बुधवार, 5 सितंबर 2012

पहले मकानों में दुकानें बनने कैसे दी गईं?


फोटो दैनिक भास्कर से साभार
नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए वैशाली नगर में बनी रही कुछ दुकानों को जेसीबी मशीन से ध्वस्त कर दिया। जाहिर तौर पर इसका विरोध भी हुआ। मौके पर पार्षद मोहनलाल शर्मा व कांग्रेस नेता रमेश सेनानी पहुंच गए, मगर चूंकि पुलिस जाप्ता काफी था, इस कारण कार्यवाही में बाधा नहीं पड़ी। मगर सवाल ये है कि मकानों में दुकानें जब बनाई जा रही थी तब हाउसिंग बोर्ड व नगर निगम के अधिकारी क्या सो रहे थे? उस वक्त उन्हें यह ख्याल क्यों नहीं आया कि जैसे ही कोई दुकान बनाना शुरू करे, उसे रुकवा दिया जाए? आज सैकड़ों मकानों में दुकानें खुली हुई हैं, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? स्पष्ट है कि संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को उस वक्त अपनी जेब गरम करने की ही चिंता होती है, शहर जाए भाड़ में। जहां तक अब तोडफ़ोड़ का सवाल है, जाहिर सी बात है कि अगर किसी व्यक्ति विशेष की दुकानें तोड़ेंगे तो यह सवाल लोग उठाएंगे ही कि ऐसा क्यों? कार्यवाही की जाती है तो सभी दोषियों पर समान रूप से होनी चाहिए? होना तो यह चाहिए कि बाकायदा दुकानों को चिन्हित कर उन्हें विधिवत नोटिस दिया जाए और समयबद्ध तरीके से स्वयं हटाने व विभागीय स्तर पर हटाने की योजना की घोषणा की जाए।
इस मामले में सबसे अहम सवाल ये है कि जब बोर्ड ने कॉलोनी बसाई तो व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त स्थान रख कर वहां दुकानें क्यों नहीं बनाई? बोर्ड ने खुद ही मार्केट डवलप क्यों नहीं किया? अगर बोर्ड ऐसा करता तो लोगों को मकानों में दुकानें बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। तस्वीर का एक पहलु ये भी है कि भले ही मकानों में दुकानें अवैध हैं, मगर आज इन्हीं की वजह से आम लोगों को उनकी हर जरूरत का सामान आसानी से मिल रहा है और शहर के व्यस्ततम बाजारों पर पड़ रहा दबाव कम हुआ है। ऐसे में बेहतर रास्ता ये है कि जहां भी कॉलोनी बसाई जाए, वहां पर मार्केट भी विकसित किया जाए। इससे एक तो कॉलोनी का विकास व्यवस्थित होगा और दूसरा शहर के मुख्य बाजारों पर पडऩे वाली ग्राहकों की भीड़ की वजह से बिगड़ी रही यातायात व्यवस्था में कुछ राहत मिलेगी।
-तेजवानी गिरधर

क्या प्रशासन ने चैनल गेट खोलने का मौका गंवा दिया?

