सोमवार, 28 जून 2021

एडीए अध्यक्ष की नियुक्ति के बिना विकास की उम्मीद बेमानी


यह एक दुर्भाग्य ही है कि अजमेर जैसा ऐतिहासिक शहर और विश्व मानचित्र पर अंकित जाने-माने पर्यटन स्थल का विकास पहले नगर सुधार न्यास व बाद में अजमेर विकास प्राधिकरण में अमूमन देर से अध्यक्ष की नियुक्ति होने के कारण बार-बार बाधित हुआ है। आज भी स्थिति ये है कि नई सरकार तकरीबन ढ़ाई साल पूरे कर रही है, मगर अब तक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई है।

यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी हुई है। इसके अनेक उदाहरण हैं। वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई विशेष रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। 

इस बात के प्रमाण हैं कि जब भी न्यास के अध्यक्ष पद पर कोई राजनीतिक प्रतिनिधि बैठा है, शहर का विकास हुआ है। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की। हर न्यास अध्यक्ष ने चाहे शहर के विकास के लिए, चाहे अपनी वाहवाही के लिए, काम जरूर करवाया है। पृथ्वीराज चौहान स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, राजीव उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक सहित अनेक आवासीय योजनाएं उसका साक्षात प्रमाण हैं।

सरकारों की अरुचि अथवा कोई अन्य मजबूरी हो सकती है, मगर अध्यक्ष की नियुक्ति समय पर न होना अजमेर शहर के लिए नुकसानदेह है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि नियुक्ति के दावेदारों को इंतजार करना पड़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।

वर्तमान में प्राधिकरण तकरीबन ढ़ाई साल से प्रशासनिक अधिकारियों भरोसे ही चल रहा है। ऐसे में विकास तो दूर रोजमर्रा के कामों की हालत भी ये है कि जरूरतमंद लोग चक्कर लगा रहे हैं और किसी को कोई चिंता नहीं। नियमन और नक्शों के सैंकड़ों काम अटके पड़े हैं। स्पष्ट है कि विकास अवरुद्ध हुआ है।

यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि प्राधिकरण गठित होने की वजह से भविष्य में विकास की रफ्तार तेज होने की आशा बलवती हुई थी। वजह ये कि प्राधिकरण का क्षेत्र काफी बड़ा हो गया था। इसके तहत किशनगढ़ और पुष्कर शहर के अतिरिक्त 119 गांव भी इसका हिस्सा बन गए। यानि कि प्राधिकरण यूआईटी की तुलना में एक उच्च शक्ति वाली संस्था बन गई। न्यास अध्यक्ष को 25 लाख रुपए और सचिव को दस लाख रुपए के वित्तीय अधिकार थे, मगर अध्यक्ष और कमिश्नर (सचिव) दोनों के वित्तीय अधिकार एक-एक करोड़ रुपए हो गए। इसमें सरकार की ओर से घोषित एक चेयरमैन के अलावा एक सचिव और 19 सदस्यों का प्रावधान है। 19 सदस्यों में से 12 सदस्य अधिकारी और 7 सदस्य राजनीतिक नियुक्तियों के रखने का प्रावधान है। जैसे ही प्राधिकरण का गठन हुआ तो सभी समाचार पत्रों में यह शीर्षक सुर्खियां पा रहा था कि अब लगेंगे अजमेर के विकास को पंख। उम्मीद जताई गई थी कि सही योजनाएं बनीं और तय समय में काम पूरे हुए तो एक दशक में ही अजमेर महानगर में तब्दील हो सकता है। इसके ठोस आधार भी हैं। प्राधिकरण की सीमाएं किशनगढ़ औद्योगिक क्षेत्र तक हैं, यानि केंद्रीय विद्यालय तक हमारी पहुंच हो गई है। बाड़ी घाटी अब प्राधिकरण का हिस्सा है, यानि विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बने पुष्कर तीर्थ को हम विकास की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय सुविधाएं दे सकते हैं। ब्यावर रोड पर सराधना और नारेली तीर्थ हमारी सीमा में आ जाने से हम कई दृष्टि से विकसित हो जाएंगे। हवाई अड्डा तो गेगल निकलते ही हम छू लेंगे। कुल मिला कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन अजमेर के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता था। मगर वह इस कारण नहीं हो पा रहा कि पिछली बार भी नियुक्ति में देरी हुई, इस बार भी हो रही है।

