
अव्वल तो यदि इस प्रकार की कोई योजना नहीं थी तो उस पर बाकायदा जयपुर में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रशासनिक बैठक क्यों हुई? उसके बाद प्रदेश के गृह व स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने बाकायदा इसी योजना पर चर्चा के लिए अजमेर में प्रशासन, जनप्रतिनिधियों व दरगाह से जुड़े अंजुमन पदाधिकारियों की बैठक क्यों ली? यदि ऐसी कोई योजना नहीं थी तो उसके तहत दरगाह के चारों ओर गलियारा बनाने व मकान अधिग्रहित करने के मसले पर भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व अंजुमन के तत्कालीन सदर सैयद गुलाम किबरिया के बीच नौंकझोंक क्यों हुई? बैठक से पूर्व प्रशासनिक तैयारी नहीं होने पर धारीवाल ने नाराजगी क्यों जाहिर की और संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा से यह क्यों कहा कि जल्द से जल्द मास्टर प्लान बना कर भेजें, वरना केन्द्र सरकार से योजना के तहत धन राशि नहीं ली जा सकेगी? कैसी विडंबना है कि सरकार का एक जिम्मेदार मंत्री तो केवल इसी योजना पर विचार करने के लिए अजमेर आता है और मुख्य सचेतक कहता है कि इस प्रकार की कोई योजना थी ही नहीं? सवाल ये भी है कि अगर योजना थी ही नहीं तो अजमेर फोरम सहित अन्य पक्षों ने लगातार योजना राशि समय पर मंजूर करने पर जोर क्यों डाला? यदि योजना थी ही नहीं तो इस सिलसिले में राज्य सरकार ने निर्देश क्यों दिए गए कि समयाभाव की वजह से पहले चरण में अस्सी करोड़ के प्रस्ताव बना कर भेजे जाएं? प्रशासन ने क्या हवा में ही प्रस्ताव बना कर भेज दिए? यह सही है कि योजना का प्रारूप बनाते वक्त पीडीकोर ने स्थानीय जिला प्रशासन से कोई राय मशविरा नहीं किया था, इसका खुलासा अजमेर फोरम की एक बैठक में संभागीय आयुक्त शर्मा ने किया था और यही कहा था कि अभी राशि मंजूर हो कर नहीं आई है।
इन सारे सवालों से एक ही जवाब आता है कि योजना प्रस्तावित तो थी, उसका सर्वे पीडीकोर ने किया भी था और उसका प्रारूप एक बड़े पुलिंदे के रूप में मौजूद भी है, मगर उसकी वित्तीय स्वीकृति के लिए उचित कागजात समय पर केन्द्र सरकार को नहीं भेजे जा सके। इसके लिए बेशक राज्य सरकार जिम्मेदार है कि उसने कोई रुचि ली ही नहीं। और इसकी एक मात्र वजह ये है कि अजमेर में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो सरकार पर दबाव बना कर अजमेर का विकास करवा सके। इसका इजहार खुद रघु शर्मा ने चौपाल में किया था, यह कह कर कि मजबूत राजनीतिक नेतृत्व के अभाव में अजमेर पिछड़ा है। अजमेर के लोग तो यही सोच रहे थे कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट, मुख्य सचेतक रघु शर्मा व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ इस योजना के लिए ठीक से पैरवी करेंगे, मगर रघु शर्मा के कथन से तो यही लगता है कि किसी ने रुचि ली ही नहीं। जहां तक रघु शर्मा का सवाल है तो जब उन्हें पता ही नहीं है कि इस प्रकार की योजना थी तो वे रुचि किसमें लेते। रघु शर्मा के दावे पर गौर करें तो यही लगता है कि उन्हें वाकई पता ही नहीं है कि इस प्रकार की योजना पर काम हो रहा था। अगर ऐसा है तो यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि अजमेर जिले के एक विधायक और बाद में बने मुख्य सचेतक को अपने विधानसभा क्षेत्र केकड़ी में बनाए जाने वाले हास्पीटल की तो बहुत चिंता है, मगर अजमेर जिला मुख्यालय पर अमल में लाई जाने वाली विकास योजना से कोई सरोकार ही नहीं है। जब वे मुख्य सचेतक बने तो अजमेर जिले की जनता में एक आशा जगी थी कि वे जिले के लिए कुछ करेंगे, क्योंकि वे प्रदेश में खासी धाक रखते हैं, मगर उनके इस रवैये से तो यही लगता है कि उन्हें ज्यादा फिक्र केवल अपने विधानसभा क्षेत्र की है ताकि अगली बार फिर विधायक बन सकें। कम से कम उनकी तो रुचि नहीं है कि अजमेर जिले के कद्दावर नेता बनें। और ही वजह रही कि चौपाल में उठाए गए कई मसलों पर वे बोले के उनके नहीं, बल्कि सचिन पायलट के नेतृत्व में एक जुट हों। कदाचित उन्हें इस बात का भय है कि यदि जिले की नेतागिरी की तो सचिन नाराज न हो जाएं। ऐसे में बार अध्यक्ष राजेश टंडन की उस टिप्पणी पर उनका भिनकना स्वाभाविक है कि रुठ कर कोप भवन में बैठने की फितरत का इस्तेमाल अजमेर के विकास के लिए भी कीजिए। शर्मा ने तो साफ कह ही दिया कि वे रुठेंगे तो अपने केकड़ी में बनने वाले हास्पीटल के ड्रीम प्रोजेक्त के लिए। उसमें कोई रोड़ा डालेगा तो उसे भुगतना होगा, चाहे वह कोई अधिकारी हो या मंत्री।
आखिर में एक बार शर्मा की बात मान भी ली जाए कि दरगाह विकास की कोई योजना थी ही नहीं थी और यह केवल जुबानी जमा खर्च था, तो भी सरकार की कार्यशैली पर तो सवाल उठता ही है कि वह फोकट ही अजमेर वासियों को सब्जबाग दिखा रही थी।
इस न्यूज आइटम के साथ दी गई फोटो उस बैठक ही है, जिसकी सदारत अजमेर में स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने की थी।
-तेजवानी गिरधर
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