शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

कौन होगा प्रो. सांवरलाल जाट का उत्तराधिकारी?

अजमेर लोकसभा सीट से सांसद प्रो. सांवर लाल जाट के निधन से रिक्त हुई सीट के लिए आगामी छह माह के भीतर उप चुनाव कराना संभावित है। ऐसे में भाजपा के लिए उनके जितना ही सशक्त उत्तराधिकारी तलाशना कठिन होगा। उधर कांग्रेस में भी चूंकि यहां के पूर्व सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं और मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जा रहे हैं, इस कारण वहां भी नया प्रत्याशी तलाशना कठिन टास्क होगा।
जहां तक भाजपा का सवाल है, उसके पास इस वक्त अजमेर जिले से दो राज्य मंत्री, दो संसदीय सचिव, एक प्राधिकरण के अध्यक्ष होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उसके पास जिला स्तरीय नेताओं की कोई कमी नहीं है, मगर सच्चाई ये है कि प्रो. जाट के निधन के बाद आगामी संभावित लोकसभा उपचुनाव के लिए सशक्त प्रत्याशी का अभाव है। यह अभाव तब भी था, जब भाजपा ने जाट को नजरअंदाज कर किरण माहेश्वरी को बाहर से ला कर चुनाव लड़वाया था।
ज्ञातव्य है कि स्वर्गीय जाट की रुचि अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को नसीराबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाने थी, मगर भाजपा ने पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गेना को मैदान में उतारा, मगर वे हार गईं। उन्हें भी आगामी उपचुनाव में एक दावेदार माना जा सकता है, मगर चूंकि वे विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं, इस कारण लगता नहीं कि भाजपा उन पर दाव खेलेगी। अजमेर डेयरी अध्यक्ष व प्रमुख जाट नेता रामचंद्र चौधरी जरूर भाजपा के खेमे में हैं, मगर अभी उन्होंने भाजपा ज्वाइन नहीं की है। वे एक दमदार नेता हैं, क्योंकि डेयरी नेटवर्क के कारण उनकी पूरे जिले पर पकड़ है। शायद ही ऐसा कोई गांव-ढ़ाणी हो, जहां उनकी पहचान न हो। यदि संघ सहमति दे दे तो वे भाजपा के एक अच्छे प्रत्याशी हो सकते हैं। यूं पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा प्रयास कर सकते हैं, मगर भाजपा राजपूत का प्रयोग कितना कारगर मानती है, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
बहरहाल, अब जबकि प्रो. जाट का स्वर्गवास हो गया है, संभव है भाजपा सहानुभूति वोट हासिल करने के लिए उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा को चुनाव मैदान में उतारे।
जरा पीछे जाएं तो पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत लंबे समय तक स्थानीय प्रत्याशी के रूप में जीतते रहे। वे पांच बार जीते व एक बार हारे। रावत के सामने कांग्रेस ने भूतपूर्व राजस्व मंत्री किशन मोटवानी, पुडुचेरी के उपराज्यपाल बाबा गोविंद सिंह गुर्जर, जगदीप धनखड़ व हाजी हबीबुर्रहमान को लड़ाया गया था, जो कि हार गए। पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. प्रभा ठाकुर एक बार उनसे हारीं और एक बार जीतीं। इनमें से मोटवानी व बाबा का निधन हो चुका है, जबकि धनखड़ ने राजनीति छोड़ दी है और हाजी हबीबुर्रहमान भाजपा में जा चुके हैं। डॉ. प्रभा ठाकुर अभी हयात हैं। स्थानीय सशक्त प्रत्याशी के अभाव में कांग्रेस ने सचिन पायलट को उतारा, और वह प्रयोग कारगर साबित हुआ। उन्होंने जिले में जितने कार्य करवाए, उतने तो पूर्व सासंद पच्चीस साल में भी नहीं करवा पाए, मगर मोदी लहर के चलते वे दूसरी बार नहीं जीत पाए। अब जब कि उपचुनाव की नौबत आ गई है तो एक बार फिर उनके नाम पर नजर अटकती है, मगर वे प्रदेश अध्यक्ष हैं और उन्हें यह दायित्व मुख्यमंत्री के रूप में ही प्रोजेक्ट करने के लिए ही दिया गया तो समझा जाता है कि वे विधानसभा चुनाव ही लड़ेंगे। ऐसे में कांग्रेस के लिए फिर लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी तलाशना कठिन होगा। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो कांग्रेस के पास सचिन के अतिरिक्त उनके जितना कोई दमदार गुर्जर नेता जिले में नहीं है। चूंकि यह सीट अब जाट बहुल हो गई है, उस लिहाज से सोचा जाए तो पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी व पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया को दावेदार माना जा सकता है। गुर्जर प्रत्याशी के रूप में महेन्द्र गुर्जर का नाम लिया जा सकता है।
यदि जाट-गुर्जर से हट कर बात करें तो कांग्रेस के पास बनियों में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती हैं, जिनका नाम पूर्व में भी उभरा था। एक बार इस सीट पर जीत चुकी प्रभा ठाकुर के नाम पर भी विचार हो सकता है। उनके अतिरिक्त पूर्व विधायक रघु शर्मा व सेवादल के प्रदेशाध्यक्ष राजेश पारीक के भी नाम भी सामने आ सकते हैं। उधर भाजपा के पास पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा हैं, हालांकि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन भी अपने आप को इस योग्य मानते रहे हैं। प्रयोग करने के लिए मौजूदा अजमेर नगर निगम मेयर धर्मेन्द्र गहलोत की विचारे जा सकते हैं।
बहरहाल, चूंकि इस साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में संभव है कि इसके साथ ही अजमेर का उपचुनाव भी करवा लिया जाए। कुल मिला कर यह तय है कि अजमेर लोकसभा का चुनाव कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए ही 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों के सेमीफाइनल की तरह होगा।
-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 9 अगस्त 2017

