बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

अजमेर ने खो दिया मार्केटिंग का इकलौता बादशाह


सोनिया और करिश्मा प्रदर्शनी की बदोलत लोकप्रिय मार्केटिंग गुरू श्री वासुदेव वाधवानी का निधन अजमेर के लिए एक अपूरणीय क्षति है, जिसकी पूर्ति कत्तई असंभव है।
पैंतालीस स्वर्गीय वाधवानी पहले शख्स थे, जिन्होंने मात्र पच्चीस साल ही उम्र में ही दिखा दिया था कि उनमें मार्केटिंग का बेजोड़ गुर है। उस जमाने में न तो लोग मार्केटिंग के बारे में समझते थे और न ही मीडिया मार्केटिंग के संबंध में। शहर का सबसे बड़ा अखबार दैनिक नवज्योति हुआ करता था। दूसरे स्थान पर दैनिक न्याय व राजस्थान पत्रिका की गिनती होती थी। विज्ञापन के लिहाज से इन अखबारों में मात्र एक-एक व्यक्ति रखा हुआ होता था। वही शहरभर के चुनिंदा तीन-चार सौ विज्ञापनदाताओं से विशेष अवसरों पर विज्ञापन लिया करते थे। विज्ञापन की दुनिया क्या होती है और विज्ञापन के क्या लाभ होते हैं, इसके बारे में व्यवसाइयों को कोई खास जानकारी नहीं होती थी। जहां तक प्रॉडक्ट्स की मार्केटिंग का सवाल है, गिनती की कंपनियों के एसआर जरूर हुआ करते थे, मगर योजनाद्ध तरीके से मार्केटिंग कैसे की जाती है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी। स्वर्गीय श्री वाधवानी पहले शख्स थे, जिन्होंने इंडियन मार्केटिंग की स्थापना की और शहर के व्यपारियों को पहली बार दिखाया कि अपने प्रोडक्ट का मार्केटिंग सर्वे कैसे किया जाता है और उसके क्या लाभ हैं। उन्होंने न केवल सर्वे की परंपरा को आरंभ किया अपितु हॉर्डिंग्स, फ्लैक्स व बैनर के जरिए विज्ञापन करने से भी साक्षात्कार कराया। कदाचित कुछ इक्का दुक्का और युवक भी इस क्षेत्र में आए होंगे, मगर स्वर्गीय वाधवानी उन सबमें अव्वल थे और जल्द ही उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार कर लिया। साथ ही मीडिया मार्केटिंग से भी शहर वासियों को रूबरू करवाया। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका तो बहुत बाद में आए, उससे पहले ही उन्होंने मीडिया मार्केटिंग की शुरुआत कर दी।  मुझे अच्छी तरह ख्याल है कि दैनिक भास्कर ने अजमेर आने पर सबसे पहले उनसे ही विज्ञापनों की मार्केटिंग करवाई। बाद में तो भास्कर व पत्रिका ने बाकायदा मार्केटिंग हैड व उनके नीचे स्टाफ रखना आरंभ किया और शहर में तरीके से मार्केटिंग होने लगी। मगर निजी क्षेत्र में मीडिया मार्केटिंग के वे सदैव बेताज बादशाह रहे।
सरे राह ग्रुप के विज्ञापन प्रभारी व अजमेर मल्टी मीडिया के प्रोपराइटर स्वर्गीय वाधवानी दैनिक भास्कर अजमेर से अधिकृत विज्ञापन एजेंसी संचालक के रूप में भी जुड़े हुए थे। उन्होंने अनेक युवक-युवतियों को मार्केटिंग सिखाई और रोजगार भी उपलब्ध करवाया।
आमजन में उनकी पहचान सोनिया व करिश्मा प्रदर्शनी से हुई, जिसकी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी उनके ही खाते में जाता है। एक ही छत के नीचे जरूरत का हर सामान, वह भी सस्ते में कैसे मिलता है, इससे साक्षात्कार करवाने की उपलब्धि उनके ही खाते में जाती है। एक अर्थ में उन्होंने शहर के व्यवसाइयों को यह सिखाया कि प्रदर्शनी के जरिए अपना माल कैसे बेहतर ढंग से बेचा जा सकता है। यदि ये कहें कि अजमेर का व्यवसाय जगत उनके बिना अधूरा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उनकी सफलता का सबसे बड़ा सूत्र ये था कि वे सदैव पॉजिटिव रहते थे। उनके साथी और व्यवसायी बताते हैं कि नहीं शब्द तो उनकी जुबान पर था ही नहीं। कैसा भी काम हो, वे यही कहते थे कि हो जाएगा। उनकी व्यवहार कुशलता का ही सबब है कि आज पूरे मीडिया जगत और व्यावसायिक दुनिया में शोक की लहर व्याप्त है।
अजमेरनामा उनके निधन पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उनके परिजन को इस दु:ख को सहन की शक्ति प्रदान करे।
-तेजवानी गिरधर

क्या ये अराजकता प्रशासन की समझ में नहीं आ रही?


