सोमवार, 4 जुलाई 2016

मेडिकल मार्केट : घर के भेदी ने ही लंका ढ़हाई

संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय के सामने स्थित मेडिकल मार्केट में दुकानों में शामिल किए गए बरामदे हटना और वह भी जिला प्रशासन के साथ सहमति के बाद, बेशक एक बड़ी उपलब्धि है। सर्वविदित है कि जिला कलैक्टर गौरव गोयल की सूझबूझ से ही इस मसले का हल हुआ है। एक सफलता ये कि वर्षों पुराने कब्जे, जिसकी किसी को भी याद नहीं थी, की जानकारी निकालना और दूसरी ये कि बड़ी चतुराई से दुकानदारों को स्वयं ही कब्जे हटाने के लिए राजी करना। यह कितनी बड़ी उपलब्धि है, इसका अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि  तकरीबन दो-दो करोड़ रुपए मूल्य की जमीन मुक्त कराई गई है। ज्ञातव्य है कि इस इलाके में जमीनों के दाम दो लाख रुपए वर्ग गज है।
जैसे ही दुकानदारों ने कब्जे हटाना शुरू किया है, हर जगह एक ही चर्चा है कि ये तो कमाल ही हो गया। जिन कब्जों का किसी को पता तक नहीं था, या चंद अधिकारियों का पता था तो भी वे चुप्पी साधे बैठे थे, वे बड़ी आसानी से हट रहे हैं, तो कमाल ही कहलाएगा। स्वाभाविक रूप से दुकानदारों के लिए यह बेहद कष्टप्रद है, मगर आम आदमी खुश है कि वह मार्ग अब बहुत सुगम हो जाएगा। जहां तक इन कब्जों का वर्षों तक बने रहने का सवाल है, यह सब मिलीभगत का ही परिणाम है। अगर कभी किसी ने शिकायत भी की होगी तो किसी कलैक्टर ने उस पर गौर नहीं किया। किसी भी कलैक्टर ने पंगा मोल लेना उचित नहीं समझा। वर्तमान कलैक्टर गोयल ने चाहे मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगामी 15 अगस्त को राज्य स्तरीय स्वाधीनता समारोह में आने के मद्देनजर, चाहे स्मार्ट सिटी की कवायद के चलते, इस बड़े मसले में हाथ डाला और बखूबी उसे अंजाम तक भी पहुंचाने जा रहे हैं। ऐसे में हर किसी को आश्चर्य हो रहा है कि आखिर कलैक्टर का पता लगा कैसे?
मेडिकल स्टोर वालों के बीच कानाफूसी है कि घर के भेदी ने ही यह लंका ढ़हाई है। उनके ही बीच के एक खुरापाती दुकानदार ने निहित स्वार्थ पूरा न होने पर इन कब्जों की जमीनी हकीकत जिला कलैक्टर तक पहुंचाई है। बताते हैं कि वह खुरापाती कागजों का कीड़ा है। वह सारा काम चुपचाप कागजों यानि सबूतों के आधार पर ही करने का आदी रहा है। इस मामले में भी उसने वही फार्मूला अपनाया, जिसका कोई तोड़ था ही नहीं। उधर जिला कलैक्टर गोयल भी कुछ कर गुजरने को आए दिखते हैं। उन्हें जैसे ही पता लगा कि ये कब्जे तो सरासर गलत हैं, उन्होंने ठोस कदम उठा डाला। चूंकि दुकानों की मालिक संस्था रेड क्रॉस सोसायटी के पदेन अध्यक्ष गोयल ही हैं, इस कारण उन्होंने भी धौंस देने में देर नहीं कि अगर दुकानदार कोर्ट गए तो वे भी खुद उनके सामने खड़े हो जाएंगे। आखिरकार दुकानदारों ने समझौता करना ही बहेतर समझा। अब वे सारे दुकानदार मन ही मन उस भेदी को गालियां बक रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
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