शुक्रवार, 31 मई 2013

दबाव बेशक नसीम को होगा, मगर जिम्मेदार तो जिला प्रशासन है

गत दिवस पुष्कर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथों डाक बंगले का शिलान्यास कराए जाने का मामला इन दिनों बहुत गरमाया हुआ है। कहा ये जा रहा है कि पुष्कर की विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ की तिकड़मबाजी से उस जमीन पर शिलान्यास करवा लिया गया, जिसकी स्वीकृति ही नहीं थी। सच तो यह है कि स्वीकृति पूर्व में ही निरस्त हो गई थी। बेशक नसीम ने अपने इलाके में वाहवाही लेने के लिए शिलान्यास करवाने की जुगाड़ बैठाई और मुख्यमंत्री के तयशुदा कार्यक्रम में शिलान्यास कार्यक्रम शामिल न होने के बाद भी उसे अधिकृत कार्यक्रम में शामिल करवा लिया, मगर सवाल ये उठता है जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने तथ्यात्मक जानकारी लिए बिना ही ऐसा होने कैसे दिया?  उससे भी बड़ी बात यह है कि डाक बंगले के लिए जमीन न होने के बावजूद वर्क ऑर्डर जारी कैसे हो गए? क्या अधिकारी इतने दबाव में थे कि उन्होंने आंख मींच कर वह सब कुछ होने दिया, जिसके लिए बाकायदा नीति-निर्देश बने हुए हैं। यहां आपको बता दें कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने मुख्यमंत्री द्वारा कराए जाने वाले उद्घाटन और शिलान्यासों के संबंध में कड़े निर्देश जारी किए हुए हैं। इन निर्देश में साफ कहा गया है कि जहां भी किसी भवन या स्थान को लेकर विवाद या संदेह हो उसका उद्घाटन अथवा शिलान्यास मुख्यमंत्री से नहीं कराया जाए। स्पष्ट है कि यहां इस मामले में सीएमओ के इस निर्देश की पालना नहीं की गई। जहां तक पीडब्ल्यूडी का सवाल है, वह कह रहा है कि  उनकी ओर से शिलान्यास के लिए किसी प्रकार का पत्राचार नहीं किया गया। अर्थात शिलान्यास संबंधी कार्यक्रम नसीम अख्तर शिक्षा राज्यमंत्री राजस्थान सरकार एवं जिला प्रशासन अजमेर के निर्देशों से किया गया है। मगर सवाल ये उठता है कि जब डाक बंगले के निर्माण की मंजूरी को पहले ही विभाग के मंत्री डॉ भरत सिंह ने निरस्त कर दिया था तो उसके बाद भी पीडब्ल्यूडी के अफसरों ने यह तथ्य क्यों छुपाए रखा कि उसके द्वारा जमीन उपलब्ध नहीं होने के बावजूद टेंडर जारी करने की कार्रवाई वित्तीय व लेखा नियमों को ताक में रख कर अंजाम दी गई है। विभाग ने एक कदम आगे बढ़ कर वर्क ऑर्डर तक जारी कर दिया।
बहरहाल, ताजा स्थिति ये है कि काम की मंजूरी ही निरस्त हो जाने के बाद शिलान्यास भी स्वत: ही शून्य हो गया है।
ज्ञातव्य है कि यह सारा विवाद हुआ ही इस कारण कि पीडब्ल्यूडी मंत्री ने प्रस्तावित डाक बंगले के काम की पूर्व में जारी स्वीकृति को शिलान्यास कार्यक्रम तय होने के कुछ दिन पहले निरस्त कर दिया। विभाग के प्रमुख शासन सचिव व मुख्य अभियंता ने विभागीय आदेश भी जारी कर दिए। मगर ये पता नहीं लग रहा कि आखिर इस आदेश की जानकारी महकमे के स्थानीय अफसरों को क्यों नहीं मिली?
-तेजवानी गिरधर

जेल में पीसीओ की जरूरत कहां है, मोबाइल जो उपलब्ध है

पूर्व जेल अधीक्षक प्रीता भार्गव के सामने मोबाइल पड़े हैं
राज्य के जेल मंत्री रामकिशोर सैनी ने कहा कि जल्द ही अजमेर, जोधपुर और जयपुर सेंट्रल जेलों की तरह राज्य की सभी जेलों में पीसीओ लगेंगे। उनकी घोषणा पर कानाफूसी है कि जेलों में पीसीओ की जरूरत ही कहां है। जब जेल में कैदियों को आसानी से मोबाइल फोन उपलब्ध हो जाते हैं तो वे काहे को पीसीओ से बात करेंगे। प्रदेश की जेलों में अब तक कई बार की गई आकस्मिक तलाशी में हर बार वहां मोबाइल फोन छुपाए हुए मिले हैं। खुद पुलिस का मानना है कि इन्हीं मोबाइल के जरिए कई खूंखार कैदी अपनी गेंगे चला रहे हैं। मोबाइल तो कुछ भी नहीं है, जेलों में कारतूस, हथियार तक कैदियों के पास पाए गए हैं।
स्वयं जेल राज्य मंत्री रामकिशोर सैनी ने भी एक बार स्वीकार किया थ कि जेल में कैदी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं और उस पर अंकुश के लिए प्रदेश की प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जाएंगे, मगर आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पाई है। जेल मंत्री का जेलों में जैमर लगवाए जाने की बात से स्पष्ट है कि वे अपराधियों के पास मोबाइल पहुंचने को रोकने में नाकाम रहने को स्वयं स्वीकार कर रहे थे।
आपको याद होगा कि सजायाफ्ता बंदी के परिजन से रिश्वत लेने के मामले में अजमेर जेल के तत्कालीन जेलर जगमोहन सिंह को सजा सुनाते हुए न्यायाधीश कमल कुमार बागची ने जेल में व्याप्त अनियमितताओं पर टिप्पणी की कि अजमेर सेंट्रल जेल का नाम बदल कर केन्द्रीय अपराध षड्यंत्रालय रख दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। न्यायाधीश ने इस सिलसिले में संदर्भ देते हुए कहा कि समाचार पत्रों में यह तक उल्लेख आया है कि जेल में मोबाइल, कारतूस व हथियार बरामद हुए हैं और हत्या की सजा काट रहे मुल्जिम ने अजमेर जेल से साजिश रच कर जयपुर में व्यापारी पर जानलेवा हमला करवाया। जेल प्रशासन के लिए इससे शर्मनाक टिप्पणी हो नहीं सकती थी। आपको ये भी याद होगा कि जयपुर के टायर व्यवसायी हरमन सिंह पर गोली चलाने की सुपारी अजमेर जेल से ही ली गई। जेल में आरोपी आतिश गर्ग ने मोबाइल से ही पूरी वारदात की मॉनीटरिंग की। जब उसे पता लगा कि उसकी हरकत उजागर हो गई है तो उसने अपना मोबाइल जलाने की कोशिश की, जिसे जेल अधिकारियों ने बरामद भी किया। इससे पहले जेल में कैदियों ने जब मोबाइल के जरिए फेसबुक पर फोटो लगाए तो भी यह मुद्दा उठा था कि लाख दावों के बाद भी जेल में अपराधियों के मोबाइल का उपयोग करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकी है। सवाल उठता है कि क्या जब भी जांच के दौरान किसी कैदी के पास मोबाइल मिला है तो उस मामले में इस बात की जांच की गई है कि आखिर किस जेल कर्मचारी की लापरवाही या मिलीभगत से मोबाइल कैदी तक पहुंचा है? क्या ऐसे कर्मचारियों को कभी दंडित किया गया है?

बुधवार, 29 मई 2013

स्लम फ्री सिटी बनाने की योजना पर खुश होने की जरूरत नहीं है

अजमेर वासियों के लिए यह खबर वाकई खुश होने वाली बात है कि अजमेर शहर को देश का पहला स्लम फ्री सिटी बनाने की योजना मंजूर हो गई है। इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। मगर संभव है आपको हैडिंग पढ़ कर अटपटा लगा हो कि आखिर ऐसी क्या बात है कि खुशी के मौके पर नकारात्मक टिप्पणी क्यों की जा रही है।
असल में महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और तीर्थराज पुष्कर की बदोलत अजमेर का नाम विश्व के मानचित्र पर अलग ही चमकता है। बारहों महीने यहां बड़ी हस्तियों, नेताओं और फिल्म कलाकारों का आना-जाना लगा ही रहता है। नतीजतन यहां के विकास के लिए कई बार पैकेज घोषित हुए हैं। कुछ लागू भी हुए हैं, उसके बाद भी दरगाह इलाके और पुष्कर सरोवर के हालात किसी से छिपे हुए नहीं हैं। वजह ये है कि यहां योजनाएं लागू तो होती हैं, मगर चूंकि राजनीतिक जागरूकता का अभाव है, इस कारण उनकी ठीक से मॉनीटरिंग नहीं होती और उसका परिणाम ये होता है कि योजनाओं में लगी राशि पानी में चली जाती है। आपको याद होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के कार्यकाल में अरावली की पहाडिय़ों को हरा-भरा कर उसे पुराना स्वरूप प्रदान करने के लिए हैलीकॉप्टर से बीजारोपण का काम शुरू हुआ, मगर उस पर ठीक से ध्यान न देने के कारण उसे गाय खा गई। आज पहाडिय़ां पहले से भी ज्यादा नंगी हो गई हैं। इसी प्रकार पुष्कर वैली प्रोजेक्ट पर भी करोड़ों खर्च किए गए, मगर पहाडिय़ों की दुर्दशा और सरोवर की बदहाली खुद ही कहानी बयां कर रही है कि वह पैसा न जाने कहां बह गया। तीर्थराज पुष्कर के पास बूढ़ा पुष्कर के जीर्णोद्धार पर भी खूब पैसा खर्च किया गया और भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत ने प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की मौजूदगी में भव्य समारोह भी हुआ, मगर सरकार बदलने के बाद आज हालत ये है कि उधर कोई झांकने को तैयार नहीं है। बात करें हवाई अड्डे की तो उसके लिए कितने पापड़ बेले गए हैं। वर्षों बाद गहलोत सरकार ने आते ही एमओयू पर हस्ताक्षर किए, मगर साढ़े चार साल बीत गए, अब जा कर धरातल पर कुछ होता नजर आ रहा है।
इसी प्रकार सीवरेज योजना को ही लीजिए। जब इसे अजमेर में लागू किए जाने की बात आई तो बड़ी खुशी की लहर थी, मगर उस पर जैसा अमल हुआ है, वह किसी ने छिपा नहीं है। आज भी वह अधूरी है। कई जगह काम अधूरा है तो जो पूरा हो चुका है, उस पर विवाद चल रहा है। इस दौरान न जाने कितनी जानें काल-कलवित हो गईं, मगर यह शहर केवल सियापा ही करता रहा। इस सिलसिले में एक कलेक्टर ने तो यहां तक कहा था कि अगर कोई और शहर होता तो हंगामा हो जाता और प्रशासन की जान सांसत में होती। इसी कड़ी में एक सच्चाई ये भी है कि राजनीतिक जागरूकता का अभाव ही वह वजह कि यहां अफसरशाही हावी है और उन्हें अजमेर बहुत सूट करता है। कई अफसर तो ऐसे हैं, जिन्हें कई साल हो गए अजमेर में बसे हुए और यहीं पर विभाग बदल बदल कर तबादला करवा लेते हैं।
खैर, इन सब योजनाओं में सबसे खराब अनुभव रहा दरगाह विकास योजना का। उसके लिए तीन सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा की योजना बनाई गई। बड़ी खुशी थी। बाकायदा अलग-अलग मद में राशि भी तय हुई। अजमेर फोरम ने तो इसे अपना प्राइम प्रोजेक्ट बना कर लगातार दबाव बनाए रखा। मगर वह अजमेर, जयपुर व दिल्ली के बीच डौलती रही और उसे गाय कब खा गई, पता ही नहीं लगा। ऐसा इस वजह से हुआ कि अजमेर के नेताओं ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। और आप समझ सकते हैं कि बिना फॉलोअप के कुछ भी नहीं होता। आज भी उस योजना की फाइलें कहने को वजूद में, मगर दफ्न हैं, मगर किसी को फुर्सत नहीं है कि उसके पीछे पड़े।
वस्तुत: इसी कारण इस शहर को कोई इलायची बाई की गद्दी के नाम  से पुकारता है तो कोई इसे मुर्दा शहर, मुर्दा लोग की उपमा देता है। टायर्ड और रिटायर्ड तो इसे वर्षों से कहा ही जाता है। राजनीतिक जागरूकता के अभाव और सशक्त नेतृत्व के अभाव में यहां के लोग इतने सहनशील हैं कि हर परेशानी को बिना कोई गिला-शिकवा किए सहन करते रहते हैं। आईआईटी के लिए जरूर सिटीजंस कौंसिल के महासचिव व जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष दीनबंधु चौधरी और युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने अभियान को दिशा दी और जागरूकता लाने की कोशिश की, मगर उसे अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल पाया और अजमेर का हक मारा गया। सचिन पायलट के केन्द्रीय राज्य मंत्री बनने के बाद अलबत्ता यहां विकास को दिशा मिली है, मगर निचले स्तर पर आज भी वही हालत है।
एक-दो नेताओं को छोड़ कर अधिसंख्य नेताओं की हालत ये है कि वे यहां चल रही योजनाओं के बारे में न तो समझते हैं और न ही उसका फॉलोअप करते हैं। इसी कारण यह खबर सुन कर कि अजमेर स्लम फ्री बनेगा, उतनी खुशी नहीं होती, जितनी कि होनी चाहिए। आज भले ही नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी व नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया योजना मंजूर होने पर खुशी में गाल बजा रहे हों और इसका श्रेय सचिन पायलट को देने से नहीं थक रहे हों, मगर वे और उनके बाद आने वाले जनप्रतिनिधि इस योजना पर ठीक से ध्यान देंगे, इसमें तनिक संदेह है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 27 मई 2013

