मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

प्रूफ रीडर एडीटर का बाप होता है!


हाल ही मैंने एक ब्लॉग में सुरेन्द्र सिंह शेखावत की जगह गलती से सुरेन्द्र सिंह रलावता लिख दिया। ऐसा कभी-कभी हो जाता है। इसे स्लिप ऑफ पेन कहा जाता है। जैसे ही ब्लॉग प्रकाशित हुआ, दैनिक न्याय सबके लिए के ऑनर श्री ऋषिराज शर्मा और श्री राजीव शर्मा बगरू ने तत्काल मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैने भी यथासंभव जल्द से जल्द त्रुटि संशोधन करने की कोशिश की। श्री ऋषिराज शर्मा ने एक टिप्पणी भी की। वो यह कि प्रूफ रीडर इज चीफ एडीटर। उन्होंने सभ्य तरीके से कमेंट किया, हालांकि अखबार वाले आम बोलचाल की भाषा में कहा करते रहे हैं कि प्रॅूफ रीडर एडीटर का बाप होता है। वाकई ये बात सही है। कारण ये कि एडीटोरियल सैक्शन की फाइनल अथॉरिटी एडीटर के हाथ से निकले मैटर में भी अंतिम करैक्शन प्रूफ रीड करता है। उसके बाद ही अखबार छपने को जाता है। इस लिहाज से वह एडीटर से भी ऊपर कहलाएगा।

इस प्रसंग के साथ ही मुझे यकायक दैनिक न्याय को वो जमाना याद आ गया, जब भूतपूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय श्री विश्वदेव शर्मा सुबह उठते ही पूरा अखबार पढ़ते थे और कॉमा व बिंदी तक की गलती पर गोला कर देते थे। जिस भी प्रूफ रीडर की गलती होती थी, उसके हर गलती के पच्चीस पैसे काट लिया करते थे। न्याय में दूसरे के बाद अगल लगता कि गतलियां अधिक हैं तो तीसरा प्रूफ लेने की भी परंपरा थी। कहने का तात्पर्य है कि न्याय में शुद्ध हिंदी पर बहुत अधिक जोर दिया जाता था। वहां दो प्रूफ रीडर्स के ऊपर उनके सुपुत्र श्री सनत शर्मा हैड प्रूफ रीडर हुआ करते थे। क्या मजाल कि कोई गलती रह जाए। मेरी त्रुटि को पकडऩे वाले श्री ऋषिराज शर्मा का भी हिंदी व अंग्रेजी पर मजबूत कमांड है। उल्लेखित सभी प्रूफ रीडर्स न केवल वर्तनी की अशुद्धि दूर करने में माहिर हैं, अपितु शब्द विन्यास भी बेहतर करने में सक्षम हैं।

बात प्रूफ रीडिंग की चली है तो आपको बताता चलूं कि दैनिक भास्कर में  जब ऑन लाइन वर्किंग शुरू हुई तो सभी रिपोर्टर्स व सब एडीटर्स ने कंप्यूटर पर खुद ही कंपोज करना शुरू किया। तब प्रूफ रीडर्स हटा दिए गए थे। प्रूफ रीडर्स की व्यवस्था इसलिए हुआ करती थी कि रिपोर्टर्स की खबर को एडिट करने के बाद कंपोजिंग में टाइप मिस्टेक की बहुत संभावना रहती थी। जब ऑन लाइन एडिटिंग शुरू हो गई तो यह मान कर चला जाता है कि उसमें एडिटर ने कोई गलती नहीं छोड़ी होगी। सभी रिपोर्टर्स व सब एडिटर की कॉपी एडिट करने के दौरान मुझे अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती थी, क्योंकि उसके बाद तो अखबार सीधे प्रिंटिग मशीन पर चला जाता था। इतनी सधी हुई एडिटिंग के अभ्यास के बाद भी मुझ से त्रुटि हो गई और मैंने शेखावत की जगह रलावता लिख दिया तो मैने अपने आप को लानत दी। क्षमा प्रार्थी हूं। कोई कितना भी पारंगत क्यों न हो त्रुटि तो हो ही जाती है, जिसे ह्यूमन एरर कहा करते हैं।