कुल मिला कर जब तक प्राधिकरण के सदर पद पर किसी राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं होती, तब तक अजमेर का विकास यूं ही ठप पड़ा रहेगा।

-तेजवानी गिरधर

7742067000

अजमेर पर गीत

 


पिछले दिनों सोशल मीडिया पर अजमेर शहर पर कुछ गीत खूब धूम मचाए हुए थे। चूंकि रचनाओं के साथ उनके लेखकों का नाम नहीं था, इस कारण यह पता नहीं लग पाया कि इनकी रचना किसने की है? अजमेर का परिचय कराने वाले इन गीतों को लिखने वाले अज्ञात रचनाकारों का बहुत बहुत साधुवाद। इनमें वर्तनी व व्याकरण की त्रुटियां थीं, जिन्हें दुरुस्त कर दिया गया है।



अजमेर की जो धरा है थोड़ा हटके जरा है

शहर ये खूबियों और रस-स्वादों से भरा है

स्टेशन के नए गेट से निकलते ही गांधी मार्केट दिखता है

जहां बिक्किलाल का शरबत बिकता है

मदार गेट में घुसते ही पुरानी मंडी नजर आती है

इस संकड़ी गली को देख रूह कांपती है

एक बात दिमाग को बरबस छील जाती है

कैसे इस गली में औरतें दोने चाटती हैं

ये गली प्राचीन अजमेर की याद दिलाती है

बुद्धामल के सोन हलवे से मिलवाती है

नया बाजार भी अपने दो रूप दिखाता है

दिन में ये सोने चांदी का गढ़ कहलाता है

शाम ढ़लते ही चौपाटी सा नजर आता है

सर्दी में चरी चाय और सूप लीजिये जनाब

गर्मी में मिल्क बादाम, फालूदा है लाजवाब

कड़ी कचोरी में अजमेर का नहीं है कोई तोड़

नया बाजार चौपड़ या केसरगंज के मोड़

बरसात का मौसम अलग मजा लाता है

बिसिट के दाल पकौड़ों में आनंद आता है

लोग कहते हैं, समझ समझ का फेर है 

इसीलिए इस नगरी का नाम अजमेर हैै


लीजिए, एक और गीत सुनिये

वाह रे अजमेर

तेरे शहर में 

जहां गली तो है तो

कड़क्का चौक भी है

नया बाजार की चमक के साथ

पुरानी मंडी भी है।

श्रीनगर तो कश्मीर में है

पर श्रीनगर रोड यहां है

आदर्श नगर का आदर्श है

पर मामले उलझने पर

कचहरी रोड भी यहीं है

हाथीभाटा में कोई हाथी या भाटा नहीं

तो लोहागल में भी कोई लोहा गलता नहीं

चूनपचान गली में कोई हो हल्ला नहीं

तो झूला मोहल्ला में भी कोई झूला नहीं

नला बाजार में नाले के

पानी का बहाव है

प्यास बुझाने के लिये

गोल प्याऊ का ठहराव है

नवाब का बेड़ा से नवाबी तो गयी

पर साथ में ठठेरा चौक की ठक ठक भी गयी 

आशाओं भरा आशा गंज तो है

पर बगैर किसी रंज के

सिर्फ गंज भी यहीं है।

डिग्गी तलाब तो तलाव न रहा

साथ में खारी कुई पता नहीं

अब भी खारी है कि नहीं 

इमाम बाड़ा शांत तो

तोपदड़ा में भी कोई तोप का शोर नहीं

पूराने शहर के बाहर 

दिल्ली गेट, आगरा गेट भी है

शहर के भीतर

अंदर कोट भी है

घसेटी और चूनपचान

जैसी गलियों में पेट न भरे तो

लंगर खाना गली भी है

चलते चलते अब थका हूं

ठहराव के लिये

पड़ाव आया हूं

पता नहीं कौन आ कर पड़ाव करते थे

अब तो आवाजाही, गहमा रही है।


तेजवानी गिरधर

7742067000

शुक्रवार, 25 जून 2021

अजमेर नगर निगम में लिफाफा सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा


