मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

धर्मेश जैन के सुर में सुर मिलाया सोनम किन्नर ने


नगर सुधार न्यास, अजमेर के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता धर्मेश जैन के लिए ये बात जरूर पीड़ादायक हो सकती है कि जयपुर के मावठा तालाब को बीसलपुर के पानी से भरे जाने के मामले में ऐतराज करने पर उनका किसी भाजपाई ने साथ नहीं दिया। खासकर दोनों भाजपा विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल से तो उम्मीद की ही जानी चाहिए, जिनकी कि असल जिम्मेदारी है और वे आए दिन विज्ञप्ति जारी कर यह जिम्मेदारी निभाते भी हैं। संभव है विधानसभा सत्र शुरू होने के कारण वे व्यस्त हो गए हों या फिर विधानसभा में ही उठाएं। खैर, कोई बात नहीं। जैन को खुश होना चाहिए कि किसी भाजपाई ने न सही कांग्रेस विचारधारा के एक किन्नर सोनम ने उनके सुर में सुर मिलाया है। इस सिलसिले में सोनम ने बाकायदा एक बयान जारी किया है। दिलचस्प बात ये है कि सोनम को जैन का बयान इतना पसंद आया कि उसको ही हूबहू जारी कर दिया है। अपनी ओर से कुछ नया जोडऩे की जहमत नहीं उठाई है। वैसे भी जैन ने इतना परफैक्ट बयान जारी किया था कि उसमें कुछ जोडऩे-घटाने लायक था ही नहीं। बहरहाल, अजमेर वासियों के लिए यह खुशी बात है कि किसी जमाने में इलायची बाई की गद्दी के नाम से मशहूर इस शहर के एक जागरूक किन्नर ने भी अजमेर के प्रति दर्द का इजहार किया है। अजमेर वासियों और खासकर हमारे जनप्रतिनिधियों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब एक किन्नर अजमेर के हित की बात कर सकता है तो वे क्यों नहीं? धर्मेश जैन से न सही, सोनम किन्नर से तो सबक लें, जिसके आगे-पीछे कोई नहीं है और उसका कोई स्वार्थ भी नहीं है, फिर भी जागरूक है। उन्होंने अपने नि:स्वार्थ होने का सबूत भी दिया है। जैसे ही उन्हें निगम का कामकाज पसंद नहीं आया, एक सेंकड में मनोनीत पार्षद पद को ठोकर मार दी। दीगर बात है कि वह अभी मंजूर हुआ है या नहीं। वैसे सुना है कि सोनम किन्नर अजमेर की सेवा करने के लिए विधानसभा चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं। जिस तेज रफ्तार से वे दौड़ रहे हैं, उससे लगता है कि वे और दावेदारों का पीछे छोड़ देंगे। अगर वे अजमेर के विधायक बन जाते हैं तो यह अजमेर के लिए निस्संदेह गौरव की बात होगी कि उनके जरिए अजमेर को उसकी पुरानी पहचान फिर हासिल हो गई जाएगी। यदि हमारे नेतागण कुछ नहीं कर पाते तो इससे बेहतर है कि सोनम किन्नर ही विधायक बन जाएं, कम से कम वे असली तो हैं।
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जैन साहब, जरा जाट साहब को भी उलाहना दे दीजिए


