शनिवार, 20 दिसंबर 2014

मोदी की पार्टी में वंश परंपरा का बोलबाला

भाजपा के नए खेवनहार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही वंश परंपरा से परहेज रखने की सीख देते हों, कदाचित इसी के चलते विधानसभा उपचुनाव में केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के बेटे को नसीराबाद से टिकट नहीं दिया गया, मगर हाल ही घोषित अजमेर शहर जिला भाजपा कार्यकारिणी में इस सीख को ताक पर रख दिया गया है। यदि ये कहा जाए कि ताक पर नहीं बल्कि उठा कर फैंक दिया गया है तो शायद ज्यादा उपयुक्त होगा।
शहर जिला भाजपा की इस कार्यकारिणी में आश्चर्यजनक रूप से पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा के पुत्र विकास सोनगरा और पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत के पुत्र तिलक रावत के पुत्र को उपाध्यक्ष बना दिया गया है, जबकि पार्टी को उनका सांगठनिक रूप से कोई सक्रिय योगदान नहीं रहा है। इसको लेकर पार्टी के लिए दिन-रात एक करने वाले कार्यकर्ताओं को मायूसी हो रही है। उनकी मायूसी इसलिए वाजिब लगती है क्योंकि अगर काडर बेस पार्टी में ही इस तरह से पेराटूपर थोपे जाएंगे तो काडर से गुजर कर आने वालों का क्या होगा। ज्ञातव्य है कि जब काडर बेस को ध्यान में रखते हुए ही शहर अध्यक्ष पद पर अरविंद यादव को आरूढ़ किया गया था, तो ये संदेश गया था कि पार्टी में सक्रिय रूप से सक्रिय युवाओं की टीम गठित की जाएगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। यूं सीधे तौर पर इस स्थिति के लिए शहर अध्यक्ष यादव ही जिम्मेदार माने जाएंगे, मगर ये सब जानते हैं कि कितने भारी दबाव की वजह से कार्यकारिणी घोषित नहीं कर पा रहे थे। समझा जा सकता है कि जिस जगह से केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण न्यास के अध्यक्ष औंकारसिंह लखावत, राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल अधिकार राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल आते हों, वहां के शहर जिला अध्यक्ष की क्या स्थिति होगी। अगर वे अपने कुछ चहेतों को शामिल कर भी पाएं हैं तो वह राज्य सभा सदस्य भूपेन्द्र यादव के दम पर, जिनकी अनुकम्पा से ही वे शहर अध्यक्ष बने हैं। यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि विकास सोनगरा का नंबर यादव के श्रीकिशन सोनगरा से निकट संबंधों की वजह से आया है। हालांकि सोनगरा का कोई अलग गुट नहीं रहा है, मगर यादव के उनसे संबंधों को सारे भाजपाई जानते हैं। यही वजह है कि इन दिनों सोनगरा को विशेष तवज्जो मिलने लगी है, वरना लखावत ने तो उन्हें पूरी तरह से दरकिनार ही कर दिया था। एक और कयास ये भी लगाया जा रहा है, वो ये कि उम्र के लिहाज से सोनगरा की राजनीतिक पारी लगभग पूरी हो चुकी है, ऐसे में विकास सोनगरा को भविष्य में अजमेर दक्षिण से टिकट का दावेदार बनाने का धरातल बनाया जा रहा है। इसी प्रकार प्रो. रावत की राजनीतिक पारी भी अवसान की ओर है, सो उनके पुत्र तिलक रावत को स्थान दिया गया है, ताकि बाद में उन्हें रावत नेता के तौर पर उभारा जा सके।
जहां तक सुरेन्द्र सिंह शेखावत का यादव के अंडर में महामंत्री बनने का सवाल है, उस पर तनिक आश्चर्य होता है क्योंकि वे नगर परिषद के सभापति रह चुके हैं, मगर जब तक कोई बड़ी राजनीतिक रेवड़ी नहीं मिलती, उन्होंने महामंत्री पर स्वीकार करना उचित समझा होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि वे अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद के दावेदार हैं और आगामी नगर निगम चुनाव में मेयर पर के भी दावेदार हो सकते हैं। उधर धर्मेन्द्र गहलोत ने संभव है मेयर रह चुकने की वजह से यादव की कार्यकारणी में आना उपयुक्त नहीं समझा है। वे भी प्राधिकरण अध्यक्ष व मेयर पद के दावेदार माने जाते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि कार्यकारिणी पर गुटबाजी का भी प्रभाव रहा है, जिसकी वजह से रश्मि शर्मा व विनोद कंवर से कहीं अधिक योग्य व जिम्मेदार पद पर रह चुकी वनिता जैमन को दरकिनार किया गया है। संपूर्ण कार्यकारिणी को देखने से लगता है कि इस पर देवनानी का प्रभाव कुछ ज्यादा है। देवनानी के प्रति झुकाव का इशारा लोगों को गत दिनों मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की अजमेर यात्रा के दौरान हेलीपेड पर मिल गया था।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

क्या इसे देवेन्द्र शेखावत को फिर से चुनौती माना जाए?