खैर, लगे हाथ बताता चलूं कि अजमेर में प्रूफ रीडि़ंग के सिरमौर हुआ करते थे श्री आर. डी. प्रेम। उन्होंने लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में काम किया। उनकी हिंदी, अंग्रेजी व उर्दू पर बहुत अच्छी पकड़ थी। उन्होंने राजस्थानी में कुछ गीत भी लिखे, जिनका राजस्थानी फिल्मों में उपयोग हुआ। दैनिक नवज्योति में श्री सुरेश महावर व श्री गोविंद जी ने भी बेहतरीन प्रूफ रीडिंग की। श्री विष्णु रावत की भी अच्छी पकड़ रही है। श्री वर्मा ने तो अनेक उपन्यास भी लिखे। लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे श्री राजेन्द्र गुप्ता, जो कि वर्तमान में राजस्थान पत्रिका के हुबली संस्करण में काम कर रहे हैं, उनकी शुरुआत प्रूफ रीडिंग से ही हुई है। वे भी प्रूफ रीडिंग के मास्टर हैं। युवा प्रूफ रीडर्स की बात करें तो श्री नरेन्द्र माथुर भी प्रूफ रीडिंग के कीड़े हैं। ऐसा हो ही नहीं सकता कि उनके हाथ से निकली हुई कॉपी में कोई त्रुटि रह जाए। वे थोड़े खुरापाती स्वभाव के हैं। दैनिक भास्कर का अजमेर संस्करण शुरू हुआ तो वे पूरे अखबार में त्रुटियों को अंडर लाइन करके उसे मुख्यालय भोपाल भेज दिया करते थे। जांच के लिए वे अखबार अजमेर आते तो प्रूफ रीडर्स को बहुत डांट पड़ा करती थी। कदाचित वे यह जताना चाहते थे भास्कर जैसे बड़े अखबार के प्रूफ रीडर्स से भी बेहतर प्रूफ रीडर्स अजमेर में बसा करते हैं। उन्होंने वैदिक यंत्रालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में भी प्रूफ रीडिंग की है, जहां कि पुस्तकों में संस्कृतनिष्ट शब्दों का इस्तेमाल अधिक होता है। कुछ नाम मुझसे छूट रहे हैं, मेहरबानी करके वे अन्यथा न लें।

चूंकि सारा समय अखबार जगत में ही बिताया है, इस कारण केवल इसी फील्ड के प्रूफ रीडर्स के बारे जानकारी है। पुस्तकों के प्रकाशकों के यहां काम करने वालों के बारे में जानकारी नहीं है। इतिश्री।


-तेजवानी गिरधर

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रविवार, 25 अक्तूबर 2020

नगर निगम चुनाव में नई पीढ़ी दस्तक देने को आतुर


नगर निगम के चुनावों में जहां हर बार कुछ नए चेहरे पार्षद बन कर आते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो दो या तीन बार पार्षद बन चुके हैं। मगर इस बार ऐसा प्रतीत होता है कि स्थापित राजनेताओं की नई पीढ़ी दस्तक देने को आतुर है।

ज्ञातव्य है कि महापौर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित होने के बाद दो बार महापौर रह चुके धर्मेन्द्र गहलोत के लिए कम से कम पांच साल निगम की राजनीति के रास्ते बंद हो गए हैं। पांच साल बाद क्या होगा, कुछ पता नहीं। ऐसे में उन पर समर्थकों का दबाव है कि वे अपने पुत्र रनित गहलोत को आगे लाएं। जैसा कि गहलोत कह चुके हैं कि हालांकि उनकी अपने पुत्र को राजनीति में लाने की रुचि नहीं है, लेकिन पार्टी का अगर आदेश हुआ तो वे उसे रोक भी नहीं पाएंगे। इसका अर्थ ये ही है कि उनके पुत्र के चुनाव लडऩे की पूरी संभावना है। अगर वे चुनाव लड़े व जीते तथा भाजपा का बोर्ड बना हो निश्चित रूप से उप महापौर पद के दावेदार भी होंगे।

इसी प्रकार कांग्रेस के दिग्गज नेता महेन्द्र सिंह रलावता का कद निगम की राजनीति से ऊंचा हो गया है, इस कारण उनके पुत्र शक्ति सिंह रलावता का नाम उभर कर आया है। उनके समर्थकों ने आसमान सिर पर उठा रखा है और अभी से सीधे उप महापौर पद की दावेदारी ठोक रहे हैं। 

निगम जब परिषद था, तब सभापति रहे सुरेन्द्र सिंह शेखावत निवर्तमान बोर्ड में पार्षद थे। हालांकि उन्होंने सभापति बनने के लिए पार्टी से बगावत भी की, मगर सफलता हाथ नहीं लगी। अब चूंकि महापौर पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है तो इतने सीनियर लीडर के लिए अब निगम में केवल पार्षद या उप महापौर पद के लिए रुचि लेने का कोई मतलब ही नहीं है। हालांकि वे अपने पुत्र हर्षवद्र्धन सिंह शेखावत उर्फ टूटू बना को राजनीति में लाने वाले हैं या नहीं, कुछ पता नहीं, मगर अंदरखाने की खबर बताई जाती है कि उनके समर्थकों की इच्छा है कि पुत्र की राजनीतिक यात्रा आरंभ करवाई जाए। सार्वजनिक जीवन में उनकी एंट्री रग्बी फुटबॉल संघ, अजमेर का अध्यक्ष बनने के साथ हो ही चुकी है।

कांग्रेस में महापौर पद की प्रबल दावेदार पूर्व पार्षद श्रीमती तारादेवी यादव मानी जाती हैं, मगर सतह से भीतर चल रही हलचल से इशारा मिल रहा है कि इस बार उनकी पुत्री को भी आगे लाया जा सकता है। इसी प्रकार पूर्व राज्यमंत्री श्रीकिशन सोनगरा की पुत्र वधु का नाम भाजपा खेमे से महापौर पद की दावेदारी के लिए आगे आ ही चुका है। निवर्तमान जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नोगिया भाजपा की ओर से प्रबल दावेदार के रूप में आगे आ रही हैं। हालांकि वे जिला प्रमुख पद पर रह चुकी हैं, मगर उन्हें भी नई पीढ़ी का इसलिए माना जा सकता है कि उनकी उम्र कोई ज्यादा नहीं है। चर्चा ये भी है कि पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की बहिन का नाम भी दावेदारों में शामिल किया जा रहा है। चूंकि वे अभी विधायक हैं, इस कारण उनका नाम तो दावेदारों में नहीं है, लेकिन यदि भाजपा को बहुमत मिलता है और अनुसूचित जाति की कोई पढ़ी-लिखी महिला जीत कर नहीं आती है तो हो सकता है कि उन्हें हाईब्रिड फार्मूले के तहत महापौर बनाने की कोशिश की जाए।

बात संभ्रांत लोगों के अजमेर क्लब के पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की की जाए तो उनको खुद को भले ही लंबे समय से जनप्रतिनिधित्व वाली सक्रिय राजनीति में मौका नहीं मिला, मगर उनकी पत्नी के लिए जरूर रास्ता खुल गया है। इसी प्रकार पूर्व महापौर कमल बाकोलिया के लिए यही विकल्प है कि पत्नी को चुनाव मैदान में उतारें। एक नया नाम डॉ. नेहा भाटी का है। वे प्रतिष्ठित परिवार रामसिंह शंकर सिंह भाटी के परिवार से हैं। 

दो या तीन बार पार्षद बन चुके कुछ नेताओं की मजबूरी  है कि उनके प्रभाव वाले वार्ड यदि महिलाओं के लिए आरक्षित हो चुके हैं तो उन्हें पत्नियों को मैदान में उतारना होगा। यानि वे भी नए चेहरे होंगे। 