यानि कि लेन-देन को लेकर ही अटकी थीं अस्पताल की पर्चियां

jln thumbअजमेर के जेएलएन अस्पताल के आउट डोर में पर्चियों के अभाव में बड़ा हंगामा हो गया। हालत ये हो गई कि मरीज व उनके परिजन ने अस्पताल अधीक्षक डॉ अशोक चौधरी के पीए प्रकाश का घेराव कर प्रदर्शन तक कर दिया। जानकारी ये आई कि अकाउंट शाखा ने पर्ची प्रिंट करने वाली फर्म का भुगतान रोक रखा था और जब हंगामा हुआ तो आनन-फानन में फर्म के रोके गए पांच लाख रुपए में से करीब चार लाख रुपए के दो अलग-अलग चेक पास कर दिए।
सवाल ये उठता है कि आखिर अकाउंट शाखा ने भुगतान क्यों रोक कर रखा था। यदि उसमें तकनीकी दिक्कत थी तो फिर बिना उसे दुरुस्त किए ही आनन-फानन में चैक कैसे जारी कर दिए? जाहिर है कि पर्ची बनाने वाली फर्म ने पहले ही चेता दिया होगा कि अगर भुगतान नहीं किया तो वह और पर्चियां नहीं देगी। बावजूद इसके भुगतान रोके रखा गया और हालत ये होने दी गई कि तकरीबन दो घंटे तक मरीजों को धक्के खिलाए गए तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? हालांकि अस्पताल अधीक्षक डॉ. चौधरी यह कह कर बचने की कोशिश कर रहे हैं कि लेखा विभाग की अनदेखी की वजह से फर्म का भुगतान समय पर नहीं हो पाने के चलते परेशानी का सामना करना पड़ा, मगर ऐसा कह कर क्या वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं? जैसी कि जानकारी है अस्पताल कर्मियों ने एक सप्ताह पहले ही पर्ची खत्म होने की जानकारी अधिकारियों दे दी थी। साथ ही यह भी बताया था कि जिस फर्म को पर्ची छापने का ठेका दिया है, उसका करीब 5 लाख रुपए भुगतान नहीं होने से फर्म ने पर्ची देने से इनकार कर दिया है। अस्पताल अधीक्षक ने भी लेखा विभाग को शीघ्र ही फर्म का शेष भुगतान करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद भी समय रहते फर्म को भुगतान नहीं किया गया, इसका क्या अर्थ निकाला जाए? स्पष्ट है कि डॉ. चौधरी ने इस बारे में लापरवाही बरती। रहा सवाल अकाउंट शाख का तो संदेह यही होता है कि लेन-देन में कमी-बेसी के चलते ही उसने कोई न कोई अडंगा लगा कर भुगतान रोक रखा था, जो कि हंगामा होने पर अचानक हट गया।
-तेजवानी गिरधर

सोनवाल का मुंह खुलने के डर से सहमे हैं कई पुलिस अफसर

sp lokesh sonvaal 02एक ओर जहां लंबे समय तक फरार रहने के बाद कानून के शिकंजे में आए पूर्व एएसपी लोकेश सोनवाल खुद को पाक-साफ बता कर बचाव का हर कानूनी रास्ता तलाश रहे हैं, तो दूसरी ओर पुलिस के कई आला अफसर इस कारण खौफ में हैं, क्योंकि उन्हें अंदाजा है कि सोनवाल को पूरे रिश्वत प्रकरण का मुख्य सूत्रधार मानने वाली एसीडी आखिरकार सोनवाल को अंदर करवा के ही मानेगी और वे कई अफसरों की पोल खोल सकते हैं।
यदि एसीडी की अब तक की कार्यवाही और जुटाए गए तथ्यों को बिलकुल ठीक मानें तो यह लगभग सच है कि पुलिस का दलाल रामदेव ठठेरा और सोनवाल के गहरे संपर्क थे और दोनों के दिल-दिमाग में कई राज दफ्न हैं, जिनसे खुलने से कई अन्य अफसरों की बारह बज सकती है।
जैसे ही अखबारों में यह जानकारी आई है कि ठठेरा प्रदेश के कई पुलिस अफसरों के संपर्क में था और वह उनके लिए खबरची का काम करता था, उसके साथ सोनवाल के रिश्तों को जोड़ कर पुलिस अफसर डर रहे हैं कि कहीं वे कोई ऐसा राज न खोल दें, जिससे उनके लिए परेशानी खड़ी हो जाए। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एसीडी के पास प्रदेश के नौ अधिकारियों के नाम व मोबाइल नंबर के साथ ठठेरा की उनसे हुई बातचीत की अवधि अंकित है। खुद सोनवाल ने भी इस बाबत संकेत दिए थे कि ठठेरा एसीबी की गतिविधियों पर भी नजर रखता था। यह तथ्य तक उभर कर आया है कि निलंबित आईपीएस डॉ अजयसिंह के खिलाफ हुई एसीबी कार्रवाई के बाद अजमेर सोनवाल से मिले ठठेरा ने बताया था कि अजय सिंह के बाद उसके गुरु अर्थात तत्कालीन एसपी राजेश मीणा की बारी है। अर्थात मीणा के फंसने के संकेत तक सोनवाल के जेहन में दफ्न हैं।
बहरहाल, ताजा घटनक्रम से यह साफ लग रहा है कि एसीडी किसी भी सूरत में सोनवाल को छोडऩे वाली नहीं है, क्योंकि उसने उसको बहुत छकाया है। उधर सोनवाल भी खुद को बचाने के लिए हर नीति अपना रहे हैं। वे साफ तौर पर एसीडी को कार्यवाही में पूरी मदद करने को तैयार हैं, अर्थात वे उसी मदद के दौरान बहुत कुछ ऐसा उगल सकते हैं, जिससे बड़े अफसर परेशानी में पड़ जाएंगे। हालांकि एसीडी के नजर में सोनवाल मुख्य सूत्रधार है, मगर कयास ये भी लगाया जा रहा है कि अपने पास उपलब्ध जानकारियों का दबाव बना कर वे सरकारी गवाह बनने की कोशिश कर सकते हैं। इसका इशारा उनकी इस बात ये लगता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे भले ही ठठेरा के संपर्क में थे, मगर उनका लेन-देन से कोई वास्ता नहीं रहा, वे तो बड़े अफसरों से ठठेरा के संबंधों के कारण उसे सम्मान देते थे। ठठेरा को तवज्जो देना उनकी मजबूरी थी। इससे स्पष्ट है कि सोनवाल को ठठेरा की जन्मकुंडली का भी पूरी तरह से ज्ञान है। खैर, अब देखना ये है कि कहानी कहां तक जाती है।
जहां तक सोनवाल की स्थिति का सवाल है, वे खुद भी बहुत सहमे हुए हैं और अब मीडिया फ्रंडली होने की कोशिश कर रहे हैं। वे जानते हैं कि अजमरे का मीडिया बहुत तेज-तर्रार है। क्लॉक टॉवर के सीआई हरसहाय मीणा अपने जमाने के खुर्रांट अफसर थे, मगर जब मीडिया के हत्थे चढ़े तो उसने उनकी बारह बजा कर रख दी।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 25 मई 2013

डॉ. दत्ता की मौजूदगी से भी तकलीफ, गैर मौजूदगी से भी परेशानी

जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. बी.एस. दत्ता अमूमन चर्चा में रहते हैं। कभी मरीज के परिजन को थप्पड़ मारने या कलेक्टर से भिड़ जाने पर तो कभी कठिनतम ऑपरेशन सफलतापूर्वक करने के लिए। अस्पताल में वे अकेले ऐसे डॉक्टर हैं, जिनकी तीन लोक से मथुरा न्यारी है। राजनीतिक दबाव में न आने और कड़क व्यवहार की वजह से उनके तबादले की मांग उठती रही है तो अब जब उनका तबादला उदयपुर के रविंद्रनाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज में एमसीआई निरीक्षण के तहत किया गया है तो मरीजों को होने वाली परेशानी से चिंतित हो कर जेएलएन मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. पी. के. सारस्वत कहते हैं कि इस बारे में वह राज्य सरकार से बातचीत करेंगे। अस्पताल में एक ही न्यूरो सर्जन है और उनका भी तबादला कर दिया जाता है तो व्यवस्था बनाने में परेशानी हो सकती है।
असल में डॉ. दत्ता न्यूरो सर्जरी के माहिर हैं। उनकी ख्याति दूर-दूर तक है। वे कितने अनुशासनप्रिय और सफाई पसंद हैं, इसका अंदाजा पूरे अस्पताल को देखने और दूसरी ओर उनका वार्ड देखने से हो जाएगा। स्वाभाविक सी बात है कि राजनीतिकों को अनुशासनप्रिय डॉक्टर या अफसर पसंद नहीं आता क्यों कि वह उनके राजनीतिक रुतबे में नहीं आता। उससे भी बड़ी बात कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि उनका तबादला कर दिया जाएगा। कड़वा सच तो ये है कि उन्हें सरकारी नौकरी की परवाह ही नहीं है। वे चाहें तो चौगुने पैकेज पर देश के किसी भी अस्पताल में लग सकते हैं। ऐसे में भला वे काहे को डरें नेताओं या प्रभावशाली लोगों से। बताया जाता है कि वे किसी की सिफारिश नहीं मानते। सिफारिश पर उलटा चिढ़ जाते हैं। इसके विपरीत गरीब मरीजों की सेवा वे मन लगा कर करते हैं। उन्हें अपनी ओर से भी दवाइयां दे देते हैं। कहते हैं न कि हर आदमी में एक ऐब होता है। अति योग्य व्यक्ति में तो होता ही है। यूं मान लीजिए कि इसी कारण डॉ. दत्ता में ऐब है।
एक बार देर रात इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के दो बंदे एक दुर्घटना का शिकार होने पर अस्पताल लाए गए। मीडिया का रुतबा तो आप जानते ही हैं। जयपुर के वरिष्ठ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से संपर्क साधा कि दोनों का ठीक से इलाज कराया जाए। सीएम ऑफिस से कलेक्टर राजेश यादव के पास फोन आया। वे दौड़े-दौड़े अस्पताल आए। उन्होंने डॉ. दत्ता से मोबाइल से संपर्क किया तो उन्होंने स्विच ऑफ कर दिया। इस पर उन्हें पुलिस के एक वाहन से बुलवाया गया। वे आते ही मरीजों के पास गए और कलेक्टर की परवाह ही नहीं की। वहां दोनों के बीच टकराव हो गया। कलेक्टर उन्हें चेता गए कि अपना बोरिया-बिस्तर गोल कर लेना। कल अजमेर में नजर नही आओगे। चूंकि यादव भी बड़े बिंदसा कलेक्टर थे, इस कारण लोगों ने सोचा कि अब मिला सेर को सवार सेर। कलेक्टर ने सरकार को शिकायत भी भेजी, मगर डॉ. दत्ता का कुछ नहीं बिगड़ा। तब लोगों को  पता लगा कि सरकार भी उनके आगे कितनी मजबूर है।
बहरहाल, ऐसे बदमिजाज कहाने वाले डॉ. दत्ता का जैसे ही तबादला हुआ है तो सब को चिंता है कि अजमेर के सिर की चोट के गंभीर मरीजों का क्या होगा? उन्हें सीधे जयपुर ही रैफर करना होगा। वाकई यह चिंता का विषय है। हालांकि मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. पी. के. सारस्वत सरकार से उन्हें यहीं रखने का अनुरोध कर रहे हैं, मगर देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 22 मई 2013

नसीम अख्तर भी मानती हैं सरकारी स्कूलों की बदहाली को

परिणाम जारी करती शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं कक्षा के कला वर्ग का परिणाम परिणाम बोर्ड के जयपुर स्थित राजीव गांधी सभागार में जारी करते हुए खुद शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर इंसाफ ने जिस प्रकार यह कहा कि  वे सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को भी सरकार से भविष्य में कोचिंग की सुविधा दिलाने का प्रयास करेंगी, उसी से स्पष्ट है कि वे इस बात को स्वीकार कर रही हैं कि सरकारी स्कूलों का बड़ा बुरा हाल है।
असल में हुआ ये कि परिणाम जारी करते हुए वे खुद मेरिट में राजकीय विद्यालयों के प्रदर्शन से संतुष्ट नजर नहीं आई। वे भी यह देख कर हैरान थीं कि मेरिट में प्राइवेट स्कूलों का ही दबदबा था। शिक्षा राज्य मंत्री के नाते इस मौके पर स्वाभाविक रूप से उनके पास मीडिया के इस सवाल का जवाब नहीं था कि सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ाई में इतने कमजोर क्यों हैं? इस पर उन्हें कहना पड़ा कि प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर ही सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को भी कोचिंग की सुविधा दी जाएगी। यानि कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की मेरिट में सरकारी स्कूलों से भी अधिक विद्यार्थी शामिल हो सकें, इसके लिए कोचिंग शुरू तो शुरू की जाएगी, मगर सामान्य पढ़ाई तो इसी प्रकार होती रहेगी, उसमें किसी सुधार की गुंजाइश नहीं है। कैसी विडंबना है कि हम सरकारी स्कूलों का सामान्य शैक्षणिक स्तर सुधारने की बजाय अतिरिक्त कोचिंग क्लासेज लगाने को मजबूर हैं।
श्रीमती नसीम से यह भी कहा कि पूर्व में भी सरकारी स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लासेज आदि लगती रही हैं।  वर्तमान में यह व्यवस्था खत्म हो गई है। सवाल ये उठता है कि इस व्यवस्था को किसने खत्म किया और जब वे मंत्री बनीं तो उन्हें यह ख्याल क्यों नहीं आया कि यह व्यवस्था बंद क्यों हैं और उसे शुरू किया जाना चाहिए।
यहां उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों जब बोर्ड के 12वीं कॉमर्स के परिणाम में सरकारी स्कूलों के प्रदर्शन को बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पी.एस. वर्मा ने भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
अपुन तब भी लिखा था कि पिछले कई सालों से बोर्ड के परीक्षा परिणामों का यही हाल है, जिससे साबित होता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पर कितना ध्यान दिया जाता है। सच तो ये है कि जो अभिभावक अपने बच्चों को ठीक से पढ़ाना चाहते हैं, वे उन्हें बनती कोशिश उन्हें प्राइवेट स्कूलों में ही दाखिला दिलाते हैं। सरकारी स्कूल में बच्चे का पढ़ाने को आजकल बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। वे जानते हैं कि सरकारी स्कूलों का हाल बुरा है। इसी का परिणाम है कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना आजकल स्टेटस सिंबल बना हुआ है। संपन्न लोग तो अपने बच्चों को किसी भी सूरत में सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते। वे इसके लिए बच्चों को दूसरे शहर तक में पढ़ाने को भेज देते हैं। वे जानते हैं कि इससे उनके बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। आम अभिभावकों की छोडिय़े, सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक तक इसी कोशिश में रहते हैं कि अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाएं। अर्थात खुद सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को पता है कि वे खुद और उनके साथी अध्यापक कैसा पढ़ाते हैं और सरकारी स्कूलों का हाल क्या है। गांवों में तो और भी बुरा हाल है। जो अध्यापक शहर में रहते हैं, वे कोशिश करके आसपास के किसी गांव में ही तबादला करवाते हैं और रोजाना अप-डाउन करके नौकरी पकाते हैं। गांवों में अध्यापकों के गोत मारने के अनेक किस्से तो आपने सुने ही होंगे। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई का क्या हाल होता है, इसकी आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं। सच तो ये है कि सरकारी अध्यापक अपने परिवार को गांव में न रख कर इसी कारण शहर में रहते हैं ताकि उनके बच्चों की ठीक से पढ़ाई हो जाए। यानि कि उन्हें केवल अपने बच्चों का ही ख्याल है, ओरों के बच्चे जाएं भाड़ में।
अफसोसनाक बात है इस हालत पर न तो कभी सरकार ने ध्यान दिया है और न ही शिक्षाविदों या शिक्षकों ने कोई कोशिश की है कि सरकारी स्कूलों में ठीक से पढ़ाई हो। कई सशक्त शिक्षक संगठन हैं, मगर उन्होंने भी कभी इस ओर कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। वे भी तबादलों की राजनीति में उलझे रहते हैं। हर कोई अफसोस मात्र जाहिर करता है, करता कोई कुछ नहीं।
अब जब स्वयं मंत्री महोदया ने मेरिट देख कर सरकारी स्कूलों के हाल जाने हैं तो उम्मीद तो यह की जानी चाहिए कि वे सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने की कोशिश करेंगी, मगर अफसोस कि वे भी कोचिंग के जरिए केवल पेच वर्क करने की सोच रही हैं।
-तेजवानी गिरधर

