सोमवार, 24 सितंबर 2012

रासासिंह को छोड़ देवनानी के नेतृत्व में कैसे गए रावत समाज के लोग?

रासासिंह रावत

हाल ही अजमेर की राजनीति में एक रोचक घटना हुई। रावत समाज के लोग भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के नेतृत्व में विशेष पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष इंद्रसेन इसरानी से मिले। हालांकि समाज का नेतृत्व तो पूर्व उप जिला प्रमुख एवं रावत समाज आरक्षण संघर्ष समिति के अगुवा मदन सिंह रावत कर रहे थे, मगर उन सहित समाज के अन्य लोगों ने देवनानी को आगे रख कर रावत समाज को विशेष कोटे में शामिल कर आरक्षण का लाभ देने की मांग की। ऐसे में एक सवाल राजनीतिकों व राजनीति के पंडितों के दिमाग में कौंध रहा है कि रावत समाज के लोगों की अपने ही समाज के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को छोड़ कर देवनानी के नेतृत्व में इतनी अहम मांग करने की वजह क्या हो सकती है? समाज विशेष की मांग के लिए किसी दूसरे समाज के नेता के साथ जाना तो सवाल खड़े करेगा ही। कहीं ऐसा तो नहीं कि चूंकि इसरानी सिंधी हैं तो उन्हें उनकी भाषा में समझाने के लिए देवनानी का साथ लिया हो? हालांकि ये बात कुछ जमती नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि मदन सिंह रावत वही हैं, जो नसीराबाद से तीन बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उन्हें अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में मगरा विकास बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। अर्थात वे समाज के कोई छोटे मोटे नेता नहीं हैं। वे अगर देवनानी का नेतृत्व स्वीकार करते हैं, इसका एक ही अर्थ है कि या तो उनका समाज के प्रमुख नेता पूर्व सांसद व मौजूदा शहर जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत के नेतृत्व में विश्वास नहीं रहा या फिर जानबूझ कर उन्हें चिढ़ाने के लिए उन्होंने ऐसी हरकत की है। इससे रावत समाज में फूट के भी संकेत मिल रहे हैं। इस प्रकार की फूट पहले भी उजागर होती रही है। पूर्व में भी जब भी रासासिंह रावत के टिकट की बारी आती थी तो एक बार समाज में विरोध के स्वर उठते थे, ये बात दीगर है कि टिकट मिलने के बाद सभी एक हो जाते थे। रहा सवाल देवनानी का तो कदाचित उनका उद्देश्य जरूर रावत को चिढ़ाने का रहा होगा। जिस प्रकार देवनानी इन दिनों में शहर जिला भाजपा में आइसोलेटेड होते जा रहे हैं, ताजा घटना को पलट वार के रूप में देखा जा सकता है। यूं प्रतिनिधिमंडल में बोराज के रावत नेता तारासिंह रावत के साथ होने से यह भी कयास लगाया जा सकता है कि उन्हीं के कहने से देवनानी को आगे करने का विचार बना होगा। ज्ञातव्य है कि बोराज देवनानी के विधानसभा क्षेत्र में ही आता है और इन दिनों तारासिंह की देवनानी से ठीक ट्यूनिंग है। खैर, जो कुछ भी हो, ताजा घटना कई सवाल खड़े करती है। साथ ही कोई नया समीकरण बनने की ओर भी इशारा करती है।
प्रसंगवश बता दें कि प्रतिनिधिमंडल ने जस्टिस इसरानी को बताया कि आजादी से पहले सन् 1881 से 1931 तक देश में पांच बार जनगणना हुई। पिछड़ेपन के चलते अंग्रेज हुकूमत ने भी समाज को एसटी वर्ग में शामिल किया हुआ था। आजादी के बाद समाज को इस वर्ग से बाहर कर दिया गया। इन्होंने कहा कि सन् 1999 में कांग्रेस सरकार के दौरान न्यायमूर्ति रणवीर सहाय वर्मा की अध्यक्षता में राजस्थान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। आयोग द्वारा सन् 2001 में जो रिपोर्ट सौंपी गई है, उसमें पिछड़ा वर्ग की जातियों को ए,बी, सी तीन वर्ग में विभाजित किया गया है । रावत समाज को आयोग ने बी श्रेणी की अति पिछड़ा वर्ग की जातियों में शामिल किया है। आयोग ने ए वर्ग में 15 तथा सी वर्ग में 38 जातियों को शामिल किया है। समाज लोगों ने दावा किया है कि उनके लोग अजमेर-मेरवाड़ा के अलावा, पाली, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा समेत अन्य जिलों के अलावा अरावली पर्वत शृंखला की तलहटी में बसे हैं। जिनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। हकीकत में समाज के लोगों की स्थिति गुर्जर समाज से भी पिछड़ी हुई है। सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से समाज अभी काफी सहयोग की आवश्यकता है। प्रतिनिधिमंडल में तारा सिंह रावत बोराज, कालू सिंह रावत, ज्ञान सिंह पंवार, बाबू सिंह बनेवड़ा समेत अन्य लोग शामिल थे।
-तेजवानी गिरधर