इस बार शहर को एक साथ ढ़ेर सारे नए नेता भी मिलने जा रहे हैं। पहले 60 वार्ड थे, जो बढ़ कर 80 हो गए हैं। यदि मोटे तौर पर माना जाए कि हर वार्ड में जीते, हारे व तीसरे नंबर पर रहने वाले नए नेता पैदा होने जा रहे हैं तो साठ से भी अधिक नए चेहरे उभर कर आएंगे।

कुल मिला कर आसन्न चुनाव की तस्वीर कुछ अलग ही होगी और नई पीढ़ी निगम की दहलीज पर कदम रख सकती है।

-तेजवानी गिरधर

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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

...अर्थात धर्मेन्द्र गहलोत के पुत्र चुनाव लड़ेंगे ही


हमने अजमेरनामा न्यूज पोर्टल के चौपाल कॉलम में चर्चा की थी कि अजमेर नगर निगम के निवर्तमान महापौर धर्मेन्द्र गहलोत के पुत्र रनित गहलोत के आगामी निगम चुनाव में पार्षद पद का चुनाव लडऩे की संभावना है। इस बारे में कुछ का कहना था कि गहलोत स्वयं तो चुनाव लडऩे की बात से इंकार कर रहे हैं। संयोग से शुक्रवार को स्वामी न्यूज चैनल के निगम चुनाव संबंधी फेसबुक लाइव में गहलोत से साक्षात्कार हो गया। मैंने जब इस जनचर्चा पर सवाल किया तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अभी तक इस तरह का कोई निर्णय नहीं किया है। कम से कम वे तो नहीं चाह रहे कि उनका पुत्र राजनीति में आए। अपनी ओर से उन्होंने ऐसी कोई मंशा भी जाहिर नहीं की है। लेकिन साथ ही जोड़ा कि यदि पार्टी ने चुनाव लड़वाने का निर्णय लिया तो वे इंकार भी नहीं करेंगे। इसका और खुलासा करते हुए उन्होंने यह भी जोड़ा कोई भी फैसला परिस्थिति पर निर्भर करता है। राजनीति में किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते रहे कि वे अपने पुत्र को राजनीति में नहीं लाएंगे, मगर हालात ऐसे बने कि उन्हें जोधपुर लोकसभा चुनाव लड़वाना पड़ा और उसमें सफलता न मिलने पर किक्रेट बोर्ड का जिम्मा सौंपा गया। कुल जमा उनका कहना था कि वे नियति के फैसलों पर दखलंदाजी नहीं कर सकते।

उनके इस बयान से राजनीति के जानकार यह अंदाजा लगा रहे हैं कि गहलोत के पुत्र अवश्य चुनाव लड़ेंगे। दो बार महापौर रह चुके गहलोत के पुत्र के लिए एकाधिक सुरक्षित वार्ड मिल ही जाएंगे। ऐसे में पार्टी भला जिताऊ प्रत्याशी को चुनाव क्यों नहीं लड़वाना चाहेगी।

इसी से जुड़ी बात ये भी है कि अगर रनित गहलोत चुनाव लड़ कर जीतते हैं तो उप महापौर पद के लिए भी वे सशक्त दावेदार होंगे। 

उल्लेखनीय है कि रनित गहलोत के वार्ड दो से चुनाव लडऩे की संभावना है। इस बारे में उनकी ही पार्टी के एक व्यक्ति ने निजी राय के बारे में मुझे बताया कि वे वार्ड दो से चुनाव क्यों लड़ेंगे, यह वार्ड कमाई वाला वार्ड तो है नहीं। वे जरूर ऐसे वार्ड लड़ेंगे, जहां कमर्शियल गतिविधियां होती हैं और अच्छी कमाई होती है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए गहलोत ने कहा कि ऐसी सोच गलत है। आम आदमी की ऐसी धारणा बन गई है कि उसे हर जगह भ्रष्टाचार ही नजर आता है, लेकिन कमाई वाले अथवा बिना कमाई वाले वार्ड को कोई मापदंड नहीं होता है।

