शनिवार, 5 अप्रैल 2014

चौधरी ने भाजपा ज्वाइन क्यों नहीं की?

अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी ने अजमेर संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट को खुला समर्थन तो दे दिया, मगर भाजपा में शामिल नहीं हुए। पुराने कांग्रेसी होते हुए भी मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के मंच पर उनके साथ खड़े हो कर फोटो खिंचवाई, मगर अपनी विचारधारा को नहीं त्यागा। सवाल ये उठ रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि उन्होंने भाजपा ज्वाइन करना मुनासिब नहीं समझा?
असल में उनकी नाराजगी कांग्रेस से उतनी नहीं, जितनी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट से है। यही वजह रही कि सचिन का नाम घोषित होने से पहले ही उनके खिलाफ ताल ठोकने का ऐलान करते रहे। मगर जैसे ही भाजपा ने प्रो. जाट को मैदान में उतारा तो यह सोच कर कि उनके भी खड़े होने पर जाटों के वोटों का बंटवारा होगा व प्रो. जाट को नुकसान होगा, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सचिन को लाभ होगा, प्रो. जाट को ही समर्थन देने की घोषणा कर दी। इससे सजातीय को समर्थन देने की मंशा भी पूरी हो गई। इस बात पर जरा यकीन कम होता है कि भाजपा को उनका समर्थन तो मंजूर था, मगर उन्हें पार्टी में शामिल करना नहीं। हालांकि किशनगढ़ के पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया ने चुटकी ली कि भाजपा ने चतुराई करके उनका साथ तो ले लिया, मगर अपने यहां भर्ती नहीं किया, मगर अनेक अन्य कट्टर कांग्रेसी नेताओं को स्वीकार करने को देखते हुए इसमें तनिक संदेह होता है कि उसने चौधरी से परहेज किया होगा। ऐसा लगता है कि चौधरी को सिर्फ अपनी निजी दुश्मनी से मतलब था और जीवनभर जिस भाजपा को गालियां दीं, उसको आत्मसात करना मंजूर नहीं।  तभी तो श्रीमती वसुंधरा का सान्निध्य मिलने पर भी भाजपा ज्वाइन नहीं की। इतना बड़ा व माकूल मौका उन्होंने यूं ही नहीं गंवाया होगा। हालांकि ऐसा करके उन्होंने वैचारिक रूप से अपने आपको बचा लिया है, मगर यह जरा मुश्किल ही लगता है कि जब तक सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया जाएगा।

क्या गुल खिलाएंगे नए जुड़े 79010 मतदाता?

पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बढ़े 2 लाख 27 हजार 867 मतदाता
अजमेर संसदीय क्षेत्र में आगामी 17 अप्रैल को होने जा रहे मतदान में कुल 16 लाख 83 हजार 260 मतदाता वोट डाल सकेंगे। पिछली बार इनकी संख्या 14 लाख 55 हजार 339 थी। यानि कि इस बार 2 लाख 27 हजार 867 मतदाता बढ़ गए हैं। सनद रहे कि विधानसभा चुनाव-2013 में अजमेर जिले के आठों विधानसभा क्षेत्रों में कुल मतदाताओं की संख्या 16 लाख 4 हजार 196 थी। उस हिसाब से मात्र तीन माह में 79010 मतदाता बढ़े हैं।
इन आंकड़ों को विस्तार से देखें:- 
जिला निर्वाचन विभाग के अनुसार अजमेर संसदीय क्षेत्र के दूदू विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 7 हजार 144, किशनगढ़ में 2 लाख 39 हजार 933, पुष्कर में 2 लाख 3 हजार 626, अजमेर उत्तर में 1 लाख 93 हजार 578 एवं अजमेर दक्षिण में 1 लाख 91 हजार 678 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। इसी तरह नसीराबाद में 1 लाख 95 हजार 289, मसूदा में 2 लाख 32 हजार 95 एवं केकड़ी में 2 लाख 19 हजार 917 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। सर्वाधिक मतदाता किशनगढ़ व सबसे कम मतदाता अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र में 14 लाख 55 हजार 339 मतदाता थे। कुल 7 लाख 52 हजार 594 पुरुष व 7 लाख 2 हजार 745 महिला मतदाता थे, इनमें से 2849 मतदाता सर्विस वोटर्स थे। दूदू विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 84 हजार 379 मतदाताओं में 96 हजार 193 पुरुष व 88 हजार 186 महिला मतदाता, किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 11 हजार 617  मतदाताओं में से एक लाख 10 हजार 48 पुरुष व एक लाख एक हजार 569 महिला मतदाता, पुष्कर विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 69 हजार 831 मतदाताओं में 87 हजार 948 पुरुष व 81 हजार 883 महिला मतदाता, अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 65 हजार 695 मतदाताओं में 85 हजार 820 पुरुष व 79 हजार 875 महिला मतदाता, अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 63 हजार 116 मतदाताओं में 85 हजार 584 पुरुष व 77 हजार 532 महिला मतदाता, नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 65 हजार 86 मतदाताओं में 84 हजार 877 पुरुष व 80 हजार 209 महिला मतदाता, मसूदा विधानसभा क्षेत्र के 2 लाख एक हजार 425 मतदाताओं में एक लाख 2 हजार 781 पुरुष व 98 हजार 644 महिला मतदाता हैं और केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 94 हजार 190 मतदाताओं में 99 हजार 343 पुरुष व 94 हजार 847 महिला मतदाता थे। यानि कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता किशनगढ़ व सबसे कम मतदाता अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में थे।
बहरहाल, अब अहम सवाल ये है कि विधानसभा चुनाव के बाद बढ़े मतदाता क्या गुल खिलाएंगेï? विशेष रूप से इस वजह से कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते जिले की आठों सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया और भाजपा ने कांग्रेस पर करीब दो लाख वोटों की बढ़त हासिल की थी। हालांकि विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनाव के फैक्टर अलग-अलग होते हैं, लेकिन परिणाम को लहर भी प्रभावित करेगी। अंतर ये रहेगा कि या तो लहर और बढ़ जाएगी या यथावत रहेगी अथवा कुछ कम हो जाएगी। जो भी हो, ये बढ़े हुए मतदाता कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं। स्वाभाविक रूप से इसमें अधिसंख्य युवा हैं, जिन पर अन्ना आंदोलन और मोदी लहर का असर होगा।
कांग्रेस को तभी राहत मिल सकती है, जबकि मतदान प्रतिशत गिरे, मगर इसकी संभावना उतनी नहीं है, क्योंकि चुनाव आयोग के निर्देश पर जिला प्रशासन मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि जब-जब मतदान प्रतिशत गिरता है, उसका लाभ कांग्रेस को होता है। उसकी वजह यह है कि निचले तबके के लोग तो फिर भी मतदान में रुचि लेते हैं, जबकि उच्च मध्यम वर्ग के मतदाता घरों से निकलते ही नहीं। उन पर गरमी का भी असर पड़ सकता है। मगर चूंकि मोदी लहर चल रही है, इस कारण उच्च मध्यम वर्ग खुल कर भी मतदान कर सकता है। एक अनुमान ये है कि इस बार मोदी लहर कुछ कम हो सकती है। वजह ये बताई जाती है कि कांग्रेस के खिलाफ जो जबरदस्त गुबार था, वह विधानसभा चुनाव में निकल चुका है। हालांकि आरएसएस अब भी उस जोश बनाए रखने में एडी चोटी की जोर लगा रहा है। ज्ञातव्य है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए आरएसएस ने जबरदस्त मुहिम छेड़ रखी है।
-तेजवानी गिरधर