जांबाज शख्सियत थे स्वाधीनता सेनानी पंडित ज्वाला प्रसाद शर्मा


स्वतंत्रता सेनानी पंडित ज्वाला प्रसाद शर्मा की बुधवार को पुण्यतिथि है। इस मौके पर ज्वाला प्रसाद शिक्षा सेवा संघ के अध्यक्ष भुवेन्द्र प्रसाद शर्मा की पहल पर स्वतंत्रता सेनानी ज्वाला प्रसाद की पुण्य तिथि भगवान गंज स्थित ज्वाला प्रसाद की कोठी पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। कृषि मंडी डायरेक्टर रुस्तम खान चीता डायरेक्टर के मुख्य आतिथ्य, ग्राम पंचायत सोमलपुर सरपंच कुकी देवी, वार्ड 15 की पार्षद नीता केन, वार्ड पंच अकरम खान, नजीर दादा, कैलाश चौधरी के विशिष्ट आतिथ्य में वक्ताओं के विचारों यही सार निकला कि वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किए जाते रहेंगे। आज जब कि अजमेर में राजनीतक जागरुकता का अभाव महसूस किया जाता है तो ऐसी जांबाज शख्सियत को लोग तहे दिल से याद करते हैं और गर्व करते हैं कि हमारे यहां भी जमीन से जुड़े और दमदार नेतृत्व के धनी नेता रहे हैं।
आइये, इस मौके पर जानें उनकी जीवनी के बारे में:-
स्वाधीनता संग्राम में अजमेर के उग्रवादी आंदोलनकारियों में पंडित श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा का नाम शीर्ष पर गिना जाता है। आपने डी.ए.वी. हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सन् 1930 में सहपाठियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1931 में क्रांतिकारी श्री मदन गोपाल के नेतृत्व में रेलवे कारखाना लूटने की योजना बनाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। आप श्री विजय सिंह पथिक व श्री अर्जुन लाल सेठी के सम्पर्क में भी आए। आपने हटूंडी में गांधी आश्रम में बाबा नृसिंहदास से बंदूक चलाना सीखा। एक सरकारी गुप्तचर ने आपको फंसाने के लिए सीकर के एक महाजन के घर डाका डालने के मकसद से रिवाल्वर दिया, मगर वे उसके चक्कर में नहीं आए और श्रीनगर के पास जंगल में उसी रिवाल्वर से उसको मार कर शव जमीन में दफन कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सन् 1942 में जेल में रहने के दौरान युक्ति लगा कर भागने में सफल हो गए। आजादी के बाद कांग्रेस से जुड़ गए और प्रदेश कांग्रेस के महासचिव व अजमेर नगर परिषद के सभापति रहे।
आप विधानसभा व लोकसभा के सदस्य भी रहे। आपने राजस्थान रोडवेज के अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया। 20 मई, 1974 को जयपुर से अजमेर आते वक्त दूदू के पास कार दुर्घटना में आपका निधन हो गया।
स्वर्गीय श्री शर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती क्रांतिदेवी ने भी आजादी के आंदोलन में उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर भाग लिया। स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल झा के घर जन्मी श्रीमती क्रांतिदेवी ने एम.ए. हिंदी तक शिक्षा अर्जित की और लेखन कार्य से जुड़ी रहीं। वे आजादी के आंदोलन के दौरान जन प्रबल प्रचार समिति की अध्यक्ष रहीं। वे प्रदेश कांगे्रस की उपाध्यक्ष भी रहीं। स्वर्गीय श्री शर्मा की पुत्री श्रीमती नीलिमा कृष्णा शर्मा भी माता-पिता की तरह राजनीति में सक्रिय रही हैं। वे 1985 के चुनाव में जिले के भिनाय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक निर्वाचित हुईं। वे समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी से नजदीकी के कारण उन्हें राजस्थान का सलाहकार बनाया गया था। सन् 1953 में जन्मी श्रीमती नीलिमा ने एम.ए. अंग्रेजी तक शिक्षा ग्रहण की है और वर्तमान में अहमदाबाद में एक कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 21 मई 2013

... तो क्या ये समानांतर शहर कांग्रेस है?


कांग्रेस के सेकंड हाईकमान राहुल गांधी के जयपुर में कांग्रेसजन को एकजुट होने का संदेश दिए जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि अजमेर कांग्रेस की फूट खुल कर सामने आ गई है। शहर कांगे्रस से अलग चल रहे नेताओं ने अजमेर के आम कांग्रेसजन के नाम से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर अलग से कार्यक्रम आयोजित कर स्थानीय पंचशील स्थित राजीव गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया तथा दो मिनट का मौन रखा गया। उन्होंने उपेक्षित पड़ी राजीव गांधी की प्रतिमा के आसपास सफाई की तथा पानी एवं गुलाब जल से धुलाई कर जमा कचरा हटाया।
इस अवसर पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पूर्व शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग, मनोनीत पार्षद सैयद गुलाम मुस्तफा पार्षद, युवा नेता यासिर चिश्ती, शब्बीर खान, छात्र नेता सुनील लारा, महेश ओझा, विजय यादव, कुलदीप कपूर, फकरे मोइन, अशोक सुकरिया, वैभव जैन, प्रकाश गदिया, राजकुमार जैन आदि मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिसंख्य चेहरे महेन्द्र सिंह रलावता की अध्यक्षता वाली शहर कांग्रेस से आरंभ से ही अलग चल रहे हैं।
यूं अजमेर के सभी कांग्रेसी एक हफ्ता पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस संदेश यात्रा के अजमेर आगमन पर एक जाजम पर नजर आए थे और संदेश यह गया था कि विभिन्न गुटों में सुलह हो जाएगी। हाल ही नगर सुधार न्यास के दीनदयाल पुरम आवासीय योजना की लॉटरी निकाले जाने के कार्यक्रम में पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की मौजूदगी से भी ऐसा ही संकेत मिला कि गुटों में कायम खाई कुछ कम हुई है। ज्ञातव्य है कि डॉ. जयपाल नगर कांग्रेस कमेटी पर महेन्द्र सिंह रलावता के काबिज होने के बाद केन्द्रीय कंपनी मामलात मंत्री सचिन पायलट लॉबी के न्यास सदर नरेन शहाणी, निगम मेयर कमल बाकोलिया और शहर कांग्रेस कमेटी के कार्यक्रमों से अपने आप को दूर ही रखा करते थे। जयपाल के न्यास के कार्यक्रम में नजर आने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में तनिक आशाजनक माहौल बना, मगर ताजा घटना यह साफ संकेत दे रही है कि डॉ. बाहेती, डॉ. जयपाल, डॉ. सुरेश गर्ग व गुलाम मुस्तफा के नेतृत्व में शहर में समानांतर कांग्रेस चल रही है, जिसे सीधे तौर पर दबाव की राजनीति कहा जा सकता है। यह घटना लगती भले ही मामूली हो, मगर रलावता के लिए अच्छे संकेत नहीं देती। अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात मंत्री सचिन पायलट के भी इससे काम खड़े हो गए होंगे। जिस प्रकार रलावता विरोधी लॉबी लामबंद हो रही है, उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में सचिन को सुलह का कोई न कोई रास्ता निकालना ही होगा।
यहां आपको याद दिला दें कि पूर्व अध्यक्ष जसराज जयपाल के कार्यकाल में भी कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने कांग्रेस विचार मंच के नाम से अलग दुकान लगा रखी थी, मगर उसमें पूर्व जिला प्रमुख सत्यकिशोर सक्सैना सरीखे थके हुए लोग अधिक थे, इस कारण वह मंच दबाव नहीं बना पाया, लेकिन वर्तमान में शहर कांग्रेस से अलग चल रहा धड़ा काफी पावरफुल है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा पाएगा।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 20 मई 2013

क्या हैं न्यास के कार्यक्रम में जयपाल की मौजूदगी के मायने?


भले ही मीडिया में यह आम धारणा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में निकाली जा रही कांग्रेस संदेश यात्रा के तहत अजमेर में आयोजित सभा के दौरान कांग्रेस के सभी गुटों की मौजूदगी से नजर आई एकजुटता छद्म है और बाद में खाइयां पूर्ववत जारी रहेंगी, मगर हाल ही ताजा घटना यह साबित करती है कि गहलोत की यात्रा का कुछ तो असर पड़ा ही है। जो पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल नगर कांग्रेस कमेटी पर महेन्द्र सिंह रलावता के काबिज होने के बाद केन्द्रीय कंपनी मामलात मंत्री सचिन पायलट लॉबी के न्यास सदर नरेन शहाणी, निगम मेयर कमल बाकोलिया और शहर कांग्रेस कमेटी के कार्यक्रमों से अपने आप को दूर ही रखा करते थे, वे पहली बार न्यास की दीनदयाल पुरम आवासीय योजना की लॉटरी निकाले जाने के दौरान मौजूद नजर आए। स्वाभाविक रूप से यह सबको चौंकाने वाला रहा, मगर जानकार समझते हैं कि गहलोत की यात्रा के दौरान पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल व डॉ. राजकुमार जयपाल को मिली तवज्जो का संदेश यह गया है कि उनको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। संभव है पिता-पुत्र को भी यह कहा गया हो कि उनके सम्मान में कोई कमी नहीं रखी जाएगी और अब वे मुख्य धारा में शामिल हो जाएं। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि आज जो कांग्रेस की हालत है, उसमें डॉ. जयपाल व डॉ. बाहेती को भी साथ लिए बिना चुनाव में पार लगने वाली नहीं है।
ज्ञातव्य है कि निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, और भगत, रलावता व बाकोलिया टिकट के दावेदार हैं। तीनों समझते हैं कि अकेले सचिन पायलट की चापलूसी से टिकट नहीं मिलेगा। इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रजामंदी भी जरूरी है। और यह तभी संभव है, जबकि डॉ. जयपाल को भी कांग्रेस या सरकारी कार्यक्रमों में पूरा सम्मान दिया जाए। बताया तो ये भी जाता है कि गहलोत ने अजमेर दौरे के दौरान तीनों को इशारा कर दिया था कि वे आइसोलेटेड न रहें, इससे कांग्रेस को नुकसान होगा, अत: सभी गुटों को पूरी तवज्जो दें। संभवत: उनकी सीख का असर रहा कि न्यास अध्यक्ष भगत ने महत्वाकांक्षी दीनदयाल उपाध्याय योजना की लॉटरी का कार्यक्रम आयोजित किया तो उसमें डॉ. जयपाल को विशेष रूप से बुलाया। कार्यक्रम के विज्ञापनों में भी उनके नाम का उल्लेख था। बताया जाता है कि इससे पहले भी जयपाल को कार्यक्रमों का न्यौता तो दिया जाता था, मगर वह औपचारिक ही होता था और इसी कारण वे उसमें शामिल नहीं होते थे। यहां तक कि सचिन पायलट के कार्यक्रमों तक से दूरी बना कर रखते थे। अब जब कि उनको विशेष सम्मान दिया गया तो वे सहर्ष इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में तनिक आशाजनक माहौल बना है और संभव है आने वाले दिनों में विभिन्न गुटों के बीच अब तक कायम दूरियां कुछ कम होने लगें।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 19 मई 2013

देवनानी-लाला बणा का ये प्रेम बना रहेगा?

यह दिलचस्प फोटो हाल ही अजमेर के वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर महेश नटराज ने अपने फेसबुक अकाउंट पर शाया किया है। यह राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में फंसाने जाने के विरोध में अजमेर में निकाली गई भाजपा की वाहन रैली का है, जिसमें अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के साथ वाहन पर अजमेर उत्तर के ही भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार माने जाने वाले सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बणा बैठे हैं। स्वभाविक सी बात है कि टिकट की दावेदारी के लिहाज से दोनों एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं, मगर जिस तरह से साथ बैठ कर खुले हृदय से खिलखिला कर हंस रहे हैं, तो वह क्षण बड़ा ही रोचक हो गया है। इस पर जहां भाजपा नेत्री वनिता जैमन ने सुपर्ब का कमेंट किया है, वहीं एडवोकेट अशोक तेजवानी ने उम्मीद की है कि यह प्रेम बना रहे। समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में जब दावेदारी का माहौल गरमाएगा तो दोनों के बीच कैसा प्रेम कायम होगा? देवनानी जहां अपनी सीट बचाने की पुरजोर कोशिश करेंगे, वहीं लाला बणा टिकट की खातिर एडी-चोटी का जोर लगा देंगे। ऐसे में दोनों एक-दूसरे की भरपूर कारसेवा करने से भी नहीं चूकेंगे। देखते हैं तब दोनों के बीच यह प्रेम कायम रह पाता है या नहीं।