भारतीय जनता युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह शेखावत को अपने ही संगठन के समानांतर नेताओं से फिर चुनौती मिलती नजर आ रही है। हाल ही जब भाजपा का सदस्यता अभियान शुरू हुआ है तो उनके विरोधी खेमे के नेता फिर से सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने शहर के प्रमुख चौराहों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए हैं, जिनमें युवा मोर्चा की ओर से भाजपा की सदस्यता लेने की अपील की गई है। दिलचस्प बात ये है कि इसमें विरोधी नेता नितेश आत्रेय व अनिल नरवाल के फोटो तो हैं, मगर शहर अध्यक्ष शेखावत का नहीं। साफ है कि उनका फोटो जानबूझ कर नहीं लगाया गया है। हालांकि सदस्यता की अपील कोई भी भाजपा का कार्यकर्ता कर सकता है, उसमें किसी को कोई आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए, मगर यदि अपील संगठन की ओर से की जा रही हो और उसमें अध्यक्ष का ही फोटो न हो तो मुद्दा विचारणीय बन जाता है। भले इस कृत्य को शेखावत को चुनौती न माना जाए, एक सामान्य अपील के रूप में ही देखा जाए, मगर यदि संगठन के कुछ नेताओं की ओर से अलग से अपील की जा रही हो तो कम से कम ये तो परिलक्षित होता ही है कि उन्होंने अपना कद अलग से जाहिर करने की कोशिश की है, जो कि शहर अध्यक्ष शेखावत के चुनौती का ही रूप मानी जाएगी।  प्रसंगवश बता दें कि वर्तमान में सदस्यता अभियान के प्रभारी सुरेन्द्र सिंह शेखावत हैं, जिनका देवेन्द्र सिंह शेखावत पर वरदहस्त माना जाता है।
आपको याद होगा कि जब से शेखावत की नियुक्ति हुई है, आत्रेय व नरवाल का गुट अलग ही चल रहा है। भाजपा हाईकमान को जब लगा कि बगावत भारी पड़ जाएगी तो उसने नरवाल की भाजयुमो प्रदेश कार्यकारिणी सदस्यता को बहाल कर दिया था। इस पर भी उन्होंने अपनी मौजूदगी अलग से दर्ज करवाई थी। उनके नेतृत्व में भाजयुमो शहर जिला के कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर दीपदान किया, जबकि उसमें शहर जिला अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह शेखावत सहित उनके गुट के कार्यकर्ता इस मौके पर मौजूद नहीं थे।
आपको ये भी याद होगा कि गुटबाजी के इस विवाद पर तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए यह साफ कर दिया था कि शहर अध्यक्ष पद पर देवेन्द्र सिंह शेखावत की नियुक्ति का संगठन फैसला ले चुका है, अत: उसे अब बदला नहीं जाएगा।
जरा और पीछे जाएं तो आपको ख्याल होगा कि शहर अध्यक्ष पद के कुल तीन दावेदारों नीतेश आत्रे, गौरव टाक व देवेन्द्र सिंह शेखावत के नाम का पैनल बना कर जयपुर भेजा गया था। इनमें से नीतेश आत्रे विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी खेमे के माने जाते हैं, जबकि विधायक अनिता भदेल ने गौरव टाक पर हाथ रख रखा था। विधायकों की खींचतान से बचने के लिए हाईकमान ने तीसरे नाम शेखावत पर मुहर लगा दी। हालांकि अनिता भदेल को पता लग गया था कि उनकी ओर से प्रस्तावित नाम तय नहीं हो रहा है, मगर उन्हें इस बात से संतुष्टि थी कि देवनानी की ओर से पेश किया गया नाम भी तय नहीं हो रहा है, इस कारण उन्होंने ऐन वक्त पर शेखावत के नाम पर सहमति जता दी। बहरहाल, जैसे ही शेखावत की नियुक्ति हुई तो मानो भूचाल आ गया। नीतेश आत्रे के नेतृत्व में पार्टी का अनुशासन सड़क पर तार-तार कर दिया गया। असंतुष्ट कार्यकर्ता अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकारसिंह लखावत के घर पर प्रदर्शन करने पहुंच गए। प्रसंगवश बता दें कि देवनानी खेमे के भाजयुमो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन ने भी शेखावत की नियुक्ति पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा था कि नियुक्ति के समय आम कार्यकर्ताओं की भावना का ध्यान नहीं रखा गया और नियुक्ति पर फिर से विचार होना चाहिए। उनके लिए यह बड़ा कष्टप्रद था कि वे अपने गुट के आत्रे को अध्यक्ष नहीं बनवा पाए।
खैर, कुल जमा बात ये समझ में आती है कि नए प्रदेश अध्यक्ष सी. पी. जोशी की ओर से नए शहर अध्यक्ष की नियुक्ति हो सकती है, इस लिहाज से ताजा कृत्य को उन पर दबाव के रूप में देख जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

अजमेर के मित्तल हॉस्पीटल के पास दिखा शेर?