मजबूत जाट नेता के रूप में भाजपा को बड़ा नुकसान

राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष व अजमेर के भाजपा सांसद प्रो. सांवरलाल के निधन से जहां देश व राज्य ने एक सशक्त किसान नेता खो दिया है, वहीं भाजपा राजनीतिक रूप से एक मजबूत जाट नेता से वंचित हो गई है, जिसकी क्षतिपूर्ति बेहद मुश्किल है। कदाचित वे इकलौते जाट नेता थे, जिन्होंने अजमेर जिले में परंपरागत रूप से कांग्रेस विचारधारा के जाट समुदाय को भाजपा से जोड़े रखा। जल संसाधन मंत्री रहे प्रो. जाट ने अनके बार मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के लिए संकट मोचक के रूप में भूमिका निभाई।
स्वर्गीय श्री बालूराम के घर गोपालपुरा गांव में 1 जनवरी 1955 को जन्मे श्री जाट ने एम.कॉम. व पीएच.डी. की डिग्रियां हासिल की। पेशे से वे प्रोफेसर थे, मगर बाद में राजनीति में भी उन्होंने सफलता हासिल की। वे राजस्थान विश्वविद्यालय के लेखा शास्त्र एवं सांख्यिकी विभाग के सह आचार्य रहे। चौधरी चरण सिंह के लोकदल से 1990 में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले जाट ने फिर राजनीति में पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वे कितने लोकप्रिय थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं व बारहवीं राजस्थान विधानसभा के सदस्य चुने गए। वे 13 दिसंबर 1993 से 30 नवंबर 1998 तक सहायता एवं पुनर्वास विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 8 दिसंबर 2003 से 8 दिसंबर 2008 तक जल संसाधन, इंदिरा गांधी नहर परियोजना, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, भू-जल एवं सिंचित क्षेत्र विकास विभाग के मंत्री रहे। तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में उनका विधानसभा क्षेत्र भिनाय परिसीमन की चपेट में आ गया और उन्होंने नसीराबाद से चुनाव लड़ा, लेकिन कुछ वोटों के अंतर से ही श्री महेन्द्र सिंह गुर्जर से पराजित हो गए। पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में वे अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने अपने महिला मोर्चे की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतार दिया था, जो कि पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री व मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से हार गईं। चौदहवीं विधानसभा के चुनाव में वे नसीराबाद से जीते और फिर से जलदाय मंत्री बनाए गए, मगर उसके बाद सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में उन्हें अजमेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़वाया गया और उन्होंने पायलट को हरा दिया। 20 दिसम्बर 2013 को उन्होंने केंद्रीय मंत्री की शपथ ग्रहण की। मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में राज्यमंत्री बने प्रोफेसर सांवरलाल जाट सांसद बनने के बाद भी वसुंधरा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने पर हमेशा विपक्ष के निशाने पर रहे। विपक्ष ने कई बार सांवरलाल जाट को लेकर सदन की कार्यवाही में बाधा डाली और सदन से वॉकआउट किया।
मोदी मंत्रीमंडल के फिर हुए विस्तार में उन्हें स्वास्थ्य कारणों से मंत्री पद से हटा दिया गया। इसका जाट समाज ने कड़ा विरोध किया। आखिरकार मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उन्हें राज्य किसान आयोग का अध्यक्ष बना कर केबीनेट मंत्री का दर्जा दिया।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये रही कि वे अपने समर्थकों व कार्यकर्ताओं के सार्वजनिक अथवा निजी कामों के लिए सदैव तत्पर रहते थे। अजमेर ने एक दिग्गज किसान नेता तो खो ही दिया है, उनके निधन से भाजपा को ज्यादा बड़ा नुकसान हुआ है। उनके मुकाबले का दूसरा जाट नेता भाजपा के पास नहीं है। अब संभव है अजमेर संसदीय सीट के लिए आगामी छह माह के भीतर होने वाले उपचुनाव में भाजपा उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा को स्वर्गीय प्रो. जाट की विरासत संभालने को कहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

