मंगलवार, 25 मार्च 2014

रूठे हुए अधिसंख्य कांग्रेसी नेता आए मुख्य धारा में

इसमें कोई दोराय नहीं कि महेन्द्र सिंह रलावता को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कुछ वरिष्ठ नेताओं का एक गुट नाराज चल रहा था, मगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सचिन पायलट के दुबारा अजमेर से ही चुनाव लडऩे पर उसमें से अधिसंख्य नेता उनके साथ आ गए हैं। बेशक इसके लिए सचिन के चुनाव मैनेजरों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है।
सचिन के नामांकन पत्र भरने के दौरान पूर्व शहर अध्यक्ष जसराज जयपाल, डॉ. राजकुमार जयपाल, डॉ. श्रीगोपाल बोहती, कुलदीप कपूर, डॉ. सुरेश गर्ग आदि की मौजूदगी दर्शाती है कि वे फिर मुख्य धारा में लौट आए हैं। बताया ये भी जाता रहा है कि पूर्व विधायक त्रय श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ, महेन्द्र सिंह गुर्जर व नाथूराम सिनोदिया की भी कुछ नाइत्तफाकी रही है, मगर वे भी इस दौरान मौजूद रहे। इतना ही नहीं पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी ने भी आ कर मोर्चा संभाल लिया है। मजे की बात ये है कि हाल ही विधानसभा चुनाव में केकड़ी में डॉ. रघु शर्मा को हराने की प्रमुख वजह बने पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी सचिन के साथ नजर आए। सनद रहे कि 2008 के विधानसभा चुनाव में भी सिंगारियां बागी बन गए थे, मगर सचिन के प्रयासों से उन्हें फिर कांग्रेस में जगह मिल गई। 2008 के विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा 12 हजार 659 वोटों से जीते थे। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में सिंगारियां की बदोलत कांग्रेस की बढ़त 22 हजार 180 हो गई। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा को 62 हजार 425 मत मिले, जबकि भाजपा के शत्रुघ्न गौतम को 71 हजार 292 मत। बाबू लाल सिंगारियां 17 हजार 35 मत ले गए, जबकि रघु शर्मा की हार हुई 8 हजार 867 मतों से। यदि सिंगारिया चुनाव मैदान में न होते तो रघु जीत सकते थे।
खैर, सचिन के नामांकन के दौरान अनुपस्थित रहे तो मौटे तौर पर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी,पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां व अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी। इनमें चौधरी तो पहले ही मसूदा में विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ कर कट चुके हैं। इसके अतिरिक्त सचिन की खिलाफत करते हुए उन्होंने भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट का साथ देने का ऐलान कर दिया है। आपको जानकारी होगी कि 1998 की कांग्रेस लहर में सिंगारिया ने केकड़ी सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हारे। जब 2008 में केकड़ी सीट सामान्य हो गई तो कांग्रेस ने रघु शर्मा को टिकट दे दिया। इस पर सिंगारिया बागी बन कर खड़े हो गए, मगर शर्मा फिर भी जीत गए। उस चुनाव में सिंगारियां ने 22 हजार 123 वोट हासिल कर यह जता दिया कि उनकी इलाके में व्यक्तिगत पकड़ है। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा फिर से मैदान में आए तो सिंगारिया एनसीपी के टिकट पर खड़े हो गए और 17 हजार 500 मत हासिल शर्मा की हार का कारण प्रमुख कारण बने। बात अगर ललित भाटी की करें तो वे साथ तो सचिन के ही थे, मगर आखिरी दौर में कुछ कारणों से छिटक गए। उनके भाई हेमंत भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट दिलवाए जाने के बाद उनकी दूरी और बढ़ गई। हालांकि नामांकन के दौरान उनकी प्रमुख सहयोगी महिला कांग्रेस नेत्री प्रमिला कौशिक की मौजूदगी इसका अहसास कराती है कि रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं।
आपको याद होगा कि 208 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले ललित भाटी को पिछले लोकसभा चुनाव में सचिन काफी मान-मनुहार से वापस लाए थे। उसका सकारात्मक परिणाम ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 वोटों से भाजपा और पिछड़ गई। भाटी लंबे समय से सचिन के नजदीक ही माने जाते रहे, मगर आखिरी दिनों दूर हो गए।
-तेजवानी गिरधर