कानाफूसी है कि नगर निगम में वर्षों से कथित रूप से चल रहा लिफाफा सिस्टम इस बार के बोर्ड में ठीक से इम्प्लीमेंट नहीं हो पाया है। स्वाभाविक रूप से व्यवस्था बदलने पर नई व्यवस्था को सेट होने में थोड़ा टाइम तो लगता ही है। वैसे भी मौजूदा मेयर श्रीमती बृजलता हाड़ा राजनीति में नई-नई हैं। इस कारण उन्हें सिस्टम को समझने में टाइम लग रहा है। वे फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। उनके पतिदेव डॉ. प्रियशील हाड़ा भी कुल मिला कर सीधे-सादे व ईमानदार हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि इस दंपति को लिफाफा संस्कृति व सिस्टम की ठीक से जानकारी नहीं है। अगर जानकारी है भी तो अनुभव की कमी है। ऐसे में घाघ अधिकारियों से इस बारे में चर्चा करना खतरे से खाली नहीं है। राजनीतिक रूप से भी खतरा कम नहीं है। श्रीमती हाड़ा के आगामी विधानसभा चुनाव में प्रमुख दावेदार बनने की पूरी संभावना है। जाहिर तौर पर उनका एक नया शक्ति केन्द्र बनना जिनको नागवार गुजर रहा है, वे घात लगा कर बैठे हैं कि कहीं चूक हो तो फिश प्लेट गायब करवा दें। उससे भी बड़ी बात ये कि राज्य में सरकार कांग्रेस की है। ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की रिस्क नहीं ली जा सकती।

हालांकि जानकारी है कि कुछ एक अनुभवी व तेज-तर्रार ने अपना हिसाब-किताब बना लिया है, लेकिन कई अभी वंचित हैं। सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से वंचित वर्ग में असंतोष व निराशा व्याप्त है। उन्हें उम्मीद है कि कभी तो सिस्टम सेट होगा। ज्ञातव्य है कि पिछले बोर्ड में सभी संतुष्ट थे। किसी को कोई शिकायत नहीं थी। बिना किसी राजनीतिक भेद के सभी तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पैर छूते थे।

खैर, असल में समस्या ये भी है कि कोटा तो पहले जितना ही है, जबकि हिस्सेदारों की संख्या बढ़ गई है। अगर राजनीतिक नियुक्तियां हुईं तो यह संख्या और बढ़ जाएगी। ऐसे में लिफाफे का वजन कम हो जाएगा।

वैसे शहर वासियों के लिए यह सुखद है कि लिफाफा सिस्टम कायम नहीं हो पा रहा। हालांकि समझा जाता है कि देर-सवेर सिस्टम लागू तो हो जाएगा, मगर यदि वह लागू नहीं हो पाता तो हाड़ा दंपति की साफ-सुथरी छवि पर कोई कीचड़ नहीं उछाल पाएगा। फिलहाल उनके लिए यही अच्छा है। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि अगर उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो कहीं निचले स्तर पर सेटिंग न शुरू हो जाए, वह और भी घातक होगी। 


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

बुधवार, 23 जून 2021

शुरू से ऐसे दबंग हैं भंवर सिंह पलाड़ा


24 जून को अजमेर की जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पतिदेव जाने-माने समाजसेवी श्री भंवर सिंह पलाड़ा का जन्मदिन है। इस मौके पर तकरीबन साढ़े दस साल पहले यानि 21 दिसंबर 2010 को अजमेरनामा में प्रकाशित वह पोस्ट यकायक ख्याल में आ गई, जो उनके मौजूदा व्यक्तित्व और कृतित्व की पृष्ठभूमि का दिग्दर्शन करवाती है।

भाजपा के सारे नेताओं को यह तकलीफ हो सकती है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा भाजपा के बेनर पर वार्ड मेंबर बनीं, मगर टिकट न मिलने पर अपने समर्थक भाजपाई वार्ड मेंबर्स के अतिरिक्त कांग्रेसी मेंबर्स के सहयोग से जिला प्रमुख बन बैठीं। पर्याप्त संख्या बल होने के बावजूद टिकट न दिए जाने पर उनका यह कदम मौजूदा राजनीति के हिसाब से उचित ही प्रतीत होता है। पाटी्र्र के प्रति निष्ठा एक मुद्दा हो सकता है, मगर स्थानीय भाजपा नेताओं का उनके प्रति आरंभ से जो रवैया था, उसे देखते हुए कम से कम उन्हें तो ऐतराज करने का अधिकार नहीं है।

