रविवार, 15 अप्रैल 2012

स्वर्गीय खेमचंद की याद में क्यों हो गया विवाद?

राजस्थान राजस्व मंडल की अध्यक्ष मीनाक्षी हूजा के पिताश्री व अजमेर पूर्व कलैक्टर स्वर्गीय श्री खेमचंद की याद में नगर सुधार न्यास के सहयोग से आयोजित मुशायरा जश्न ए आलम को लेकर दबी जुबान में सही, हल्का का विवाद हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वर्गीय श्री खेमचंद जी या यूं कहिए की मीनाक्षी हूजा की बदोलत अजमेर वासियों को एक ऐसे मुशायरे का आनंद हासिल हुआ, जैसा कि अमूमन नहीं होता है। मुशायरे में ओरीजनल व ठेठ शायरों को सुनने का मौका मिला। मगर विवाद इसके आयोजन के तरीके को लेकर हो रहा है।
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर एक जागरूक नागरिक ऐतेजाद अहमद खान ने टिप्पणी की है कि सरकारी खर्चे पर अपनों को याद करने का यह कौन सा नया फार्मूला है। कोई सही मैं शायर हो, कोई स्वतंत्रता सेनानी हो, तो सरकारी खर्चा समझ भी आता है, पर यह कौन सी नई बात। ऐसे तो शायरी हमें भी पसंद है, पर कोई हम पसंद करने से शायर थोड़े ही हो गए। शहर के बड़े-बड़े खड्डे तो ठीक नहीं हो रहे और मुशायरा करा रहे हैं।
स्पष्ट है कि विवाद इस पर नहीं है कि मीनाक्षी हूजा के पिताजी की याद में मुशायरा आयोजित क्यों हुआ, विवाद इस बात पर है कि उसमें नगर सुधार न्यास की मदद कैसे ले ली गई? माना कि स्वर्गीय श्री खेमचंद अजमेर के पूर्व कलेक्टर थे, मगर अब तक ऐसे कितने मरहूम कलेक्टरों की याद में ऐसे आयोजन हुए हैं? जैसा कि मुशायरे में खुद शायर व पूर्व दरगाह नाजिम के डी खान ने खेमचंद की जीवनी की जानकारी देते हुए बताया कि उर्दू के हिमायती खेमचंद ने मुशायरे को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में प्रयास किए, से यह कहीं स्पष्ट नहीं होता कि स्वर्गीय श्री खेमचंद भी कोई जाने-माने शायर थे, जिनकी जयंती पर न्यास की मदद से मुशायरा आयोजित किया जाता। उनके कथन से यही इंगित होता है कि उन्होंने कलेक्टर पद पर रहते हुए अच्छे मुशायरों का आयोजन किया होगा। अच्छी बात है। मगर इससे इस बात का तुक नहीं बैठता कि न्यास ऐसे आयोजन का भागीदार बने। भले ही इसे प्रमाणित करना कुछ कठिन हो, मगर बात तो सीधी सी है कि मीनाक्षी हूजा के पद के प्रभाव में न्यास से इस आयोजन में भागीदारी निभाई। स्वाभाविक है कि आयोजन पर इस प्रकार विवाद होने पर मीनाक्षी जी को बुरा लगे कि एक तो अच्छा कार्यक्रम करवाया और वह भी लोगों को पचा नहीं, कम से कम मरहूम शख्सियत को लेकर तो सवाल उठाना घोर असंवेदनहीनता है, मगर विवाद उठने की वजह भी साफ है।
एक दिलचस्प बात ये भी है कि जिस शख्सियत की याद में आयोजन हुआ, उनका मीनाक्षी हूजा से क्या संबंध है, इस बारे में अखबारों में आखिर में जा कर खुलासा हुआ। इस सिलसिले में सूचना केन्द्र की ओर से जारी प्रेस नोट में तो खुलासा करने से शायद जानबूझ कर बचा गया। न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी के हवाले से जो खबर दी गई, उसमें कहा गया कि अजमेर के पूर्व कलेक्टर स्वर्गीय खेमचंद की 101 वीं जयंती पर नगर सुधार न्यास एवं उनके वंशज की ओर से 14 अप्रेल को रात्रि 8 बजे जवाहर रंगमंच पर पंडित आनंद मोहन जुत्शी गुलजार, देहलवी की सदारत में मुशायरा जश्न ए आलम आयोजित किया जायेगा। उसमें आयोजनकर्ता पी.सी. माथुर परिवार को बताया गया है, वो इसलिए ताकि कोई यह न कह सके कि मीनाक्षी हूजा के पिता की याद में आयोजन हो रहा है। यह लगे कि अजमेर के कलेक्टर रहे शख्सियत की याद में आयोजन रखा गया है। बेशक पिता-पुत्री का अलग-अलग व्यक्तित्व है, मगर आयोजन का तानाबाना बुनने में मीनाक्षी हूजा का कितना योगदान रहा है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि के डी खान ने जो कशीदे पढ़े, उसमें उन्होंने मुशायरे से नौजवानों को जोड़ऩे के मीनाक्षी हूजा के प्रयास को सराहनीय बताया गया है। आयोजन से मीनाक्षी हूजा सीधे रूप में जुड़ी हुई रहीं, इसका सबसे पुख्ता प्रमाण ये है कि आयोजन के बारे में जो प्रेस कांफ्रेंस न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत ने की, उसमें स्वयं मीनाक्षी हूजा भी मौजूद रहीं।
एक दिलचस्प बात और। सरकारी प्रेस नोट में बताया गया कि राजस्व मंडल की अध्यक्ष श्रीमती मीनाक्षी हूजा व नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत विशिष्ठ अतिथि के रूप में भाग लेंगे। कैसी विडंबना है कि जो आयोजन पक्ष है, वहीं अतिथि पक्ष भी हो गया। खैर, रामायण में ठीक ही कहा गया है-समरथ को नहीं दोष गुसाईं। और यदि किसी समर्थ की ओर से आयोजन किया जाता है तो उसमें शिक्षा राज्य मंत्री नसीम अख्तर, कलेक्टर मंजू राजपाल, आईजी अनिल पालीवाल, एडीएम हनीफ मोहम्मद, भाजपा नेता पूर्णाशंकर दशोरा सरीखे गणमान्य लोगों का शिरकत करना लाजिमी ही है।
-तेजवानी गिरधर
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