अब जब कि शहर की ऐतिहासिक आनासागर झील छलक चुकी है, यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि यदि इसे छलकने ही देना था तो फिर क्यों उसे 12 फीट भराव क्षमता के बाद खोलने का विचार बनाने के लिए दुनियाभर की माथापच्ची की थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासन चैनल गेट खोलने का उपयुक्त मौका गंवा तो नहीं बैठा है?
आपको ख्याल होगा कि पिछले दिनों जब भारी बारिश के चलते आनासागर में पानी आवक तेज हो गई थी और झील से सटी कॉलोनियों की ओर पानी बढऩे लगा था तो यह विचार उठा था कि क्या इस बार झील के चैनल गेट खोलने की नौबत आई थी। तब शहर के कुछ बुद्धिजीवियों का कहना था कि आनासागर को उसकी जलभराव क्षमता तक भरने देना चाहिए, भले ही इससे इससे सटी कॉलोनियों में थोड़ी परेशानी हो। प्रशासन चाहे तो उसके लिए कोई उपाय करे, मगर चैनल गेट न खोले। उनका तर्क था कि आखिर यह ऐतिहासिक झील की खूबसूरती और शहर की पहचान का सवाल है। जाहिर तौर पर इसका प्रशासन पर दबाव बना और जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने संबंधित अफसरों से सलाह कर तय किया कि कम से कम 12 फीट तक तो चैनल गेट नहीं खोले जाएंगे। उसके बाद की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। आखिर वह दिन भी आ गया कि पानी 12 फीट को पार करने लगा। इस पर प्रशासन को दुबारा विचार करना पड़ा कि अब क्या किया जाए? दिक्कत ये थी कि भारी बारिश के कारण एस्केप चैनल में पहले से ही शहर के तीन-चौथाई आबादी इलाके व कैचमेंट क्षेत्र का पानी बह रहा था और निचली बस्तियों में पानी भर गया। ऐसे में जब आनासागर में पानी का स्तर और बढ़ा तो प्रशासन लाचार हो गया। वह अब किसी भी सूरत में चैनल गेट खोलने की रिस्क नहीं उठा सकता था। यदि चैनल खोले जाते तो निचली बस्तियों में तबाही मच जाती।
प्रशासन उधेड़बुन में ही था कि सोमवार को हुई बरसात के बाद पानी 12.8 इंच तक आ गया, जो भराव क्षमता से केवल चार इंच कम था। मंगलवार को बारिश के बाद झील में देर रात तक पानी की आवक होती रही और शाम 5.45 बजे तक चैनल गेट के ऊपर से छह इंच पानी एस्केप चैनल में बहने लगा। रात 8 बजे तक झील का गेज 13.7 इंच हो गया और पानी छलकने लगा। उधर निचली बस्तियों में पानी पहले से भरा हुआ था। ऐसे में प्रशासन के पास कोई चारा न रहा। अब चैनल गेट खोलने अथवा न खोलने पर विचार के कोई मायने ही नहीं रह गए हैं। यहां उल्लेखनीय है कि भूतपूर्व नगर परिषद सभापति स्वर्गीय वीर कुमार ने अपने कार्यकाल में ऐसी नौबत आने पर युक्तिपूर्वक चैलन गेट खोले थे।
इस बारे में शहर जिला भाजपा के प्रतिनिधिमंडल ने अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत के नेतृत्व में जिला कलेक्टर गालरिया से मिल कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि ताजा हालाल के लिए प्रशासन जिम्मेदार है, क्योंकि आनासागर एस्केप चैनल सहित सभी प्रमुख नालों की सफाई की मांग पर ध्यान नहीं दिया। आनासागर के ओवर फ्लो होने पर आपातकालीन स्थितियों में पानी की निकासी के लिये आनासागर एस्केप चैनल बना है। वर्षा आने से पूर्व ही इसकी सम्पूर्ण सफाई तथा इसकी टूटी हुई दिवारों की मरम्मत होनी चाहिये थी, लेकिन इस और ध्यान नही दिया गया। इस कारण बरसात का पानी तेज बहाव के साथ नगर की अनेक निचली बस्तियों व कॉलोनियों में घुस गया। अब जो स्थिति है, उसमें चैनल गेट खोले गये तो अजमेर की स्थिति और बद से बदतर हो जायेगी।
ताजा स्थिति ये यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या कहीं प्रशासन ने चैनल गेट खोलने का उचित मौका तो नहीं गंवा दिया? कुछ लोगों का मानना है कि जब निचली बस्तियों में पहले से ही पानी भरा हुआ है तो चैनल गेट कैसे खोला जा सकता है। उधर कुछ लोगों का मानना है कि सोमवार व मंगलवार की बारिशों के बीच तकरीबन 24 घंटे का समय था, जब कि बारिश थमने के कारण निचली बस्तियों में जमा पानी का स्तर कुछ कम हुआ था। उस वक्त यदि चैनल गेट थोड़े से खोल कर पानी निकाला जाता तो ठीक रहता। मगर प्रशासन ने वह मौका गंवा दिया। अब तो कोई उपाय ही नहीं बचा है। पानी गेज से ऊपर बहने लगा है। झील के ओवर फ्लो होने के बाद खानपुरा तालाब पर इसका सीधा असर पड़ा है। तालाब का गेज 10 फीट तक पहुंच गया है, जबकि तालाब 11 फीट गेज पर ओवर फ्लो हो जाता है। ओवर फ्लो होने के बाद तालाब की नीचे वाले इलाके के गांव दौराई, तबीजी, डूमाड़ा, नदी प्रथम व द्वितीय तथा इसके आगे के गांवों के पास से निकल रही नदी खानपुरा तालाब की वेस्ट वेयर में पानी का बहाव बढ़ जाएगा। इससे वेस्ट वेयर के आस-पास के भराव क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निर्माण को हानि पहुंच सकती है।
प्रसंगवश बता दें कि ऐतिहासिक आनासागर झील की चादर पिछले चार दशक में चौथी बार चली है। सन् 1975 में हुई मूसलाधार बरसात के बाद 18 जुलाई 1997 को झील ओवर फ्लो हो गई थी। कई बस्तियां जलमग्न हो जाने से शहर बाढग़्रस्त हो चुका था। यहां उल्लेखनीय है कि उस समय झील की भराव क्षमता आज के मुकाबले तीन फीट अधिक यानि 16 फीट थी। भराव क्षमता तक पानी आने के कारण झील के पेटे में बसे कई आबादी इलाकों में पानी भर गया। प्रशासन ने इसके बाद झील की भराव क्षमता को 13 फीट तक ही सीमित कर दिया। चादर को बंद कर चैनल गेट का निर्माण भी कराया गया। झील दूसरी बार सन् 1979 में अपनी भराव क्षमता तक पहुंची और चादर चली। इसके बाद 18 साल तक झील में पानी की आवक नहीं हो सकी। सन् 1987 में झील लगभग सूख गई और इसमें से मिट्टी निकाली गई। इसी समय झील के बीच टापू का निर्माण भी कराया गया। इसके बाद 25 अगस्त 1997 को शहर में छह इंच बरसात के बाद झील की चादर चली।
-तेजवानी गिरधर

