रविवार, 29 दिसंबर 2013

हार पर कांग्रेस में पिछली बार तो कार्यवाही हुई थी

हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में शहर की दोनों सीटों पर कांग्रेस की पराजय की जिम्मेदारी न तो शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने ली है और न ही उन पर जिम्मेदारी आयद की गई है। असल में यह स्थिति इस कारण है कि कांग्रेस जहां जिले की सभी आठों सीटों पर हारी है, वहीं पूरे प्रदेश में भी मात्र 21 सीटों पर जीत हासिल कर पाई। ऐसे में कौन किसको दोषी ठहराए? खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान की तो जमानत ही जब्त हो गई। राजस्थान के इतिहास में कांग्रेस की इस हालत के लिए कोई पूर्व मुख्यमंत्री अशोक को जिम्मेदार मानता है तो कोई केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रति आमजन में उपजे गुस्से को। कोई मोदी नामक सुनामी का नाम लेकर बचना चाहता है। ये सच भी है। चुनाव के दौरान स्थानीय स्तर पर भले ही भितरघात व असहयोग के कुछ मामले हों, मगर सच ये है कि हार की मोटी वजह कांग्रेस विरोध लहर थी, जिसके तले सारे समीकरण उलट-पुलट हो गए।
प्रसंगवश आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल ने बाकायदा कार्यवाही की थी। उन्होंने  अजमेर पूर्वी ब्लॉक दो के अध्यक्ष अशोक ढ़लवाल व पश्चिमी ब्लॉक तीन के अध्यक्ष युवराज को निष्क्रियता का आरोप लगा कर हटा दिया। उनकी जगह पर क्रमश: आशा तूनवाल व पार्षद सुनील केन को ब्लॉक अध्यक्ष बनाया गया। इसी प्रकार पश्चिम ब्लॉक एक के अध्यक्ष विजय नागौरा और पूर्वी ब्लॉक तीन की अध्यक्ष लक्ष्मी नायक पर लगाम कसने के लिए क्रमश: शैलेन्द्र अग्रवाल व डॉ. जे.एम. बुंदेल को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया। शहर अध्यक्ष ने पश्चिम ब्लॉक दो के अध्यक्ष महमूद मियां चिश्ती के इस्तीफा देने के कारण रिक्त पद पर विजय जैन को नियुक्त किया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रकार की कोई कार्यवाही तो नहीं होगी, मगर नया प्रदेश अध्यक्ष बनने पर पूरी टीम जरूर नए सिरे से गठित की जा सकती है। फिलहाल किसी को समझ में नहीं आ रहा कि आगामी लोकसभा में यहां कौन पार्टी की कमान संभालेगा।

दो धड़ों में बंटी हुई है आम आदमी पार्टी

बजरंगगढ स्थित शहीद स्मारक का नजारा
प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे के देशव्यापी आंदोलन के दौरान अन्नावादी दो धड़ों में बंटे हुए थे ही, अन्ना के प्रमुख सहयोगी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में बनी आम आदमी पार्टी में भी धड़ेबाजी जारी है। दिल्ली में पार्टी की सरकार बनने पर खुशी जाहिर करने के लिए दो अलग-अलग कार्यक्रम होना इसका ताजा उदाहरण है। ज्ञातव्य है कि पार्टी की जिला संयोजक श्रीमती कीर्ति पाठक के नेतृत्व में बजरंगगढ़ स्थित शहीद स्मारक पर हवन किया गया और मिठाई बांट कर खुशी का इजहार किया गया, जिसमें दीपक गुप्ता, सुशील पाल, नील शर्मा, देवेंद्र सक्सेना, योगेश बालम, गिरीश मीणा, सरस्वती चौहान, रमा शर्मा, जयश्री शर्मा, गौरव व उमाशंकर चौहान, ओम स्वरूप माथुर, ललित खत्री, मुकेश और हरीश मौजूद थे। दूसरी ओर इंडिया मोटर सर्किल पर पार्टी कार्यकर्ताओं के एक गुट ने बधाई समारोह का आयोजन किया। इसमें राजेंद्र सिंह हीरा, मुबारक खान, सत्यनारायण भराडिया, केशवराम सिंघल, राजेश राजोरिया, नरेश बाली, भूपेंद्र सिंह सनोद, एडवोकेट जयबीर सिंह, मुकुल शेखावत, डॉ. ए. के. यादव, अक्षय शर्मा, धरूप पचोरी, नितिन, नाजिम हुसैन, गौरव, चंदू, हंसराज, प्रदीप, राहुल, अजय, रमेश आदि मौजूद थे।
इंडिया मोटर सर्किल पर हुए कार्यक्रम का चित्र
दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही आयोजनों में कहा गया कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है। श्रीमती पाठक ने कहा कि जिस प्रकार दिल्ली में जनता ने आम आदमी पार्टी में विश्वास जताया है, उसी प्रकार आने वाले लोकसभा चुनावों में लोगों का समर्थन मिलेगा। इसी प्रकार दूसरे गुट की विज्ञप्ति में कहा गया कि कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य अजमेर की जनता को ये बताना था कि आम आदमी पार्टी की राजनीतिक क्रांति की शुरुआत दिल्ली के बाद अब राजस्थान के अजमेर में भी हो चुकी है। दोनों ही स्थानों पर सदस्यता अभियान भी चलाया गया। मगर सवाल उठता है कि जो लोग आपस में ही बंटे हुए हैं, वे कौन सी क्रांति की उम्मीद लगाए बैठे हैं। बहरहाल, अपना तो ये कहना है कि स्थापित और कथित रूप से सत्ता की ही राजनीति करने वाली पार्टियों में गुटबाजी तो आम बात है, मगर केवल आम आदमी के लिए ही गठित नई नवेली आम आदमी पार्टी में भी वर्चस्व की लड़ाई चले तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। और वह भी तब जबकि दिल्ली में सत्ता पर काबिज होने के बाद वह लोकसभा चुनाव में देशभर में हुंकार भरने की तैयारी कर रही हो। राजस्थान में तो सभी 25 सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान पार्टी के प्रदेश संयोजक अशोक जैन ने कर रखा है। यानि कि अजमेर में भी पार्टी अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारेगी। और अगर यह गुटबाजी जारी रही तो उसका परफोरमेंस कैसा रहेगा, यह समझा जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर