गुरुवार, 10 मई 2012

अनिता भदेल की चुप्पी से बढ़ रहा है असमंजस

वसुंधरा के बीच छिड़ी जंग के बीच अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल को लेकर असमंजस अब भी बरकरार है। उनकी चुप्पी से यह असमंजस और भी बढ़ गया है।
असल में जयपुर की डेटलाइन से छपे समाचारों में उनका नाम वसुंधरा राजे के समर्थन में इस्तीफा देने वाले विधायकों की सूची आ गया था। यहीं से असमंजस शुरू हुआ। चूंकि श्रीमती भदेल संघ पृष्ठभूमि से हैं और वर्तमान में भी संघ लॉबी के प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत खेमे में हैं, इस कारण किसी को भी विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने इस्तीफा दिया होगा। चर्चा ये भी रही कि उनका नाम गलती से छप गया होगा। कदाचित नगर-भरतपुर विधायक श्रीमती अनिता सिंह की जगह उनका नाम छप गया हो। इन्हीं कयासों के बीच उम्मीद यही की जा रही थी कि वे खुद ही खुलासा कर देंगी कि उन्होंने इस्तीफा दिया है या नहीं, मगर वे तो गायब ही हो गईं।
हालत ये हो गई कि पिछले दिनों भाजपा पार्षद दल की बैठक के सिलसिले में भी जब पार्टी पदाधिकारियों ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो उनका मोबाइल स्विच आफ बताया गया। मीडिया वालों को भी उनका मोबाइल स्विच आफ ही मिला। कुछ लोगों ने उनके घर जा कर पता करने की कोशिश की, मगर यही बताया गया कि वे बाहर गई हुई हैं। वैसे बताते ये हैं कि वे घर में ही हैं। संयोग से इन दिनों ऐसा कोई कार्यक्रम भी नहीं हुआ, जिसमें कि वे शिरकत करतीं और मीडिया उनसे पूछ लेता कि वास्तविकता क्या है? ऐसी स्थिति में यह असमंजस बरकरार है कि आखिर उन्होंने इस्तीफा दिया अथवा नहीं? ऐसा तो है नहीं कि अनिता को यह पता ही नहीं होगा कि उनके नाम की बड़ी चर्चा है, मगर आश्चर्य इस बात का है कि खुद वे भी इसका खुलासा करने की बजाय गायब हो गई हैं। इसी से संशय होता है कि आखिर उन्हें डर किस बात का है? कई सवाल उठते हैं। उनका नाम अखबारों में कैसे आ गया? क्या वे किसी के दबाव में गलती से टाइपशुदा इस्तीफे पर साइन कर चुकी हैं? क्या उन्हें लग रहा था कि इस जंग में वसुंधरा की जीत सुनिश्चित है और अगर अभी उनका साथ नहीं दिया तो बाद में टिकट वितरण के दौरान दिक्कत आएगी? या फिर वे ही अखबार में नाम आने के बाद असमजंस ही बनाए रखना चाहती हैं ताकि न तो ये खुलासा हो कि वे वसुंधरा के साथ हैं और न ही ये कि उनके विरोधी गुट में हैं? अलबत्ता उनके आका औंकार सिंह लखावत और वसुंधरा को जरूर पता होगा कि सच्चाई क्या है।
हालांकि यही सवाल अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को लेकर भी उठना स्वाभाविक है, मगर चूंकि उनका नाम कहीं नहीं आया, इस कारण उनके बारे में कोई चर्चा भी नहीं है। हालांकि वे गायब तो नहीं हुए हैं, मगर उन्होंने भी यह खुलासा करने की जरूरत नहीं समझी है कि ताजा विवाद में वे किस ओर हैं। सर्वविदित है कि वे भी संघ पृष्ठभूमि से हैं, यह बात दीगर है कि उनका औंकार सिंह लखावत से छत्तीस का आंकड़ा है। संघ में उनकी अपनी पकड़ है। इस मामले में वे लखावत पर निर्भर नहीं हैं। जिले के तीसरे भाजपा विधायक भाजपा के शंकर सिंह रावत चूंकि मीडिया की पकड़ में आ गए, इस कारण यह पता लग गया कि उनकी मंशा क्या है? उन्होंने यह कहा था कि उनसे वसुंधरा जी ने इस्तीफा मांगा नहीं है, मांगेंगी तो दे देंगे।
बहरहाल, इन तीनों की वास्तविक स्थिति क्या है, कुछ पता नहीं। वैसे भी यह उनका विशेषाधिकार है कि वे खुलासा करें या नहीं। वे यह भी कह सकते हैं कि यह पार्टी के अंदर का मामला है, सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहेगे। बहरहाल, अजमेर की जनता असमंजस में है कि भाजपा में आए तूफान में उनके जनप्रतिनिधियों का रुझान किस ओर है?

-तेजवानी गिरधर
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