सोशल मीडिया का किस प्रकार दुरुपयोग हो रहा है, इसका ताजा उदाहरण देखिए। 8 फरवरी 2014 की रात वाट्स एप पर एक वीडियो यह कह कर अनेक ग्रुप्स में चलता रहा कि अजमेर के मित्तल हॉस्पीटल के पास यह शेर घूम रहा था। स्वाभाविक सी बात है कि वीडियो को देख कर लोगों के मन में दहशत फैली। जानकारी मिलते ही मीडिया कर्मी भी ड्यूटी पर लग गए और कोशिश ये रही कि उसकी फोटो खींची जा सके। लाख कोशिश के बाद भी ऐसा संभव न हो पाया। वन महकमे को भी कहीं से पता लगा, मगर वे निश्चिंत थे क्योंकि उनकी जानकारी के अनुसार प्रदेश में एक भी शेर खुला हुआ नहीं है। वैसे बताते हैं कि यही वीडियो इससे पहले भी वायरल हुआ है, जिसमें बताया गया था कि यह जोधपुर में धूमता पाया गया है। जो कुछ भी हो, वाट्स एप पर इस प्रकार की हरकतें लोग मजे लेने की खातिर करते हैं, मगर वे यह नहीं सोचते कि इसके परिणाम क्या होंगे। अब देखना ये है कि प्रशासन इस प्रकार की हरकत पर कोई कार्यवाही करता है या यूं ही मजाक समझ कर छोड़ देता है।
वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए
http://youtu.be/J093e04ttEw 

रलावता के प्रदेश सचिव बनते ही शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद की भागदौड़ तेज

अजमेर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के प्रदेश कार्यकारिणी के गठन के साथ ही प्रदेश सचिन बनने के तुरंत बाद खाली होने वाले पद को लेकर स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की भागदौड़ तेज हो गई है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि नई नियुक्ति कब हो पाएगी, मगर चूंकि यह पद रिक्त होना अब सुनिश्चित हो गया है, इस कारण दावेदार नेताओं के मुंह में लार आना स्वाभाविक है।
ज्ञातव्य है कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद यह तय सा माना जा रहा था कि रलावता की इस पद से मुक्ति होगी ही, मगर चूंकि रद्दोबदल की थोड़ी सी भी सुगबुगाह नहीं थी, इस कारण सारे दावेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। रलावता भी यही कहते सुने जाते थे कि आगामी नगर निगम चुनाव भी उनकी ही देखरेख में होंगे।
जहां तक दावेदारी का सवाल है, हालांकि अजमेर दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुके प्रमुख समाजसेवी हेमंत भाटी ने अपनी ओर से कोई दावेदारी नहीं की है, मगर जिस तरह से पुराने स्थापित नेताओं को नजरअंदाज कर उन्हें टिकट दिया गया और लोकसभा चुनाव में भाटी ने जी-जान से सेवा की, आम धारणा यही है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की पहली पसंद वे ही हैं। इसके पीछे तर्क उनकी साधन संपन्नता व खुद की सशक्त टीम होने का दिया जाता है। जानकारी ये है कि उन्हें शहर अध्यक्ष पद संभालने का फौरी प्रस्ताव भी मिल चुका है, मगर फिलवक्त उन्होंने अपना मानस स्पष्ट नहीं किया है। कदाचित सचिन के जोर देने पर वे राजी भी हो जाएं। दूसरे प्रमुख दावेदार मौजूदा शहर उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल माने जाते हैं। उन्हें सचिन की कृपा से ही यह पद हासिल हुआ था। वे कांग्रेस से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और खांटी नेता माने जाते हैं। पायलट लॉबी के ही विजय जैन की भी खासी चर्चा है। इसी प्रकार भूतपूर्व शहर अध्यक्ष स्वर्गीय माणक चंद सोगानी के जमाने से महत्वपूर्ण पदों पर रहे प्रताप यादव की भी सशक्त दावेदारी मानी जा रही है। मगर सचिन के लिए समस्या ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने की है, जिसके प्रति सर्वस्वीकार्यता हो, सभी को साथ लेकर चल सके और साधन संपन्न हो। और सबसे बड़ी बात ये कि आगामी नगर निगम चुनाव में पार्टी की प्रतिष्ठा को फिर से कायम रख पाने में सक्षम हो। यूं तो कांग्रेस के सारे धड़ों को एकजुट करना सचिन के आसान नहीं होगा, मगर समझा जाता है कि वे भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के धड़ों को एक जाजम पर बैठा कर ऐसा संगठन बनाने की जुगत में हैं, जिसका कोई विरोध न कर सके।
-तेजवानी गिरधर

वसुंधरा से प्रो. जाट की दूरी के क्या मायने निकाले जाएं?