दरगाह कमेटी : बचे एक पद के लिए मचेगा घमासान


महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की बारगाह के अंदरूनी इतजामात संभालने वाली दरगाह कमेटी में सदस्यों के दो खाली पड़े पदों में एक पर बैंगलोर के उबैदुल्लाह शरीफ की नियुक्ति के साथ ही अब केवल एक पद रह गया है। ज्ञातव्य है कि कमेटी में कुल नौ सदस्य होते हैं, जिनमें से सात की गत माह नियुक्ति हो गई थी और बाकी बचे दो पदों पर स्थानीय को नियुक्ति का दबाव बनाया जा रहा था। इसी बीच बैंगलोर के उबैदुल्लाह ने केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्री से सेंटिंग कर एक पद हासिल कर लिया है। जाहिर है अब बचे एक पद पर नियुक्ति के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति हो गई है।
आपको याद होगा कि उर्स को नजदीक आते देख लंबे अरसे से लंबित दरगाह कमेटी पुनर्गठन की मांग उठी तो तुरत-फुरत में दो-तीन दिन बाद ही कमेटी का गठन हो गया। तभी समझ में आ गया था कि कमेटी के नए सदस्यों के नाम तो पहले ही तय हो चुके थे, मगर घोषित नहीं किए जा रहे थे, वरना मांग के दो-तीन दिन के अंदर देश के विभिन्न भागों के प्रतिनिधियों का चयन इतना जल्दी कैसे हो गया? इसका एक अर्थ ये भी निकला कि स्थानीय सदस्यों की नियुक्ति को लेकर विवाद के चलते पुनर्गठन रुका हुआ था। बहरहाल, जैसे ही सात सदस्यों की नियुक्ति हुई तो शेष दो पदों के लिए स्थानीय दावेदारों की भागदौड़ तेज हो गई। खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय में सचिव ललित के पंवार से भेंट कर दबाव बनाया है कि खादिमों को तवज्जो दी जाए, क्योंकि वे दरगाह की परंपराओं व रस्मों और जायरीन की जरूरतों को बेहतर जानते हैं। कुछ इसी तरह की बात युवा खादिम सैयद नातिक चिश्ती ने कही है। उनका कहना था कि जो खादिम से बेहतर जायरीन के बारे में किसे जानकारी हो सकती है। वैसे स्थानीय लोगों में पूर्व सदस्य इलियास कादरी के साथ ही खादिम सैयद नातिक चिश्ती, सैयद इकबाल चिश्ती, सैयद लियाकत हुसैन मोईनी व सैयद गुलाम किबरिया चिश्ती समेत करीब 20 लोगों ने आवेदन कर रखा है। विवाद के चलते माना जा रहा था कि नियुक्ति में देरी होगी और संभव है ईद के बाद ही नियुक्ति हो, मगर अचानक बैंगलोर के उबैदुल्लाह ने बाजी मार ली। चूंकि पहले दो पद खाली थे, इस कारण मारामारी कुछ कम थी, मगर अब एक बचे पद के लिए खींचतान तेज हो गई है। पहले माना जा रहा था कि स्थानीय में एक खादिम और एक आम मुसलमान की नियुक्ति हो सकती है, मगर अब चूंकि मात्र एक पद बचा है, इस कारण इस पर जाहिर तौर पर खादिम ज्यादा जोर लगाएंगे। अब देखना ये है कि स्थानीय स्तर पर कौन भारी पड़ कर अपना नाम कमेटी में शामिल करवा पाता है।
ज्ञातव्य है कि पूर्व में 16 अप्रैल को घोषित सात सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं:-डूंगरपुर राजस्थान के असरार अहमद खान, इंदौर मध्यप्रदेश के शेख अलीम, रायबरेली, उत्तर प्रदेश के मौलाना अब्दुल वदूद पीर अशरफ, रूदौली शरीफ के सज्जादानशीन (फैजाबाद यूपी) के शाह अम्मार अहमद अहमदी उर्फ नैयर मियां, अहमदबाद के चिश्ती जियाउद्दीन ख्वाजा मोईनुद्दीन, अमेठी उत्तर प्रदेश के चौधरी वजाहत अख्तर और मुंबई के जावेद अब्दुल मजीद पारीख।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 17 मई 2013

केवल सचिन के बूते नहीं जीत पाएगी कांग्रेस


बकौल राहुल गांधी अजमेर के सांसद सचिन पायलट डायनेमिक लीडर हैं, और वाकई हैं भी, मगर सच ये है कि अकेले उनके बूते आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अजमेर जिले में नहीं जीत पाएगी। इसके लिए संगठन को भी मजबूत करना होगा। इसकी ओर इशारा किया, अजमेर के मात्र चार नेताओं ने, और वे हैं राज्य सरकार के मुख्य सचेतक व केकड़ी के विधायक डॉ. रघु शर्मा, पूर्व देहात जिला कांगे्रेस अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, ब्लॉक अध्यक्ष विजय नागौरा और शहर जिला सेवादल अध्यक्ष शैलेंद्र अग्रवाल। कदाचित इसे खुद राहुल भी जानते हैं और प्रदेश हाईकमान भी। ब्लॉक अध्यक्ष विजय नागौरा का कहना था कि अजमेर को सचिन पायलट जैसा लीडर मिलना मुश्किल है, लेकिन ब्लाक स्तर पर गुटबाजी समाप्त नहीं हुई तो अजमेर की दोनों सीटों से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ सकता है। राज्य सरकार के मुख्य सचेतक व केकड़ी के विधायक डॉ. रघु शर्मा ने भी विकास कार्यों के लिए सचिन पायलट की तो तारीफ की, मगर यह कह कर नाराजगी जताई कि डायरियां भरवाने के बावजूद भी अगर मनोनयन कर पदों पर किसी को काबिज करना है तो संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया समाप्त कर देनी चाहिए। शहर जिला सेवादल अध्यक्ष शैलेंद्र अग्रवाल ने भी पायलट की जमकर प्रशंसा की लेकिन साथ ही संगठन की दयनीयता का जिक्र करते हुए साफ कहा कि बड़े नेताओं के आगमन की अग्रिम संगठनों को कोई इत्तला नहीं दी जाती।
जहां तक राहुल का सवाल है, उन्हें भी इस बात का भान है, इसका इशारा उनके इस बयान से मिलता है कि विधानसभा चुनाव के टिकट फायनल करने का अधिकार सांसद को नहीं दिया जा सकता और आप लोगों की राय से ही प्रत्याशी का चयन किया जाएगा। अर्थात वे जानते हैं कि सचिन के नेतृत्व के बावजूद निचले स्तर के नेताओं और संगठन को भी तवज्जो देनी होगी। कदाचित उन्हें पता नहीं होगा कि सचिन पर उन्हीं की छत्रछाया के कारण कांग्रेसियों में अजमेर को केन्द्र शासित माना जाता है, अर्थात संगठन के हर मसले पर सचिन का ही मुंह ताका जाता है, प्रदेश के बाकी नेता अजमेर के मामले में बोलने से घबराते हैं। अजमेर की कांग्रेस की हालत जानते हुए ही पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस संदेश यात्रा के दौरान अजमेर आने पर रुष्ठ नेताओं के दिलों पर मरहम लगा गए। वे जानते थे कि अजमेर की कांग्रेस सचिन के पक्ष और विपक्ष में बंटी हुई है। विपक्षी खेमे के नेता उचित सम्मान न मिलने के कारण खफा हैं, इस कारण पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल को विशेष तवज्जो दी, ताकि गुटों के बीच कायम खाई पाटी जा सके। अब देखना ये है कि हाईकमान दोनों गुटों के बीच कैसे तालमेल बैठा कर कांग्रेस को मजबूत कर पाता है।
भाटी की कारसेवा कर आए छाबड़ा
नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अमोलक छाबड़ा किसी वक्त पूर्व उप मंत्री ललित भाटी के खास सिपहसालार हुआ करते थे, मगर अब उनकी भाटी से नाराजगी व नाइत्तफाकी किसी से छिपी हुई नहीं है। उन्होंने मानो कसम ही खा रखी है कि भाटी को टिकट मिलने का विरोध करेंगे। जब उन्होंने राहुल गांधी से यह कहा कि जो पार्टी को छोड़कर चले गए और काफी अंतर से चुनाव हारे गए है उन्हें इस बार उम्मीदवार नहीं बनाया जाएं, तो सब समझ रहे थे कि उनका निशाना भाटी ही हैं।
-तेजवानी गिरधर

अकेले चौधरी में ही है पायलट के विरोध का माद्दा


सबको पता है कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हैं और उनकी युवा टीम के अहम सदस्य हैं, बावजूद इसके राहुल के सामने सचिन की खिलाफत करने का माद्दा अकेले डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी में है। तभी तो उन्होंने जयपुर में अजमेर के गु्रप से फीडबैक लेते वक्त सचिन का यह कह विरोध किया कि लोकसभा के चुनाव में स्थानीय व्यक्ति को ही टिकट दिया जाए, इससे कांग्रेस मजबूत होगी। हालांकि इससे पहले भी जब सचिन को टिकट दिया जा रहा था, तब भी उनके सुर अलग थे। अब तो वे न केवल अजमेर के सांसद हैं, अपितु राहुल की कृपा से राज्य मंत्री भी हैं, मगर जानते बूझते हुए भी चौधरी ने ऐसी मांग कर डाली तो इससे यह साबित हो गया कि  वे मर्द नेता हैं।
असल में चौधरी में यह दम-खम शुरू से अपने बूते पर रहा है। जब ेदेहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब भी उनके रुतबे अलग ही थे। ऐसा दमदार देहात अध्यक्ष न इससे पहले था और न ही बाद में बना। बेशक वे कांग्रेस के झंडाबरदार हैं, मगर राजनीति अपने दम पर करते हैं। वर्षों से उनकी जिले पर जबरदस्त पकड़ है। शायद ही ऐसा कोई गांव-ढ़ाणी हो, जहां उनके दो-चार चेले न हों। पहले ये भ्रम था कि वे कांग्रेस के देहात अध्यक्ष होने के नाते पार्टी की ताकत पर डेयरी अध्यक्ष बनते हैं, मगर जब  इस पद से हट गए, तब भी अपने बूते पर दुबारा अध्यक्ष बन कर दिखा चुके हैंं। इतना ही नहीं भाजपा की पिछली सरकार के दौरान जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने ऐडी चोटी का जोर लगा दिया, मगर चौधरी को डेयरी अध्यक्ष बनने से नहीं रोक पाए।
चौधरी की इस खासियत को बताने का मतलब सिर्फ इतना है कि जमीन से जुड़े नेता ही रीढ़ की हड्डी सीधी रख कर आंख में आंख में मिला कर बात कर सकते हैं। इसी कड़ी में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व डॉ. राजकुमार जयपाल की गिनती की जा सकती है, मगर चौधरी की तो बात ही अलग है। बाकी सारे नेता सचिन के सामने कैसे रीढ़ को दोहरा करके खड़े रहते हैं, किसी से छिपा हुआ नहीं है। मतलब साफ है उनका अपना कोई दम-खम नहीं है, जो कुछ है वह कांग्रेस के दम पर है।
वैसे चौधरी की दमदारी की एक वजह ये भी है कि वे वर्षों से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष परसराम मदेरणा, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ और पूर्व केबीनेट मंत्री हरेन्द्र मिर्धा की लॉबी से जुड़े हुए हैं। अगर सचिन का विरोध करने पर वे नाराज हो भी जाते हैं तो उन्हें बचाने वाली एक दमदार जाट लॉबी मौजूद है। कहने की जरूरत नहीं है कि परिसीमन के बाद अजमेर लोकसभा सीट जाट डोमिनेटेड हो गई है।
-तेजवानी गिरधर

पायलट पर अपना ठप्पा लगा गए राहुल


यह आम धारणा है कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हैं और उनकी युवा टीम के अहम सदस्य हैं। इस धारणा पर खुद राहुल ने ही ठप्पा लगा दिया है, अजमेर के कार्यकर्ताओं से यह कह कर कि आपके पास सचिन पायलट जैसा डायनेमिक लीडर है और क्या चाहिए। तुम सभी मिलकर संगठन को मजबूत बनाओ और सरकार बनाओ। वे अपने दो दिवसीय राजस्थान दौरे के दूसरे दिन जयपुर में ग्रुप में अजमेर के नेताओं से फीड बैक ले रहे थे। राहुल के इस ताजा बयान से उन सब नेताओं का भ्रम व सपना टूट गया होगा कि सचिन की शिकायत पर हाईकमान कार्यवाही करेगा। कार्यवाही तो दूर शिकायत तक नहीं सुने जाने का ताबीज बांध गए राहुल। राहुल के बयान से समझा जा सकता है कि वे सचिन को कितना चाहते हैं। राहुल के बयान से उन लोगों का झुकाव भी सचिन की ओर होगा, जो अब तटस्थ बने हुए थे। सचिन से अब दूरी बना कर चल रहे डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और डॉ. राजकुमार जयपाल को भी यह बात समझ में आ गई होगी कि उन्हें अब तालमेल बैठा कर ही चलना होगा। हालांकि राहुल ने नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अमोलक सिंह छाबड़ा की इस मांग को दरकिनार कर दिया कि किसी सांसद को विधानसभा के टिकट फायनल करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता और आप लोगों की राय से ही प्रत्याशी का चयन किया जाएगा, मगर इतना तो तय है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों का चयन करने में सचिन की ही अहम भूमिका रहेगी।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 16 मई 2013

आखिर शक की सुई घूम कर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पर आ कर टिकी


आखिर शक की सुई घूम कर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. सुभाष गर्ग पर आ कर टिक ही गई। अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर के आय से अधिक की संपत्ति के मामले में एसीबी के शिकंजे में फंसने के साथ ही पूर्व अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर भी शक की सुई घूमती नजर आ रही है। अब तो गबन मामले में एसीबी की नई एफआईआर में गर्ग का ही नाम आ गया है। बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर ने खुलासा किया है कि वे गर्ग के कहने पर ही बोर्ड का पैसा इधर-उधर करते थे। हालांकि गर्ग कह रहे हैं कि तंवर झूठ बोल रहा है, मगर इतना कह देने मात्र से शक की सुई हट नहीं जाएगी।
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि कयास ये लगाया जा रहा है कि तंवर के पास मिली करोड़ों की संपत्ति का कहीं न कहीं डॉ. गर्ग से भी कनैक्शन है। राजस्थान शिक्षक संघ (राधाकृष्णन) के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने तो बाकायदा बयान जारी कर डॉ. गर्ग के कार्यकाल की जांच कराने की मांग की थी और आरोप लगाया था कि डॉ. गर्ग की मिलीभगत से ही भ्रष्टाचार किया गया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय सलाहकार के कृपा पात्रों को करोड़ों रुपए के भुगतान उनके कार्यकाल में ही किए गए। इसी प्रकार भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने भी निर्माण कार्यों व ठेकों में गड़बड़ी सहित आरटेट परीक्षा 2011 के दौरान बोर्ड को मिली बेरोजगार युवकों की फीस का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए राज्य सरकार से डॉ. गर्ग के कार्यकाल की निष्पक्ष आयोग से जांच करवाने सहित उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।
ज्ञातव्य है कि डॉ. गर्ग के कार्यकाल में ही तंवर का तबादला अन्यत्र हो गया था, लेकिन इस तबादले को रद्द करवा कर उन्हें यहीं पदस्थापित किया गया। गर्ग ने 31 मार्च 2011 को मुख्य सचिव सी के मैथ्यू को डीईओ लेटर लिखा था। इसमें तर्क दिया गया था कि तंवर के बिना बोर्ड का काम नहीं चलेगा। इसकी पुष्टि स्वयं गर्ग भी कर रहे हैं, बस फर्क इतना है कि वे अपने आपको पाक साफ बताते हुए कह रहे हैं कि तंवर की जगह लगाया गया व्यक्ति उपयुक्त नहीं था, इसलिए तंवर का तबादला कुछ समय रोकने के लिए मैंने मुख्य सचिव को पत्र लिखा था। भले ही गर्ग का तंवर की हेराफेरी से कोई संबंध न हो, मगर अकेला यही तथ्य उनके लिए दिक्कत पैदा कर रहा है। हो सकता है गर्ग जो कह रहे हैं, वही सच हो, मगर अब जब कि तंवर ने एसीबी की पूछताछ में खुलासा किया है कि गर्ग के जुबानी निर्देश पर उसने अजय जेडका की पिरामिड कंपनी और जेडका की बताई अन्य कंपनियों के नाम बोर्ड के खातों से चेक जारी किए थे, तो जांच की दिशा यह होगी कि क्या यह सही है। इसी से जुड़ा एक सवाल ये भी है कि तंवर बोर्ड के 54 करोड़ रु. की एफडीआर से संबंधित सभी खाते अपने घर से चलाता रहा और बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य अधिकारी अनजान कैसे बने रहे?  संभव है अब एसीबी इस सिलसिले में गर्ग से पूछताछ करे।
ज्ञातव्य है कि बोर्ड के इतिहास में पहली बार एक ही अध्यक्ष और एफए के कार्यकाल में रिकार्ड निर्माण कार्य हुए। बोर्ड में बीते तीन साल में 40 करोड़ रुपए से अधिक के निर्माण कार्य हुए हैं। इससे जुड़ा सवाल ये है कि जिस आरएसआरडीसी के काम को पूर्व वित्तीय सलाहकार ने घटिया करार दे दिया था, उसी से बोर्ड ने सभी निर्माण कार्य कराए।
ज्ञातव्य है कि तंवर के अजमेर के पंचशील स्थित बंगले से बोर्ड की 54 करोड़ 70 लाख रुपए की एफडीआर मिली है। बोर्ड के निकट स्थित आईसीआईसीआई बैंक के लॉकर से करीब 3.50 लाख रुपए के सोने के सिक्के और नकदी बरामद हुई। जांच में आरोपी की संपति का आंकड़ा करीब 11 करोड़ पहुंच चुका है।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 15 मई 2013

बाकोलिया की ही लग रही है ये करतूत

राज्यमंत्री नारायाण सामी होटल का फीता काटकर शुभारंभ करते हुए

पूर्व कांग्रेस विधायक कय्यूम खां ने केन्द्रीय मंत्री नारायण वी. सामी से अपनी दरगाह बाजार स्थित न्यू जन्नत होटल का उद्घाटन कराया तो हर अखबार में यह खबर सुर्खियां पा गई कि होटल का न तो न तो व्यावसायिक और न ही आवासीय नक्शा स्वीकृत है। यह खबर महज इतनी मात्र नहीं है कि उन्होंने सामी को अंधेरे में रख कर उद्घाटन करवाया, बल्कि इसके साथ एक साल कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। एक ये कि यह खबर किसके इशारे पर छपी? दूसरा ये कि अगर निगम को यह पहले से पता था तो उसने कार्यवाही क्यों नहीं की? तीसरा ये कि सामी को इशारा क्यों नहीं किया गया, जबकि निगम मेयर कमल बाकोलिया साथ ही थे?
असल में हुआ ये कि सामी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की चादर दरगाह शरीफ में चढ़ाने के लिए अजमेर आए थे। कय्यूम ने मौके का फायदा उठाते हुए उनका पगफेरा अपनी नई होटल में करवा लिया। वे वीआईपी कांग्रेसियों की मेहमाननवाजी करते रहे हैं। खुद कय्यूम का कहना है कि इससे पूर्व भी उर्स में वे प्रधानमंत्री अथवा अन्य वीआइपी कांग्रेस नेताओं की चादर आने पर मेहमानों को जन्नत होटल में चाय पीने के लिए बुलाते रहे हैं। इस बार न्यू जन्नत होटल में बुलाया। होटल के अवैध होने का मामला प्रकाश में आते ही हालांकि वे इससे मुकर रहे हैं कि उन्होंने उद्घाटन करवाया, मगर फीता काटने की फोटो खुद बता रही है कि वे सफेद झूठ बोल रहे हैं। लगता ये है कि उनकी उद्घाटन की कोई योजना थी ही नहीं। अगर ऐसा होता तो बाकायदा उसके कार्ड छपवाते व लोगों को बुलवाते। हुआ ये लगता है कि जैसे ही सामी उनकी होटल में चाय पीने के प्रस्ताव को मान गए तो किसी ने सलाह दे डाली की आ ही रहे हैं तो फीता भी कटवा लो, सो तुरत-फुरत में फीता व कैंची की व्यवस्था की गई। बस यहीं चूक हो गई।
रहा सवाल होटल के अवैध होने की खबर का तो चर्चा यही है कि यह करतूत नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया की लगती है, जो जानते थे कि होटल का नक्शा पास नहीं है, इस कारण सामी, सचिन पायलट व अश्क अली टांक के साथ अंदर नहीं गए और बाहर ही लोगों से बतियाते रहे। भले ही अब वे यह कह कर बचने की कोशिश करें कि वे तो बाहर लोगों से बातचीत करने में रह गए, मगर समझा जाता है कि उन्होंने ही पत्रकारों को इशारा किया कि होटल अवैध है। वरना पत्रकारों को क्या पता कि होटल अवैध है। उसके अवैध होने की खबर तो आज तक प्रकाशित नहीं हुई। अगर वाकई यह खबर बाकोलिया की ही देन है तो इसके अनेक राजनीतिक अर्थ निकलते हैं, जो आगे चल कर सामने आएंगे। अगर ये सच है तो सीधा सवाल उठता है कि उन्होंने कार्यवाही की पहल क्यों नहीं की? क्या कांग्रेसी होने के कारण उन्होंने बक्श दिया या फिर उनकी हिम्मत नहीं हुई?
क्या इसके लिए सीईओ जिम्मेदार नहीं हैं?
जैसे ही पत्रकारों का पता लगा कि उद्घाटित होटल अवैध है तो परंपरा के मुताबिक निगम की सीईओ से बयान लिया गया। उन्होंने कहा कि हमारे पास किसी होटल के शुभारंभ की कोई जानकारी नहीं है। दरगाह बाजार में जिस होटल के बारे में आप बता रहे हैं, उसका न तो कोई आवासीय और न ही वाणिज्यिक नक्शा पास कराया गया है। सवाल ये उठता है कि अगर उन्हें ये पता था तो उन्होंने होटल मालिक के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की? उससे भी बड़ी बात ये कि अवैध होटल बन कर खड़ी कैसे हो गई? नगर निगम के अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या ऐसे में इस अवैध होटल के खुद सीईओ जिम्मेदार नहीं हैं? क्या केवल होटल मालिक को ही दोषी बता कर वे खुद की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकती हैं? आखिर कब तक निगम के अधिकारी अपनी जेबें भरते हुए अवैध इमारतें बनने को नजरअंदाज करते रहेंगे और बाद में भी वसूलियां जारी रखेंगे? हालांकि कय्यूम का यह कह कर खुद का बचाव करना गलत है कि दरगाह और उसके आसपास सभी होटल आवासीय नक्शा पास करवाए भवनों में ही चल रहे हैं, मगर उनकी इस दलील से यह तो खुलासा हो ही रहा है कि वहां अवैध होटलों की भरमार है? और यह समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है कि इसके लिए सीधे तौर पर निगम के अधिकारी ही जिम्मेदार हैं? सबसे ज्यादा सीईओ वनीता श्रीवास्तव।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 12 मई 2013

गहलोत की सभा इम्पैक्ट नहीं छोड़ पाई


मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में निकाली जा रही कांग्रेस संदेश यात्रा के तहत अजमेर में आयोजित सभा में भले ही कांग्रेस के सभी गुटों की मौजूदगी से एकजुटता नजर आई हो, मगर इस सभा का आम जनता में कुछ खास इम्पैक्ट नजर नहीं आया। न तो अपेक्षा के अनुरूप भीड़ जुटाई जा सकी और न ही मौजूद लोगों में कोई खास उत्साह था। कांग्रेसी भले ही इसकी वजह आंधी और बारिश को बताएं, मगर आमजन में गहलोत के प्रति उतना आकर्षण नहीं दिखाई दिया, जितना कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वसुंधरा राजे की प्रदेशभर की सभाओं में नजर आ रहा है।
गहलोत की सभा इस वजह से ही अपेक्षा के अनुरूप नहीं रही, क्योंकि  उनका यह इकलौता कार्यक्रम नहीं था, जिसके लिए पूरी ताकत लगाई गई हो। बहाना भले ही संदेश यात्रा का था, मगर इसी के साथ अनेक शिलान्यास व लोकार्पण कार्यक्रम होने की वजह से कार्यकर्ता बंट गए। अगर संदेश यात्रा के तहत केवल एक ही सभा करते तो संभव है कार्यकर्ता ज्यादा भीड़ जुटा पाते।
गुटों की एकजुटता दिखावटी 
जहां तक गहलोत के आने पर गुटों में बंटी कांग्रेस के एकजुट दिखाई देने का सवाल है, तो यह भी छद्म ही कही जाएगी। इसकी वजह ये है कि भले ही गहलोत और अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के एक ही मंच पर होने के कारण उनके समर्थक एक  जगह नजर आ गए, मगर उनके बीच पड़ी दरार भी समाप्त हो गई होगी, यह कहना उचित नहीं होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि एक ओर जहां पायलट के प्रति आस्था रखने वालों में शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया व नगर सुधार न्यास के सदर नरेन शहाणी भगत की गिनती की जाती है, जबकि पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व डॉ. राजकुमार जयपाल की आस्था गहलोत में है। यह बंटवारा पायलट के चुनाव के वक्त ही हो गया था और तब से लेकर आज तक कायम है। डॉ. बाहेती व डॉ. जयपाल ने शहर कांग्रेस के अधिकृत कार्यक्रम से दूरी ही बनाए रखते हैं। गहलोत के सामने भले ही वे आ गए, मगर शहर अध्यक्ष रलावता से उनकी पटरी बैठती नजर नहीं आती। हालांकि प्रदेश कांग्रेस हाईकमान ने इस गुटबाजी को भांपते हुए डॉ. जयपाल व उनके पिता पूर्व शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल को तवज्जो दी ताकि उनकी नाराजगी दूर हो, मगर ऐसा लगता नहीं है कि वे रलावता का नेतृत्व स्वीकार कर लेंगे। इसकी वजह ये है कि रलावता के अध्यक्ष बनने से उनकी वर्षों से जमी साख की किरकिरी हुई है। आज भी उनके गुट के लोग रलावता की कार्यकारिणी में नहीं हैं।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 11 मई 2013

बाकोलिया जी को कैसे दिखाई देंगे ये होर्डिंग्स?


मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस संदेश यात्रा के प्रचार-प्रसार और उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए कांग्रेसियों की ओर से महावीर सर्किल को चारों ओर होर्डिंग्स लगा दिए जाने से भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा ढंक गई तो जैन समाज के रोष व्याप्त हो गया। होना ही है। जब खुद जैन समाज ने ही समाज बंधुओं की ओर से महावीर जयंती की शुभकामनाएं देने के लिए लगाए गए होर्डिंग्स हटा कर भविष्य में सर्किल पर होर्डिंग्स नहीं लगाने का निर्णय लिया था, तो भला किसी और के लगाने पर कैसे बर्दाश्त किया जाएगा। इस बारे में छोटा धड़ा पंचायत के उपाध्यक्ष कोसिनोक जैन कहना है कि समाज बंधुओं ने नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया से मुलाकात कर सर्किल पर होर्डिंग्स लगाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, इस पर निगम की ओर से विज्ञप्ति जारी कर बताया गया था शहर में किसी भी सर्किल पर बैनर, पोस्टर, होर्डिंग्स आदि नहीं लगाए जाएं। उल्लघंन करने वालों से जुर्माना वसूल कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
यह सच भी है कि उनके इस आदेश की अनुपालना में नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी प्रह्लाद भार्गव ने उन समस्त होर्डिंग/बैनर इत्यादि को, जो गैर कानूनी रूप से विभिन्न सर्किलों व दर्शनीय स्थानों व इमारतों पर लगाए गये थे, को हटा कर नगर की सुंदरता को कायम करने का प्रयास किया। इसकी मीडिया ने भी ताारीफ की। मगर वो ही घोड़े और वो ही मैदान। स्थिति जस की तस हो गई। कांग्रेसियों ने सीएम की संदेश यात्रा को लेकर बधाई संदेश वाले होर्डिंग्स लगाकर सर्किल को चारों ओर से ढक दिया। ऐसा प्रतीत होता है, मानो यह भगवान महावीर स्वामी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए नहीं अपितु विभिन्न प्रभावशाली लोगों व संस्थाओं को होर्डिंग्स लगाने के लिए बनाया गया है।
वैसे यह पहला मौका नहीं है कि सर्किल की ये हालत की गई है। इससे पहले भी जिसका जोर चला, उसने होर्डिंग लगाया। और ऐसा भी नहीं कि केवल सत्तारूढ़ दल के नेता की ऐसी हरकतें करते हैं, भाजपाई भी बाज नहीं आते। भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी को जन्मदिन की बधाई देने के बैनर भी लगे दिखाई दिए थे। और तो और खुद शिकायतकर्ता कोसिनोक जैन के पिताश्री पदम कुमार जैन, जो कि अजमेर का एक जाना-पहचाना चेहरा हैं, की शादी की वर्षगांठ के बैनर भी इसी प्रकार लगाए गये थे। इसी प्रकार सुभाष उद्यान में आयोजित श्री राम नाम परिक्रमा कार्यक्रम के बैनरों से भी महावीर सर्किल को ढंक दिया गया था।
खैर, बात ताजा मामले की चल रही थी। जिन बाकोलिया जी को दिन में एक या दो बार यहां से गुजरने पर किसी अन्य के बैनर-होर्डिंग नजर नहीं आते तो आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व अन्य कांग्रेसी नेताओं के स्वागत में होर्डिंग्स लगाए गए हैं, तो वे कैसे नजर आएंगे।
जो कुछ भी हो सच यही है कि निगम तो बेपरवाह है ही, हममें भी सिविक सेंस कहां है। एक ओर हम शहर को सुंदर न बना पाने के लिए निगम व न्यास को कोसते हैं, तो दूसरी ओर स्वार्थ की खातिर खुद ही सुंदरता को नष्ट करते हैं। होना चाहिए कि निगम को कार्यवाही न करने के लिए कोसने की बजाय खुद जागरुक नागरिकों, नेताओं, समाज की स्वयंसेवी संस्थाओं व धार्मिक आयोजन समितियों को खुद की यह निर्णय करना चाहिए कि वे उचित व निर्धारित स्थान पर ही होर्डिंग्स-बैनर लगाएं। और यदि इसके बाद भी कोई सर्किल्स पर लगाता है तो उससे निगम को जुर्माना वसूल करना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 10 मई 2013

