले ही सम्मानित हो ले, मगर ये तो ख्वाजा का करम है


सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती का 800 वां उर्स शांतिपूर्वक संपन्न होने पर भले ही खुद्दाम ए ख्वाजा की संस्था अंजुमन ने जिला कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों का इस्तबाल कर जताया कि उन्होंने बेहतरीन काम किया है, मगर उर्स के हालात को जानने वाले अच्छी तरह समझते हैं कि ये तो ख्वाजा का करम है कि उर्स में कोई हादसा नहीं होता, वरना स्थिति इतनी भयावह होती है कि बस पूछो मत।
इसमें कोई दो राय नहीं कि उर्स के दौरान प्रशासन व पुलिस अपनी ओर से इंतजाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते, मगर सच ये है कि जायरीन की भारी भीड़ को देखते हुए ये इंतजाम ऊंट के मुंह में जीरे के समान होते हैं। प्रशासन अपनी जिम्मेदारी भर निभाता है, ये तो ख्वाजा का करम है कि वे ही अपने दर पर आए अकीदतमंद की सुरक्षा करते हैं। इसी कारण उर्स संपन्न होने के बाद प्रशासन व पुलिस के अफसर सुकून की सांस लेते हैं और चादर चढ़ा कर ख्वाजा साहब का शुक्राना अदा करते हैं कि उन्होंने उनकी लाज रख ली। मगर अफसोस ये कि उसके बाद वे उर्स के मामले में तो कम से कम चादर ओढ़ कर सो जाते हैं।
उर्स मेला संपन्न होने पर इस बार मेले पर लगातार अपने केमरे की नजर रख रहे दैनिक भास्कर के फोटोग्राफर मुकेश परिहार ने फोटो के जरिए पहली बार हालत की समीक्षा की कि किस प्रकार पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। जरा सी भी चूक हो जाए तो कोई बड़ा हादसा हो जाए। एक फोटो में उन्होंने दर्शाया है कि किस प्रकार भीड़ में फंसे एक बच्चे को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए पुलिस को मशक्कत करनी पड़ी। यदि बच्चे को कुछ होता तो मच जाती भगदड़। इसी प्रकार जायरीन व पुलिस के बीच टकराव का फोटो भी दिखाया है कि तनिक आवेश में विवाद बढ़ता तो जायरीन और पुलिस हो जाते आमने-सामने। भीड़ इतनी अधिक होती है कि पता ही नहीं लगता कि भीड़ दरगाह के भीतर जा रही है या बाहर आ रही है। जरा सा चूके और हुआ हादसा।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि 800वां उर्स कैसे संपन्न हुआ। मई की भीषण गरमी, लू के थपेड़े, करीब 42 डिग्री तक पहुंचा तापमान, दरगाह के आस पास की तंग गलियां, बेहिसाब भीड़, व्यवस्थाओं को लेकर जबर्दस्त किच-किच। उर्स के छह दिन कैसे और किस तरह गुजरे ये वे ही बता सकते हैं, जिन्होंने उर्स के दौरान मेला क्षेत्र में ड्यूटी दी। गंज चौराहे से लेकर दरगाह तक, नला बाजार से लेकर फूल गली तक, ढाई दिन का झोंपड़ा से लेकर दरगाह के भीतर तक जायरीन का रैला ऐसे आता जाता रहा, मानों समंदर की लहरें हवा के प्रवाह के साथ आ जा रही हों। ऐसा बरसों से हो रहा है। मतलब साफ है। भले ही पुलिस जैसे तैसे हर जगह जूझती, लड़ती, मारती, पीटती, किसी भी तरह व्यवस्था बनाती है, मगर सच ये है कि अब दरगाह के लिए मास्टर प्लान की सख्त जरूरत है। भले ही अजमेर पर ख्वाजा का करम है, मगर उसकी वजह से हमें अपना करम करना नहीं भूलना चाहिए। इस बार हालांकि मास्टर प्लान पर कवायद हुई, मगर अजमेर से लेकर दिल्ली तक फाइलें घूमती रहीं ओर आखिरकार योजना पर अमल किए बिना ही उर्स को हो जाने दिया। लेकिन अब चेतने की जरूरत है। तभी तो भास्कर कहता है कि हालात देखो, सबक लो और कदम उठाओ, नहीं तो पछताने का अवसर भी नहीं मिलेगा।
यह ठीक है कि अंजुमन ने अपना औपचारिक फर्ज अदा करते हुए प्रशासन का सम्मान कर दिया, मगर उसे अपना यह फर्ज भी नहीं भूलना चाहिए कि दरगाह मास्टर प्लान के लिए दबाव बनाना उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि असल में जायरीन से सीधा वास्ता तो उसी का है। उसे केवल राजनीतिकों व अधिकारियों के भरोसे ही नहीं रहना चाहिए। अंजुमन अपने आप में काफी ताकतवर संस्था और उसके सदस्यों के जयपुर-दिल्ली में मंत्रियों से अच्छे रसूखात हैं। इन रसूखात का उपयोग करते हुए मास्टर प्लान को लागू करने के लिए पहल करनी चाहिए। वे अगर चाहें तो कोई बाधा नहीं कि प्लान लागू न हो। कई बार तो ऐसा लगता है कि उसकी अरुचि अथ्वा इच्छाशक्ति की कमी के कारण ही मास्टर प्लान लागू होने में बाधा आ रही है।
क्यों रहे बाकोलिया, भगत व शर्मा गैर हाजिर?
अंजुमन के सम्मान समारोह में नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया, नगर सुधार अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत व संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की अनुपस्थिति पर सभी चौंके। उर्स मेला इंतजाम में जाहिर तौर पर निगम व न्यास की महती भूमिका रही, मगर इनके मुखियाओं का न आना किसी न किसी मनमुटाव को जाहिर करता है। संभागीय आयुक्त शर्मा की भूमिका का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सोनिया गांधी की चादर के दौरान जिला कलेक्टर मंजू राजपाल से हालात नहीं संभले तो प्रधानमंत्री की चादर के लिए शर्मा की छुट्टी रद्द कर अजमेर बुलाना पड़ा। उनका भी सम्मान समारोह में न होना कुछ संकेत देता है।
देवनानी लाए थे अपना एजेंडा
सम्मान समारोह में भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी आदत के मुताबिक अपना एजेंडा लेकर आए। उन्होंने कहा कि दरगाह विकास के लिए केंद्र सरकार 300 करोड़ रुपए के विकास प्रोजेक्ट की बात कर रही है, शिक्षा राज्यमंत्री को चाहिए कि वे पुष्कर के लिए भी 300 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट केंद्र से मांगें। दोनों के लिए 600 करोड़ रुपए की मांग की जाए, क्योंकि अजमेर की पहचान ही केवल दरगाह और पुष्कर से ही है। ऐसा करके उन्होंने न केवल अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि का पुष्ट किया, अपितु पुष्कर की विधायक नसीम अख्तर पर एक नैतिक जिम्मेदारी भी डाल दी। अब देखना ये है वे इसे पूरा करती हैं या नहीं।

-तेजवानी गिरधर
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