शुक्रवार, 3 मार्च 2017

अकबर का किला ही है उसका नाम

नया बाजार स्थित अकबर के किले का नाम बदल कर अजमेर का किला करने को लेकर किसी खादिम तरन्नुम चिश्ती की ओर से शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को भेजे गए धमकी भरे पत्र की वजह से यह किला एकबारगी फिर से चर्चा में आ गया है। असल में यह विवाद पूर्व में भी हुआ था, जब इसमें मरम्मत का काम हुआ था और किले के मुख्य द्वार पर  लगे बोर्ड पर अजमेर का किला एवं संग्रहालय लिख दिया गया। जब इतिहासकारों ने विरोध किया तो फिर अकबर का किला लिख दिया गया। इस पर कुछ संगठनों ने विरोध जताया और अंतत: तत्कालीन जिला कलेक्टर आरुषि मलिक ने इस पर अजमेर का किला लिखवा दिया। आपको जानकारी होगी कि पिछले दिनों एक मुहिम चली थी, जिसमें अकबर को महान नहीं मानने और महाराणा प्रताप तो महान मानने पर जोर था। यह वाकया उसी दरम्यान का है।
वस्तुस्थिति ये है कि भले ही आज इस पर अजमेर का किला व एवं संग्रहालय लिखा हुआ है, मगर इस नामकरण का कोई तथ्यात्मक दस्तावेज रिकार्ड में मौजूद नहीं है। रिकार्ड के मुताबिक 1968 में एक गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था, जिसमें इसका नाम अकबर का किला ही बताया गया है, जिसे मैगजीन, राजकीय संग्रहालय व दौलतखाना भी कहा जाता है। किले के मुख्य द्वार के बाद दीवार पर लगे शिलालेख पर भी लिखा है कि अजमेर का मुगल किला बादशाह अकबर के द्वारा हिजरी 978(1570 ईसी) में बनाया गया है अकबर फोर्ट अजमेर। बहरहाल, इस गजट नोटिफिकेशन के बाद ऐसा कोई गजट नोटिफिकेशन रिकार्ड पर जानकारी में नहीं है कि इसका नाम फिर बदल कर अजमेर का किला किया गया हो। संभव है संगठनों के दबाव में आ कर जिला कलेक्टर आरुषि मलिक ने सामाजिक समरसता बरकरार रखने के लिए अजमेर का किला नामकरण कर दिया हो, मगर वह उचंती में ही किया गया माना जाना चाहिए।
लब्बोलुआब, बात इतनी सी है कि अगर इसका नाम अजमेर का किला करना ही था तो बाकायदा नामकरण परिवर्तन की प्रक्रिया अपना कर उसका गजट नोटिफिकेशन करवाया जाना चाहिए था। बस विवाद इतना सा है। स्थानों व योजनाओं के नाम बदलने के अनेकानेक उदाहरण हैं। सत्ता पर काबिज राजनेता अपनी पसंद व विचारधारा के अनुसार नाम बदलते रहे हैं। बस, उसकी विधिक प्रक्रिया का पालन करते हैं, ताकि नाम परिवर्तन रिकार्ड पर आ जाए।
प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि मेरे द्वारा संपादित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में अकबर के किले के बारे में जो लिखा हुआ है, वह इस प्रकार है:-
अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। अकबर ने यहां से समस्त दक्षिणी पूर्वी व पश्चिमी राजस्थान को अपने अधिकार में कर लिया था। जहांगीर ने भी 1613 से 1616 के दौरान यहीं से कई सैन्य अभियानों का संचालन किया। इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाता है। इसमें चार बड़े बुर्ज और 54 फीट व 52 फीट चौड़े दरवाजे हैं। यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल भारतीय राजनीति में अहम स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर सम्राट जहांगीर ने दस जनवरी 1916 ईस्वी को इंग्लेंड के राजा जॉर्ज पंचम के दूत सर टामस रो को ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की अनुमति दी थी। टामस रो यहां कई दिन जहांगीर के साथ रहा। ब्रिटिश काल में 1818 से 1863 तक इसका उपयोग शस्त्रागार के रूप में हुआ, इसी कारण इसका नाम मैगजीन पड़ गया। वर्तमान में यह संग्रहालय है। पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर का सहज ज्ञान जनसाधारण को कराने और संपदा की सुरक्षा करने की दृष्टि से भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक मार्शल ने 1902 में लार्ड कर्जन के अजमेर आगमन के समय एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना का सुझाव रखा था, जहां जनसाधारण को अपने अतीत की झांकी मिल सके। अजमेर के गौरवमय अतीत को ध्यान में रखते हुये लार्ड कर्जन ने संग्रहालय की स्थापना करके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट श्री कालविन के अनुरोध पर कई राज्यों के राजाओं ने बहुमूल्य कलाकृतियां उपलब्ध करा संग्रहालय की स्थापना में अपना अपूर्व योग दिया। संग्रहालय की स्थापना 19 अक्टूबर, 1908 को एक शानदार समारोह के साथ हुई। संग्रहालय का उद्घाटन ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट श्री कालविन ने किया और उस समारोह में विभिन्न राज्यों के राजाओं के अतिरिक्त अनेकों विदेशी भी सम्मिलित हुये। पुरातत्व के मूर्धन्य विद्वान पं. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा को संग्रहालय के अधीक्षक पद का भार सौंपा गया और ओझा जी ने अपनी निष्ठा का परिचय ऐसी बहुमूल्य कलाकृतियां एकत्रित कर दिया कि जिसके परिणामस्वरूप अजमेर का संग्रहालय दुर्लभ सामग्री उपलब्ध कराने की दृष्टि से देशभर में धाक जमाये हुए है। इसमें अनेक प्राचीन शिलालेख, राजपूत व मुगल शैली के चित्र, जैन मूर्तियां, सिक्के, दस्तावेज और प्राचीन युद्ध सामग्री मौजूद हैं। सन् 1892 में इसके दक्षिणी पूर्वी बुर्ज में नगरपालिका का दफ्तर खोला गया।
-तेजवानी गिरधर
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8094767000