पाक जायरीन को लेकर अब भी असमंजस


पाकिस्तान को दी जायरीन को न भेजने की सलाह
एक ओर जहां ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स में आने वाले पाकिस्तानी जायरीन जत्थे की सुरक्षा सहित अन्य इंतजामात को युद्धस्तर पर पुख्ता किया जा रहा है, वहीं इस्लामाबाद से खबर है कि पाकिस्तान ने कहा है कि भारत ने उसे सलाह दी है कि सुरक्षा कारणों से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के लिए अजमेर जाने वाले पाकिस्तानी जायरीनों की यात्रा को रद्द कर दिया जाए। अर्थात स्थानीय स्तर पर हो रहे जबरदस्त विरोध के चलते पाक जायरीन का आना अब भी संदिग्ध है।
ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान में भारतीय कैदी सरबजीत की हत्या के बाद पूरे देश सहित अजमेर में पाकिस्तान के प्रति गुस्सा है। राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सहित अनेक संगठनों व भाजपा नेताओं ने पाक जायरीन के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। उन्हें व्यापारियों का भी सहयोग मिल रहा है। कुल मिला कर उन्होंने कड़ा विरोध करने के लिए कमर कस ली है। इसी सिलसिले में उन्हें मनाने के लिए जिला प्रशासन ने कवायद भी की, मगर वह कामयाब नहीं हो पाई। दूसरी ओर ऊपर के निर्देशों पर प्रशासन पाक जायरीन के आगमन की जरूरी तैयारियां भी कर रहा है। संभावना है कि गरीब नवाज के 801 वें उर्स में भाग लेने के लिए पाकिस्तानी जायरीन का जत्था 13 या 14 मई को अजमेर पहुंचेगा और 19 या 20 मई को प्रस्थान करेगा। पाक जायरीन को हर साल की तरह पुरानी मंडी मार्ग स्थित सेंट्रल गल्र्स स्कूल में ठहराया जाएगा। जिला प्रशासन की ओर से जायरीन की व्यवस्था के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सेंट्रल गल्र्स स्कूल में रंग रोगन व सफाई का काम शुरू कर दिया गया है। विभिन्न संगठनों के विरोध के बीच जिला कलेक्टर वैभव गालरिया व एसपी गौरव श्रीवास्तव ने दो टूक शब्दों में कहा है कि पाक जायरीन की विशेष सुरक्षा रहेगी। स्कूल से लेकर दरगाह जाने और आने तक हर पाक जायरीन को सुरक्षा घेरे में रखा जाएगा जिससे उन्हें कोई परेशानी न हो। जानकारी ये भी है कि पाक जायरीन की सुरक्षा के लिए दिल्ली से सुरक्षा बलों की अतिरिक्त कुमुक भेजी जा रही है।
दूसरी ओर इस्लामाबाद से खबर है कि पाकिस्तानी विदेश विभाग के प्रवक्ता की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उप-उच्चायुक्त गोपाल बागले ने यहां के विदेश मंत्रालय में दक्षिण एशियाई मामलों के महानिदेशक के साथ मुलाकात के दौरान भारत की अनुशंसा से अवगत कराया। बयान के अनुसार बागले ने कहा कि हालिया द्विपक्षीय घटनाओं के मद्देनजर भारत में जो सुरक्षा माहौल बना है, उसकी वजह से भारत सरकार पाकिस्तानी जायरीनों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होगी। बयान में कहा गया है, भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से सिफारिश की है कि जायरीनों के अजमेर दौरे को रद्द किया जाए। राजनयिक सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि भारतीय कैदी सरबजीत सिंह और पाकिस्तानी कैदी सनाउल्लाह रंजय की मौत के बाद उपजे तनाव के कारण भारत की ओर से यह अनुशंसा की गई है। पाकिस्तानी विदेश विभाग ने कहा कि अजमेर दौरे को लेकर धार्मिक मामलों के मंत्रालय को जरूरी सलाह दे दी गई है।
इस प्रकार विरोधाभासी समाचारों के चलते अब भी पाक जायरीन के आने को लेकर असमंजस बना हुआ है।
-तेजवानी गिरधर

संदेश यात्रा का विरोध करने वालों ने ही दिया निमंत्रण


शनिवार, 11 मई को अजमेर आ रही कांग्रेस संदेश यात्रा की तिथि और स्थान को लेकर विरोध करने वाले कांग्रेसियों का यकायक हृदय परिवर्तन कैसे हो गया, इसको लेकर सभी अचंभे में हैं। विरोध की पहल करने वालों की ओर से ही यात्रा के आगमन का संदेश देने के लिए वाहन रैली की पहल की गई तो अचंभा होना ही है।
ज्ञातव्य है कि विरोध की मुख्य भूमिका अदा कर रहे मनोनीत पार्षद सैयद गुलाम मुस्तफा ने 11 मई को अजमेर आने वाली कांग्रेस संदेश यात्रा और सुभाष उद्यान में आयोजित की जाने वाली आमसभा का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने यहां तक कहा कि ख्वाजा साहब के उर्स की व्यवस्थाओं पर ध्यान देने की बजाए कांग्रेस संदेश यात्रा पर ध्यान दे रही है। उनका कहना था कि संदेश यात्रा 11 मई को अजमेर आएगी और इस मौके पर दरगाह व उसके आस-पास के मेला प्रभावित क्षेत्रों के व्यापारी, कांग्रेसी, अल्पसंख्यक समेत अन्य लोग संदेश यात्रा में सम्मिलित नहीं हो पाएंगे। इसके अलावा सुभाष उद्यान में आमसभा रखी गई है, जो जायरीन के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी। उर्स में आने वाले जायरीन सुभाष उद्यान में विश्राम करते हैं और नगरीय सेवा से कायड़ व ट्रांसपोर्ट नगर विश्राम स्थली आने व जाने वाले जायरीन दरगाह जाने के लिए इसी स्थान पर उतरेंगे। इससे जायरीन को परेशानी होगी। उन्होंने संदेश यात्रा की तिथि बदलकर 11 मई से पूर्व या 20 मई के बाद करने की की मांग प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ चंद्रभान से भी की।
इसी प्रकार गुलाम मुस्तफा सहित शहर कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग, युवक कांग्रेस महासचिव विश्वास तंवर और युवक कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष अजीत सिंह छाबड़ा ने भी प्रदेश अध्यक्ष को पत्र लिख कर शिकायत की कि प्रमुख कांग्रेसी नेताओं को बुलाए बिना जिस प्रकार संदेश यात्रा की तिथियां तय की गई हैं, वह कुलड़ी में गुड़ फोडऩे के समान है। पत्र में मांग की गई है कि उर्स के मद्देनजर संदेश यात्रा की तिथियों में परिवर्तन किया जाए। पत्र में लिखा था कि जन अभाव अभियोग निकराकरण समिति के अध्यक्ष मुमताज मसीह ने सर्किट हाऊस में सन्देश यात्रा को लेकर एक बैठक ली, जिसकी सूचना आम कांग्रेसजन को नहीं दी गई। यहां तक कि डी.सी.सी. सदस्यों को भी इससे वंचित रखा गया। भाजपा द्वारा सुराज यात्रा के लिए सामान्य व्यक्ति को भी पीले चावल तक बांटने की बात है और कांग्रेस में घर में ही बात नहीं की जा रही है। संदेश यात्रा के लिए संगठन प्रभारी सुशील शर्मा तथा सचिव सलीम भाटी सचिव को भी बैठक में सम्मिलित नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है। कृपया यह जानकारी देने का श्रम करावें कि क्या हमारे संगठन प्रभारियों की हिस्सेदारी एवं उनके अनुभव एवं कुछ वर्षों से दिये हुए समय के मध्य उन्हें नजरअंदाज किये जाकर उनके बगैर इतनी बड़ी संदेश यात्रा में उनकी भूमिका नगण्य रहेगी?
स्पष्ट है कि इन कांग्रेसी नेताओं का रुख काफी कड़ा था, मगर उनके विरोध को प्रदेश कांग्रेस ने नजरअंदाज कर दिया। ऐसे में इनके लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। उन्हें समझ में आ गया कि संदेश यात्रा तो तय कार्यक्रम के हिसाब से ही आएगी, ऐसे में वे मुख्य धारा से कट जाएंगे। संभव है उन्हें ऊपर फटकार भी पड़ी हो कि इस प्रकार की हरकतों से कांग्रेस को नुकसान ही होगा। और हो गया उनका हृदय परिवर्तन। पलटे भी तो ऐसे कि शहर कांग्रेस कमेटी को नजरअंदाज कर अपने स्तर पर ही संदेश यात्रा में निमंत्रण देने के लिए वाहन रैली निकाली। बेशक रैली देखने लायक थी। यूं तो रैली के आयोजक डॉ. सुरेश गर्ग व गुलाम मुस्तफा ही थे, मगर इसमें शहर कांग्रेस महेन्द्र सिंह रलावता विरोधी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व डॉ. राजकुमार जयपाल के पूरे धड़े ने शिरकत की। स्वाभाविक सी बात है कि वे भी मुख्य धारा से नहीं कटना चाहते थे। यह रैली कांग्रेस संगठन की ओर से आधिकारिक नहीं थी, इसका खुलासा स्वयं डॉ. गर्ग ने यह कह कर दिया कि रैली आम कांग्रेसजन की थी व आम कांग्रेसजन के सहयोग से ही आयोजित की गई।
हालांकि इस रैली का एक संदेश यह भी गया कि बाहेती और जयपाल ने धड़ेबाजी खत्म कर हाथ मिला लिया है और कांग्रेसी एकजुट हैं, मगर सच ये है कि इससे रलावता विरोधी धड़ा और ताकतवर व मुखर हो गया है। रलावता के लिए तो यह चिंता का विषय है ही, उससे भी ज्यादा परेशानी का सबब है अजमेर के प्रभावशाली सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के लिए, जिनके दमखम के आगे बाहेती व जयपाल खेमे ने हथियार नहीं डाले हैं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 8 मई 2013

वर्मा साहब, यह दुर्भाग्य तो वर्षों से कायम है


खबर है कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 12वीं कॉमर्स के परिणाम में सरकारी स्कूलों के प्रदर्शन को बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पी.एस. वर्मा ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। ज्ञातव्य है कि कॉमर्स की मेरिट में सरकारी स्कूलों की दो ही छात्राएं स्थान पा सकी हैं। ऐसे में डॉ. वर्मा ने कहा है कि प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या भी अधिक है और इन स्कूलों में फैकल्टी भी अच्छी हैं, इसके बावजूद मेरिट में आए 25 विद्यार्थियों में से केवल 2 ही छात्राएं सरकारी स्कूलों से आई हैं।
डॉ. वर्मा की बात सौ फीसदी सही है, मगर यह पहला मौका नहीं है कि मेरिट में सरकारी स्कूल फिसड्डी साबित हुए हैं। पिछले कई सालों से बोर्ड के परीक्षा परिणामों का यही हाल है, जिससे साबित होता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पर कितना ध्यान दिया जाता है। सच तो ये है कि जो अभिभावक अपने बच्चों को ठीक से पढ़ाना चाहते हैं, वे उन्हें बनती कोशिश उन्हें प्राइवेट स्कूलों में ही दाखिला दिलाते हैं। सरकारी स्कूल में बच्चे का पढ़ाने को आजकल बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। वे जानते हैं कि सरकारी स्कूलों का हाल बुरा है। इसी का परिणाम है कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना आजकल स्टेटस सिंबल बना हुआ है। संपन्न लोग तो अपने बच्चों को किसी भी सूरत में सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते। वे इसके लिए बच्चों को दूसरे शहर तक में पढ़ाने को भेज देते हैं। वे जानते हैं कि इससे उनके बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। आम अभिभावकों की छोडिय़े, सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक तक इसी कोशिश में रहते हैं कि अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाएं। अर्थात खुद सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को पता है कि वे खुद और उनके साथी अध्यापक कैसा पढ़ाते हैं और सरकारी स्कूलों का हाल क्या है। गांवों में तो और भी बुरा हाल है। जो अध्यापक शहर में रहते हैं, वे कोशिश करके आसपास के किसी गांव में ही तबादला करवाते हैं और रोजाना अप-डाउन करके नौकरी पकाते हैं। गांवों में अध्यापकों के गोत मारने के अनेक किस्से तो आपने सुने ही होंगे। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई का क्या हाल होता है, इसकी आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं। सच तो ये है कि सरकारी अध्यापक अपने परिवार को गांव में न रख कर इसी कारण शहर में रहते हैं ताकि उनके बच्चों की ठीक से पढ़ाई हो जाए। यानि कि उन्हें केवल अपने बच्चों का ही ख्याल है, ओरों के बच्चे जाएं भाड़ में।
अब चूंकि डॉ. वर्मा पहली बार बोर्ड अध्यक्ष बने हैं, इस कारण उन्हें अचम्भा हो रहा है, वरना यह दुर्भाग्य तो वर्षों से कायम है, जिस पर न तो कभी सरकार ने ध्यान दिया है और न ही शिक्षाविदों या शिक्षकों ने कोई कोशिश की है कि सरकारी स्कूलों में ठीक से पढ़ाई हो। कई सशक्त शिक्षक संगठन हैं, मगर उन्होंने भी कभी इस ओर कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। वे भी तबादलों की राजनीति में उलझे रहते हैं। हर कोई अफसोस मात्र जाहिर करता है, करता कोई कुछ नहीं। अब देखें डॉ. वर्मा को बढ़ा अफसोस हुआ है, वे इस दिशा में क्या प्रयास करते हैं?
-तेजवानी गिरधर

भाजपा क्यों नहीं उठा रही पाक जायरीन का मुद्दा


पाकिस्तान में भारतीय नागरिक सरबजीत की हुई हत्या के विरोध और पाक जायरीन को जियारत की अनुमति न देने की मांग के सिलसिले में राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति की ओर से चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में भाजपा के जिम्मेदार नेता तो खुल कर भाग ले रहे हैं, मगर इस मुद्दे पर खुद भाजपा संगठन अग्रणी भूमिका नहीं निभा रहा, इसको लेकर लोगों के बीच खूब कानाफूसी हो रही है।
आपको याद होगा कि पाकिस्तानी जायरीन को अनुमति न देने का मुद्दा सबसे पहले कुछ संगठनों व भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने अपने स्तर पर उठाया था, मगर उसका कोई असर नहीं हुआ। इस पर बाद में इसे अभियान की शक्ल दी राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति ने। मजे की बात ये है कि इसमें भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरण माहेश्वरी, प्रदेश मंत्री एवं विधायक अनिता भदेल और भाजयुमो नेता व पार्षद नीरज जैन आदि ने भी भाग लिया। अभियान को कितना जनसमर्थन मिल रहा है, इसका अंदाजा इसी बात ये लगाया जा सकता है कि मा.शि.बोर्ड कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोहन सिंह रावत व महामंत्री रणजीत सिंह समेत अन्य कर्मचारियों, राजस्थान सर्व ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष बलराम शर्मा, माहेश्वरी प्रगति संगठन के अध्यक्ष अजय ईनाणी और यहां तक कि स्कलों के छात्र-छात्राओं ने भी हिस्सा लिया और तकरीबन पचास हजार से भी ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। इससे भी बड़ी बात ये है कि कई मुस्लिमों व खादिमों ने भी इसे समर्थन दिया है। मगर आज तक भाजपा ने संगठन के तौर पर इस मुद्दे पर कोई सक्रिय भूमिका अदा नहीं की है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की संगठन के स्तर पर यह चुप्पी सवाल तो खड़े करती ही है। ऐसा प्रतीत होता है कि शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत चुक से गए हैं या फिर वे फिलहाल केवल सुराज संकल्प यात्रा में ही अपनी एनर्जी खर्च करना चाहते हैं, क्योंकि उसी में किया गया काम विधानसभा चुनाव में काम आएगा। सच जो कुछ भी हो, मगर उनकी निष्क्रियता पर कानाफूसियां तो होनी ही हैं।

अन्ना और केजरीवाल एक ही हैं?


