रविवार, 28 अप्रैल 2013

क्या बार कौंसिल की समिति कर रही है वकील चौहान की तरफदारी?


राजस्थान बार कौंसिल की ओर से न्यायालय भर्ती परीक्षा घोटाले की जांच के लिए बनी समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट कौंसिल को सौंपते हुए जहां कुछ सिफारिशें की हैं, वहीं कुछ अहम सवाल भी उठा दिए हैं। उसका मौजूदा परीक्षा निरस्त किए जाने की अनुशंसा करना और पिछले सालों में हुई भर्तियों की जांच हाईकोर्ट द्वारा गठित निष्पक्ष समिति से कराए जाने की अनुशंसा करना समझ में आता है। साथ ही न्यायिक कर्मचारियों की भर्ती राजस्थान उच्च न्यायालय को अपने स्तर पर आयोजित करने का सुझाव भी उचित प्रतीत होता है। मगर जिस प्रकार से सवाल उठाए हैं, उससे वह एसीबी की कार्यवाही में दखल करती और न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही अपना अभिमत प्रस्तुत करती प्रतीत होती है। उससे यह भी आभास होता है कि कहीं कौंसिल ने इस मामले की मॉनीटरिंग करने और गुणावगुण की समीक्षा तक करने के मकसद से कमेटी का गठन तो नहीं किया था।
समिति के सदस्य और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन व पूर्व अध्यक्ष किशन गुर्जर ने एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच पर जिस प्रकार सवाल उठाए हैं, उससे यह साफ लगता है कि उसे न्यायालय से पहले इस कमेटी के सदस्यों के सवालों के जवाब देने होंगे। उन्होंने किस प्रकार एफआईआर का पोस्टमार्टम किया है, इसका अनुमान उसके इन सवालों से लग जाता है कि एसीबी ने संपूर्ण कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग भी करवाई है, ऐसा बताया गया था, लेकिन एफआईआर में इसका हवाला नहीं है। उन्होंने यह भी पूछा है कि जिला जज के घर जाते समय कानावत के पास केतली थी तो उसका हवाला एफआईआर में क्यों नहीं है। वैसे एक बात तो है कि कमेटी ने संबंधित न्यायाधीश अजय कुमार शारदा के मामले में सवाल उठा कर साहस का परिचय जरूर दिया है। बात स्वाभाविक भी है कि जब एसीबी की एफआईआर में आरोपी हेमराज के हवाले से न्यायाधीश अजय कुमार शारदा पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और अगर वास्तव में ऐसा था तो एसीबी ने उसी दिन न्यायाधीश के आवास पर छापा क्यों नहीं मारा? अगर इजाजत लेने की जरूरत होने पर एसीबी ने तत्काल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सूचित क्यों नहीं किया?
कमेटी के कुछ सवालों से यह आभास होता है कि कहीं वह वकील भगवान चौहान की तरफदारी तो नहीं कर रही। बानगी देखिए-वकील भगवान सिंह के घर 90 हजार मिलने के आधार पर उसे प्रकरण से जोडना कहां तक उचित है, किसी वकील के घर इतनी रकम मिलना कोई अपराध नहीं है। प्रकरण में फंसाए जाने की आशंका से मौके से चले जाना भी अपराध नहीं है। फिर एसीबी ने केवल इस आधार पर भगवान सिंह को आरोपी प्रचारित क्यों किया है? समिति ने कहा कि एसीबी को सत्यता उजागर करनी चाहिए? अगर कोई तथ्य गलत है तो उसका खंडन होना चाहिए था। समिति सदस्यों के रुख से एक अहम सवाल ये भी उठता है कि क्या कमेटी को केवल जांच रिपोर्ट देने को कहा गया था या अपने स्तर सवाल उठाने की भी जिम्मेदारी दी गई थी।
वैसे एक बात जरूर बड़ी दिलचस्प है, वो यह कि लिपिक भर्ती प्रकरण में फरार आरोपी वकील भगवान सिंह अजमेर में थानों से मंथली वसूली मामले में फरार चल रहे एएसपी लोकेश सोनवाल के वकील हैं। कैसा अजीब संयोग है कि सोनवाल तो एसीबी के वांटेड हैं, और अब भगवान सिंह भी।
-तेजवानी गिरधर