देवनानी को धमकीभरा पत्र लिखने वाली शातिर

नया बाजार स्थित अकबर के किले का नाम अजमेर का किला करने को लेकर जिस तरन्नुम चिश्ती ने शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी को धमकी भरा पत्र लिखा है, वह बेशक शातिर है। उसने भाषायी तकनीकी का ख्याल रखते हुए अपना नाम मुल्क की खादिम तरन्नुम चिश्ती लिखा है, जिसका मतलब ये है कि वह मुल्क की खिदमत करने वाली है, जबकि भ्रम ये हो रहा है कि वह अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की खादिम है, क्योंकि उसने नाम के साथ खादिम और चिश्ती लिखा है। वैसे उसने  एक चूक भी की है, वो यह कि खादिम शब्द पुर्लिंग है, अगर वह स्त्री है तो उसे खुद्दामा या खादिमा लिखना चाहिए था, जैसे ख्वाजा साहब के खादिम अपने आप को खुद्दाम-ए-ख्वाजा लिखा करते हैं।
वह है कौन यह तो जांच के बाद ही पता लग पाएगा, मगर उसने भ्रम यह फैलाया है कि वह खादिम है।
दिलचस्प पहलु ये है कि उसने पत्र लिखने का जो समय चुना है, उसके पीछे भी उसका मकसद है। अकबर के किले का नाम अजमेर का किला एवं संग्रहालय कर दिए जाने को काफी वक्त हो गया है। अगर उसे ऐतराज था तो तभी विरोध दर्ज करवाना चाहिए था, मगर उसने ऐसा समय चुना है, जबकि इस वक्त राजस्थान विधानसभा चल रही है। हो सकता है कि उसका ख्याल हो कि इस प्रकार का धमकीभरा पत्र लिखने पर उसकी चर्चा ज्यादा होगी। स्वाभाविक सी बात है कि राज्य के किसी मंत्री को एक समुदाय विशेष का व्यक्ति धमकी देगा तो उससे सनसनी तो होनी ही है, वह भी एक ऐसे ऐतिहासिक स्थल को लेकर जिसके साथ समुदाय विशेष की शख्सियत का ताल्लुक है।
बहरहाल, पुलिस को उस तरन्नुम चिश्ती का तो पता लगाना ही चाहिए, साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि कहीं कोई असामाजिक तत्व अजमेर के सांप्रदायिक सौहार्द्र को तो नहीं बिगाडऩा चाह रहा।
-तेजवानी गिरधर
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