समझा जा सकता है कि दो बार महापौर रह चुकने के बाद फिलहाल पांच साल तक तो उन्हें निगम की सक्रिय राजनीति से दूर रहना ही है। इसके अतिरिक्त बाद के विधानसभा या लोकसभा चुनाव में क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में बेहतर ये है कि वे अपनी राजनीतिक विरासत सुनिश्चित करने के लिए पुत्र को राजनीति में लाएं।

खैर, रनित के वार्ड नंबर दो से चुनाव मैदान में आने की संभावना की वजह से भाजपा के अन्य दावेदार तनिक हतोत्साहित हैं। वार्ड दो की स्थिति ये है कि इसमें अनुसूचित जाति के काफी वोट हैं। पिछली बार भी यह वार्ड सामान्य था, फिर भी अनुसूचित जाति के वोट बैंक को देखते हुए कांग्रेस ने पूर्व पार्षद कमल बैरवा के भाई मनोज बैरवा को चुनाव लड़वाया और वे जीते भी। इस बार फिर वही स्थिति बनी है। स्वाभाविक रूप से इस बार भी कमल बैरवा के परिवार का दावा रहेगा। लोगों का मानना है कि यदि बैरवा के परिवार से किसी को टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय भी लड़ सकते हैं। ऐसा होने पर कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा।  एक तर्क ये भी है कि अगर बैरवा परिवार को कोई व्यक्ति निर्दलीय मैदान में उतरता है तो उसका नुकसान तो होगा, लेकिन एक फायदा ये भी हो सकता कि निर्दलीय मैदान में न उतरने पर बैरवा समाज के जो वोट अपने प्रयासों से भाजपा हासिल कर सकती है, उस पर अंकुश लग जाएगा, और सारे वोट  एक मुश्त बैरवा प्रत्याशी को मिलेंगे, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ कांग्रेस प्रत्याशी को मिलेगा। 

जानकारी के अनुसार कांग्रेस में एकाधिक दावेदार हैं, मगर शैलेश गुप्ता व हेमंत जोधा के नाम अभी तक उभर कर आए हैं। शैलेश गुप्ता पुराने सुपरिचित कांग्रेसी नेता हैं, वहीं जोधा पर दिग्गज कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता का वरदहस्त माना जाता है। वे पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से हार गए थे। चूंकि हारे हुए प्रत्याशियों की राय को भी तवज्जो देने की पूरी संभावना है, इस कारण कुछ लोग मानते हैं कि अगर रलावता ने चाहा तो जोधा को टिकट मिल सकता है।

-तेजवानी गिरधर

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बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

शक्ति सिंह रलावता डिप्टी मेयर पद के भावी उम्मीदवार?


हालांकि अजमेर नगर निगम के चुनाव कब होंगे, अभी ये ही पता नहीं है, न ही कांग्रेस ने फिलवक्त उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया आरंभ की है, बावजूद इसके वरिष्ठ नेता महेन्द्र सिंह रलावता के पुत्र शक्ति सिंह रलावता को उनके समर्थकों ने डिप्टी मेयर पद का भावी उम्मीदवार  घोषित कर दिया है। यह उद्घोषणा फेसबुक पर फोटों के साथ धड़ल्ले से वायरल हो रही है। इतना ही नहीं, उस पोस्ट को लाइक भी खूब मिल रहे हैं, जो कि उनकी लोकप्रियता का द्योतक है। इसका अर्थ ये है कि उनके समर्थकों की नजर में न केवल शक्ति सिंह को टिकट मिल जाएगा है, अपितु वे जीत भी जाएंगे। वे ही क्यों, इस घोषणा के साथ यह भी तय मान लिया चाहिए कि बोर्ड कांग्रेस का ही बनने वाला है। इसे दुस्साहसपूर्ण घोषणा माने या अतिआत्मविश्वास, यह तय करना मुश्किल है, लेकिन इससे शक्ति सिंह के शुभचिंतकों की विल पॉवर का पता तो लगता ही है। इससे यह भी अंदाजा होता है कि उन्होंने राजनीतिक गणित फला लिया है।