मार्जिन बरकरार रखने की प्रतिस्पद्र्धा रहेगी देवनानी व अनिता में

कथित मोदी लहर के चलते अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार राज्य के जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट जीतेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता लगेगा, मगर अजमेर शहर की दो विधानसभा सीटों अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण के भाजपा विधायक क्रमश: प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के बीच इस बात की जरूर प्रतिस्पद्र्धा देखने को मिल रही है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिली बढ़त बरकरार रखा जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि ये दोनों विधायक लगातार तीन बार जीते हुए हैं और राज्य मंत्रीमंडल में स्थान पाने को आतुर हैं। स्वाभाविक है कि मंत्री बनने के लिए अन्य पैरामीटर तो काम करेंगे ही, उनके अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा की परफोरमेंस भी काउंट की जाएगी।
ज्ञातव्य है कि हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में भाजपा के देवनानी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 20 हजार 479 मतों से हराया। देवनानी को 68 हजार 461 मत मिले, जबकि डॉ. बाहेती को 47 हजार 982 मत। उधर अजमेर दक्षिण में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के हेमन्त भाटी को 23 हजार 158 मतों से हराया। अनिता भदेल को 70 हजार 509 मत मिले, जबकि हेमन्त भाटी को 47 हजार 351 मत। यानि की श्रीमती भदेल का मार्जिन देवनानी से तकरीबन तीन हजार अधिक है।
भजपाई मानते हैं कि कथित मोदी लहर अब भी मौजूद है, मगर राजनीति के जानकार मानते हैं कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में प्रभावित करने वाले कारक भिन्न-भिन्न होते हैं, इस कारण यह जरूरी नहीं कि भाजपा की बढ़त इतनी ही कायम रह जाए। उदाहरण के बतौर पिछली बार के विधानसभा चुनाव और बाद में हुए लोकसभा चुनाव को सामने रख कर देखते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में भाजपा के देवनानी ने कांग्रेस डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 688 मतों से पराजित किया। देवनानी को 41 हजार 9 सौ 7 व बाहेती को 41 हजार 219 मत मिले। चंद माह बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में यह अंतर बदल गया। सचिन पायलट को 39 हजार 241 और किरण माहेश्वरी को 42 हजार 189 मत मिले। यानि कि भाजपा की बढ़त 2 हजार 948 हो गई। इसी प्रकार अजमेर दक्षिण में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने कांग्रेस के डॉ. राजकुमार जयपाल को 19 हजार 306 मतों से पराजित किया। अनिता को 44 हजार 9्र2 व जयपाल को 25 हजार 596 मत मिले। चंद माह बाद ही लोकसभा चुनाव में सचिन को 39 हजार 656 व किरण माहेश्वरी को 37 हजार 499 मत मिले। यानि कि भाजपा भाजपा की 19 हजार 306 मतों की बढ़त तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 मतों से मात खानी पड़ी।
इस सिलसिले में एक अहम पहलु पर गौर करें। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद चरम पर था क्योंकि कांग्रेस ने अजमेर उत्तर में सिंधी को टिकट नहीं दिया। इस वजह से दोनों सीटों पर अधिसंख्य सिंधी मतदाता भाजपा की झोली में गिर गया। आसन्न लोकसभा चुनाव में यह वाद कितना असर करेगा कुछ नहीं कह सकते, मगर कांग्रेसी सचिन के पक्ष में एक तर्क ये देते हैं कि उन्होंने तो किसी सिंधी को टिकट दिलवाने की भरपूर कोशिश की, इस कारण सिंधियों की नाराजगी कुछ कम हो सकती है। दूसरी ओर भाजपाई कहते हैं कि सिंधियों की नाराजगी कम होने का सवाल ही नहीं  उठता। एक फैक्टर काम कर सकता है। वो यह कि अजमेर दक्षिण में अनुसूचित जाति के जिन नेताओं व पार्षदों ने कांग्रेस के हेमंत भाटी को स्थापित न होने देने के लिए भीतरघात की या सक्रियता नहीं दिखाई, अब वे सीधे सचिन से टकराव मोल नहीं लेना चाहेंगे। इसकी वजह ये है कि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। वे स्वयं ही निष्क्रिय नेताओं को सबक सिखाने की स्थिति में है। इसके अतिरिक्त जिन पार्षदों को दुबारा टिकट चाहिये या जो नए दावेदार बनने जा रहे हैं, वे पूरी मेहनत करेंगे।
बहरहाल, अब देखना ये होगा कि इन हालात में दोनों भाजपा विधायक मार्जिन बरबरार रखने के लिए क्या करते हैं।
-तेजवानी गिरधर