मंगलवार, 20 मार्च 2012

सीईओ मीणा का क्रंदन प्रशासनिक लाचारी की इंतहा है


अफसोस कि उनको यह कहना पड़ गया कि ऐसी नौकरी से तो मौत अच्छी है
दरगाह बाजार की लंगरखाना गली में दरगाह कमेटी की शिकायत पर कथित अतिक्रमण तोडऩे पहुंचे नगर निगम के सीईओ सी आर मीणा को जब माहौल खराब होने की धमकी दी गई तो उनके मुंह से यकायक निकल गया कि ज्यादा से ज्यादा मार दोगे, इससे अधिक क्या होगा? ऐसी नौकरी से तो मौत अच्छी है। यह कथन प्रशासनिक लाचारी की इंतहा है। असल में यह कथन नहीं क्रंदन है। मुद्दा ये नहीं है कि बताया गया अतिक्रमण जायज है या नाजायज, मुद्दा ये है कि एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी इतना लाचार कैसे हो गया? अकेले दरगाह इलाके में ही प्रशासन पंगु क्यों हो जाता है? और सांप्रदायिक माहौल खराब होने के डर से कब तक अतिक्रमणों को यूं ही छोड़ा जाता रहेगा?
ताजा प्रकरण में यह बिलकुल स्पष्ट है कि प्रशासन व पुलिस के बीच तालमेल का पूर्णत: अभाव है। इस मामले में भले ही प्रत्यक्षत: दरगाह सीआई हनुवंत सिंह भाटी का असहयोग उभर कर आया हो, मगर यह प्रमाणित करता है कि प्रशासन व पुलिस के दोनों आला अफसर जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल व एसपी राजेश मीणा में भी कोई तालमेल नहीं है, वरना प्रशासन व पुलिस की संयुक्त किरकिरी की नौबत नहीं आती। जिला कलेक्टर जानती थीं कि अतिक्रमण हटाए जाने के दौरान परेशानी आ सकती है, इसी कारण उन्होंने एक दिन पहले अवैध निर्माण हटाये जाने के दौरान कानून एवं शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए भगवतसिंह राठौड़ को कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया था, मगर वे भी पुलिस के असहयोग के कारण नकारा साबित हो गए। उधर मीणा की हालत देखिए कि पुलिस का असहयोग होने बाबत मीडिया द्वारा सवाल पूछे जाने पर यह कह कर कि पुलिस ने असहयोग भी तो नहीं किया, सच्चाई को छिपाने की कोशिश की। ऐसे में यदि वे यह कहते हैं कि ऐसी नौकरी से मौत अच्छी, तो कहीं भी गलत नहीं है। एक ओर अतिक्रमण न हटाने पर उन्हें शहरभर का उलाहना सुनना पड़ता है, दूसरी ओर पुलिस अपेक्षित सहयोग नहीं करती, तो भला वे क्या खाक नौकरी करेंगे।
आइये, जरा मामले के अंदर झांकें। कथित अतिक्रमी जमील चिश्ती के सामने प्रशासन व पुलिस का बौनापन देखिए कि उसने शर्त रख दी कि जांच के लिए दुकान के अंदर चार व्यक्ति ही अंदर जाएंगे। इतना ही नहीं शटर भी मात्र एक फीट ही खोला। मीणा, राठौड़, भाटी और निगम के अधिशासी अभियंता को घुटने के बल के अंदर पहुंचना पड़ा। चिश्ती को आशंका थी कि शटर खोलते ही सभी अधिकारी और कर्मचारी अंदर घुस कर तोड़ फोड़ कर देंगे। चिश्ती ने दरगाह थाने के सीआई हनुमंत सिंह से पूछा कि मीणा चार जनों के भीतर जाने की बात कह रहे हैं, आप जिम्मेदारी लेते हैं क्या? सीआई ने जिम्मेदारी लेने से साफ इनकार कर दिया। और इसी के साथ पुलिस के मात्र तमाशबीन होने की पोल खुल गई। इस सिलसिले में एक वाक्या चर्चा का विषय बन गया है, वो यह कि करीब तीन चार माह पहले पार्षद योगेश शर्मा को एक अतिक्रमी से झगड़ा हुआ। कुछ पार्षद अतिक्रमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए दरगाह थाने गए तो सीआई भाटी ने पार्षदों से कहा था कि निगम में दम है तो दरगाह बाजार में अतिक्रमण तोड़ कर दिखाए। उनके इस कथन में ताजा घटना को मिला कर देखें और अंदाजा लगाएं कि माजरा आखिर है क्या?
हालांकि जब भी कहीं अतिक्रमण हटाए जाते हैं तो इस प्रकार के टकराव की नौबत आती ही है, उसमें कुछ नया नहीं है, मगर मामले को सांप्रदायिक रूप देना बेहद अफसोसनाक है। इस पर प्रशासन को गंभीरता से विचार करना होगा। इस प्रकार मुंह की खा कर लौटने से अतिक्रमियों को हौसले और बुलंद होंगे। अतिक्रमी अतिक्रमी ही है, वह हिंदू या मुसलमान नहीं है। यदि वाकई अतिक्रमण किया है तो टूटना ही चाहिए। वह अल्पसंख्यक है, इस नाते उसे नजरअंदाज करना क्या उचित है? कैसी विडंबना है कि मौके पर ऐसा जताया जा रहा था कि मानो प्रशासन द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया जा रहा है, दूसरी ओर आम हिंदू को ये शिकायत रहती है कि प्रशासन मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाता है। वाह रे लाचार प्रशासन। इधर कुआं, उधर खाई। ऐसे में याद आते हैं वे दिन जब तत्कालीन जिला कलैक्टर अदिति मेहता पत्थरबाजी के चलते भी डटी रहीं और अतिक्रमण को हटा कर ही दम लिया। श्रीमती मंजू राजपाल आईं तो उनके जज्बे को देख यही अनुमान लगाया गया था कि वे अदिति मेहता की याद ताजा करवा देंगी, मगर वे ऐसे संवेदनशील मौकों पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त करके इतिश्री कर लेती हैं।
-तेजवानी गिरधर
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