सच्चे अजमेरवासी के नाते नगर सुधार न्यास, अजमेर के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता धर्मेश जैन ने जयपुर के मावठा तालाब को बीसलपुर के पानी से भरे जाने पर कड़ा ऐतराज किया है। उनका ऐतराज बेशक वाजिब है। विशेष रूप से अजमेर के लिए ही बनी बीसलपुर पेयजल परियोजना से अभी अजमेर की ही प्यास नहीं बुझी है, ऐसे में पर्यटन की दृष्टि से जयपुर के एक तालाब को भरना वाकई दादागिरी ही है। जैन का यह सुझाव भी अच्छा है कि जब मावठा तालाब को भरा जा सकता है तो अजमेर के ही तीर्थराज पुष्कर व फॉयसागर को क्यों नहीं भरा जा सकता। मगर अहम सवाल ये है कि कभी अकेले धर्मेश जैन और कभी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, मौजूदा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के या फिर किसी और के इस प्रकार सियापा करने से होता क्या है? माना कि जैन को अजमेर का दर्द है तो उस वक्त वे चुप क्यों थे, जब उनकी ही पार्टी की सरकार ने अजमेर के हक का पानी जयपुर को देने का फैसला किया था? यह एक खुली सच्चाई है कि पिछली भाजपा सरकार के दौरान अजमेर जिले की भिनाय विधानसभा सीट के विधायक प्रो. सांवरलाल जाट ने जलदाय मंत्री रहते हुए बीसलपुर से जयपुर को पानी देने का फैसला होने दिया था। तब जिले के आठ में से दो मंत्रियों सहित छह विधायक भाजपा के थे, औंकारसिंह लखावत को भी राज्यमंत्री का दर्जा हासिल था, मगर किसी ने कोई ऐतराज नहीं किया। सब की जुबान पत्थर की हो गई थी। कांग्रेस भी कोई सशक्त विरोध नहीं कर पाई। पुष्कर के विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने जरूर आवाज उठाई, मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की माफिक दब कर रह गई। फिर जब कांग्रेस की सरकार आई तो पिछली सरकार में किए गए फैसले के अनुरूप जयपुर को पानी दिया जाने लगा। तब कांग्रेसी विधायक तो चुप रहे ही, भाजपा के विधायक भी इस कारण सशक्त विरोध नहीं कर पाए क्यों कि उनकी सरकार के रहते ही जयपुर को पानी देने का फैसला किया गया था। अलबत्ता पूर्व विधायक डॉ. बाहेती ने जरूर हिम्मत जुटा कर अजमेर को ही पानी देते रहने की वकालत की। जैन साहब को याद होगा कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी श्रीमती किरण माहेश्वरी की प्रेस कॉन्फेंस उन्हीं की होटल में हुई थी, तब बीसलपुर के पानी का सवाल उठाया गया तो जाट साहब गर्मी खा गए थे। उनसे कोई जवाब देते नहीं बना था। आपको याद होगा कि दो साल पहले गर्मी के दिनों में जब भारी किल्लत शुरू हुई तो अकेले गरीब सुदामा शर्मा को अजमेर का दर्द आया और वे जयपुर को पानी न देने के लिए धरने पर बैठ गए। उनकी एक सूत्रीय मांग ही यही थी। पूरे एक माह के धरने से बात नहीं बनी और इक्का-दुक्का सच्चे अजमेरी ही समर्थन देने आए तो उन्होंने अनशन शुरू कर दिया। कांग्रेस व भाजपा के किसी भी नेता ने उनका सहयोग नहीं किया। शहर के विकास की लंबी-चौड़ी बातें करने वाले सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों ने भी पचड़े में नहीं पडऩा चाहा। आखिरकार सुदामा शर्मा की तबियत बिगडऩे पर उन्हें मौसमी का पानी पिला कर उठा दिया गया। तब किसी शहरवासी को यह ख्याल नहीं आया कि सुदामा के नाम पर अजमेर ने एक अहम जंग में शिकस्त खा ली है। उस वक्त तो सभी ने सुदामा का परिहास किया, मगर आज उसी मुद्दे पर घडिय़ाली आंसू बहाए जा रहे हैं तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। जयपुर की छोडिय़े, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान ने बीसलपुर के पानी पर टौंक का हक जताया था, तब भी उसका कोई खास विरोध नही हुआ था। बहरहाल, जैन साहब ने सवाल तो वाजिब ही उठाया है, हो भले ही लाजवाब, उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए।
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