आइये, वह पोस्ट पढ़ कर देख लेते हैं:-

सरकार से अकेले जूझ रहे हैं पलाड़ा, सारे भाजपाई अजमेरीलाल

एक तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार, दूसरा ब्यूरोक्रेसी का बोलबाला, दोनों से युवा भाजपा नेता भंवरसिंह पलाड़ा अकेले भिड़ रहे हैं, बाकी सारे भाजपाई तो अजमेरीलाल ही बने बैठे हैं। सभी भाजपाई मिट्टी के माधो बन कर ऐसे तमाशा देख रहे हैं, मानो उनका पलाड़ा और जिला प्रमुख श्री सुशील कंवर पलाड़ा से कोई लेना-देना ही नहीं है।


असल में जब से पलाड़ा की राजनीति में एंट्री हुई है, तभी से सारे भाजपाइयों को सांप सूंघा हुआ है। भाजपा संगठन के अधिकांश पदाधिकारी शुरू से जानते थे कि वे स्वयं तो केवल संघ अथवा किसी और की चमचागिरी करके पद पर काबिज हैं, चार वोट उनके व्यक्तिगत कहने पर नहीं पड़ते, जबकि पलाड़ा न केवल आर्थिक रूप से समर्थ हैं, अपितु उनके समर्थकों की निजी फौज भी तगड़ी है। यही वजह थी कि कोई नहीं चाहता था कि पलाड़ा संगठन में प्रभावशाली भूमिका में आ जाएं। सब जानते थे कि वे एक बार अंदर आ गए तो बाकी सबकी दुकान उठ जाएगी। यही वजह रही कि जब पहली बार उन्होंने पुष्कर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा तो स्थानीय भाजपाइयों की असहमति के कारण पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में पलाड़ा ने चुनाव मैदान में निर्दलीय उतर कर न केवल भाजपा प्रत्याशी को पटखनी खिलाई, अपितु लगभग तीस हजार वोट हासिल कर अपना दमखम भी साबित कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि दूसरी बार चुनाव में पार्टी को झक मार कर उन्हें टिकट देना पड़ा। मगर स्थानीय भाजपाइयों ने फिर उनका सहयोग नहीं किया और बागी श्रवण सिंह रावत की वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद भी पलाड़ा ने हिम्मत नहीं हारी।

प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने के बाद भी अकेले अपने दम पर पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को जिला प्रमुख पद पर काबिज करवा लिया। जाहिर है इससे पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत सहित अनेक नेताओं की दुकान उठ गई है। भाजपा के सभी नेता जानते हैं कि पत्नी के जिला प्रमुख होने के कारण उनका नेटवर्क पूरे जिले में कायम हो चुका है और जिस रफ्तार से वे आगे आ रहे हैं, वे आगामी लोकसभा चुनाव में अजमेर सीट के सबसे प्रबल दावेदार होंगे। कदाचित इसी वजह से कई भाजपा नेताओं को पेट में मरोड़ चल रहा है और वे शिक्षा मंत्री व जिला परिषद की सीईओ शिल्पा से चल रही खींचतान को एक तमाशे के रूप में देख रहे हैं। हर छोटे-मोटे मुद्दे पर अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाने वाले शहर व देहात जिला इकाई के पदाधिकारियों के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा है कि प्रदेश की कांगे्रस सरकार राजनीतिक द्वेषता की वजह से जिला प्रमुख के कामकाज में टांग अड़ा रही है। ऐसे विपरीत हालात में भी दबंग हो कर पूरी ईमानदारी से जिला प्रमुख पद को संभालना वाकई दाद के काबिल है।

बहरहाल, दूसरी बार जिला प्रमुख पद पर काबिज होने के बाद जिस बिंदास तरीके से पतिदेव के सहयोग से श्रीमती पलाड़ा काम कर रही हैं, वह सबके सामने है, और स्थानीय भाजपाई सदके में हैं।

-तेजवानी गिरधर

7742067000