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के अजमेर दौरे के दौरान हाल तक राज्य के जलदाय मंत्री रहे व अब केन्द्र के मौजूदा जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट की गैर मौजूदगी के भाजपा नेता भले ही कोई जायज कारण गिनाएं, मगर राजनीतिक हलकों में यह जुगाली के सुपुर्द हो गया है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि प्रो. जाट ने वसुंधरा ने उनके केन्द्र में मंत्री बनने के बाद इस पहले दौरे में क्यों कन्नी काटी? चाहे कैसी भी मजबूरी रही हो, मगर जब केन्द्र ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है, और उसके बाद मुख्यमंत्री पहली बार अजमेर आई हैं व जाहिर तौर पर इस मौके पर अजमेर के सभी प्रमुख नेता व प्रशासन का पूरा लवाजमा मौजूद रहेगा तो क्या उनका यहां उपस्थित रहना जरूरी नहीं था, ताकि उस पर कोई ठोस चर्चा हो जाती? सवाल उठ रहे हैं कि क्या केन्द्र में मंत्री बनने के लिए ऐन वक्त पर पाला बदलने की कानाफूसियों व उनकी इस दूरी के बीच कोई अंतर्संबंध है? गर भाजपा वसुंधरा व प्रो. जाट के बीच हाल ही बनी दूरी को कोरी कपोल कल्पित चर्चा मानती है तो क्या यह जरूरी नहीं था कि उस कथित भ्रांति को ही दूर करने के लिए ही प्रो. जाट को यहां आना चाहिए था? क्या भाजपा के थिंक टैंकरों को इस बात की कत्तई परवाह नहीं कि प्रो. जाट की इस अनुपस्थिति से आम जन में गलत संदेश जाएगा? क्या उन्हें इसकी चिंता भी नहीं कि इससे भाजपा कार्यकर्ताओं में भी मतभेदों का कौतूहल जागेगा? कौतुहल ही क्यों गुटबाजी को भी बढ़ावा मिल सकता है।
यहां आपको बता दें कि पिछले दिनों जब काफी जद्दोजहद के बाद प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला था तो राजनीतिक हलकों यह चर्चा आम थी कि उन्हें इसके लिए ऐन वक्त पर पाला ही बदलना पड़ा। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रो. जाट वसुंधरा के खासमखास माने जाते रहे हैं और उन्हीं कहने पर उन्होंने राज्य में केबीनेट मंत्री पद का मोह त्याग कर लोकसभा चुनाव लड़ा। स्वाभाविक रूप से इस वादे के बाद कि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें जरूर मंत्री बनवाएंगी। मगर सूत्र लगातार ये ही बताते रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व वसुंधरा के बीच जो ट्यूनिंग बिगड़ी है, उसके चलते प्रो. जाट का मंत्री बनना बेहद कठिन हो गया है। इसी दौरान प्रो. जाट ने जिस प्रकार मोदी के खासमखास कथित हनुमान पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर से मेलजोल बढ़ा दिया और प्रो. जाट के मंत्री बनने के पीछे माथुर की पैरवी को ही अहम माना जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट की अनुपस्थिति कोई यूं ही चर्चा का विषय नहीं बनी है। उन्हें कोई वसुंधरा की लटकन के रूप में थोड़े ही घूमना था, उन्हें बाकायदा जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में आईसीयू यूनिट के लोकार्पण और  तोपदड़ा स्थित आदर्श आंगनबाड़ी केन्द्र के शुभारंभ समारोहों में विधिवत निमंत्रण मिला हुआ था। यहां तक कि दोनों कार्यक्रमों के बोर्डों पर भी उनका नाम लिखा था। जानकारी के अनुसार प्रशासन के स्तर पर भी उनका निमंत्रण दिया गया था। वसुंधरा के दौरे से एक दिन पहले जब प्रो. जाट अजमेर आए तो यही माना गया कि वे उनके साथ रहने के लिए ही अजमेर आए हैं, मगर वे दौरे के दिन केकड़ी होते हुए फागी की ओर चले गए। संभव है उनकी गैर मौजूदगी की टीका करने को बाल की खाल निकालना माना जाए, मगर राजनीतिक हलकों में हो रही फुसफुसाहट को भला कौन रोक पाएगा?
-तेजवानी गिरधर