ज्ञातव्य है कि मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से डिप्टी मेयर के पद पर गैर अनुसूचित जाति वर्ग के किसी व्यक्ति को मौका मिलेगा। पहले मारे सो मीर, की तर्ज पर अभी से डिप्टी मेयर के दावेदार की घोषणा कर देने का अर्थ ये भी है कि गैर अनुसूचित जाति वर्ग का कोई अन्य दावेदार अभी से समझ जाए कि उसे मौका नहीं मिलेगा। वो इसलिए कि शक्ति सिंह के पिताश्री महेन्द्र सिंह रलावता बहुत प्रभावशाली हैं। अगर वाकई शक्ति सिंह को टिकट मिलता है, जो कि बहुत आसान है, वे जीतते हैं और साथ ही बोर्ड में भी कांग्रेस का वर्चस्व रहता है तो यह तय मान कर चलिए कि आगामी डिप्टी मेयर शक्ति सिंह ही होंगे।

बताने की आवश्यकता नहीं है कि शक्ति सिंह कोई नया चेहरा नहीं हैं। भले ही उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा हो, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने पिताश्री के चुनाव की कमान संभाली थी। न केवल उन्हें आम कांग्रेस कार्यकर्ता जानता है, अपितु राजनीति में रुचि रखने वाला हर अजमेरी उनसे सुपरिचित है। चूंकि वे पिताश्री के साथ साये की तरह चलते हैं, इस कारण उन्हें अजमेर की राजनीति के बारे में पूरी जानकारी व समझ है। यहां बताते चलें कि स्थानीय से लेकर राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय राजनीति के ऐतिहासिक टिप्प रलावता जी की अंगुलियों पर थिरकते हैं। हालांकि ऐसा माना जाता है कि महेन्द्र सिंह रलावता आगामी विधानसभा चुनाव में भी टिकट के प्रबल दावेदार होंगे, फिर भी यदि अभी से अपनी राजनीतिक विरासत तय कर रहे हों, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। राजनीति में ऐसा होना सामान्य सी बात है। उसमें अचरज वाली कोई बात नहीं है। बस दाद देने वाला आश्चर्य ये है कि शक्ति सिंह के फॉलोवर्स इतने अधिक यकीन से दावा कैसे कर रहे हैं? समझा जा सकता है कि इस दावे के साथ राजनीतिक जुगालियां आरंभ हो गई हैं।

धर्मेन्द्र  गहलोत के पुत्र के भी इस बार चुनाव लडऩे की संभावना


राजनीति में परिवारवाद की बात चली है तो आपको लगे हाथ बताते चलें कि निवर्तमान मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पुत्र के भी इस बार चुनाव लडऩे की संभावना बताई जा रही है। वार्ड नंबर संभवत: दो हो सकता है। हालांकि स्वयं गहलोत ने इस प्रकार का कोई इशारा नहीं किया है, न ही मंशा जाहिर की है, मगर समझा जाता है कि उनके समर्थक इस बात का दबाव बना रहे होंगे कि उनके पुत्र को चुनाव मैदान में उतारा जाए। कुछ लोगों की यह भी जानकारी है कि गहलोत ने इस बात से इंकार किया है कि वे अपने पुत्र को चुनाव लड़ाने जा रहे हैं। जो कुछ भी हो, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। अगर अभी नहीं, बाद में समर्थकों के इच्छा की वजह से गहलोत का मानस बनता भी है तो उसमें कोई भी हर्ज नहीं है। आसन्न चुनाव के बाद के चुनाव में वे फिर से मेयर बन पाएंगे या नहीं, उस बारे में कल्पना कोरी मूर्खता होगी, मगर इस चुनाव में अपनी राजनीतिक विरासत तैयार करना तो आसान है। अगर वे चाहेंगे तो उनके पुत्र का टिकट काटना निहायत असंभव है।

-तेजवानी गिरधर

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