जनप्रतिनिधियों पर कुछ इस तरह बरसी कीर्ति पाठक


अधिक बारिश के कारण बिगडे शहर के हालात के लिए बेशक हमारी व्यवस्था ही जिम्मेदार है, जिसके लिए जहां सीधे तौर पर नगर निगम उत्तरदायी है, वहीं कहीं न कहीं हमारे जनप्रतिनिधि भी दोषी हैं, नालों पर अवैध रूप से मकान बनाने वाले भी उतने ही दोषी हैं। इस विष्य पर टीम अन्ना की अजमेर प्रभारी कीर्ति पाठक की लेखनी कुछ ज्यादा ही मुखर हो गई और उन्होंने फेसबुक के जरिए प्रतिनिधियों पर जम कर बरसीं। इतना ही नहीं उन्होंने आगामी चुनाव में जनता की ओर से सबक विखाने की भी चेतावनी दे दी  है। पिछले दिनों पुलिस को छकाने वाली कीर्ति पाठक कितने आत्मविश्वास से भर गई हैं, क्या कह रही हैं, आप भी पढ लीजिए--
और लीजिये हम ने कबड्डी खेलनी शुरू कर दी........
इधर बरसात हम से खेल रही है...उधर जनप्रतिनिधि का खेल खेलना शुरू......
अनीता भदेल जी कहती हैं कि प्रशासन की कमी उजागर......
और अपने मेयर साब बाकोलिया जी अपने साथी पार्षदों के साथ दौरे पर निकल लेते हैं.....
सब कमर तक के पानी में न जाने क्या ढूंढते फिर रहे हैं ????
शायद अपनी खो गयी विश्वसनीयता को इस बरसाती पानी में ढूंढते फिर रहे हैं और कई साथी पार्षद इन के साथ चल कर अपनी कमाई के साधन को फिर से प्राप्त करने की नाकाम कोशिश में है......
अनीता जी आप तो नगर परिषद् चेयर -पर्सन रही हैं ...आप को तो पहले ही अंदेशा होगा - घूम-घूम कर कि - सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं है......
आप ने किसी स्थानीय पार्षद से तो ज़िक्र किया ही होगा.....आखिर आप को दर्द जो है स्थानीय जनता का......क्या जवाब मिला???
और जब समय रहते आप की बात न मानी गयी तो आप ने क्या किया???
अब बारिश के दौरान दौरा कर के आप ने क्या सकारात्मक किया ????
ये कोसने,दौरा करने के अलावा आप ने किस प्रकार जनता का दर्द कम किया ये बताइये.......
मीडिया को, आप ने जनता के लिए इस दुःख और परेशानी को दूर करने के लिए जो कदम उठाये और जिस से उन के फर्क पड़ा, वो बताइये ........
ये कोसने का काम आप करती तो सही नहीं लगती हैं...'ये तो हम साधारण जनता करती ही ठीक है जिस के पास सिवाय चिल्लाने के और सड़कों पर उतरने के अभी कोई और ताकत नहीं है......
वो ताकत तो २०१३ और २०१४ में फिर से आएगी जब हम सब जनप्रतिनिधियों को कटघरे में खड़ा करेंगे और सवाल करेंगे और उन के जवाब लेंगे और अपना जवाब देंगे.....
और हमारे मेयर साब - आप तो कमर तक के पानी में ही निकल पड़े पैदल.......
और सब को निर्देश देते रहे......कि कैसे निचली बस्तियों से पानी निकालना है....
पर मेयर साब आज हम १२ बजे गए थे ..सड़कें लबालब भरी थीं.....लोगों के घरों में पानी भरा था......
कोई किसी प्रकार की सहायता का प्रबंध नहीं था.....कोई पम्प नहीं लगे थे पानी निकालने के लिए.....यहाँ वहां गंदगी के ढेर लगे थे.....
जब आप दौरा कर रहे थे तो गंदगी के ढेर देख कर आप ने स्थानीय पार्षद महोदय और इंस्पेक्टर महोदय से जवाब तलब तो किया ही होगा.....
जनता को उन का जवाब बताएँगे क्या???
जब कार्य सही प्रकार सम्पादित नहीं हो रहा है तो कोई एक्शन तो लेना बनता है न.....
क्या उस एक्शन के बारे में बताएँगे या जनता के री-एक्शन (२०१३-२०१४ के चुनाव का ठीकरा अपने सर फुडवाने) का इंतज़ार करना पसंद करेंगे????
आप जनप्रतिनिधियों की मर्ज़ी.......
जनता की आँखें खुली हैं......
चुनाव महाराज नाक बंद कर के मुंह खुलवा कर दवाई डालने को तैयार है...