प्रो. जाट के स्वास्थ्य पर जारी करना पड़ा प्रेस नोट

राजस्थान किसान आयोग के अध्यक्ष व अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट के स्वास्थ्य को लेकर उनके पीए राजेन्द्र जैन ने एक प्रेस नोट जारी किया है। उसमें लिखा है कि उनका दिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा है और स्वास्थ्य में सुधार है। शुभचिंतकों से अपील की गई है कि वे किसी भी प्रकार अफवाह या दुष्प्रचार पर ध्यान न दें। यह बेहद अफसोसनाक बात है कि कोई शख्सियत जिजीविषा के बल पर स्वास्थ्य लाभ ले रही हो और उसके बारे में अफवाहें फैलाई जाएं, तब मजबूरी में स्वास्थ्य को लेकर स्पष्टीकरण जारी करना पड़े।
असल में यह स्थिति इस कारण बनी है कि वे दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं और मीडिया उसकी रिपोर्टिंग नहीं कर रहा। जब तक जयपुर में भर्ती थे तो पूरी सरकार का ध्यान वहीं था, दिनभर नेताओं का जमावड़ा अस्पताल में ही रहता था और मीडिया भी पल-पल की खबर ले रहा था। चाहे सोशल मीडिया के जरिये, चाहे प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए, उनके स्वास्थ्य के बारे में आम जनता को जानकारी मिल रही थी। अस्पताल की ओर से मेडिकल बुलेटिन जारी हो न हो, पत्रकार अपने स्तर पर ही डॉक्टरों से जानकारी लेकर खबर बना रहे थे। मगर जब से उन्हें दिल्ली शिफ्ट किया गया है, कोई भी आधिकारिक जानकारी मीडिया में नहीं आ पा रही। उसकी वजह ये है कि दिल्ली की मीडिया की इसमें रुचि नहीं है। राज्य के अखबारों को भी अपने प्रतिनिधियों के जरिए प्रतिदिन खबर मंगवाना प्रैक्टिकेबल नहीं है। यही  वजह है कि प्रो. जाट की हालत इस समय कैसी है, उसके बारे में कुछ भी पता नहींं लग रहा। जाहिर है ऐसे में अफवाहें फैलती हैं। जितने मुंह उतनी बातें। नकारात्मक-सकारात्मक दोनों किस्म की चर्चाएं हो रही हैं। यहां तक कि भावी राजनीति तक पर चर्चा करने से लोग बाज नहीं आ रहे। इसको लेकर तनिक विवाद भी हुआ। हालांकि उनके समर्थक, जो कि दिल्ली में प्रो. जाट के रिश्तेदारों के संपर्क में है, वे वाट्स ऐप के जरिए स्वास्थ्य में सुधार की जानकारी दे रहे हैं, मगर चूंकि उसमें मेडिकल की टैक्निकल टर्म में खुलासा नहीं होता, इस कारण उस पर उतना विश्वास नहीं होता, जितना कि प्रिंट मीडिया में छपी खबर पर होता है।
कुल मिला कर उनके बारे में जानकारी न मिलने के कारण समर्थकों में चिंता व्याप्त है। विशेष रूप से अजमेर जिले के लोगों को तो उनके बारे में जानने की बहुत उत्कंठा है, चूंकि वे अजमेर के जनप्रतिनिधि हैं। राज्यभर में भी सरकार व राजनीति से जुड़े लोगों को उत्सुकता है, चूंकि वे एक प्रभावशाली नेता व किसान आयोग के अध्यक्ष हैं।
हालांकि यह तय है कि जयपुर की तुलना में दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार की भी यही मंशा रही कि आगे का इलाज दिल्ली में हो। उसकी वजह ये रही होगी कि जयपुर में इलाज चलने पर पूरी सरकार व मंत्रियों-विधायकों का ध्यान यहीं अटका रहता। इसके अतिरिक्त उनके शुभचिंतकों का जमावड़ा होने से अस्पताल की व्यवस्थाएं प्रभावित होतीं। मगर दिल्ली भेजे जाने का परिणाम ये रहा कि उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिलना ही बंद सी हो गई। ऐसे में अफवाहें फैलनी ही थीं। उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप उनके निजी सचिव को भी बाकायदा प्रेस नोट जारी करना पड़ा कि उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। यह सुखद है कि उनकी तबियत अब ठीक है, मगर सरकार को चाहिए कि वह अपने स्तर पर ही प्रतिदिन के सुधार के बारे में जानकारी मीडिया को उपलब्ध करवाए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