रावत वोटों में सेंध मारी सचिन पायलट ने

अजमेर संसदीय क्षेत्र में हालांकि रावतों को परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता का माना जाता है, मगर इस चुनाव में यह साफ नजर आया कि इसमें कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट ने सेंध मार दी है। इस सिलसिले में नामांकन पत्र भरने के दौरान पूर्व जिला परिषद सदस्य श्रवण सिंह रावत एवं पुष्कर से भाजपा विधायक सुरेश रावत के भाई पूर्व जिला परिषद सदस्य कुंदन सिंह रावत की मौजूदगी को रेखांकित किया जा रहा है। श्रवण सिंह रावत वहीं हैं, जो 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर पुष्कर क्षेत्र से निर्दलीय खड़े हुए और 27 हजार 612 वोट हासिल किए, जिसकी वजह से भाजपा के भंवर सिंह पलाड़ा हार गए थे। कुंदन सिंह रावत हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में पुष्कर से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे। रावत मतदाता पिछले चुनाव में भी भाजपा से नाराज थे, क्योंकि उनकी पुष्कर का टिकट देने की मांग को दरकिनार किया गया। इस बार हालांकि भाजपा ने सबक लेते हुए सुरेश सिंह रावत को टिकट दिया और वे जीते भी, मगर बावजूद इसके सचिन के साथ श्रवण सिंह रावत व कुंदन सिंह रावत हैं तो इसका अर्थ यही लगाया जा रहा है कि वे रावत वोट बैंक में सेंध मारने में कामयाब हो गए हैं।
असल में रावत परंपरागत रूप से भाजपा मानसिकता के इस कारण माने जाने लगे क्योंकि उन्होंने छह लोकसभा चुनावों में अपनी ही जाति के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के लिए वोट किया। रावतों के तनिक कांग्रेस की ओर झुकाव की वजह पिछली बार की तरह इस बार भी अजमेर के पांच बार सांसद रहे व मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत को टिकट न देना माना जा रहा है। पिछली बार तो उन्हें राजसमंद भेज कर तुष्ट करने की भी कोशिश की गई, मगर इस बार उन्हें तवज्जो नहीं मिली। उन्हें न तो विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया और न ही लोकसभा चुनाव में। ऐसे में कितना उत्साह से पार्टी के लिए काम करते हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी। आपको बता दें कि परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र में रावतों की संख्या कम हुई है, फिर भी इनकी संख्या सवा लाख तो है ही। कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस के वोट बैंक गुर्जर, अनुसूचित जाति व मुसलमानों में कुछ रावत भी जुड़ते हैं तो यह सचिन के लिए काफी संतोषप्रद होगा।
-तेजवानी गिरधर

ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर तोल ठोकी सचिन ने

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने अजमेर संसदीय क्षेत्र से दुबारा नामांकन पत्र भरने के दौरान ऐतिहासिक भीड़ जुटा कर यह जता दिया कि वे पूरे जोश-खरोश के साथ मैदान में आए हैं। भीड़ को देख कर भाजपाइयों ने स्वीकार किया कि उन्हें भी मुकाबले को कड़ा करने के लिए पूरी ताकत झोंकनी होगी। अकेले मोदी लहर के भरोसे नहीं रहा जा सकता। चूंकि भीड़ देहात से बड़ी तादात में आई थी, इस कारण गुटबाजी से निराश शहरी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह देखा गया। जो कार्यकर्ता व्यक्तिगत अथवा सांगठनिक कारणों से नाराज हैं, उन्हें भी लगा कि अकेले उनके निष्क्रिय अथवा तटस्थ रहने से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। अजमेर शहर में सर्वाधिक भीड़ विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी की थी। सचिन के मैनेजर भी इस शो से संतुष्ट नजर आए।

मंत्री बनने के इच्छुक विधायक लगाएंगे जाट को जितवाने का पूरा जोर

राज्य सरकार के जलदाय मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट को अजमेर संसदीय क्षेत्र का भाजपा प्रत्याशी घोषित किए जाने के कारण यहां के वे विधायक, जो मंत्री बनने की पात्रता रखते हैं, जितवाने में पूरा जोर लगा देंगे। चाहे वे व्यक्तिगत रूप से जाट को पसंद करते हों या नहीं, मगर उनकी कोशिश रहेगी कि जाट जीत कर सांसद बन जाएं, ताकि मंत्री बनने में उनका नंबर आ सके।
 समझा जाता है कि पहली बार जीते विधायक पुष्कर के सुरेश रावत, मसूदा की श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, केकड़ी के शत्रुघ्न गौतम व दूदू के प्रेमचंद को सीधे केबीनेट मंत्री नहीं बनाया जाएगा, अलबत्ता उन्हें राज्य मंत्री या उप मंत्री जरूर बनाया जा सकता है। इस लिहाज से लगातार तीन बार विधायक बने अजमेर उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की श्रीमती अनिता भदेल और दो बार विधायक बने किशनगढ़ के भागीरथ चौधरी को उम्मीद है कि अगर जाट जीत कर सांसद बनते हैं तो अजमेर कोटे जिले के में उनका नंबर आ सकता है। इस कारण उनकी कोशिश ये रहेगी कि बेहतर से बेहतर परफोरमेंस दिखाई जाए। इनमें भी बात अगर करें वरिष्ठता की तो चूंकि देवनानी राज्य मंत्री रह चुके हैं, इस कारण केबीनेट मंत्री बनने का उनका दावा सबसे मजबूत होता है। उनका दावा तो जाट के रहते हुए भी सिंधी कोटे में मंत्री बनने का पहले से है। यदि जातीय समीकरण की बात करें तो जाट की जगह पर किसी जाट को ही मंत्री बनाना है तो भागीरथ चौधरी का नंबर आ सकता है। यदि अनुसूचित जाति व महिला कोटे का ख्याल रखा जाए तो श्रीमती अनिता भदेल का नंबर आता है। यूं जिला प्रमुख रह चुकी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा भी दावा कर सकती हैं। यदि जिले के राजपूतों को संतुष्ट करने की बात आई तो उनका नंबर आ भी सकता है। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि जाट जीतते हैं या नहीं, मगर उम्मीद की जाती है कि वसुंधरा की नजर में नंबर बढ़ाने के लिए विधायक अपनी ओर से पूरा जोर लगाएंगे। इसी प्रकार बोर्ड-आयोग इत्यादि में स्थान पाने के इच्छुक नेता भी अपना रिपोर्ट कार्ड बेहतर करने की कोशिश करेंगे।