स्कूलों का समय यथावत रखने को लेकर सावित्री स्कूल के बाद राजकीय गुलाबबाड़ी स्कूल की छात्राओं ने भी जिस प्रकार सड़कों पर आ कर प्रदर्शन किया है, उससे यह साफ नजर आने लगा है कि अपने हक और मांग की खातिर अराजक व अनियंत्रित तरीके की बीमारी जोर पकड़ रही है। इसके बावजूद प्रशासन का जो ढ़ीला रवैया है, उससे सवाल उठता है कि क्या पानी सिर के ऊपर से बहने लगेगा, तब जा कर वह चेतेगा?
जिस प्रकार छात्राएं लामबंद हो कर प्रदर्शन को उतारू हुईं, उससे इस बात का अंदेशा तो होता है कि चंद खुरापाती शिक्षक-शिक्षिकाओं के भड़काने से ही यह माहौल उत्पन्न हुआ है। दोनों स्कूलों में जिस तरह से हंगामा पैदा हुआ और फिर सड़कों पर पसर गया है, उसमें कम से कम छात्राओं के स्वप्रेरित आंदोलन करने की तो कत्तई संभावना नहीं है। और अभिभावकों के उकसाने की बात भी गले नहीं उतरती। भला कौन माता-पिता अपनी बेटियों को इस प्रकार के प्रदर्शन के लिए उकसाएगा? ऐसे में शक की सुई शिक्षकों-शिक्षिकाओं पर ही घूमती है। प्रशासन को भी इसी आशय की रिपोर्ट मिली है, इस कारण वह उनके खिलाफ कार्यवाही की बात कर रहा है।
अगर यह सच है कि हमारे गुरुजन इस प्रकार की हरकतें करवा रहे हैं, तो यह बेहद शर्मनाक है। ऐसा करके वे न केवल भावी पीढ़ी को उदंड बना रहे हैं, अपितु देश को अराजकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। होना यह चाहिए था कि छात्र-छात्राओं की समस्या को शिक्षक अपने स्तर पर शिक्षा विभाग तक पहुंचाते और दबाव बनाते कि फिलहाल समय यथावत रखा जाए। इसकी बजाय बच्चों को भड़काना वाकई घटिया हरकत है। ऐसे खुरापाती शिक्षकों के खिलाफ तो कार्यवाही होनी ही चाहिए।
वस्तुत: लोकतंत्र में मांग रखना गलत नहीं है, मगर उसका जो तरीका अपनाया गया है, वह चिंता का कारण बनता है। स्कूली छात्राओं का कक्षाओं का बहिष्कार करना और बिना किसी संरक्षण के पांच किलोमीटर का सफर तय कर के कलेक्ट्रेट पहुंचने को संभव है प्रशासन ने हल्के में लिया हो, मगर यह किसी हादसे का सबब भी बन सकता था। उस वक्त जिम्मेवार कौन होता?
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि कहीं ये अराजकता का आगाज तो नहीं है? यह आशंका इस बात से पुष्ट होती है कि गुलाबबाड़ी स्कूल की छात्राओं ने यह तर्क दिया कि जब प्रदर्शन के बाद सावित्री स्कूल की छात्राओं के समय में परिवर्तन किया जा सकता है तो उनकी स्कूल के समय में परिवर्तन संभव क्यों नहीं है। यानि कि खुद की बला टालने की खातिर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जो अस्थाई समाधान निकाला, वह अन्य बच्चों के लिए नजीर बन गया। अराजकता ऐसे ही पनपती है। वह छूत की बीमारी है।  समय रहते इलाज न किया जाए तो दुखदायी हो जाती है। दुर्भाग्य से चंद तथाकथित बुद्धिजीवी, जिन्होंने पूरे देश को स्वर्ग बनाने का ठेका ले रखा है, वे सनक की हद तक इसे जायज ठहरा रहे हैं। उनके तर्कों में कितना कुतर्क है, इसे आमजन अच्छी प्रकार समझ रहे हैं, उसके लिए किसी तर्क की जरूरत नहीं है।
ताजा घटनाक्रम में यह बात तो सही लग रही है कि राज्य सरकार व शिक्षा विभाग ने अपने कलेंडर के मुताबिक स्कूलों का जो समय बदला है, वह दिन में पड़ रही गर्मी की वजह से कुछ कष्टप्रद है। फिलहाल समय न बदले जाने को लेकर कुछ शिक्षक संगठनों ने तो शुरू में ही मांग उठाई थी, मगर सरकार ने उसे नजरअंदाज कर दिया। अब जब कि एक के बाद दूसरी स्कूल की छात्राएं सड़क पर पर उतरी हैं, प्रशासन को हालात की गंभीरता को समझना होगा। मात्र शिक्षकों के खिलाफ सख्ती बरतने से हल नहीं निकलने वाला है। उसे सरकार से संपर्क साध कर तुरंत समाधान निकालना होगा।
-तेजवानी गिरधर