प्रत्यक्षत: भले ही देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अलग-अलग हों, मगर स्थानीय स्तर पर दोनों के कार्यकर्ता एक ही हैं। आगामी 10 मई को अन्ना हजारे के अजमेर आगमन पर उनके स्वागत और आमसभा की व्यवस्था आम आदमी पार्टी की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक के नेतृत्व में ही की जा रही है।
ज्ञातव्य है कि जनलोकपाल के एकजुट हो कर आंदोलन करने के बाद केजरीवाल और उनकी टीम ने अन्ना से अलग हो कर आम आदमी पार्टी का गठन किया और सक्रिय राजनीति में आ गए। अब तो आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारियां तक चल रही हैं। अन्ना हजारे ने केजरीवाल के अलग होने पर नए सिरे से टीम अन्ना का गठन किया, जिसमें पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह को प्रमुख रूप से शामिल किया गया। पूर्व आईपीएस किरण बेदी सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता तो उनके साथ हैं ही। टीम अन्ना में हुई इस दोफाड़ से आंदोलन कमजोर पडऩे की आशंका में कई कार्यकर्ताओं को निराशा भी हुई। कुछ कार्यकर्ता तो सीधे ही आम आदमी पार्टी में शमिल हो गए, जबकि कुछ ने अन्ना हजारे के साथ रहना ही पसंद किया और फिलहाल  वे घर बैठ गए। जहां तक श्रीमती कीर्ति पाठक का सवाल है, यह सबको पता है कि अजमेर में अन्ना आंदोलन को चलाने का श्रेय उनको व उनकी टीम को ही जाता है, मगर आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो वे उसमें शामिल हो गईं। आज वे अजमेर की प्रभारी हैं, मगर उन्होंने अपने आपको अन्ना हजारे के आंदोलन से अलग नहीं किया। ऐसे में जाहिर है कि जब अन्ना हजारे का अजमेर का कार्यक्रम बना तो सीधे उनसे ही संपर्क किया गया और उन्होंने सहर्ष सारी व्यवस्था करने का जिम्मेदारी ले ली। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में उनके प्रमुख सहयोगी दीपक गुप्ता, सुशील पाल, नील शर्मा, दिनेश गोयल आदि हाथ बंटा रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि आम आदमी पार्टी के ये सभी कार्यकर्ता अन्ना हजारे के कार्यक्रम को अंजाम देने के लिए  जनतंत्र मोर्चा के बैनर तले जुटे हुए हैं। यह जनतंत्र मोर्चा कब गठित हुआ, इसकी जानकारी तो नहीं है, मगर ताजा गतिविधि से यह स्पष्ट है कि कम से कम अजमेर में तो आम आदमी पार्टी और जनतंत्र मोर्चा एक ही हैं, उसके कार्यकर्ता भी समान हैं, बस बैनर अलग-अलग नजर आते हैं। लगता ये है कि आम आदमी पार्टी में गई श्रीमती पाठक अपने साथ पूरी टीम को एकजुट किए हुए हैं, इस कारण अन्ना हजारे को जनतंत्र मोर्चा के लिए अलग से कोई नेतृत्व करने वाला मिला ही नहीं। ऐसे में इस बात की सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आम आदमी पार्टी की ओर से उन्हें अन्ना के कार्यक्रम को सफल बनाने की हरी झंडी दी गई होगी। बहरहाल, राष्ट्रीय स्तर पर भले ही अन्ना व केजरीवाल अलग-अलग हों, मगर अजमेर में एक ही नजर आते हैं। कदाचित और स्थानों पर भी कुछ ऐसा ही हो। इससे तनिक संदेह भी होता है कि कहीं वे किसी एजेंडे विशेष के लिए अलग-अलग होने का नाटक तो नहीं कर रहे। इस बारे में जब अन्ना कह ही चुके हैं कि वे भले ही अलग-अलग रास्ते पर हैं, मगर उनका उद्देश्य तो एक ही है। ऐसे में अगर दोनों के कार्यक्रमों को एक ही कार्यकर्ता अंजाम देते हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
खैर, अन्ना हजारे की सभा के लिए श्रीमती पाठक दिन-रात एक किए हुए हैं। ऐसे आयोजन में खर्च भी होता है, सो गैर राजनीतिक और उदारमना देशप्रेमियों से चंदा भी एकत्रित किया जा रहा है। आप समझ सकते हैं इस जमाने में बिना किसी लाभ के कौन चंदा देता है, हर कोई उसके एवज में कुछ न कुछ चाहता ही है, ऐसे में चंदा एकत्रित करना कितना कठिन काम होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है, चूंकि फिलवक्त दोनों संगठनों के पास देने को कुछ नहीं है। वैसे, कार्यकर्ताओं में जैसा उत्साह है, उम्मीद की जा रही है कि अन्ना हजारे का आकर्षण और उनकी मेहनत से सभा सफल होगी।
ज्ञातव्य है कि अन्ना हजारे 10 मई को यहां आजाद पार्क में सभा को संबोधित करेंगे। उनके साथ पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह, वल्र्ड सूफी काउंसिल के चेयरमैन सूफी जिलानी और चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय भी होंगे। हजारे दोपहर 12 बजे अजमेर आएंगे। परबतपुरा बाइपास पर उनका स्वागत किया जाएगा। उसके बाद वाहन रैली के रूप में शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए ऋषि उद्यान पहुंचेंगे। इसके बाद हजारे पुष्कर जाएंगे। उसके बाद दरगाह जाकर जियारत करेंगे। इसके बाद शाम 6.30 बजे आजाद पार्क में सभा को संबोधित करेंगे।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 7 मई 2013

चंद खादिमों के बयान को बना दिया पूरी जमात का फैसला


पाकिस्तान में भारतीय कैदी सरबजीत की हत्या के बाद देश में व्याप्त गुस्से को मुखर करते हुए जहां संघ सहित अन्य संगठन पाकिस्तान से ख्वाजा साहब के उर्स में आने वाले जायरीन जत्थे को अनुमति न देने का दबाव बना रहे हैं, वहीं दरगाह शरीफ से जुड़े चंद खादिमों की ओर से पाक जायरीन को जियारत न करवाने का बयान आने के बाद खादिमों की रजिस्टर्ड संस्थाएं अंजुमन सैयद जादगान व अंजुमन शेख जादगान अचंभित हैं। हालांकि उनका अब भी यही कहना है कि उन्होंने पाक जायरीन को जियारत न करवाने का फैसला नहीं किया है, मगर अनेक अखबारों में सुर्खियां यही हैं कि खादिम जियारत नहीं करवाएंगे, भले ही उनकी खबरों में इक्का-दुक्का खादिमों के नाम हैं। इसी प्रकार कुछ अखबारों ने दरगाह दीवान का हवाला दे कर भी कह दिया कि उन्होंने पाक जायरीन को अनुमति न देने की मांग की है, जबकि हकीकत ये है कि उन्होंने इस आशय का कोई बयान ही जारी नहीं किया है।
असल में हुआ यूं कि पाक जायरीन के खिलाफ कुछ संगठनों की ओर से बनाए गए माहौल से प्रभावित हो कर अथवा चर्चित होने अथवा अपनी देशभक्ति जताने के लिए कुछ खादिमों ने भी कुछ पत्रकारों को यह बयान दे दिया कि वे पाक जायरीन को जियारत नहीं करवाएंगे। हालांकि यह बयान तकरीबन दो हजार खादिमों में से तीन-चार खादिमों का ही है, और वह भी किन्हीं प्रमुख खादिमों का नहीं, मगर चूंकि खबर चौंकाने वाली थी, इस कारण अखबारों ने बड़ी हैडिंग में यह छाप दिया कि अजमेर के खादिम जियारत नहीं करवाएंगे। इसका संदेश यह गया कि खादिमों की पूरी जमात ही पाक जायरीन का विरोध कर रही है, जबकि खादिमों की दोनों अंजुमनें इस मामले में चुप हैं। जागरण ई-पेपर में यह तक लिखा है कि यह निर्णय खादिमों की एक बैठक में लिया गया, जबकि इस प्रकार की कोई बैठक हुई ही नहीं। इस बारे में अधिसंख्य खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद वाहिद अंगारा शाह ने पूछा गया तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि उन्होंने इस प्रकार का कोई निर्णय नहीं किया है। उनका कहना है अगर सरकार पाक जायरीन को अजमेर शरीफ का वीजा देती है तो वे परंपरागत रूप से पाक जायरीन का इस्तकबाल करेंगे।
उधर दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान के हवाले से छपा है कि वे पहले ही पाकिस्तानी जायरीनों को भारत में प्रवेश नहीं देने की बात कह चुके हैं, जबकि उन्होंने इस आशय की कोई बात कही ही नहीं। लीजिए गत 2 मई को उनकी ओर से अधिकृत रूप से जारी बयान को देख लीजिए, जिसमें कहीं यह नहीं कहा गया है कि वे पाक जायरीन के आने का विरोध कर रहे हैं।

OFFICE OF THE
SPIRITUAL HEAD OF THE SHRINE,
SUCCESSOR GREAT GRANDSON AND HEREDITARY SAJJADANASHIN
(GADDINASHIN ) OF HAZRAT KHWAJA  MOINUDDIN HASAN CHISHTY (R.A.) AJMER
Resi:- Qadeem Haweli Dewan Sahib Dargah Shareef Ajmer
Phone : 0145-2626741, Cell: 09829119171
e-mail  sajjadanashinajmer@gmail .com, dargahdiwanajmer@gmail.com
अजमेर । पाकिस्तान की जेल में नाजायज रूप से कत्ल किये गऐ भारतीय नागरीक सरबजीत सिंह की मौत पर गहरा दुख एवं शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुऐ सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंशज ओर दरगाह के सज्जादनशीन एवं मुस्लिम धर्म प्रमुख दरगाह दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा कि सरबजीत की मौत के बाद पाक खुफिया ऐजेंसी आई.एस.आई. द्वारा देश में सांप्रदायिक माहौल खराब करने की शाजिश बेनकाब हो गई है इसलिऐ इस नाजुक समय में देश को एकता और सदभावना का परिचय देकर पाक की इस साजिश को विफल करना चाहिये।
दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली खान ने एक ब्यान जारी कर कहा कि सरबजीत की मौत एक दुखद घटना है मगर इसका दुसरा पहलू यह है कि पाकिस्तान की खुफिया ऐजेंसी आई.एस.आई. का मंसूबा उसकी हत्या करवाकर भारत में सांप्रदायिक माहौल खराब करके अस्थिरता पैदा करने का था इस लिये पाक के इस नापाक उद्देश्य को भारत के नागरीकों को समझकर ऐसी परिस्थिती के समय सांप्रदायिक सोहार्द का परिचय देकर पाक को मुंह तोड़ जवाब देना चाहिये। जिससे मुल्क में अमन शान्ति फिजा बरकरार रहे।
उन्होने कहा कि भारत सरकार को चाहिये की पाकिस्तान सरकार और आई.एस.आई. के इस अमानविय करतूत को अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के समक्ष उठा कर जो लोग इस घिनौने कारनामें के लिये जिम्मेदार हें उनके खिलाफ के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग रखें। उन्होने मुस्लिम धर्म गुरू की हैसियत से तमाम दुनिया के इस्लामिक देशों से इस मसले पर पाक की निन्दा करने की अपील करते हुऐ कहा कि पाक की इस गैर जिम्मेदाराना हरकत से दुनियां भर के मुसलमानों को शमिन्दगी महसूस हुई है। इस्लाम अमन पसंद मजहब है ओर वह इस किस्म की कार्यवाही की इजाजत नहीं देता। दुनियाऐ इन्सानियत के सामने पाक इस्लाम की कैसी तस्वीर पेश करना चाहता है।
दरगाह दीवान ने कहा कि अगर देश के पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ओर राजीव गांधी जैसे नेता होते तो यह परिस्थिती नहीं पैदा नहीं होती क्योंकि उनमें कड़े राजनीतिक कदम उठाने की ताकत थी जिसकी वजह से वह पाकिस्तान को इस बात के लिये मजबूर कर देते कि उसे सरबजीत को किसी कीमत पर भारत भेजना पड़ता। क्योंकि राजीव गांधी अपने राजनीतिक कोशल के बल पर सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के भतीजे युनूस खान के पुत्र शहरयार खान को अमरीका से छुड़ा  कर भारत लेकर आऐ थे। उन्होने मुल्क के तमाम उलेमाओं से इस दर्दनाक एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटना की निन्दा करने की अपील की है।
दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान
वंशज एवं सज्जादानशीन (दरगाह दीवान)
ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर शरीफ
बहरहाल, फिलहाल चंद खादिमों के बयानों को पूरी जमात का रुख बताए जाने से अंजुमन अचंभित है, मगर वह कुछ खादिमों के निजी विचार को रोक भी नहीं सकती।
पाकिस्तान तो कर रहा है जायरीन भेजने की तैयारी
जहां तक इस मसले पर पाकिस्तान के रुख का सवाल है, जानकारी है कि वहां तकरीबन छह सौ जायरीन को भारत भेजे जाने की प्रक्रिया चल रही है, जिन समेत अन्य सभी पाकिस्तानी पर्यटकों से भारत में सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। संभव है पाक जायरीन का आने का कार्यक्रम 12 मई का बने। रहा सवाल भारत सरकार के रुख तो वह पहले पूरी स्थिति का आकलन करेगी और उसी के अनुरूप पाकिस्तान को संदेश भेजेगी। कयास ये लगाए जा रहे हैं कि जायरीन को आने तो दिया जाएगा, मगर उन्हें यहां मात्र एक दिन ही ठहरने की अनुमति दी जाएगी, जिसमें उन्हें कड़ी सुरक्षा में केवल जियारत का अनुमति होगी। खैर, देखते हैं क्या होता है, फिलहाल तो पाक जायरीन को लेकर माहौल गरमाया हुआ है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 6 मई 2013

पाक वेबसाइट पर भी है जायरीन के विरोध की चर्चा


पाकिस्तान में भारतीय कैदी सरबजीत की हत्या के बाद बिगड़े माहौल में पाकिस्तान से ख्वाजा साहब के उर्स में आने वाले जायरीन जत्थे को अनुमति न देने की मांग के समाचार भारतीय मीडिया पर तो हैं ही, पाकिस्तान के न्यू मीडिया पर भी इसकी चर्चा है।
http://www.thekooza.com नामक वेबसाइट पर इस मसले को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है:-
Fail-safe security for Pak delegation’s Ajmer visit
AJMER: In view of the protest threats concerning the visit of a Pakistani delegation to the Dargah Sharif, record security will be in place during the upcoming ‘Urs’(death anniversary) of Khwaja Moinuddin Chishti at the shrine in Ajmer sharif.

