शुक्रवार, 23 मार्च 2012

मेयर के चैंबर में सोनम किन्नर ने आखिर क्या कर दिया?


नगर निगम मेयर के चैंबर में एक दिलचस्प वाकया हुआ। कांग्रेस के मनोनीत पार्षद सोनम किन्नर ने इतना उधम मचाया कि वहां मौजूद कर्मचारियों ने दातों तले अंगुली दबा ली और चैंबर छोड़ कर बाहर निकल गए। सवाल ये उठता है कि आखिर सोनम ऐसा क्या कर दिया कि कर्मचारी इतने अचंभे में पड़ गए?
असल में यह वाकया मेयर व चंद लोगों के सामने हुआ, इस कारण सुर्खियां नहीं बन पाया। न तो वहां प्रेस फोटोग्राफर थे और न ही पत्रकार। इस कारण किसी को पता ही नहीं लगा। अलबत्ता दैनिक नवज्योति के पत्रकार के सूत्र मुस्तैद थे, इस कारण उनको पता लग गया और खबर छाप दी। यह भी गनीमत रही कि सोनम ने भी फोन करके मीडिया को नहीं बुलाया, वरना वे हैं मीडिया फ्रेंडली, सब जानते हैं। हालांकि पूरा वाकया खबर में शक्ल में नवज्योति में आ गया है, मगर कुछ पंक्तियों की ऐन वक्त पर की गई एडिटिंग से साफ झलक रहा है कि कुछ न कुछ छिपाया गया है। शायद छापने लायक नहीं रहा होगा। और अगर ऐसा था तो वहां फोटोग्राफर होते भी तो वे क्या कर लेते? अगर फोटो खींच भी लेते तो वह नैतिकता के नाते नहीं छपती।
आप ही सोचिये कि कोई भी कितना भी उधम मचाए, देखने वाला दातों तले अंगुली थोड़े ही दबा कर बाहर भाग लेगा। हंगामा होने पर घबरा सकता है, मगर आश्चर्य में पड़ कर शर्माते हुए बाहर थोड़े ही चला जाएगा। जरूर उन्होंने ऐसा कुछ देखा होगा, जो जिंदगी में कभी नहीं देखा हो। धन्य हैं वे कर्मचारी और खुद मेयर साहब, जिन्होंने ऐसे मंजर का दर्शन किया, जिससे अन्य वंचित रह गए। वैसे अपन संतुष्ट हैं। शहर के प्रथम नागरिक ने देख लिया, माने हमने भी देख लिखा। बताते हैं कि अधिशाषी अभियंता अरविंद यादव के साथ भी उतने से ज्यादा हुआ, जितना की नवज्योति में छपा है। उसमें तो लिखा है कि बदसलूकी हुई, उसका खुलासा नहीं किया है। जिस बदसलूकी को देख कर वहां मौजूद लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली, भला उसका बयान खुद यादव भी कैसे कर सकते हैं? समझा जा सकता है कि सोनम ने गुस्से में आ कर आखिरी हथियार काम में लिया होगा।
वैसे एक बात है, सोनम ने जो कुछ किया, वह चंद लोगों ने ही देखा मगर किया सही। बार-बार शिकायत करने पर भी यदि कोई सुनवाई नहीं होगी तो गुस्सा आना वाजिब ही है। और सोनम के तो नाक पर गुस्सा रहता है, यह जग जाहिर है। इसी के चलते पिछले दिनों नाइंसाफी होने पर गुस्से में आ कर पार्षद पद से इस्तीफा दे दिया, मगर सरकार में भी हिम्मत कहां कि वह मंजूर कर ले। असल में सोनम को नाइंसाफी बिलकुल बर्दाश्त नहीं। समाजसेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा है। गलती से राजनीति में हैं, मगर राजनीतिज्ञों की तरह घुमा-फिरा कर बात करना उन्हें आता ही नहीं। सीधी-सीधी दो टूक बात करते हैं। मौका-बेमौका से क्या मतलब? जो कहते हैं, चौड़े धाड़े कहते हैं। इसी कारण उनसे हर कोई घबराता है कि कब इज्जत उतार कर हथेली पर न रख दें।
आपको याद होगा पिछली भाजपा सरकार का दौर, जब आए दिन होने वाले कांग्रेस के विरोध प्रदर्शनों में शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल तो पीछे रह जाते थे और पूरी कमान सोनम के हाथ में आ जाती थी। अधिकारी थर-थर कांपा करते थे। उनकी इसी मेहनत का प्रतिफल है कि उन्हें कांग्रेस राज में पार्षद बनाया गया। वैसे उनकी पहुंच सीधी दिल्ली दरबार तक है, जहां शहर का बड़े से बड़ा नेता भी अंदर जाने के लिए लाइन लगाता है, वहां सोनम धड़धड़ाते हुए अंदर घुस जाते हैं। असल में ऐसे ही बिंदास नेताओं की जरूरत है अजमेर को, जो नाइंसाफी कत्तई बर्दाश्त नहीं करें। जिस शहर में चार-चार पांच-पांच दिन पानी न मिलने पर लोगों का खून पानी की तरह ठंडा रहता हो, उस शहर में सोनम जैसे बिंदास नेताओं की ही जरूरत है। धन्य हो सोनम किन्नर।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com