सरकार दरगाह कमेटी व नाजिम को लेकर गंभीर नहीं

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की अंदरूनी व्यवस्थाओं को देखने वाली दरगाह कमेटी के प्रशासनिक मुखिया नाजिम को लेकर गंभीर नहीं है। दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के तहत गठित इस कमेटी को एक ढर्ऱे की तरह चलाया जा रहा है, जबकि इसमें सदस्यों से लेकर नाजिम तक की नियुक्ति में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है।
सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कमेटी के प्रशासनिक मुखिया की नियुक्ति अत्यधिक लेटलतीफी बरती जाती है। ऐसे अनेक मौके रहे हैं, जबकि नाजिम की अनुपस्थिति में कार्यवाहक नाजिम से ही काम चलाया गया है। हाल ही गुजरात के रिटायर्ड आईएएस आई बी पीरजादा को नाजिम नियुक्त किया गया है। सरकार की मनमर्जी देखिए कि जब अब तक यहांं नौकरी कर रहे सरकारी अधिकारी की नियुक्ति का नियम है और यही परंपरा भी रही है, उसके बावजूद इस पद पर सेवानिवृत्त आईएएस को नियुक्त कर दिया है। नियुक्ति में किस प्रकार राजनीतिक दखल रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे देश में उसे केवल गुजरात का ही अधिकारी इस पद के योग्य मिला है। इससे स्पष्ट है कि सरकार इस पद को ईनाम का जरिया बना रही है, जबकि यहां पूर्णकालिक अधिकारी की जरूरत है। जरूरत इसलिए है कि यह उस दरगाह का प्रबंध देखने वाली कमेटी का प्रशासनिक मुखिया है, जो पूरी दुनिया में सूफी मत मानने वालों का सबसे बड़ा मरकज है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के चलते अत्यंत संवेदनशील स्थान है। आतंकियों के निशाने पर है और एक बार तो यहां बम ब्लास्ट तक हो चुका है।
बेशक प्रतिदिन आने वाले जायरीन की सुविधा के मद्देनजर सरकार गंभीर रहती है, उसके लिए बजट भी आवंटित होता है, मगर दरगाह कमेटी व नाजिम को लेकर सरकार एक ढर्ऱे पर ही चल रही है। वस्तुस्थिति ये है कि यह कमेटी, विशेष रूप से नाजिम न केवल दरगाह की दैनिक व्यवस्थाओं को अंजाम देते हैं, अपितु खादिमों व दरगाह दीवान के बीच आए दिन होने वाले विवाद में भी मध्यस्थ की भूमिका उन्हें निभानी होती है। यह काम कोई पूर्णकालिक अधिकारी ही कर सकता है। होना तो यह चाहिए कि इस पद पर नियुक्ति ठीक उसी तरह से की जाए, जिस तरह आरएएस व आईएएस अधिकारियों तबादला नीति के तहत की जाती है। उसमें विशेष रूप से यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वह दबंग हो।
अफसोसनाक बात है कि इस ओर केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय कत्तई गंभीर नहीं है। यही वजह है कि जब भी कोई नाजिम अपना कार्यकाल पूरा करके जाता है या इस्तीफा दे देता है तो लंबे समय तक यह पद खाली ही पड़ा रहता है। कार्यवाहक नाजिम से काम चलाया जाता है, जिसके पास न तो प्रशासनिक अनुभव होता है और न ही उतने अधिकार होते हैं। मंत्रालय इस पद को लेकर कितना लापरवाह है, इसका अनुमान इसी बात से लग रहा है कि उसने नियमों के विपरीत जा कर एक सेवानिवृत्त अधिकारी को नाजिम बना दिया। एक सेवानिवृत्त अधिकारी में कितनी ऊर्जा होती है, यह बताने की जरूरत नहीं है, जबकि यहां ऊर्जावान अधिकारी की जरूरत है, जैसे जिला कलेक्टर गौरव गोयल। ऐसा अधिकारी ही यहां की व्यवस्थाओं को ठीक ढ़ंग से अंजाम दे सकता है।
एक सवाल ये भी उठा है कि यदि सरकार को नियम बदल कर सेवानिवृत्त अधिकारी हो ही यहां लगाना था तो काहे को सेवारत अधिकारियों के इंटरव्यू आहूत किए गए। यह पहले से स्पष्ट होता कि इस पद के लिए सेवानिवृत्त अधिकारी भी आवेदन कर सकता है, तो संभव अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी भी आवेदन करते।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 2 अगस्त 2017

साध्वी अनादि सरस्वती लड़ेंगी अजमेर उत्तर से?

जाने-माने राजनीतिक पंडित एडवोकेट राजेश टंडन एक नई खबर लेकर आए हैं सोशल मीडिया पर। वो ये कि चिति योग संस्थान की साध्वी अनादि सरस्वती पर संघ की नजर है कि यदि आगामी विधानसभा चुनाव में ऐन वक्त पर मौजूदा विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का टिकट काटना पड़े तो उनकी जगह किसी भाजपाई की बजाय उनको चुनाव मैदान में उतारा जाए। हालांकि यह खबर से ज्यादा फिलहाल अफवाह ही कही जाएगी, मगर राजनीति में सब कुछ संभव है। और जब टंडन साहब कहीं से खोद कर लाए हैं तो उस पर जरा गौर करना वाजिब है।
टंडन ने अपनी खबर को पुख्ता आधार देने के लिए साध्वी की हाल की गतिविधियों की ओर भी इशारा किया है। जैसे जयपुर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उनका आशीर्वाद देना, राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव से उनकी शिष्टाचार भेंट इत्यादि। इसके अतिरिक्त विश्व हिंदू परिषद व संघ के कार्यक्रमों में उनके मंचों पर भी उन्हें देखा गया है। इसके अलावा रायपुर-छत्तीसगढ की यात्रा के दौरान उनकी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मुलाकात को भी उन्होंने इसी संदर्भ में जोड़ा है।
हालांकि अभी तक साध्वी अनादि सरस्वती की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, इस कारण उनका मन्तव्य क्या है, कुछ कहा नहीं जा सकता। चूंकि संघ की भले ही उन पर नजर हो, मगर अनादि सरस्वती जैसी साध्वी राजनीति में आने को तैयार होती हैं, या नहीं, उस बारे में अभी से अनुमान लगाना कठिन है। हालांकि जब से वे जनता में अवतरित हुई हैं, तब आरंभ में कांग्रेस व भाजपा, दोनों ही दलों के नेताओं से उनके संपर्क रहे हैं। शुरू में कुछ प्रमुख समाजसेवी व व्यवसायी भी उनके संपर्क में रहे। पिछले कुछ सालों में उनकी गतिविधि यकायक बढ़ गई है और वे दूर-दूर की आध्यात्मिक यात्राएं कर चुकी हैं। अब तो उनके चित्ताकर्षक फोटो युक्त प्रवचन सोशल मीडिया में भी खूब नजर आ रहे हैं। फेसबुक पर उनके सैकड़ों अनुयायी हैं। उनके मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, या नहीं, कहा नहीं जा सकता, मगर जो कोई भी उनको प्रोजेक्ट करना चाहता है, वह निश्चित रूप से शातिर दिमाग है। कदाचित संघ में घुसपैठ करवाने में भी उसी की भूमिका हो।
अपनी जितनी समझ है, उसके हिसाब अगर साध्वी राजनीति में आती हैं तो यह तय है कि जब वे साध्वी नहीं थीं, तब के कहानी-किस्से भी लोग चर्चा में ले आएंगे। एक चुटकला नहीं है कि अगर आपको अपनी सात पीढिय़ों के बारे में जानकारी न हो तो केवल इतना कीजिए कि अपने चुनाव लडऩे की अफवाह फैला दीजिए, लोग आपकी सात पीढ़ी का पूरा हिसाब-किताब ढूंढ लाएंगे, पुष्कर में किसी पंडे से नहीं मिलना होगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000