A delegation from Pakistan comes here during the ‘Urs’ every year by a special train. This time, some groups have threatened to protest against the visit in the wake of the recent attack on Indian death-row prisoner Sarabjit Singh in a jail in Pakistan. The delegation is due to reach Ajmer on May 12.

On Wednesday minister of state for home Virendra Beniwal took stock of the security arrangements in Ajmer. He had a discussion with district officials regarding the security plan for the Pak delegation. The minister told the officials that apart from the state security, the Central Industrial Police Force will also be deployed to avert any uprising.

Beniwal reportedly visited Ajmer on the instructions of the Union Home Ministry, which is concerned about possible protests against the visitors from Pakistan.

BJP MLA Vasudev Devnani requested the central government not to provide visas to the Pak delegation. “There is anger among the people on the issue of Sarabjit and, therefore, it would not be worthwhile to invite those devotees to Ajmer,” Devnani said. “Any anti-social element can disturb the peace of this holy city.” He added

The Kooza News Desk with agencies.
इस साइट पर जाने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:-
http://www.thekooza.com/

पाक जायरीन को अनुमति न देना आसान नहीं


पाकिस्तान में भारतीय कैदी सरबजीत की हत्या के बाद बिगड़े माहौल में पाकिस्तान से ख्वाजा साहब के उर्स में आने वाले जायरीन जत्थे को अनुमति न देने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी मुखर हो गया है। राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति ने तो पाक जायरीन के विरुद्ध हस्ताक्षर अभियान ही छेड़ दिया है, जिसे के शनै: शनै: समर्थन मिल रहा है। कुछ मुस्लिम भी खुल कर सामने आ गए हैं। जाहिर है ऐसे में प्रशासन पसोपेश में है कि वह राज्य व केन्द्र सरकार को क्या रिपोर्ट भेजे? क्या वह हालात बिगडऩे के मद्देनजर अपनी तरफ से हाथ खड़े करता है या फिर सरकार के फैसले की अनुपालना किसी भी सूरत में करने को तैयार है, यह जल्द ही पता लग जाएगा।
वस्तुत: शुरू में इक्का दुक्का संगठनों ने फौरी तौर पर विरोध जताया था। इसके बाद भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने बाकायदा गृह राज्य मंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल की सदारत हुई तैयारी बैठक में आवाज उठाई, मगर वह नक्कारखाने में तूती के समान अनसुनी कर दी गई। नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया ने तो इसे अनुचित भी बताया। लेकिन बात उठी तो दूर तक ले जाने की तैयारी शुरू हो गई।
राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति ने कार्यक्रम संयोजक अमित भंसाली के नेतृत्व में जन भावना को अभियान की शक्ल दी और सरबजीत की हत्या के विरोध में शुरू किया हस्ताक्षर अभियान शुरू करवा कर पाकिस्तान को शत्रु राष्ट्र घोषित करने और उर्स में पाक जायरीन को अनुमति न देने पर जोर देना शुरू कर दिया। आरएसएस के महानगर संघ चालक सुनील दत्त जैन ने साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान लगातार भारत की अस्मिता पर कुठाराघात कर रहा है। उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकार से मांग की है कि पाकिस्तान से आने वाले जायरीन के प्रवेश पर तत्काल पाबंदी लगाई जाए। गगवाना सरपंच असलम पठान ने भी सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि पाक से सभी रिश्ते तोड़ते हुए वहां से आने वाले जायरीन नहीं आने देना चाहिए। गेगल सरपंच अब्दुल जलील पाक सरकार के खिलाफ सख्त कदम उठाने की पैरवी की। उग्रपंथी तेवर वाले भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन ने तो चेतावनी ही दे दी है कि पाक जायरीन को अनुमति दी तो परिणाम घातक हो सकते हैं। कुल मिला कर विरोध काफी मुखर हो चुका है। ऐसे में प्रशासन के लिए एक और मुसीबत हो गई है।
वैसे जानकारों का मानना है कि भले ही निचले स्तर पर इतना विरोध हो रहा है, मगर जायरीन को न आने देने का फैसला करना सरकार के लिए बहुत आसान नहीं होगा। यह केवल पाकिस्तानियों को आने देने का मसला मात्र नहीं है, इसके साथ अंतरराष्ट्रीय मानकों पर दो देशों के बीच के संबंधों की बुनियाद भी जुड़ी हुई है। पाकिस्तान स्थित हिंदू तीर्थ स्थलों पर भारतीयों के जाने का मसला भी जुड़ा हुआ है। वोट बैंक की राजनीति तो परोक्ष रूप से जुड़ी हुई ही है। ऐसे में लगता ये ही है कि सरकार हरसंभव कोशिश यही करेगी कि जायरीन जत्थे के आने में बाधा न डाली जाए। भले ही उसके लिए उसे अतिरिक्त सुरक्षा इंतजाम करने पड़ें। कड़ी सुरक्षा में जियारत करवाई जाए और ठहराये जाने वाले स्थल के बाहर इधर-उधर घूमने पर पाबंदी लगाई जाए। बाकी इतना तो तय है कि यदि वे आए तो विरोध प्रदर्शन जरूर होगा। वह कितना उग्र होगा, इस बारे में अभी कुछ कहना असंभव है। वैसे संभव ये भी है कि वह पाकिस्तान को यह संदेश भेजे कि फिलवक्त जो माहौल है, उसमें जायरीन आए तो कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होगी। ये तो हुई भारतीय पक्ष की बात, मगर अव्वल तो पहले यह पाकिस्तान तय करेगा कि वह ताजा माहौल में अपने नागरिकों को भारत भेजने की अनुमति देता है या नहीं। अब तक तो इस बारे में कोई सूचना ही नहीं मिली है कि कितने जायरीन आना चाहते हैं और उनके आने का कार्यक्रम क्या है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 5 मई 2013

दरगाह कमेटी सदस्यों को नहीं चिंता उर्स मेला व्यवस्थाओं की


बेशक महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स की व्यवस्थाएं जिला प्रशासन, नगर सुधार न्यास व नगर निगम को ही करनी होती है, मगर दरगाह की अंदरूनी व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार दरगाह कमेटी के नव मनोनीत सदस्यों ने उर्स शुरू होने से पहले एक बार भी अजमेर आने का कष्ट नहीं उठाया है। इससे ऐसा संदेश जा रहा है कि वे राजनीतिक दमखम पर सदस्य तो बन गए और उसके नाते यहां मिलने वाली सुविधाओं का उपभोग भी करेंगे, मगर उन्हें उर्स मेला व्यवस्थाओं से कोई सरोकार नहीं है। शायद उन्हें उर्स मेले की अहमियत का अंदाजा ही नहीं है। यहां देशभर से जायरीन आते हैं और दरगाह के अंदर की जाने वाली व्यवस्थाओं में कमी रहने पर उन्हें परेशानी हो सकती है, मगर इसकी उनको कोई चिंता ही नहीं है। उन्हें जरा भी ख्याल नहीं है कि यहां आनासागर विश्राम स्थली का पानी खाली न करवाए जाने को लेकर लगातार विरोध जताया जा रहा है। उन्हें शायद इसकी चिंता भी नहीं कि पाकिस्तान में भारतीय कैदी सरबजीत की हत्या के बाद यहां का माहौल गर्माया हुआ है और अनेक संगठन यहां आने वाले पाकिस्तानी जायरीन जत्थे का विरोध बढ़ता जा रहा है।
दरगाह कमेटी सदस्यों के इस लापरवाही भरे रवैये को अंजुमन ने भी उठाया है और उनकी शिकायत है कि एकाध को छोड़ कर नए सदस्य अब तक अजमेर आए भी नहीं हैं, ऐसे में वे उर्स की तैयारियों के संबंध में क्या सुझाव देंगे। सदस्यों को पहले यहां आना चाहिए था और पूरी स्थिति समझते तब बैठक में भाग लेते तो बात अलग होती।
हालांकि अंजुमन लगातार आनासागर विश्रााम स्थली पर भी जायरीन को ठहराने पर जोर दे रही है, मगर जब उसकी सुनवाई नहीं हो रही तो उन्होंने उम्मीद जताई है कि दिल्ली में होने वाली कमेटी की बैठक में वे इस मुद्दे को उठाएंगे। अंजुमन सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह का कहना है कि आनासागर विश्राम स्थली में भरे पानी को अब तक खली नहीं कराया गया है। इससे उर्स में आने वाले जायरीन को खासी परेशानी होगी। यह विश्राम स्थली दरगाह के निकट होने के कारण जायरीन की पहली पसंद है, लेकिन प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
हालांकि प्रशासन भी समझता है कि जायरीन के लिए आनसागर विश्राम स्थली ही सबसे ज्यादा मुफीद है, मगर वह वहां व्यवस्थाएं करने से गुरेज कर रहा है। इस मसले का गौर करने लायक पहलु ये है कि अजमेर के एक दैनिक ने जायरीन की समस्या को रेखांकित करते हुए इस विश्राम स्थली को खाली करवाने का अभियान से चला रखा है तो जिला कलेक्टर ने उसे बैलेंस करने के लिए दूसरे दैनिक का सहारा लिया और इस तरह का माहौल बना रहे हैं कि इस विश्राम स्थली को खाली करवाना नामुमकिन है।
अफसोसनाक बात ये है कि गत 1 मई को गृह राज्यमंत्री वीरेंद्र बेनीवाल ने कलेक्ट्रेट परिसर में बैठक ले कर सारे इंतजाम 5 मई तक मुकम्मल करने को कहा, मगर उस पर भी अमल नहीं हुआ। दरगाह क्षेत्र और विश्राम स्थलियों में व्यवस्थाएं पूरी नहीं हो पाई हैं। ट्रांसपोर्ट नगर विश्राम स्थली में शामियाने लगाने का काम तो शुरू किया गया है, मगर अभी बहुत सारी तैयारियां बाकी हैं। अंदरकोट, खादिम मोहल्ला और आसपास के क्षेत्रों के लोगों में इस कारण रोष है कि बिजली, पानी और सड़क के काम अब तक पूरे नहीं हो पाए हैं। इसी प्रकार पीर रोड, शीशा खान आदि क्षेत्रों में भी अब तक व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हो पाई हैं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 1 मई 2013

पाक जायरीन के उर्स मेले में आने पर असमंजस


भारतीय युवक सरबजीत पर पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में हुए हमले के बाद देशभर में पाकिस्तान के खिलाफ बने माहौल को देखते हुए इस बार महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 7 मई से आरंभ होने वाले सालाना उर्स मेले में पाक जायरीन के आने पर असमंजस उत्पन्न हो गया है। एक ओर जहां पाक जायरीन जत्थे को लेकर यहां विरोध के स्वर उठने लगे हैं, वहीं संभव है पाकिस्तान भी एहतियात के तौर पर अपने नागरिकों को यहां आने की अनुमति न दे।
ज्ञातव्य है कि पिछले कई साल से हर बार उर्स मेले में पाकिस्तानी जायरीन का बड़ा जत्था अजमेर में जियारत के लिए आता रहा है। उनका यहां बेहतरीन इस्तकबाल होता है, खादिमों की संस्था अंजुमन की ओर से जलसा होता है और प्रशासन भी उनकी आवभगत के पूरे इंतजाम करता है। एक बार तो नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार ने उनका परिषद के ओर से शानदार स्वागत भी किया था। पाक जायरीन यहां बड़े सुकून से जियारत करते हैं और बाजारों में घूम कर खरीददारी भी करते हैं। छिटपुट विवाद को छोड़ कर आम तौर पर उनके आगमन को लेकर कोई दिक्कत नहीं आती। लेकिन इस बार चूंकि पूरा देश सरबजीत के मामले में उबल रहा है, इस कारण तनिक संदेह होता है कि उनके आने पर कुछ अप्रिय भी हो सकता है। कुछ संगठनों और भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने तो बाकायदा मांग ही कर दी है कि उन्हें यहां आने की अनुमति न दी जाए। उन्होंने गृहराज्य मंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल की सदारत में हुई तैयारी बैठक में भी इस मुद्दे को उठाया। ऐसे में माहौल और गरमा गया है। चुनावी साल है, इस कारण मामला राजनीतिक रंग भी ले सकता है। इसके अतिरिक्त हिंदूवादी संगठन भी तीखा रुख अख्तियार कर सकते हैं। अब देखना ये है कि प्रशासन और सरकार क्या रुख अख्तियार करते हैं। हालांकि हर बार उर्स मेला शुरू होने से पहले ही पाक जायरीन के आने का आधिकारिक सूचना आ जाती है, मगर इस बार अब तक कोई सूचना नहीं है। संभव है पाकिस्तान सरकार भी अपने नागरिकों को ऐसे गरम माहौल में यहां आने की अनुमति न दे। कुछ मिला कर संशय कायम है। अगर पाक जत्था आया तो प्रशासन के लिए उनकी सुरक्षा करना एक बेहद कठिन काम हो जाएगा, क्यों कि वह तो पहले से ही मेले के इंतजाम और मेले के दौरान वीवीआईपी के आगमन व उनकी ओर से चादर पेश होने के कारण अत्यधिक व्यवस्त हो जाता है।
-तेजवानी गिरधर