शनिवार, 22 जनवरी 2011

समाधान नहीं है डीजे गार्डन जब्त करना

लंबे समय से नगर निगम अधिकारियों की मिलीभगत से व्यावसायिक रूप से चल रहे अजयनगर स्थित डीजे गार्डन के बारे में एक अखबार में जब खबर छपी तब जा कर महापौर कमल बाकोलिया को होश आया कि उसे जब्त किया जाना चाहिए, मगर यह कोई समाधान भी तो नहीं है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि निगम ने देर से यह जो कार्यवाही की है, वह सराहनीय ही कही जाएगी, मगर इसके साथ जुड़े अनेक सवालों के जवाब खुद निगम के पास ही नहीं हैं। अव्वल तो जब से मिशन अनुपम योजना के तहत इसकी सार-संभाल की जिम्मेदारी विजय केवलरामानी को दी गई, उसके बाद खुद निगम ने ही ध्यान नहीं दिया कि उस गार्डन में हो क्या रहा है? निगम तो केवलरामानी को जिम्मेदारी दे कर चैन की नींद सो गया। हां, उसके कुछ अधिकारी जरूर जागे, मगर स्वार्थपूर्ति की खातिर। उन्होंने केवलरामानी से हाथ मिला लिया। और इस प्रकार केवलरामानी ने तो उसका व्यावसायीकरण कर फायदा उठाया ही और निगम के अधिकारियों की भी मौज हो गई। मिंया-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। ऐसा लंबे समय से चलता रहा। रहा सवाल उस गार्डन का समारोह स्थल के रूप में उपयोग करने वाले अजयनगर के निवासियों का तो उन्हें तो तुलनात्मक रूप से सस्ते में अपने ही इलाके में सुसज्जित और सुविधापूर्ण समारोह स्थल मिल रहा था, इस कारण उनके तो आपत्ति करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। जब मामला उजागर किया गया तो महापौर को लगा कि कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने उसे सील तो कर दिया, मगर उनके पास अब इस बात का कोई जवाब नहीं है कि इसका किया क्या जाएगा? सवाल ये भी है कि क्या वे वाकई जांच करवाएंगे कि किन-किन अधिकारियों की मिलीभगत से गार्डन का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा था? क्या जांच हो जाने के बाद उन अधिकारियों को दंडित करवाएंगे?
यह तो है सिक्के का एक पहलु। जरा दूसरे पहलु पर भी नजर डाल लेते हैं। अव्वल तो मिशन अनुपम योजना में ही कुछ गड़बड़ लगती है। सीधी सी बात है कि कोई क्यों बिना किसी स्वार्थ के निगम से ऐसे गार्डन लेकर उसकी सार-संभाल करेगा। यह निगम भी जानता है कि जो ऐसे गार्डन में पैसे लगाएगा, वह उसका उपयोग भी करेगा। और केवल एक बार पैसे लगाने का सवाल नहीं है। निरंतर मैंटिनेंस के पैसे तो कोई कुबेर भी नहीं देने वाला है। यह सीधा सा सच है, मगर निगम के अधिकारियों को यह मामूली सी बात समझ में नहीं आई। समझ में आई भी तो सरकारी योजनाओं में ऐसी खामी के बारे में सरकार को उसकी जानकारी देने की बजाय उन्होंने बीच की गली से उसका दुरुपयोग होने दिया, क्यों कि उनका भी पेट भर रहा था।
इसमें कोई संशय नहीं कि डीजे गार्डन का जिस प्रकार दुरुपयोग हो रहा था, वह निश्चित रूप से गैर कानूनी था, मगर उसे बंद देना भी कोई समाधान नहीं है। यह एक कटु सत्य है कि निगम उस पर ताला लगाने के बाद फिर घोड़े बेच कर सो जाएगा और वह गार्डन कुछ ही दिनों में उजाड़ हो जाएगा, जैसे कि उसके अन्य गार्डन बिना रखरखाव के कारण उजाड़ पड़े हैं। जो गार्डन उसने डीजे गार्डन की तरह मिशन अनुपम योजना के तहत सार-संभाल के लिए किसी को नहीं दे रखे हैं, उनकी दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। यानि न तो निगम खुद उनकी सार-संभाल करने को तैयार है और न ही किसी और के सार-संभाल करके कमा खाने पर राजी है। तो आखिर समाधान क्या है?
यह सब को पता है कि इसका एक समाधान पिछले भाजपा बोर्ड ने निकाला था और विजय लक्ष्मी पार्क को ठेके पर दिया था। आज वह समारोह स्थल के रूप में शानदार तरीके से सेवा दे रहा है। सरकारी और प्राइवेट कामकाज में कितना फर्क है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वहीं पर देखा जा सकता है। विजयलक्ष्मी पार्क तो देखते ही बनता है और पास ही सटा हुआ आजाद पार्क उजाड़ पड़ा है। हालांकि विजय लक्ष्मी पार्क को ठेक पर दिए जाने को लेकर भी कानूनी फच्चर फंसाई जा चुकी हैं, मगर वह उसके कथित रूप से गलत तरीके से ठेके पर देने की वजह से है।
बहरहाल, डीजे गार्डन का मामला उजागर होने के बाद अब निगम को यह विचार करना ही होगा कि उसे अपने गार्डनों की देखभाल के लिए आखिर करना क्या चाहिए?