रविवार, 18 मई 2014

सचिन पर नसीराबाद से चुनाव लडऩे का दबाव

लोकसभा चुनाव में प्रदेश की चार सीटों पर मौजूदा भाजपा विधायकों के जीतने के बाद अब जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी में इन पर होने वाले उपचुनावों की रणनीति पर चर्चा हो रही है तो कुछ नेताओं की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे प्रदेश के जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के जीतने के बाद खाली हो रही नसीराबाद सीट से चुनाव लड़ें। ऐसा इसलिए कि वे अजमेर जिले की इस सीट से अच्छी तरह से वाकिफ हैं और यहां उनके सजातीय गुर्जर वोटों की बहुलता है। प्रदेश कांग्रेस के नेता सचिन पर विधानसभा चुनाव के लिए दबाव इस वजह से बना रहे हैं कि एक विधायक के रूप में विधानसभा में उनकी मौजूदगी से 21 सदस्यीय विधायक दल को संबल मिलेगा। विधायक रहते हुए वे कांग्रेस पक्ष दमदार तरीके से रख सकते हैं। साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते जर्जर हो चुकी कांग्रेस को मजबूत करने में भी सुविधा रहेगी।
आइये, जरा इस सीट से जुड़े तथ्यों पर गौर करें:-
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर का लगातार छह बार कब्जा रहा और उनके निधन के बाद उनके ही भतीजे व श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर काबिज हुए। दरअसल यहां पूर्व में लगातार गुर्जर व रावतों के बीच मुकाबला होता था। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर महज 71 वोटों से हार गए। यानि की कांटे की टक्कर रही।
नसीराबाद यों तो एससी बहुल इलाका है, लेकिन किसी एक जाति की बात करें तो गुर्जर सबसे ज्यादा हैं। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक नसीराबाद में एससी के करीब 45 हजार, गुर्जर करीब 30 हजार, जाट करीब 25 हजार, मुसलमान करीब 15 हजार, वैश्य करीब 15 हजार, रावत करीब 17 हजार हैं। इनके अलावा ब्राह्मण, यादव मतदाता भी हैं। परंपरागत मतों के हिसाब से जोड़ कर देखें तो गुर्जर, एससी, मुसलमान कांग्रेस का वोट बैंक 90 हजार से अधिक हो जाता है। क्षेत्र में प्रत्याशी के जातिगत मतों और परंपरागत मतों को जोड़कर देखें तो भाजपा का वोट बैंक भी करीब 90 हजार के लगभग हो जाता है। शेष मतों को लेकर दोनों दलों में कांटे का मुकाबला होता है। वैसे भी हार जीत का अंतर इस सीट पर काफी कम रहता आया है। दरअसल इस सीट पर कांग्रेस का पूरा जोर एससी और गुर्जर मतों पर रहता आया है। गुर्जरों का मतदान प्रतिशत 70 से 90 प्रतिशत तक कराया जाता है। पहली बार जब प्रो. जाट यहां से लड़े तो वे अपने सजातीय वोटों का प्रतिशत 70 से ऊपर नहीं ले जा पाए, उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। कुल मिला कर लंबे अरसे तक यह कांग्रेस का गढ़ रहा, मगर दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते सारे जातीय समीकरण धराशायी हो गए और प्रो. जाट रिकार्ड 28 हजार 900 मतों से विजयी हुए। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। इसके बाद हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होना रेखांकित करने लायक तथ्य है। यानि कि यदि आगामी उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला संभव है। सचिन जैसे दिग्गज गुर्जर नेता को यह मुकाबला जीत में तब्दील करना आसान हो सकता है। इसकी एक वजह ये भी है कि भाजपा के पास अब प्रो. जाट जैसा कोई दिग्गज नेता नहीं है। संभावना यही है कि प्रो. जाट इस सीट का टिकट अपने बेटे के लिए मांग सकते हैं। ज्ञातव्य है कि जाट ने लोकसभा चुनाव में रामस्वरूप लांबा के लिए टिकट मांगा था, मगर उन्हें खुद की चुनाव लडऩा पड़ गया। यूं लोकसभा टिकट के प्रबल दावेदार रहे देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत भी दावा ठोक सकते हैं। इसी प्रकार वैश्य समाज के कोटे में पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा भी टिकट मांग सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर

सचिन के हारने से कुछ कांग्रेसी नेताओं के दिलों को मिली ठंडक

अजमेर के निवर्तमान सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के लोकसभा चुनाव हार जाने से जहां कई कांग्रेसियों को बड़ी मायूसी हुई है, वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जिनके दिलों को ठंडक पहुंची है। जाहिर तौर पर इनमें पूर्व देहात जिला अध्यक्ष व अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी का नाम सबसे ऊपर है। उन्होंने तो सचिन को टिकट मिलने से पहले ही उन्हें हराने की घोषणा कर दी थी। असल में उनकी इच्छा तो सचिन के सामने चुनाव लड़ कर जाट वोटों में सेंध मारने की थी, मगर ऐन मौके पर जैसे ही भाजपा ने दिग्गज जाट नेता नसीराबाद विधायक प्रो. सांवरलाल जाट को टिकट दिया तो उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी। विधानसभा चुनाव में मसूदा में बागी बन कर खड़े हो कर उन्होंने कांग्रेस से तो नाता पहले ही तोड़ लिया था,  लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ खुल कर आ गए। हालांकि उन्होंने भाजपा तो ज्वाइन नहीं की, मगर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की मौजूदगी में हुई आमसभा में खुल कर प्रो. जाट का साथ देने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने सचिन पर भी जम कर शब्द बाण चलाए। यह बात दीगर है कि उनका यह अनुमान गलत साबित हुए कि सचिन तीन लाख वोटों से हारेंगे।
दिल को ठंडक तो नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत को भी पहुंची होगी। भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे होने के कारण भाजपा सरकार के भारी दबाव में उन्होंने ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ दी, हालांकि भाजपा में नहीं गए। उन्होंने सीधे तौर पर सचिन पर हमला बोला और सचिन को लिखे अपने इस्तीफे में लिखा -मैं नरेन शाहनी भगत करीब बीस वर्षो से कांग्रेस पार्टी का सक्रिय सदस्य हूं, परन्तु वर्तमान में पार्टी के नेतृत्व के कारण कार्यकर्ताओं का राजनीतिक भविष्य को चौपट हो गया है। आपके नेतृत्व में गुटबाजी के कारण यह हुआ है। आम कार्यकर्ता व वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की अनदेखी के कारण मुझे बहुत पीडा हो रही है, जिसकी वजह से प्राथमिक मैं सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं। आप अजमेर जिले के सांसद व केन्द्रीय मंत्री बनें, मगर अजमेर की जनता की सुनवाई के लिये आपने कोई भी स्वयं का स्थाई कार्यालय व निवास नहीं बनाया है, जिससे आम कार्यकर्ता व अजमेर की जनता का कांग्रेस से जुड़ाव कम हुआ है। आपके मंत्री होने के बावजूद भी अजमेर को एक भी नया उद्योग नहीं मिला है और न ही अजमेर रेलवे स्टेशन का स्तर आपकी घोषणानुसार वल्र्ड क्लास हो पाया है। इन परिस्थितियों में आमजन व कार्यकर्ता मायूस है।
पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी खुश हुए ही होंगे, जो कि चुनाव के वक्त भाजपा में शामिल हो गए। ये तीन नाम तो घोषित रूप से सचिन के विरोधी हैं, मगर ऐसे अनेक नाम हैं, जो कि प्रत्यक्षत: तो सचिन का विरोध इस कारण नहीं कर पाए क्योंकि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, मगर अंदर ही अंदर सचिन को हराने में लगे हुए थे। उनके नाम का जिक्र करना उचित नहीं, मगर अधिसंख्य कांग्रसियों को पता है कि वे कौन हैं। समझा जाता है कि सचिन को भी पता है। जाहिर सी बात है कि सचिन उनके प्रति कड़ा रुख अपनाएंगे। संभव है संगठन की प्रदेश व शहर जिला इकाई में उनको कोई स्थान न मिले।
-तेजवानी गिरधर